Monday, December 7, 2020

अतृप्त मन...

इन आवारा चक्षुओं ने,

छुप-छुप के ताकी हैं,

मेरी, वो ख्वाहिश,

जो अभी भी बाकी हैं।

दिल की हर तमन्ना

सिर्फ,नशेमन ने हाकी है,

गोया, अतृप्त हैं ख्वाहिश,

जो अभी भी बाकी हैं।


xxxxxxx


तेरी हर परेशानी, रंज और ग़म 

बेहिचक वो मुझको दे दे, 

उससे हरव़क्त यही गुजा़रिश करता हूंं ,

ऐ दोस्त, मुझे जब भी कभी ,

देव-दर्शन होते हैं , सिर्फ़  और सिर्फ़,

तेरी खुश़हाल जिंदगी की शिफारिश़ करता हूँ।





3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (09-12-2020) को "पेड़ जड़ से हिला दिया तुमने"  (चर्चा अंक- 3910)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

    ReplyDelete

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...