इतनी संजीदा जे बात तुमने,
गर यूं मुख़्तसर सी न कही होती,
मिलने को हम तुमसे,
मुक्तसर से अमृतसर पैदल ही चले आते।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
दीवार सामर्थ्य की और तू फांद मत, अपनी औकात में रह, हदें लांघ मत, संवेदनाएं अगर जिंदा रहे तो अच्छा है, बेरहम बनकर उन्हें खूंटी पे टांग मत।
बहुत खूब
ReplyDeleteThanks, sir. Bas yoon hi man bahla lete hain😀
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20.8.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत खूब।
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