Sunday, January 10, 2021

खलिश..

मंजिल के करीब पहुंचने ही वाली थी

जब यह सफ़र-ए-जिन्दगी, ऐ दोस्त!

तुमने नींद मे खलल डालकर, 

स्वप्न विच्छेदन कर दिया

1 comment:

संकल्प-२०२६

सलीके से न खुशहाली जी पाया, न फटेहाल में,  बबाल-ए-दुनियांदारी फंसी रही,जी के जंजाल में,  बहुत झेला है अब तक, खेल ये लुका-छिपी का, मस्ती में ...