Tuesday, August 18, 2020

बेवफा ख्वाहिशे

 


इतनी संजीदा जे बात तुमने, 
गर यूं मुख़्तसर सी न कही होती,
मिलने को हम तुमसे, 
मुक्तसर से अमृतसर पैदल ही चले आते।

4 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20.8.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

    ReplyDelete

सलाह

दीवार सामर्थ्य की और तू फांद मत, अपनी औकात में रह, हदें लांघ मत, संवेदनाएं अगर जिंदा रहे तो अच्छा है, बेरहम बनकर उन्हें खूंटी पे टांग मत।