Monday, February 6, 2012

दल बदल गए यार सारे !










चित-ध्येय में बाहुल्य के,चढ़ गए खुमार सारे,
जिस्म दुर्बल नोचने को,गिद्ध,वृक तैयार सारे।


बर्दाश्त कर पाते न थे,जुदाई जिस दोस्त की,
वक्त ने चाल बदली, दलबदल गए यार सारे।


छीनके निरपराध  से, हक़ भी फरियाद का,
रहनुमा बन घुमते हैं , देश-गुनहगार सारे।


मजहबी उन्माद में, रंग दिया आवाम को ,
नाकाम बन गए है,अमन के हथियार सारे।

शिष्टता को घर से उठा कर ले गई है बेहयाई,
पड़ गए 'परचेत'बौने,कौम के तिरस्कार सारे।



छवि  गूगल   से  साभार ! 



विरादर,
तमाम गुंडे-मवाली,
मिलके चमन लूटा
और कोष खाली।

हरतरफ
खुद ही
फैलाई बदहाली,
उसपर 

आंसू बहाता है
वो भी घडियाली।


अब तो बस यही 

बद्दुआ निकलती है
तेरे लिए दिल से,
धत्त तेरे की
निकम्मे, बेशर्म 
बगिया के माली !!






9 comments:

  1. अरे वाह!
    बहुत सटीक अभिव्यक्ति है!

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  2. वक्त के साथ सभी बदल जाते हैं साले :)

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  3. बहुत सुंदर क्या बात है सटीक बात ....

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  4. और अब मुसका रहे हैं, बाँध कर आकार सारे..

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  5. जाति,मजहब उन्माद में, है आवाम रंगी जा रही,
    नाकाम बनकर रह गए, अमन के हथियार सारे।

    अमन के हथियारों को तो जंग लगवा दिया है देश के रहनुमाओं ने ... और रंगवा दिया है हरे, लाल और भगवे रंग में ...

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  6. नाकाम रह गए अमन के हथियार सारे....
    कोशिश जारी रहनी चाहिए एक न एक दिन अमन के हथियार अपना असर जरूर दिखाएंगे। सार्थक रचना।

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।