Sunday, February 19, 2012

नासमझ !
















कर ले तू भी थोड़ी सी वफ़ा जिन्दगी से,
होता क्यों है इसकदर खफा जिन्दगी से।  


बढ़ाए जा कदम तू ख्वाइशों के दर पर,
मुहब्बत फरमाके इकदफा जिन्दगी से।  


बिगड़ने न दे दस्तूर तू जमाने का ऐसे,
रखले थोड़ा कमाकर नफ़ा जिन्दगी से।  


मत कर बयां राज बेतकल्लुफी के ऐंसे
कि मिले जो बदले में जफा जिन्दगी से।   


ऐतबार बनने न पाये बेऐतबारी का सबब,
जोड़ 'परचेत' इक फलसफा जिन्दगी से।    


छवि  गूगल  से  साभार ! 

11 comments:

  1. की होती अगर थोड़ी वफ़ा जिन्दगी से,
    तो होते न इस कदर खफा जिन्दगी से !

    सच तो यही है
    बहुत सुन्दर

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  2. बड़े बड़े फलसफे सिखा जाती है ज़िन्दगी

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  3. सच ! नासमझ ही तो हैं ।
    अति सुन्दर ।

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  4. वफ़ा को दफ़ा करने में ही नफ़ा है॥

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  5. सबका हाल कह गए अपनी कविता से।

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  6. बढ़ाए जो कदम होते ख्वाइशों के दर पर,
    मुहब्बत फरमाकर इक दफा जिन्दगी से !

    Bahut Hi Sunder

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  7. ऐतबार बनता न बेऐतबारी का सबब,
    जुड़ जाता जो इक फलसफा जिन्दगी से !

    बहुत सुंदर ...

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  8. ये नासमझी कभी कभी कितना दुःख दे जाती है ... मस्त लिखा है गौदियाल जी ...

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  9. दिल को छू गई आप के दिल से निकली ...
    इस अनपढ़ को भी !
    किये क्यों बयां राज बेतकल्लुफी के ऐंसे,
    बदले में पाई जो हरदम जफा जिन्दगी से !
    भाई जी ,स्वस्थ रहो ,मस्त रहो!

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।