कर ले तू भी थोड़ी सी वफ़ा जिन्दगी से,
होता क्यों है इसकदर खफा जिन्दगी से।
बढ़ाए जा कदम तू ख्वाइशों के दर पर,
मुहब्बत फरमाके इकदफा जिन्दगी से।
बिगड़ने न दे दस्तूर तू जमाने का ऐसे,
रखले थोड़ा कमाकर नफ़ा जिन्दगी से।
मत कर बयां राज बेतकल्लुफी के ऐंसे
कि मिले जो बदले में जफा जिन्दगी से।
ऐतबार बनने न पाये बेऐतबारी का सबब,
जोड़ 'परचेत' इक फलसफा जिन्दगी से।
छवि गूगल से साभार !
फिर पूरे नम्बर...
ReplyDeleteकी होती अगर थोड़ी वफ़ा जिन्दगी से,
ReplyDeleteतो होते न इस कदर खफा जिन्दगी से !
सच तो यही है
बहुत सुन्दर
बड़े बड़े फलसफे सिखा जाती है ज़िन्दगी
ReplyDeleteसच ! नासमझ ही तो हैं ।
ReplyDeleteअति सुन्दर ।
वफ़ा को दफ़ा करने में ही नफ़ा है॥
ReplyDeleteसबका हाल कह गए अपनी कविता से।
ReplyDeleteबढ़ाए जो कदम होते ख्वाइशों के दर पर,
ReplyDeleteमुहब्बत फरमाकर इक दफा जिन्दगी से !
Bahut Hi Sunder
ऐतबार बनता न बेऐतबारी का सबब,
ReplyDeleteजुड़ जाता जो इक फलसफा जिन्दगी से !
बहुत सुंदर ...
ये नासमझी कभी कभी कितना दुःख दे जाती है ... मस्त लिखा है गौदियाल जी ...
ReplyDeleteदिल को छू गई आप के दिल से निकली ...
ReplyDeleteइस अनपढ़ को भी !
किये क्यों बयां राज बेतकल्लुफी के ऐंसे,
बदले में पाई जो हरदम जफा जिन्दगी से !
भाई जी ,स्वस्थ रहो ,मस्त रहो!
वाह एक उम्दा ग़ज़ल. ☺
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