छवि गूगल से साभार !
दिन आयेगा महफ़िल में जब, होंगे न हम एक दिन,
ख़त्म होकर रह जायेंगे सब, रंज-ओ-गम एक दिन।
नाम हमारा जुबाँ पे लाना, अखरता है अबतक जिन्हें ,
जिक्र आयेगा तो नयन उनके भी, होंगे नम एक दिन।
हमने तो वजूद को अपने , हर हाल में रखा कायम,
थक हार के खुद ही वो, बंद कर देंगे सितम एक दिन।
जख्मों को अपने हमने सदा,खरोचकर जीवित रखा ,
दिल पिघलेगा कभी , वो लगायेंगे मरहम एक दिन।
महंगी वसूली हमसे 'परचेत',कीमत हमारे शुकून की,
वक्त आयेगा जब भाव उनके भी होंगे कम एक दिन।
बहुत खूबसूरत गजल कही...
ReplyDeleteNam mera juban pe lana jinhe wazib nahi lagta wohi.........
ReplyDeleteKHOOBSURAT GAZAL
ये सोचकर कि जख्म ज़िंदा रहें, उन्हें खरोचता रहा,
ReplyDeleteथक-हारकर फिर लगाने ही होंगे मरहम एक दिन।... आखिर दर्द सहने की भी हद तो होती है
महंगी वसूली हमसे 'परचेत',कीमत हमारे सुकून की,
ReplyDeleteवक्त आयेगा जब भाव उनके भी होंगे कम एक दिन।
satya kahati rachna ...
महंगी वसूली हमसे 'परचेत',कीमत हमारे सुकून की,
ReplyDeleteवक्त आयेगा जब भाव उनके भी होंगे कम एक दिन।
वाह... होगा एक दिन.. खूबसूरत गजल...
वाह वाह गोदियाल जी । बढ़िया ग़ज़ल लिखी है ।
ReplyDeleteये सोचकर कि जख्म ज़िंदा रहें, उन्हें खरोचता रहा,
ReplyDeleteथक-हारकर फिर लगाने ही होंगे मरहम एक दिन।
...वाह! बेहतरीन गज़ल जो दिल को छू जाती है..
नाम मेरा जुबाँ पे लाना, जिन्हें वाजिब नहीं लगता,
ReplyDeleteजिक्र आयेगा तो नयन उनके भी होंगे नम एक दिन.......भावुक कर देने वाली प्रस्तुति।
ढुलमुल यूँ इसतरह कबतक, चलती रहेगी जिन्दगी,
ReplyDeleteकुछ न कुछ सख्त तो उठाने ही होंगे कदम एक दिन।
महंगी वसूली हमसे 'परचेत',कीमत हमारे सुकून की,
वक्त आयेगा जब भाव उनके भी होंगे कम एक दिन।
बढ़िया ग़ज़ल बढ़िया संकल्प बिलाशक ज़िन्दगी 'सरकार 'की तरह ढुलमुल क्यों चले ,नाकारा क्यों रहे ?
वाह!!!!
ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल.....
उस एक दिन की प्रतीक्षा न जाने कब से है..
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति...
ReplyDeleteसादर.
ये सोचकर कि जख्म ज़िंदा रहें, उन्हें खरोचता रहा,
ReplyDeleteथक-हारकर फिर लगाने ही होंगे मरहम एक दिन।…………बहुत शानदार प्रस्तुति ।
खूबसूरत गजल..|
ReplyDeleteमहंगी वसूली हमसे 'परचेत',कीमत हमारे सुकून की,
ReplyDeleteवक्त आयेगा जब भाव उनके भी होंगे कम एक दिन..
waah !..Great lines Sir...Awesome !
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बेहतरीन गजल
ReplyDeleteढुलमुल यूँ इसतरह कबतक, चलती रहेगी जिन्दगी,
ReplyDeleteकुछ न कुछ सख्त तो उठाने ही होंगे कदम एक दिन।
काश ये शेर अपनी सरकार पढ़ ले ... और कुछ सुधर जाए ... बेहतरीन गज़ल है गौदियाल जी ...
बहुत श्रेष्ठ और सटीक!
ReplyDeleteदिन आयेगा महफ़िल में जब, होंगे न हम एक दिन,
ReplyDeleteख़त्म होकर रह जायेंगे सब रंज-ओ-गम एक दिन।
रंजो गम खत्म होंगे ही
सुन्दर गज़ल