Sunday, February 5, 2012

नन्हे ख्वाब !

इंसान को संतृप्ति कैसे भी नहीं हो पाती ! जब छोटा था, तबकी दुनिया को देख अक्सर सोचा करता था कि मैं शायद देर से पैदा हुआ ! अब आज जब उम्र के इस पड़ाव पर आ गया, तब लगता है कि शायद मैं जल्दी पैदा हो गया ! अगर आज के इस दौर में पैदा हुआ होता तो जो कुछ ख़ास किस्म के नन्हे ख्वाब आज मेरे बालमन में पल रहे होते, वे किस तरह के होते, चलिए उनमे से एक-आधा ख्वाब से आज थोड़ा सा आपको भी अवगत करा दूं ;

ख्वाब न० एक : अपने आस-पास और इस देश के भ्रष्ट-तंत्र के बारे में जब टीवी पर देखता, अखबारों में पढता, अपने इर्द-गिर्द के समाज में देखता तो मैं सोचता कि मैं कुछ समय के लिए इस देश का लोकपाल (अन्ना) बनूगा, एक ऐसा लोकपाल  जिस पर गोली, तोप, तलवार का कोई असर न पड़ता हो, जिससे दुनिया कांपती हो, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये जिस तरह आज हम किसी स्टूडियो में अथवा कंप्यूटर- लैपटॉप पर अपने घर में कहीं भी आमने-सामने बात करते है, मेरे पास वो तकनीक होती कि मैं न सिर्फ लैपटॉप, टीवी,आइपैड पर मन चाहे व्यक्ति से बात कर पाता, बहस कर पाता बल्कि जरुरत पड़ने पर वहीं उस टीवी, लैपटॉप स्क्रीन से बाहर निकल कर बहसकर्ता पर दो-चार जमाने में भी सक्षम होता ! जिसे बोलते है ऑन दा स्पॉट जस्टिस ! जघन्य भ्रष्टाचार और आपराधिक गतिविधियों में लिप्त पाए गए कुछ चुनिन्दा नेता, नौकरशाह अथवा किसी को भी वो सजा देता कि देखने वाले की रूह काँप जाये! उस तिल-तिल कर मरते भ्रष्ट अपराधी की वीडियो बनाता और यह अनिवार्य करता कि हर कार्यस्थल पर, चाहे वह सरकारी कार्यालय हो,संसद हो, विधानसभा हो या फिर कोई प्राइवेट संस्थान, रोज प्रात: जिस तरह हमारे स्कूलों में प्रार्थना होती है, ठीक उस तरह ही वहाँ वह अलग-अलग वीडियो दिखाए जाएँ, ताकि कुछ गलत करने से पहले भ्रष्ट और अपराधी उन परिणामों को भी ध्यान में रखे ! क्योंकि मैं समझता कि डर ही एक ऐसा हथियार है जो हम हिन्दुस्तानियों को नैतिकता सिखाता है !

ख्वाब न० दो : अपने कंप्यूटर पर गूगल-अर्थ तो आप देखते ही होंगे, कुछ समय पहले गुगल ने  अपनी इस शानदार खोज में एक और उपलब्धि जोड़ी थी, जिसमे आप न सिर्फ किसी ख़ास जगह का एक आकाशीय दृश्य ( एरियल व्यू ) ही देख सकते है, अपितु उस जगह का गली-कूचा दृश्य (स्ट्रीट व्यू ) का भी लुत्फ़ उठा सकते है ! इस गूगुल अर्थ के और क्या इस्तेमाल हो सकते है, आप लोग भली भांति वाकिफ होंगे, एक और जो नायब इस्तेमाल मेरा वह बाल -दिमाग सोचता वह भी जान लीजिये; मान लीजिये कि आपको अमेरिका जाना है तो सामान्यतौर पर बेहतर आप क्या करेंगे ? हवाई जहाज का टिकट लेंगे, एअरपोर्ट जायेंगे, जहाज पकड़ेंगे और १७-१८ घंटे में पहुँच गए अमेरिका ! लेकिन मेरा शातिर दिमाग क्या खोज करता, ज़रा जानिये ; सूट-बूट पहन तैयार होता, घर की छत पर स्थित पार्किंग में गाडी के पास पहुंचता, गाडी की पिछली सीट का दरवाजा स्वत: खुलता, मैं सीट पर बैठता, गाडी की अगली सीट के पिछले भाग में मोजूद कंप्यूटर की टचस्क्रीन जैसी कि अमूमन इंटरनेश्नल फ्लाइट्स में होती है , पर गूगल अर्थ खोलता, गूगल स्ट्रीट में जाकर कंप्यूटर की ऐरो की को गूगल अर्थ की स्ट्रीट व्यू में दर्शित हो रही अपनी कार पर ले जाता और कार को ड्रैग(कर्षण / खींच ) करके एक मिनट में अमेरिका स्थित गंतव्य पर ले जाता ! दमघोटू ट्रैफिक को झेलकर दो घंटे पहले एयर पोर्ट पहुँचने, इमिग्रेशन, वीजा चेक-अप इत्यादि की कोई झंझट ही नहीं ! ख्वाब और भी ढेरों है मगर दो ही बताना काफी है, नहीं तो लोग कहेंगे बहुत ख्वाब देखता है  :) :) :)

काश !


चलते-चलते .....
वैसे कल से मैं ऐसा महसूस कर रहा हूँ कि क्या २जी, क्या सी डब्ल्यू जी, क्या आदर्श, क्या नरेगा और क्या-क्या---- मानो  इस देश में कोई घोटाला ही नहीं हुआ था ! कुछ बच्चे पार्क में घोटाला नाम का खेल खेल रहे थे, अधेरा होने पर उनके मम्मी-पापा ने उन्हें घर बुला लिया और खेल ख़त्म !! सिर्फ एक पार्क ही अडिग है जो  उस खेल की यादों को लिए इस अँधेरे में भी  उस उजाले की बाट जोह  रहा है, जो मुहल्ले वालों को अगली भोर पर यह बता सके कि इन शरारती बच्चों ने  अपने खेल के चक्कर में किस कदर उस बगिया को रौंदा जो उस पार्क के समीप थी ! सोचता हूँ अगर यह पार्क न होता तो इस बात की भनक भी किसे लग पाती कि उस बगिया को किसने उजाड़ा है !  निकम्मे मुहल्ले वाले तो भरी दोपहर में भी उंघते हुए ही नजर आते है ! डॉक्टर स्वामी को  मेरा सलाम !        

8 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया हैं. कब सच हों इसका इन्तजार है.

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  2. बढिय़ा स्वप्न हैं। और देखिए और साझा कीजिए कोई कुछ नहीं कहेगा।

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  3. आपके ख्वाब हमारे जैसे ही हैं, मिलकर चलेंगे अब तो..

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  4. ख्वाबों में भी कटाक्ष ... बढ़िया है

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  5. पर फिर भी ख़्वाबों की हक़ीकत कुछ भी नहीं... ख़्वाब बस ख़वाब हैं आख़िर

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  6. यदि आप आज पैदा होते तो आपको घोटाले की अलग ही परिभाषा मिलती... वो जो घूस नहीं लेता :)

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  7. पशु समान पैदा होकर...थोडा जीकर ..फिर मरने वाले करोड़ों हैं.....लेकिन डॉ स्वामी की तरह देश के लिए खून पसीना एक करने वाले तो विरले ही हैं । उन्हें मेरा भी सलाम।

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।