जैसा कि आप सभी को विदित होगा कि विगत माह के अंतिम पखवाड़े में सन 2008 के मुंबई हमलों के दोषी, पाकिस्तानी आतंकवादी २४ वर्षीय नवाब, "श्री" अजमल आमिर कसाब "जी" ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा उन्हें उपलब्ध कराये गए वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन के मार्फ़त दाखिल की गयी अपनी विशेष अनुमति याचिका में बम्बई उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए दावा किया था कि उनके मामले की सुनवाई स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से नहीं हुई है। साथ ही उन्होंने कहा था कि खुदा के नाम पर जघन्य अपराध को अंजाम देने के लिए किसी रोबोट की तरह उन्हें बुद्धि-भ्रष्ट किया गया और अपनी कम उम्र को देखते हुए वे इतनी बड़ी सजा के हकदार नहीं है। सनद रहे कि शीर्ष अदालत ने पिछले साल दस अक्तूबर को श्री कसाब जी की मौत की सजा पर रोक लगा दी थी।
हालांकि पिछले हफ्ते ८ फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका यह कहकर खारिज कर दी कि वे भारतीय जमीन पर पहुंचने से पहले ही सबकुछ जानते थे, और इस साजिश में शामिल थे। उस दाखिल की गयी विशेष अनुमति याचिका में लगाए गए आरोपों के जबाब में पिछले बुधवार को बहस को आगे बढाते हुए महाराष्ट्र सरकार के वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमनियम ने उनके द्वारा लगाए गए आरोपों को गलत बताया और उन्हें सख्त से सख्त सजा देने की अपील की।
इसमें कोई दो राय नहीं कि आज अगर इस देश की जनता को अपने लोकतंत्र के तीन स्तम्भों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में से किसी पर अगर पूर्ण भरोषा है तो वह है न्यायपालिका। और निसंदेह देश के तमाम कानूनों के तहत कसाब जी के केस में भी हमारी न्यायपालिका निष्पक्ष रूप से अपने-अपने कार्य में जुटी है। जिस देश में एक आम आदमी का समय पर न्याय पाना उसके लिए आसमान पर से चाँद-तारे तोड़ लाना जैसा हो, जहां उसकी न्याय पाने की आशा में अदालती चक्कर काटते-काटते उम्र गुजर जाती हो, जहां एक नामी वकील सर्वोच्च न्यायालय की सिर्फ एक सुनवाई(हियरिंग) की फीस २० लाख रूपये से ४० लाख रूपये के बीच में लेता हो, वहा श्री कसाब जी को मुफ्त में ( यानि कि देश के खर्चे पर ) दो-दो वरिष्ठ वकील मुहैया कराये जाने और उन अधिवक्ताओं द्वारा कसाब जी के वकील के तौर पर उनके पक्ष में तथाकथित उच्च कोटि की दलीलें न्यायालय के समक्ष पेश की जा रही हो, वहाँ कसाब जी का यह दावा कि उन्हें निष्पक्ष विचारण नहीं मिला, मैं तो कहूंगा कि न सिर्फ शरारतपूर्ण बल्कि हास्यास्पद भी है।
इस पहलू पर आगे कोई टीका-टिप्पणी करने से पूर्व अपने पड़ोसी मुल्क से सम्बंधित एक और न्यायिक पहलू पर भी एक नजर डाल ली जाये तो बेहतर होगा। पाकिस्तान के पेशावर जिले की कुख्यात अदिआला जेल, कुख्यात इसलिए भी कह रहा हूँ कि यह जेल न सिर्फ अपने प्रताड़ना प्रकोष्ठों के लिए जानी जाती है अपितु २६/११ के जो दोषी पाकिस्तान में मौजूद है, उनके मुकदमों की सुनवाई भी इसी जेल में होती है ताकि कोई मीडिया का व्यक्ति वहाँ अपने पर भी न मार सके। यानि जिसे कोई कार्यवाही निष्पक्ष कराने की मंशा न हो वह इस जेल का रुख करता है। अतीत में तमाम पाकिस्तान की जेलों से गुम हुए हजारों कैदियों में से ग्यारह वे कैदी भी थे जो या तो पाकिस्तानी सेना से सम्बद्ध थे, या फिर स्थानीय नागरिक। और जिनपर तत्कालीन सैनिक शासक जनरल परवेज मुशर्रफ पर हमले की साजिस और २००९ में सेना तथा आइएसआई मुख्यालय पर हुए हमलों के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था और इसी अदिअला जेल में बंद थे। इन्हें लाहौर की अदालत ने बरी भी कर दिया था, किन्तु करीब डेड साल पहले इस जेल से ये आरोपी अचानक गायब हो गए थे। इन्हें ढूढने की जब इनके परिजनों की तमाम कोशिशें नाकाम हो गई तो आखिरकार उन्होंने पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट की शरण ली। कोर्ट ने प्रशासन को इन गुमशुदा कैदियों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने के लिए कई बार निर्देश दिए, मगर प्रशासन टाल-मटोल करता रहा। इस बीच दबाव बढ़ने पर सेना और आइएसआई से भयभीत इस जेल के कुछ अधिकारियों ने गुपचुप तौर पर पूरे वाकिये से फरियादियों के वकीलों को पूरी वस्तुस्थिति समझा दी। अपने सख्त मिजाज के लिए प्रसिद्द पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख जज श्री इफ्तिखार चौधरी ने आइएसआई और सेना गुप्तचर शाखा को अंतिम चेतावनी के तौर पर गुमशुदा कैदियों को अदालत में पेश करने के लिए सिर्फ २४ घंटे का समय दिया तो अगले दिन खचाखच भरी अदालत में जो नजारा सामने आया, उसे देख उपस्थित जनसमूह सहम कर रह गया। इन गुमशुदा कैदियों को डेड साल पहले सेना और आईएसआई उठाकर अपने यातना बैरिकों में ले गयी थी, और कोर्ट की फटकार के बाद इनके अधिकारियों ने कोर्ट को बताया कि इन ग्यारह में से चार कैदी यातना के दौरान पहले ही दम तोड़ चुके थे, जबकि बाकी बचे सात कैदियों में से तीन की किडनी फेल हो चुकी है, और चार अन्य भी इस कदर बीमार है कि चल पाने में भी असमर्थ है। जिन्हें पेश किया गया वे बात कर पाने में भी असमर्थ थे और सभी कैदी हाथों में यूरीन बैग ( मूत्र-थैलिया) पकडे थे, यानि इन्हें स्वत : मूत्र त्याग करने लायक भी नहीं छोड़ा गया। कैदियों की ऐसी हालत देख उनके परिजन अदालत में ही बिलखकर रो पड़े।
शौल में ढककर पाकिस्तानी कोर्ट में पेश किये जा रहे गुमशुदा कैदी
अब जरा उपरोक्त पहलुओं पर कुछ तुलनात्मक नजर दौडाए; ऐसा नहीं कि मैं पाकिस्तान के उन ग्यारह कैदियों से कोई ख़ास हमदर्दी जतलाने की कोशिश कर रहा हूँ, किन्तु मानवीय पक्ष के मध्यनजर वहाँ की सुरक्षा एजेंसियों और प्रशासन की ज्यादतियां भी भिन्न-भिन्न आयामों से गौर करने योग्य है। हालांकि वहा की सर्वोच्च अदालत, खासकर जस्टिस चौधरी की भूमिका भी उतनी ही सराहनीय है जितनी कि हमारे न्यायालयों की, किन्तु ऐसा भी नहीं कि मैं वहां की न्याय-व्यवस्था की तुलना अपने देश की न्याय व्यवस्था से कर रहा हूँ। मगर अब आप ज़रा सोचिये कि उपरोक्त वर्णित पाकिस्तानी कैदी उस देश के ही नागरिक है, और इधर इन जनाब कसाब जी ने एक दुश्मन देश का नागरिक होने के बावजूद भी हमारी लचर कह लीजिये या फिर घुन लगी न्याय-व्यवस्था, का नाजायज फायदा उठाकर क्या-क्या गुल खिलाये, किसी से छुपा नहीं। देश अपने करदाता की गाडी कमाई का ५० करोड़ रूपये इस मेहमान की खातिरदारी में खर्च कर चुका ! जिसे रोज मनपसंद भोजन, चिकन बिरयानी उपलब्ध कराई जा रही हो वह भला मरना क्यों चाहेगा? जिसके इतने सारे शुभचिंतक इस देश में हो कि एक अनपढ़-गंवार को कोर्ट में क्या बेहतरीन दलील पेश करनी है, उसकी मुफ्त और मुहमांगी सलाह मिल रही हो तो वह तो कोर्ट के फैसलों पर उंगली उठाएगा ही।
अभी दिल्ली में जो आतंकी हमला हुआ उसको अंजाम देने वालों का अभी कोई सुराग नहीं मिला, किन्तु फर्ज कीजिये और थोड़ी देर के लिए यह मान लीजिये कि दिल्ली में इजराइली राजनयिक की पत्नी पर अभी जो हमला हुआ उसमे ईरान का ही हाथ है, तो जो अहम् सवाल अब खडा होता है, वह यह कि ईरान ने इजराइल पर हमले के लिए भारत को ही क्यों उपयुक्त जगह समझा? सीधा सा जबाब है कि ईरान भी जानता है कि यदि उसके एजेंट रंगे हाथों पकडे भी जाते है तो भी कुछ ख़ास नहीं होने वाला, और ऐसा सोचने के लिए उसके पास कारण भी है! और जिनमे से इस तरह की राय बनने के जो दो कारण प्रमुख है, वह हैं संसद और मुंबई पर हमले के बाद की हमारी सुस्त प्रतिक्रिया।
अंत में, हो सकता है कि देखने वालों की नजरों में कसाब के प्रति इस तरह की मेरी सोच में भी अनेकों खोट हों, किन्तु जो उपरोक्त गुमशुदा पाकिस्तानी कैदियों का किस्सा मैंने यहाँ पेश किया, जरा अपने दिमाग की बत्ती जलाइए और सोचिये कि जिस देश का प्रशासन, जिस देश की फ़ौज और खुफिया-तंत्र दुनियाभर के झूठ बोलकर अपने सर्वोच्च न्यायालय और कानूनों की अवहेलना कर अपने ही नागरिकों से इतनी बर्बरता से पेश आ रहा हो, तो आज से ४०-४५ साल पहले हमारे भी अनेकों जवान अपनी भरी जवानी में इस देश की रक्षा करते हुए कहीं गुम हो गए थे, लेकिन दुश्मन मुल्क के ये ही हुक्मरान वही दोहराते रहे थे कि हमारे यहाँ आपका कोई युद्ध-बंदी नहीं है। फर्ज कीजिये कि वहाँ भी इन्होने झूठ बोला हो, तो ये दरिन्दे हमारे उन प्रिजनर आफ वार (PoW) के साथ किस बर्बरता से पेश आए होंगे, उसकी कल्पना तो हम तभी कर सकते हैं कि जब हम कसाब की फ़िक्र करना छोड़ वास्तविक धरातल पर सोचे। हम खुदगर्जों ने तो १२ साल पहले की वह घटना भी भुला दी जब इन्होने अपनी दरिन्दगी का खेल शहीद लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया और उसके साथियों के साथ कारगिल के मोर्चे पर खेला था।
छवि गूगल से साभार !
Jis munh se Kasab ne hamari nyay vyavastha par sandeh jataya hai, uske us munh par hi aisa prahaar karna chahiye tha ki voh kuchh bolne ke Kabil hi naa rahe...
ReplyDeleteJahan tak Pakistani qaidiyon ki baat hai, to mujhe ismein bilkul bhi hairaani nahi hui...
Yeh kewal es desh me hi sambhav he.AAP KE DWARA BILKUL SAHI KAHA GAYA AAJ YADI KASAB WAPAS PAKISTAN CHALA GAYA HOTA TO USKA HAL BHI UN KEDIYON JAISA HI HOTA.
ReplyDeleteYEH PANAH BHARAT ME MILTI HE AUR MILTI BHI RAHEGI.AGAR FAISLA HONE KE BAD BHI SARKAR SAJA NAHI DETI TO SAAF HE KI WOH INHE PANAH DE KAR AUR LOGON KE LIYE RASTA KHOL RAHI HE.
पता नहीं किसके लिये क्या सिद्ध करने बैठे हैं हम...
ReplyDeleteवैसे पाकिस्तान में पिछले दिनों हुए कई फैसले वहाँ के न्यायाधीशों की हिम्मत को दर्शाते हैं.
ReplyDeleteपता नहीं कसाब के मामले को कब तक लटकायेंगे.
भाई जी, ये है हमारा सिस्टम ....कसूरवार कौन ?
ReplyDeleteबहुत सटीक और सार्थक आलेख...सरकार की अकर्मण्यता इस तरह के सभी केसों में लाज़वाब है..
ReplyDeletekasaab se bhi bade aatankwaadi satta mein baithe hain to kasab ko saza kyon milegi bhala?
ReplyDeleteअसल में हम चिकने घडे हो गए हैं, कोई हमारे मुंह पर थूकता है तो भी कहते हैं कि अच्छा हुआ मुंह में नहीं थूका वर्ना......
ReplyDeleteThe ones who should not exist do exist and the ones who must do not..
ReplyDeleteकौन बड़ा कौन छोटा ... मुद्दा ये है ही नहीं .
ReplyDeleteखून में उबाल लाने वाला आलेख। दरअसल, कसाब भी ना बिरयानी खा-खा कर उकता गया है। उसे अब तक समझ आ चुका होगा कि भारत में वोटों की खातिर मुझे फांसी से तो बचाया जाता रहेगा। क्यों न और सहूलियत पाने की कोशिश की जाए।
ReplyDeleteहमारे देश का दुर्भाग्य है की मुस्लिमो को वोट बेंक की तरह देखते देखते देश का पूरा तंत्र तुष्टिकरण के रंग में रंग जाता है और कसाब जैसे आतंकी को भी उसी चश्में से देखने लगता है ... और उसमें उसे वोट नज़र आने लगते हैं ...
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