Monday, January 7, 2013

सर्द अहसास !

जबाब देने  लगे जब तन,
वो भी  साथ लिए  हुए 
इक आहत मन, 
सवालों के जबाब देते-देते,
जिन्दगी भी खुद इक 
सवाल बनकर रह जाती है।   
फर्क बस इतना है कि 
लड़कपन में वालिद अक्सर  
जीवन का मकसद पूछा करते थे 
और बुढ़ापे में औलाद
जीने का मकसद पूछती है।

xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx


दामन में पसरे हुए 
खुश्क, बेवफा मौसम को
जब हैरत से तकने लगते है 
कुछ  उमंगों के फूल,
कुछ अहसास कराती  है भूल, 
और तब समझ में  आता है 
कि क्यों तुम कहा करते थे,
वफ़ा की दुनिया
सितारों से  भी बहुत आगे है।
तुम तोड़कर चले गए 
तमाम दिल की सलाइयों  को ,
और जब सर्द-अहसासों के
खुश्क मौसम आए ,
हम कोई हसीं ख्वाब न बुन पाए ।  

9 comments:

  1. प्रश्नों की परिधि से बाहर आना चाहा पर प्रश्नों की रोकता ने बाहर आने ही नहीं दिया।

    ReplyDelete
  2. उद्द्वेलित करती रचना ||

    जीना बन देता चढ़ा, दस मंजिल मजबूत |
    है जीना किस हेतु तब, प्रश्न पूछता पूत |
    प्रश्न पूछता पूत, पिता जी मकसद भूला |
    भूल गया वह सीख, आज हूँ लंगडा लूला |
    बढ़ी विश्व रफ़्तार, जाय दुत्कार सही ना |
    अंधड़ गया उजाड़, कठिन है ऐसे जीना ||
    जीना= सीढ़ी

    ReplyDelete
  3. लड़कियों को बचपन से ही आत्मरक्षा की ट्रेनिंग अनिवार्य रूप से दी जाये। हर जगह पुलिस का पहरा नहीं लगाया जा सकता .

    badhiya soch.

    ReplyDelete
  4. जीवन की इस डगर में
    अब हमारे लिए
    बाकी बची न कोई उलझन है,
    क्योंकि
    जिस चाहत के खातिर
    मोल ली थी तमाम उलझने,
    वही अब हमारी दुल्हन है ...

    हा हा ... मुझे तो लगता है उलझनों की शुरुआत है ये ... बहुत खूब गौदियाल जी ...

    ReplyDelete
  5. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवार के चर्चा मंच पर ।।

    ReplyDelete
  6. भाई जी ! नमस्कार , सब के सवालों के जवाब भी दे डाले आपने इन सर्द अहसासों में ...,,
    सवालों के जबाब देते-देते,
    यहाँ जिन्दगी
    खुद इक सवाल बनकर रह गई ,
    फर्क बस इतना है,
    जवानी में वालिद
    जीवन का मकसद पूछते थे,
    अब औलाद
    जीने का मकसद पूछती है।

    ReplyDelete
  7. बहुत सुंदर, बेहतरीन।

    ReplyDelete
  8. वाह वाह ! क्या बात है !

    ReplyDelete

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...