Monday, August 30, 2010

भ्रष्टों और निक्कमों का प्रिय खेल बनकर रह गया है क्रिकेट !

कविता बनाने बैठा था, मगर वक्त और आत्मउत्साह की कमी के कारण सिर्फ चार ही लाईने बन पाई ;

किसने कब यह सोचा था, वक्त का ऐसा एक तकाजा होगा,
अन्धेर लिये सारी नगरी होगी, अन्धों मे काना राजा होगा ।
महंगाई से त्रस्त होंगी प्रजा सारी, चांदी काटेंगे मंत्री, दरवारी,
राग अलापेंगे सब अपना-अपना, पर सिंहासन साझा होगा॥
अन्धेर लिये सारी नगरी होगी, अन्धों मे काना राजा होगा ।...........................॥

हाँ , इस लेख के शीर्षक के मुताविक चंद बातें कहना चाहूँगा कि आज क्रिकेट का खेल एक भ्रष्टाचार की जननी बन चुका है। इस बात से अधिक उत्साहित होने की जरुरत नहीं कि आज इस खेल के गंदे हिस्से में कुछ पाकिस्तान के खिलाड़ियों के फंसने की ख़बरें है। सिर्फ इतनी सी बात नहीं है कि केवल पाकिस्तानी खिलाड़ी ही ऐसा काम कर रहे है। याद करे कि अभी आई पी एल पर यह खुले आरोप लगे है कि उसके भी सारे मैच पहले से फिक्स थे। तो क्या जो खेल फिक्स करके खेले गए तो क्या उसमे खेलने वाले खिलाड़ी पाक साफ़ थे ? इस खेल ने देश के सारे खेलों को निगल लिया है। दूसरे खेलों के खिलाड़ी जो देश के लिए खेलते है वे पाई-पाई को तरसते है और इस खेल के खिलाड़ी......? इस खेल में जो गंदगी फैल चुकी है इसकी वजह इसका अत्यधिक राजनीतिकरण भी है अत : यह उम्मीद करना कि इसे सुधारने के लिए कोई ठोस प्रयास होंगे, अपने को अँधेरे में रखने जैसा है। लेकिन आम जनता बहुत कुछ कर सकती है। अब यह आप सबके ऊपर है कि इस उबाऊ और निक्कम्मा बनाने वाले खेल को क्या आप आगे भी वैसा ही समर्थन देंगे, जो आज तक दिया ? वक्त आ गया है कि इस खेल के बारे में अपने माइंड सेट का फिर से गंभीरता के साथ अवलोकन करें !

Thursday, August 26, 2010

अर्थ-अनर्थ !
















छवि गूगल से साभार , कार्टून को बड़े आकर में देखने के लिए कृपया उस पर क्लिक करे !

Wednesday, August 18, 2010

ताक बैठे है गिद्ध क्यों, जनतंत्र की डाल पर!




क्या कभी सोचा है तुमने इस सवाल पर,
क्यों आज ये देश है अपना, अपने ही हाल पर।
ढो रहा क्यों अशक्त शव अपना काँधे लिए,
ताक बैठे  है गिद्ध क्यों, जनतंत्र की डाल पर॥

भ्रष्टाचार भरी आज यह सृष्ठि क्यों है,
कबूतरों के भेष में बाजो की कुदृष्ठि क्यों है।
'शेर-ए-जंगल' लिखा क्यों है गदहे की खाल पर,
ताक बैठे  है गिद्ध क्यों, जनतंत्र की डाल पर॥

महंगाई से निकलता दरिद्र का तेल क्यों है,
राष्ट्र धन से हो रहा फिर लूट का खेल क्यों है।  
शठ प्रसंन्न है आबरू वतन की उछाल कर,
ताक बैठे  है गिद्ध क्यों, जनतंत्र की डाल पर॥

Tuesday, August 17, 2010

क्या लिखू ?

लिखने को तो बहुत कुछ था, मगर
इस खिन्न मन की किन्ही गहराइयों से एक आवाज आ रही है कि लिखकर क्या करेगा ?
अपना खून जलाएगा , अपने आँखों की रोशनी कमजोर करेगा, अपनी उँगलियों को कष्ट देगा,
अपना बिजली का बिल बिठाएगा, अपने इन्टरनेट सर्विस प्रोवाईडर का घर भरेगा,
अपने कंप्यूटर के की बोर्ड को गुस्से में जोर-जोर से उँगलियों से पीटेगा, अपने घरवालों पर खीजेगा, इससे ज्यादा है भी क्या तेरे बस का ?

इसलिए रहने दे लल्लू , तेरे बस का कुछ नहीं ! लेकिन फिर
मेरी अंतरात्मा की गहराइयों से कुछ विरोध के स्वर फूटने लगते है, जो चीख-चीखकर मुझसे
ये कहते है कि गोदियाल, तू कबसे इतना स्वार्थी हो गया ?

तू कबसे सिर्फ अपने ही बारे में सोचने लगा ?
क्या यही तेरे उस तथाकथित स्वदेशप्रेम के नाटक का पटाक्षेप है, यदि हाँ, तो धिक्कार है तुझपर ! फिर तो डूब मर, कहीं चुल्लूभर पानी में !

इंतना कहने के बाद मेरी आत्मा मुझे यह कहकर धिक्कारने लगती है कि तू क्यों आया इस
संसार में ? तुझे तो पैदा ही नहीं होना चाहिए था! ये शब्द मुझे इसकदर भेदते है कि मै जोर से चीख उठता हूँ, लेकिन मेरी वह चीख कोई नहीं सुनता, सिर्फ कमरे की दीवारें कांपकर रह जाती है!
फिर पास रखे एक पानी के गिलास से कुछ घूँट गले में उड़ेल लेता हूँ! धीरे-धीरे जब नॉरमल होता हूँ तो मुझे याद आने लगता है कि स्वतंत्रता दिवस पर इस देश के कुछ किसान और जवान गोलिया खा रहे थे , कुछ असामाजिक तत्व देश की सम्पति को नुक्सान पहुंचा रहे थे! उसके बाद जैसा कि अक्सर होता आया है, कुछ मौक़ा परस्त राजनेता उन लाशों पर अपने और अपने परिवारों के लिए
संसद और विधान सभाओं में सीटे सुनिश्चित करने में लगे थे!

इनकी हरकते देख, मुझे वो आजादी का संग्राम याद आ रहा था! मैं सोच रहा था कि चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह , सुभाष चन्द्र बोष, इत्यादि जो
प्रत्यक्ष तौरपर सीने पर गोली खाने वाले असली बलिदानी थे, वे किस राजनैतिक पार्टी के थे ? किसी के नहीं, क्योंकि

वे इन राजनेताओं की तरह स्वार्थी नहीं थे, इसलिए प्राणों की आहुति दे दी , लेकिन कुछ
हरामखोर जो सिर्फ जनता को उकसाते थे, और खुद कही आड़ में छुप तमाशा देखते थे, आज तक नोट गिन रहे है!
वाह ! ऊपर वाले, क्या यही है तेरा इन्साफ ? इनको महामारी कब आयेगी ??????????????

अब आज की परिस्थितियाँ देखिये , जब गुजरात के अमित शाह को तो एक अपराधी की मौत के सिलसिले में गिरफदार करना था , तो इस देश और यहाँ के मीडिया को तो छोडिये , पडोशी मुल्क के कुत्ते, बिल्लियाँ , सुंवर, सियार और गीदड़ भी इकठ्टे होकर एक स्वर में बोले ! लेकिन जब २००८ के बैंगलोर बम धमाकों के आरोपी की बारी आई

तो कर्णाटक उच्च न्यायालय द्वारा माँगा गया मदनी केरल के नेताओ द्वारा बचाया जाने लगा,
सिर्फ वोट बैंक की दुहाई देकर ! तब इस देश के सारे कायदे क़ानून धरे के धरे रह गए ! एक भी गीदड़ नहीं रोया !

इन तथाकथित अल्पसंख्यकों की हिम्मत (जो दिनों-दिन बढ़ रही है )देखिये, इन्होने कल बरेली में जहा ये बहुतायात में है, कांवड़ ले जा रहे कुछ हिन्दुओं को इसलिए पत्थर मारकर भगा दिया क्योंकि वे इनके धार्मिक स्थल के सामने से लाउडस्पीकर लेकर जा रहे थे !
लेकिन इन अमन के दुश्मनों को कौन समझाए कि जब ये अपनी इबादत्गारों से
सुबह चार बजे ही लोगो की मीठी नींद हराम करते है, लाउडस्पीकर पर बाग़ देकर , तब इनका जमीर क्या घास चरने गया होता है ? आपको याद होगा कि कुछ महीनो पहले भी इस स्थान पर इन्होने किस सुनियोजित ढंग से दंगे-फसाद किये थे !

लेकिन पूछेगा कौन ? जिसे देखो उसे तो सिर्फ वोट की पडी है ! अमन चैन का पैगाम देना क्या हिन्दुओ का ही ठेका रह गया ? एक आदको छोड़ आज के किसी भी सेक्युलर खबरिया माध्यम ने इसे तबज्जो नहीं दी !

आज अगर आप गौर से देखो तो सिर्फ एक ही इंडस्ट्री फल-फूल रही है, और वह है,राजनीतक इंडस्ट्री ! बाकी सब मंदी के दौर से गुजर रहे है ! तो इसे पहचानिए, वरना मेरा तो यह मानना है कि जो हालात देश में बन रहे है आतंकवादीयो के हौंसले जिस कदर बुलंद हो रहे है, देश एक और विघटन की ओर अग्रसर है!
इसे हलके में मत लीजिये , १९२० तक सिर्फ दिखावे के लिए जिन्ना भी इस देश के सेक्युलरिज्म और कायदे-कानूनों की बात-बात पर दुहाई देता था, मगर २५ वर्ष के अंतराल में ही देश के तीन टुकड़े कर गया !

एक और मजेदार बात पहले कहना भूल गया, आजकल अमेरिका में ग्राउंड जीरो ( वह जगह जहा पर पहले ट्रेड टावर था ) मुस्लिम कम्युनिटी सेंटर और मस्जिद बनाने के प्रस्ताव से सेक्युलर देश अमेरिका में उबाल आ रखा है ! पहले तो यह कहूंगा कि इन इस्लाम के धर्मावलम्बियों को सिर्फ विवाद पैदा करने में मजा आता है, क्या अमेरिका के न्युयोर्क शहर में कोई और जगह नहीं थी मस्जिद बनाने के लिए जो यह लोग ०९/११ के पीड़ितों के जख्मो पर नमक छिड़कने में लगे है? यह इस बात को दर्शाता है कि ये लोग दूसरों को ठेस पहुंचाने में कितने आनंदित होते है ! दूर क्यों जाते हो, बाबरी मज्सिद का ही रोना देख लीजिये !

दूसरा ये कि इनकी इस्टाइल मुझे पसंद आई, I like it ya'r ! धर्मांध हो तो ऐसे , एक भाई ओसामा ने वहाँ बिल्डिंगे गिराकर जगह खाली करवाई और दूसरा भाई ओ** ३००० से अधिक लोगो की कब्र के ऊपर मस्जिद बनाने लगा है ! क्या बात है, मिसाल नहीं कोई दूसरी इस शान्ति के धर्म के भाई-चारे की दुनिया में ! वाह... वाह ... अरे सेक्युलरों कुछ सीखो इनसे !

Monday, August 16, 2010

मर्यादा का पालन !

राजनीति में मर्यादा का भी पालन होना चाहिए : मनमोहन सिंह




एक और !!

रहम करो माई बाप !
माया-ममता का पालन करते-करते
तो हम सड़क पर आ गए और आप है
कि.......!!!!

छवि गुगुल से साभार

Sunday, August 15, 2010

क्या सोचकर इस जश्न मे शरीक होवे?

जहां तक इन्सानों का सवाल है, मै समझता हू कि इस दुनिया मे भिन्न-भिन्न विचारधाराओं मे चार प्रकार का दृष्टिकोण रख्नने वाले लोग पाये जाते है, पहला आशावादी और दूसरा निराशावादी ( ये दोनो ही मिश्रित दृष्टिकोण वाले भी कहे जा सकते है ) तीसरा होता है घोर आशावादी और चौथा घोर निराशावादी। घोर आशावादी और घोर निराशावादी इन्सान आप शेयर मार्केट के उन तेजडियों और मंदडियों को कह सकते है, जो बाजार मे विपरीत परिस्थितियां होने के बावजूद भी शेयरों से इसी उम्मीद पर खेलते है कि आज मार्केट चढेगा अथवा उतरेगा। यह कतई मत सोचिये कि मै आप लोगो को लेक्चर दे रहा हू, बस यूं समझिये कि भूमिका बंधा रहा हू। मालूम नही लोग इस लेख को पढ्कर मुझे उपरोक्त मे से किस श्रेणी मे रखते है लेकिन इतना जरूर कहुंगा कि वर्तमान परिस्थितियों मे मुझे तो दूर-दूर तक अपने इस दृष्टिकोण मे बद्लाव के लिये आशा की कोई किरण नजर नही आ रही।

जैसा कि आप सभी जानते है कि देश आज प्रत्यक्ष तौर पर अंग्रेजी दास्ता से मुक्ति की चौसठ्वी वर्षगाठ मना रहा है, यानि कहने को स्वराज मिले हुए त्रेसठ साल पूरे हो गये। लेकिन यहां के आम जन से मै कहुंगा कि अपने दिल पर हाथ रखकर पूछे कि क्या हम सचमुच मे आजाद है? क्या इसी रामराज के लिये अनेक स्वतन्त्रता संग्राम सैनानियो ने अपने तन, मन, धन की आहुति दी थी? क्या वर्तमान हालातों को देखकर आपको नही लगता कि आजादी सिर्फ़ उन कुछ चाटुकारों को मिली जिनके पुरखों ने पहले मंगोलो और मुगल आक्रमणकारी लुटेरों के तलवे चाटे, फिर अंग्रेजो की सेवा भक्ति मे अपना जीवन धन्य बनाया और आज कुर्सी के लिये किसी भी हद तक गिरकर सत्ता हथिया ली है?क्या आजादी सिर उनको नही मिली जो पहले काले कपडे पहनकर रात को लोगो के घरों मे सेंध लगा कर माल लूटते थे, अत्याचार करते थे और आज वे सफ़ेद पोशाकों मे खुले-आम लोकतंत्र की दुहाई देकर रौब से कर रहे है? क्या सही मायने मे आजादी उन मुसलमानों को नही मिली जो इस देश का एक बडा भू-भाग भी ले गये और आज तक हमारी छातियों मे मूंग दल रहे है? क्या आजादी उन मलाई खाने वाले आरक्षियों को नही मिली जो हमारा और हमारे बच्चो का इस बिनाह पर हक मार रहे है कि उनके पूर्वजों का हमारे पूर्वजों ने शोषण किया था, इसलिये वो आजादी का नाजायज फायदा ऊठाकर हमसे न सिर्फ़ बद्ला ले रहे है, बल्कि अकुशल और अक्षम होने के बावजूद भी उच्च पदों पर बैठकर न सिर्फ़ भ्रष्टाचार पैला रहे है अपितु अकुशलता की वजह से इस देश की परियोजनाओं की ऐसी-तैसी कर देश के आधारभूत ढांचे के लिये भविष्य के लिये खतरे के बीज बो रहे है?

देश प्रत्यक्षतौर पर आजाद हुआ, मगर हमे इससे क्या मिला? उल्टे हमारे समान रूप से जीने के अधिकारों को छीना जा रहा है। सत्ता पर काविज चोर-उच्चके दोनो हाथो से हमारी मेहनत की कमाई के टैक्स की रकम को लूटकर विदेशो मे उन्ही अंग्रेजो के बैंको मे उनके ऐशो आराम के लिये पहुंचा रहे है, जिनसे मिली आजादी का जश्न हम मना रहे है। इतनी आजादी तो हमारे पास अग्रेंजो के दौर मे भी थी, बल्कि यो कहे कि उन्होने सिर्फ़ वहा लोगो का दमन किया, जहां लोगो से उन्हे उनके एकछत्र राज को चुनौती मिली, अन्यथा तो मै समझता हू कि उन्होने किसी की व्यक्तिगत आजादी मे कोई हस्त:क्षेप नही किया। कानून व्यवस्था भी एकदम दुरस्थ रखी। जो लोग ये तर्क देते है कि उन्होने हमारे बीच फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई, उनसे पूछ्ना चाहुंगा कि इस आजाद देश मे आज और भला क्या हो रहा है? हो सकता है कि बहुत से लोग मेरी उपरोक्त कही हुई बातों से इत्तेफाक न रखे मगर सच्चाई दुर्भाग्यबश यही है। और यह भी नही है कि इस आजदी से देश के किसी भी गरीब तबके को लाभ मिल रहा हो, बस फायदा वही उठा रहे है जो येन-केन प्रकारेण इस तथाकथित आजादी का फायदा उठाने के लिये किसी भी हद तक चले जाते है। मैने ऊपर प्रत्यक्ष आजादी शब्द का इस्तेमाल इसलिये किया क्योंकि कटुसत्य यह है कि अप्रत्यक्ष तौर पर हम आज भी ऐलिजाबेथ के ही गुलाम है। वो जो कुछ लोग तर्क देते है कि भले लोगो को आगे आकर इस देश की बागडोर सम्भालनी चाहिये, उनसे यही कहुंगा कि भले लोगो को इस देश के वोटर क्या सचमुच प्राथमिकता देते है? और दूसरा यह कि इन हालात मे सता तक पहुंचने के लिये कोइ भी ईमान्दार इन्सान उस हद तक नही गिर सकता, जिस हद तक ये आज के ज्यादातर पोलीटीशियन गिरते है।

और हमारे युवा वर्ग को समझना होगा कि दुर्भाग्य बश हमारे देश का यह लम्बा इतिहास रहा है कि इसे बार-बार गुलामियों का दर्द झेलना पडा, और आज जो हालात बनते जा रहे है वो हमे एक और प्रत्यक्ष गुलामी की ओर धकेल सकते है। आज के युवा-वर्ग को समझना होगा कि भ्रष्ठाचार और दगाबाजी हम हिन्दुस्तानियों के खून मे है, जिसे प्युरिफ़ाई करने की सख्त जरुरत है। जब हम लोग देश मे कुछ गलत होता देखते, सुनते है तो तुरन्त यह कहते है कि अशिक्षा की वजह से ऐसा हो रहा है। लेकिन नही यह तर्क भी सरासर गलत है। आपने देखा होगा कि हाल ही मे हमारे उच्च शिक्षित लोगो जैसे थरूर, कौमन वेल्थ के दरवारी इत्यादी ( लम्बी लिस्ट है) ने भी हमे निराश ही किया है। आप देखिये कि आज जब हम किसी विमान मे यात्रा कर रहे होते है तो यह मान कर चलिये कि उसमे से १००% लोग उच्च शिक्षित होते है, कितने लोग विमान परिचालकों के निर्देश का ईमान्दारी से पालन करते है ? आये दिन सड्को पर शराब पीकर रस ड्राईविग और उसके बाद के ड्रामे के हमारे युवा वर्ग के किस्से आम नजर आते है। खैर,बहुत देर होने से पहले आशा और उम्मीद की कुछ किरणें अभी भी बाकी है, उम्मीद यही रखता हूं कि शायद नई भोर आ जाये ! तब तक
आप सभी को भी इस आजादी की वर्षगांठ की हार्दिक शुभ-कामनाये!
मेरे वतन के लोगो !

चोर, लुच्चे-लफंगों के तुम और न कृतार्थी बनो,
जागो देशवासियों, स्वदेश में ही न शरणार्थी बनो !

भूल गए,शायद आजादी की उस कठिन जंग को ,
खुद दासता न्योताकर, अब और न परमार्थी बनो !

पाप व भ्रष्टाचार, लोकतंत्र के मूल-मन्त्र बन गए,
आदर्श बिगाड़, भावी पीढी के न क्षमा-प्रार्थी बनो !

ये विदूषक, ये अपनी तो ठीक से हांक नहीं पाते,
इन्हें समझाओ कि गैर के रथ के न सारथी बनो!

गैस पीड़ितों के भी इन्होने कफ़न बेच खा लिए,
त्याग करना भी सीखो, हरदम न लाभार्थी बनो !

वरना तो, पछताने के सिवा और कुछ न बचेगा ,
वक्त है अभी सुधर जाओ,अब और न स्वार्थी बनो!
जय हिंद !

Saturday, August 14, 2010

ब्लैकबेरी बनाम स्विस बैंक !


इसमे कोई सन्देह नही कि देश की आन्तरिक और सामरिक सुरक्षा के नज़रिये से ब्लैकबेरी सेलफोन प्रकरण अनेक देशों की सुरक्षा एजेंसियों के लिये एक संवेदनशील और चिन्ताजनक विषय बन गया है। और दुश्मन देश की गुप्तचर एजेंसिया और बुरे मंसूबे वाले आतंकवादी संगठन और लोग निश्चिततौर पर इसका गलत इस्तेमाल कर सकते है। भारत ही नही बल्कि विश्व के अनेक देशों जैसे चीन, अल्जीरिया, य़ूएई, सऊदी अरब, लेबनान और बहरीन ने भी इस बारे मे कदम उठाने शुरु कर दिये है। देश की सुरक्षा चिन्ताओं के प्रति हमारी अत्यधिक सजग सरकार ने भी त्वरित कार्यवाही करते हुए दूरसंचार प्रदाताओं और ब्लैकबेरी की निर्माता कम्पनी रिसर्च इन मोशन (रिम) को नोटिस दिया था कि अगर सुरक्षा एजेन्सियों को ब्लैकबेरी एंटरप्राइज सर्विसेज और ब्लैकबेरी मेसेंजर सर्विसेज तक पहुंच नही मुहैया कराई गई तो ३१ अगस्त तक ब्लैकबेरी की सेवायें बंद कर दी जायेंगी। मरता क्या नही करता वाली कहावत के हिसाब से शुरुआती ना-नुकुर के बाद ब्लैकबेरी ने सरकार की बात मान ली है। मानेंगे भी क्यों नही धंधा जो करना है। और देश की सुरक्षा के लिहाज से इसके उपभोक्ताओं को भी यह बात भली प्रकार से समझ आती है। हां, जहां तक भारत का सवाल है, मैं कल पाकिस्तान के एक प्रतिष्ठित दैनिक की वेब-साइट पर इसी से सम्बंधित एक लेख पढ रहा था, जिससे यह स्पष्ठ होता है कि इस बात से कुछ पाकिस्तानियों के पेट मे दर्द उठने लगा है कि भारत शर्ते न मानने पर ब्लैक बेरी की सेवायें रोक सकता है।

इस बात से एक और चीज स्पष्ठ होती है कि सरकार अगर दृढ इच्छा शक्ति रखती हो तो बहुत कुछ कर सकती है। लेकिन अफ़सोस कि हमारे ये तथाकथित “सजग”सरकारों के नुमाइंदे अपने निहित स्वार्थो के चलते वहां रजाई ओढकर सो जाते है, जहां इन्हे वास्तव मे अति सजगता दिखानी चहिये थी। मुझे यह देखकर हैरानी और आश्चर्य होता है कि एक अदना सा हराम की कमाई खाने वाला देश, स्विटजरलैण्ड ( यह देश भारत के भी तकरीबन ८० लाख करोड रुपयों के ऊपर कुंड्ली मार के बैठा है, और ब्याज की कमाई पर खूब ऐश कर रहा है) पिछ्ली तकरीबन एक सदी से पूरे विश्व मे आर्थिक आतंकवाद फैलाये हुए है, यह दुनिया मे भ्रष्ठाचार का जन्मदाता और मुख्य स्रोत है, और जिसके हाई-प्रोफाइल आतंकवादी समूची दुनिया मे फैले है। यह देश ओसामा बिन लादेन से भी कई गुना बडा अपराधी है, और इसके पाले हुए ये आर्थिक अपराधी अल-कायदा से भी कई गुना अधिक खतरनाक है, क्योंकि ये लोग उस प्रक्रिया से धन चुराते है जिसमे देश की तमाम जनता का हित निहित होता है। और इनकी कारगुजारियों का खामियाजा असंख्य लोगो को आगे चलकर अपनी जान देकर चुकाना पडता है। मसलन यदि कहीं पर किसी नदि का एक तटबन्द घटिया सामग्री से बनाकर उच्च पदस्थ लोग बजट का वास्त्विक पैसा घोटाला करके स्विस बैंक मे जमा कर दे, और आगे चलकर वह तटबंद बरसात में टूटकर पूरा गाँव ही बहा ले जाए तो यह कृत्य किसी भी आतंकवादी हमले से कहीं बढकर है, जिसे लोग मात्र एक दैवीय विपदा मानकर भूल जाते है।

भेद-भाव की हद देखिये कि खुद को दुनिया का थानेदार बताने वला यह तथाकथित सभ्य देश, अमेरिका १९४५ मे द्वितीय विश्व युद्ध के दर्मियान, जापान को दुनियां के लिये खतरा बताकर उसके दो शहरों के असंख्य निर्दोष नागरिकों को परमाणु बम गिराकर मौत की नींद सुला देता है। ०९/११ के बाद से अब तक इराक के तत्कालीन राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को दुनिया के लिये खतरा बताकर असंख्य इराकियों को मौत की नींद सुला चुका है। लेकिन एक यह देश स्वीटजलैंड, जो दुनियां के अरबों लोगो का गुनाह्गार है, जो कि हिरोशिमा और नागासाकी के बजाय परमाणु बम का स्वाद चख्नने का ज्यादा हकदार था, जिसकी हुकूमत सद्दाम हुसैन से ज्यादा इस दुनिया के लिये खतरनाक है, और सद्दाम के साथ किये गये भी बुरे वर्ताव से अधिक की हकदार है,क्योंकि यह देश अप्रत्यक्ष तौर पर भ्रष्ट और गद्दार लोगो को गद्दारी और चोरी के लिए प्रोत्साहित करता है, उसके बारे मे दुनिया का कोइ भी देश कुछ नही बोलता है। और वह देश व्यक्तिगत आजादी और गोपनीयता की दुहाई देकर नैतिकता और इमानदारी को धत्ता दिखाकर दुनियां मे भ्रष्ठाचार और दुराचार को खुले-आम बढावा देकर, लूटे गये धन को अपने देश मे रखवाकर, उस धन से अपनी समृद्धि का डंका पीट रहा है। जरा सोचिये कि अपने देश मे यदि गलती से भी कोई सुनार / जवैलर किसी लुटेरे से लूटे हुए आभूषण भी खरीद ले तो उसे भी सख्त सजा दी जाती है, लेकिन स्विस बैंक के बारे मे कुछ बोलने की किसी मे जरा भी नैतिक्ता नही बची।जबकि यह देश हमारे राष्ट्रीय हितो के लिए ब्लैकबेरी से कहीं अधिक खतरनाक है।

Thursday, August 12, 2010

मनमोहन सिंह जी की जय बोलिए क्योंकि वे भी आज २२७३ दिन के प्रधानमंत्री हो गए !


आज जब एक दैनिक अंगरेजी अखबार की वेब-साईट पर उसकी न्यूज हेडिंग पर नजर गई तो पता चला कि मनमोहनसिंह जी इस देश के प्रधानमन्त्री की कुर्सी को लम्बे समय तक सुशोभित करने वाले तीसरे प्रधानमंत्री बन गए है ! नि:संदेह उनकी काबिलियत पर कोई शक नहीं किया जा सकता, मगर हर जगह इतनी अनिश्चितता के वातावरण में उस साईट का इस बात पर उत्साहित होना भी जायज ही है!

उनके बारे में मेरा यह अपना आंकलन रहा है कि श्री मनमोहन सिंह जी के साथ अक्सर हर चीज "अति" वाली सीमा तक रही है! वे अति की सीमा तक साफ़ छवि वाले ऐंसे ईमानदार व्यक्ति है, जिन्हें अपने नेतृत्व के अधीन हो रहे तमाम भ्रष्टाचारों में से कोई एक भी भ्रष्ट कृत्य अथवा घोटाला नजर नहीं आता है! वे एक बड़े अर्थशास्त्री भी है ! और सुनने में आया है कि दुनिया के कई बड़े देशों के नेतावों ने कुछ समय पहले कनाडा में संपन्न अन्तराष्ट्रीय बैठक में उनकी इस बात के लिए जमकर तारीफ़ भी की कि उन्होंने तरह-तरह के टैक्स अपनी जनता पर लगाकर अन्तराष्ट्रीय मंदी का सफलतापूर्वक मुकाबला किया! अब यह पता नहीं कि उनका यह मंदी के साथ अर्थशास्त्रीय मुकाबला था, अथवा इस देश के करोड़ों लोगो का अपने भूखे पेट पर नियत्रण रखने की क्षमता, जो लाखों टन अनाज मंडियों में सड़ता रहा, मगर लोग आईपीएल देखकर ही अपना वक्त गुजारते रहे ! और एक अच्छे अर्थशास्त्री के नाते उन्होंने जनता के दुःख दर्द को समझकर आगे भी कॉमनवेल्थ का खेल दिखाने का पक्का इंतजाम करा लिया है ! सरकारी महकमे और खेल समिति द्वारा जो करोड़ों का चूना देश की जनता के माथे पर उनके द्वारा दिए गए टैक्स की रकम का लगा है, उसकी क्षतिपूर्ति भी ये आगे चलकर इसी जनता पर और टैक्स लगाकर वसूलने वाले है ( क्या पता मृत्यु पर भी सर्विस टैक्स लग जाए, ज़िंदा अवस्था वाली तो कोई एक ऐसी चीज नहीं छोडी जिसपर कि सेवा कर न लगा दिया हो ) !मैं तो ये कहूंगा कि उनकी तारीफ़ में जिस किसी देश ने भी कसीदे कसे, भगवान् करे उनको भी इनके जैसा कोई अर्थशास्त्री शीघ्र मिले ताकि उनका भी यथाशीघ्र उद्धार हो !


हालांकि यह चित्र इस देश की भर्मित तस्वीर पेश कर रहा है, मगर अमेरिकियों और यूरोपीय लोगो की माने तो भारत एक नई शक्ति के रूप में तेजी से उभर रहा है ! हम भी इसी आश में बैठे है कि हमारा देश जल्द से जल्द दुनिया की जानी-मानी शक्ति बनकर उभरे,लेकिन जब तक पूरा उभरता है,तब तक श्री मनमोहन सिंह जी को उनकी इस उपलब्धि पर बहुत-बहुत बधाई !

Sunday, August 8, 2010

आस्था ही सड्क पर न आ जाये, इसका भी ध्यान रखे !


अब जब श्रावण मास अपने अंतिम चरण मे पहुंच गया तो अब जाकर उत्तर भारत के खासकर चार राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा के बहुत से लोगो की जान मे जान आई है। हर साल की भांति इस साल भी सड्कों पर कांवड़ियों का हुजूम उमडा। पूरे श्रावण माह कांवड़िये उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में धूम मचाये रहते हैं। दूर-दूर से ये हरिद्वार आते हैं, और यहां से गंगाजल लेकर इच्छित शिव मंदिर में जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं। यहां तक कि ये कांवड़िये अब गंगोत्री और गौमुख तक जाने लगे हैं। इनका दायरा अब राज्य स्तर तक पहुंच रहा है। जिसके लिये सम्बद्ध राज्य सरकार और प्रशासन को एक महिने पहले से युद्ध-स्तर पर तैयारियां शुरू करनी पडती हैं।

चुंकि यह करोडों हिन्दुओं की अस्था से जुडा मसला है इसलिए भावनाऒं का आदर भी नि:सन्देह जरूरी है। मगर साथ ही हमे यह भी देखना होगा कि कहीं कोई चीज अत्याधिक तो नही हो रही? भग्वान शिव के प्रति जनता के मन मे जो आदर और आस्था है, हमारे कृत्य कहीं उसे कोई चोट तो नही पहुचा रहे ? क्योंकि पिछले आठ-दस सालों से जबसे हमारे इस देश की दोयम दर्जे की राजनीति ने आस्था के इस क्षेत्र मे अपनी घुसपैठ बनाई है, यह देखा जा रहा है कि इस प्रदेश/ क्षेत्र का आम निवासी अपने को विचलित/बेआराम मह्सूस करने लगा है। हिन्दू धर्म से जुडे किसी भी आस्थावान व्यक्ति को शायद ही यह बताने की जरुरत पडे कि इस धर्म के मूल सिद्धान्तों मे से एक प्रमुख सिद्धान्त यह भी है कि हम अपनी धार्मिक प्रथाओं और कार्यों का निष्पादन करते वक्त किसी दूसरे को कष्ठ न तो पहुंचाये और न ही होने दे। अन्यथा वह निष्पादित धार्मिक कार्य सफ़ल नही माना जाता।

आज के हालात मे यह भी एक सच्चाई है कि तेजी से बढ्ती जनसंख्या और सडक यातायात पर बढ्ते वाहनो के दबाव के आगे हमारे ढांचागत साधन बौने साबित हो रहे है। इन ढांचागत साधनों की भी अपनी कुछ सीमाए है, जिनके भीतर ही रहकर हमें इनका इस्तेमाल करना है। मसलन किसी सड्क को हम सिर्फ़ एक सीमा तक ही चौडा कर सकते है,उससे आगे नही। और जिस तरह से कुछ लोग धर्मान्धता,अन्धविश्वास और भावनात्मक उन्माद मे बहकर सिर्फ़ गंगाजल लाने के लिये अपनी और स्थानीय लोग की जान खतरे मे डालकर गंगोत्री और गौ-मुख तक सड्कों पर "कांवड-हुड्दंगता" मचाने लगे है, वह सरासर गलत है। एवंम जिसका खामियाजा अभी खुछ रोज पहले सारे नियम कानून ताक पर रखकर रात को ( पहाडो मे रात को सड्क पर गाडी चलाने की मनाही होती है) ट्रक से गंगोत्री जा रहे करीब २५ कांवडियों को अपनी जान गवांकर चुकाना पडा।


(छवि गुगुल से साभार)






संविधान के हिसाब से इस देश मे हर नागरिक को अपनी धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार है, और हमे निष्ठा से अपने इस अधिकार का उपयोग भी करना चाहिये। मगर साथ ही मै सरकार और इन शिव भक्त कांवडो से यह गुजारिश भी करुंगा कि वे जनता की परेशानियों का भी ध्यान रखे। मुझे याद है कि १०-१२ साल पहले तक भी इस क्षेत्र मे हर साल कांवड चलती थी, लेकिन कभी किसी को कोई दिक्कत नही हुई। ये भी नही है कि अभी कुछ सालों मे ही आवादी बढी हो, हां बढे है तो सड्कों पर वाहन, राजनैतिक हस्त:क्षेप, बेरोजगार और हुडदंगी, जो ये सोचते है कांवड के नाम पर सडकों पर हमारी खूब आवाभगत होती है इसलिये डिवाईडर के दोनो ओर के सडक पर जंहा मर्जी हो, वहां बेधडक चलकर अपना हुडदग दिखायें। बढे है तो वे पैसे वाले जो ये समझते है कि हर चार कदम पर बीच सडक पर कही भी टेन्ट गाढकर फ्री मे पुण्य कमाया जाये, मानो सडक इनके बा**..................। ये भी ध्यान रखे कि दूसरों को कष्ठ देकर आपको पुण्य प्राप्त हो जाये, यह नामुम्किन सा लगता है। दो-दो करके अगर भक्त कांवड लोग अपने गनतव्य पर निकलें तो किसी को भला क्या दिक्कत हो सकती है? गांवो से सीमित मात्रा मे ही युवा कांवड को निकले, यह नही कि पूरा का पूरा गांव ही कावड लेने निकल पडे। आजकल देखा यह जा रहा है कि अनेक असामाजिक तत्व अपने गंदे मंसूबे लेकर इस आस्था को बदनाम करने पर भी आमादा है। सरकार को चाहिये कि वह रास्ते मे कांवड के लिये मुहैया कराई जाने वाली खान-पान की व्यवस्था को अपने हाथ मे ले।

यहां एक बात और कहना चाहुंगा कि अन्धविश्वास के आगे हम अन्विज्ञं लोग अपने कृत्यों से किसी धार्मिक अनुष्ठान की जड पर ही प्रहार कर देते है। हालांकि मुझे इस बात का ज्यादा ज्ञान नही है कि जलाभिषेक के दिन शिव भग्वान के दरवार मे कांवड के द्वारा सिर्फ़ गंगाजल ही चढाया जाता है अथवा वह कोई भी जल चढा सकता है। ध्यान रहे कि मैं यहां पर बात सिर्फ़ कांवड की ही कर रहा हूं। अगर जो तो धार्मिक ग्रंथों और पुस्तकों मे यह कहा गया है कि सिर्फ़ गंगाजल ही मान्य है तो मैं समझता हूं कि जो कांवड गंगोत्री जाकर जल ला रहे है, वो बहुत बडी भूल कर रहे है। क्योंकि वे भग्वान शिव को गंगाजल नही, भागीरथी जल अर्पित कर रहे है। क्योंकि गंगा का वास्तविक उदगम देवप्रयाग मे भागीरथी और अलकनन्दा के मिलन से हुआ माना जाता है, न की गंगोत्री अथवा गौ-मुख से। इसीलिये पुराणों मे चढावे के लिये हरिद्वार, ऋषिकेश से ग्रहित किये गए जल की ही वास्तविक गंगाजल की मान्यता है।

Saturday, August 7, 2010

ये अहसान फरामोश भिखमंगे !

मेरा मानना है कि विपदा में फंसा हर प्राणी सबसे असहाय होता है, और हमने जहां तक इस भारत भूमि का इतिहास है, अपने पूर्वजों के मुख से, अपने पौराणिक गर्न्थों में, अपने संस्कारों में यही पाया है, यही पढ़ा है कि इंसान तो छोडिये, विपदा में फंसे प्राणी की पशु-पक्षी भी मदद करते है! किस्से-कहानियों में अक्सर जाल में फंसे शेर और चूहे की कहानी, डूबती चींटी और चिड़िया जैसी अनेकों कहानिया तो आपने भी पढी होंगी ! मानवता के नाते एक विवेकशील इंसान का यही परमधर्म होता है कि अपनी काविलियत के हिसाब से, मुसीबत में फसे जरूरतमंद की यथोचित मदद करे! यही इंसानियत का सार है,और यह भी कह लीजिये कि एक सच्चा धर्म भी यही है! और मैं यह भी खूब समझता हूँ कि शायद उससे बढ़कर और कोई बेरहम इंसान इस दुनिया में नहीं सकता , जो दो शब्द सम्वेदना और सहानुभूति के न कहकर, पीड़ितों का उपहास उडाये !


अपना एक पड़ोसी मुल्क है पाकिस्तान ! घृणा से परिपूर्ण देश (फुल ऑफ़ हेट )! कुछ हमारे मित्र जो यह कहकर कि पाकिस्तानियों को छोडिये, उनसे हमें क्या लेना, उनसे पल्ला झाड़ने की बाह्यमन से कोशिश तो करते है, मगर साथ ही यह भी जानते है कि आज भी अधिकाँश पाकिस्तानियों के नाते-रिश्तेदार हमारे बीच है ! मैं उन्हें यह भी बता दूं कि ये पाकिस्तानी वाशिंदे कहीं किसी दूसरी दुनिया से टपककर नहीं आये, बल्कि हमारे ही भाईबंद है! वो भाईबंद जिनमे से अधिकाँश जैचंद के डीएनए से गर्सित, स्वार्थ और लालच के मारे और कुछ मजबूरी बस हमारी पीठ पर छुरा घोंपकर हमसे अलग हो गए ! घृणा की इनकी हद देखिये कि वे आज भी हमें अपना दुश्मन नंबर एक और अलकायदा, तालिबानियों को अपना दोस्त समझते है! लेकिन पिछले अनेक सालों से बहुत ही बुरे हालातों से गुजर रहे है! अभी तो ये हाल है कि लोग बाढ़ की वजह से कई दिनों से भूखे है, पशुओं की तरह कहीं इधर-उधर रात गुजारने को मजबूर है, बारिश में सर छुपाने को इनके लिए ख़ास कोई सार्वजनिक छत भी उपलब्ध नहीं है! हमने भी साल दो साल पहले कोसी की मार झेली थी ! इसलिए मैं यह नहीं कहूंगा कि हम लोग उनसे कोई बहुत बेहतर है किन्तु इतना जरूर कहूंगा कि हम उनसे बेहतर ढंग से अपने ही संसाधनो के जरिये इस राष्ट्रीय विपदा से निपटने में सक्षम रहे!



खैर, प्रकृति के आगे सब बेवश है, और मैं भगवान् से यही प्रार्थना करूंगा कि हे प्रभो ! पीड़ित लोगो को उनके दुखों को सहने की क्षमता प्रदान करे, उनतक जल्द-से जल्द मदद पहुचे, और वे अपने उजड़े घरों को फिर से बसा सकें ! लेकिन अब मैं इस विषय से हटकर इस लेख के शीर्षक पर संक्षेप में कुछ कहूंगा ! साथ ही यह बात मैं उन मित्रों को भी कहूंगा जो इस बात पर ऐतराज करते है कि उनके धर्म की तुलना अमरीकियों के धर्म से की जा रही है! कुछ विद्वान अपने धर्म के बारे में बड़ी- बड़ी हांकते है कि सबसे तेज धर्म है, सबसे ज्यादा धर्मावलम्बी उनके धर्म के है.... ब्लाह... ब्लाह ....! मेरा एक साधारण सा सवाल ; १४०० साल पुराना, सबसे तेज और सर्वाधिक धर्मावलम्बियों के बावजूद इनके आम इंसान की ये दुर्गति कि अलाह का पूरा आशीर्वाद होते हुए भी खुद की हिफाजत करने में अक्षम ? उसकी दी हुई भीख पर ही आखिरकार निर्भर ,जिसके समूल विनाश की दिन-रात अल्लाह से प्राथना करता है ? और उस काफिर की सद्भावना देखिये ( चाहे वह यह सब अपने फायदे की बात सोच कर ही क्यों न कर रहा हों, मगर खा तो उसी का रहे हो न ) अपनी क्या औकात है सिवाए मानव बम फोड़ने के ? Flood relief flights grounded in Pakistan
:U.S. begins flood relief missions in Pakistan . Pakistan floods affect 12 million people: Stormy weather grounded helicopters carrying emergency supplies to Pakistan's flood-ravaged northwest Friday as the worst monsoon rains in decades brought more destruction to a nation already reeling from Islamist violence.
U.S. military personnel waiting to fly Chinooks to the upper reaches of the hard-hit Swat Valley were frustrated by the storms, which dumped more rain on a region where many thousands are living in tents or crammed into public buildings.

इन अहसान फरामोशों की घृणा की हद देखिये ; यह अभागा पाकिस्तानी नागरिक , प्रेमचंद , जो उस प्लाईट संख्या २०२ में सवार था जिसके सभी १५२ यात्री इस्लामाबाद के करीब एक पहाडी पर हमेशा के लिए स्वाह हो गए ! जब इस अभागे प्रेमचंद की अर्थियां इसके परिवार को सौंपी गई तो उसके ताबूत पर लिखा था " काफिर " ! इन हरामखोरों को इतनी भी इंसानियत का ख्याल नहीं रहा, कि कम से कम एक मृतक के साथ तो अच्छा सुलूक करें, उसके ताबूत पर काफिर लिखने की बजाये उसका नाम लिख देते तो क्या इनका कुछ घिस जाता ? और उसके बाद इन कमीनो की सफाई देखिये " उसके ताबूत पर इसलिए काफिर लिखा गया ताकि कोई उसे मुस्लिम समझकर इस्लाम के हिसाब से उसका अंतिम संस्कार न करे !" उस फ्लाईट में एक और हिन्दू डाक्टर सुरेश भी सवार था, उसके कौफिन के साथ क्या सलूक हुआ, नहीं मालूम !

इस तस्वीर को देखिये , यह नहीं है कि इन्होने गलती से भारत के ध्वज को उलटा टांगा है, बल्कि सच्चाई यह है कि ये हरामखोर, अहसान फरामोश, भले इंसान भी बनना चाहते है, मगर हमारी कीमत पर ! ये भारत के ध्वज को उलटा टांग सकते है, क्योंकि हरा इस्लाम का द्योतक है, इसलिए उसे ऊपर रखना चाहते है ! ! ha-ha-ha ....!






हिन्दुस्तान में बैठे ये हमारे कुछ मुस्लिम भाईबंद हम तथाकथित उच्च जाति के हिन्दुओं को समय-समय पर यह अहसास दिलाते है कि हमारे पूर्वजों ने दलितों के साथ क्या किया ! इन्हें शायद यह अहसास कराने की जरुरत नहीं कि उस समय यह सब निर्धारण इंसान के कर्मो के हिसाब से किया जाता था ! उदाहरण के लिए, आज इनकी तार्किकता के आधार पर एक सजायाफ्ता मुजरिम, मान लीजिये कसाब ! और थोड़ी देर के लिए यह भी मान लीजिये कि कसाब की शादी हो रखी है और उसका एक बेटा भी है ! कल अगर कसाब का बेटा कहने लगे कि मेरे बाप को क्यों सजा दी गई इंसानियत के नाते, तो क्या उसके तर्क को सही मान लिया जाए ?( यह भी कहूंगा कि उसमे कुछ अपवाद भी अवश्य शामिल है ) अभी तो शिक्षित होते इंसान ने यह सब त्याग दिया है न , लेकिन क्या आपके धर्मावलम्बियों ने इसे त्यागा है ? इस अहमदिया सम्प्रदाय के इंसान की मजबूरी पर एक नजर डालिए, जिसके सगे सम्बन्धियों को अल्लाह के वन्दों ने मौत के घाट उतार दिया ;

शायद लंबा लेख हो गया, जो मैं हिन्दुस्तान के परिपेक्ष में कदापि नहीं पसंद करता ! इसलिए इसे ख़त्म करते हुए यही कहूंगा कि बजाये अपनी शक्ति को विनाश पर लगाने के इंसान के विकास पर लगाइए ! गुरूर भी उस इंसान का ही वर्दास्त किया जाता है, जो खुद में कुछ हो ! Beggars can't be a chooser !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
पाकिस्तान में अमेरिकी राहत सामग्री लेने के लिए कतार में खड़े बाढ़ पीड़ित !


नोट: इस लेख का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि कुछ हिन्दुस्तानी सुधर जाएँ !!!!!


Friday, August 6, 2010

ये ईशू के भक्त, अल्लाह के वन्दों से कुछ कम अमानवीय नहीं !

आज बात मैं यहाँ गोरी चमड़ी के ईशू भक्तों की मानवता के प्रति भेद-भावपूर्ण और संवेदनहीन अमानवीय कृत्यों की करने जा रहा था, मगर चूँकि जब शीर्षक ही मैंने ऐंसा दे मारा तो मुझे यह भी बताना पड़ेगा कि जिन भक्तों से मैं इनकी तुलना कर रहा हूँ, उन अल्लाह के वन्दों का मानवता के प्रति हालिया अपराध क्या था? तो लीजिये एक नजर अफगानिस्तान की इस लडकी जिसका नाम बीबी अइशा है, के चित्र पर दौड़ाइए, जिसके अल्लाह भक्त तालीबानी पति ने १७ साल की इस लडकी के नाक-कान काट डाले और वह भी तब,जब वह उसके बच्चे की माँ बनने वाली थी ! इसलिए उम्मीद करता हूँ कि मेरे इस लेख का शीर्षक कुछ लोगो को चुभेगा नहीं !

आइये अब बात करते है इन गोरी चमड़ी के ईशू भक्तों की ! इनकी कारगुजारियों से तो इतिहास पटा पड़ा है ! मसलन कैसे इन्होने अमेरिका पहुँचने पर वहाँ के रेड इंडियंस का समूल नाश किया, कैसे इन्होने अपने अधीन गुलाम देशों में लोगो का उत्पीडन किया! और हालिया विक्किलीक्स का वीडियो तो आप सभी ने देखा होगा कि ईराक में कैसे सड़क किनारे खड़े लोगो को इन्होने हैलीकॉप्टर से निशाना बनाकर मौत की नींद सुलाया ! मगर इनका पिछली सदी का जो सबसे बड़ा घृणित कृत्य था, वह था हिरोशिमा और नागासाक़ी ! जिसमे एक पल में इन्होने लाखों को मौत की आगोश में बेरहमी से धकेल दिया !

६ अगस्त १९४५, अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमन के निर्देश पर हिरोशिमा में स्थानीय समय के अनुसार सुबह ८ बजकर १५ मिनट पर हिरोशिमा के ऊपर शहर से १९०० फिट की ऊँचाई पर यह "लिटिल बॉय " फूट गया ! मगर जो उसका वास्तविक निशाना था, ऐओइ ब्रिज उसे वह करीब ८०० फिट के अंतर से चूक गया ! स्टाफ सार्जेट जोर्ज कैरोंन ने आँखों देखी इस तरह बयान की थी; " मसरूम की तरह बादल अपने आप में एक शानदार नजारा था, जलते हुए लाल गोले के साथ बैंगनी भूरा उबलता हुआ धुँआ स्पष्ट देखा जा सकता था...."
लगभग ७० हजार लोग तुरंत मारे गए और करीब इतने ही लोग अगले कुछ सालों में रेडियेशन की वजह से मरे, जो बचे भी तो उनका बचना भी अपने आप में एक पीडादायक जीवन बनकर रह गया !
जीवित बचे एक प्रत्यक्ष दर्शी के शब्दों में "The appearance of people was... well, they all had skin blackened by burns... They had no hair because their hair was burned, and at a glance you couldn't tell whether you were looking at them from in front or in back... They held their arms bent [forward] like this... and their skin - not only on their hands, but on their faces and bodies too - hung down... If there had been only one or two such people... perhaps I would not have had such a strong impression. But wherever I walked I met these people... Many of them died along the road - I can still picture them in my mind -- like walking ghosts..."

मैनहाटन में उस ज़माने में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमन और उनके उत्तराधिकारी रूजवेल्ट ने २ मिलियन डालर का परमाणु बम बनाने का महत्वाकांक्षी अभियान चलाया था, और सरकार कौंग्रेस की तरफ से यह दबाब झेल रही थी कि इतने खर्चीले प्रोजक्ट की उपयोगिता क्या थी ? अत ट्रूमन के सेकेट्री जेम्स ब्येर्नेस ने उसे यह आइडिया दिया कि जितनी जल्दी बम बने उसे परिक्षण के लिए गिराया जाए ! और इन फिरंगियों का भेदभाव देखिये कि आजमाने के लिए यूरोप में जर्मनी सबसे माकूल जगह थी मगर वो तो अपने भाईबंद थे अत जापानियों को चुना गया ! हिटलर को तो ये मुलजिम कहते है मगर अपने गुनाह सिर्फ जल्दी द्वितीय विश्व युद्ध ख़त्म करने की तार्किकता के अन्दर छुपा जाते है !

आज ६५वी वर्षगांठ पर हिरोशिमा के पीस पार्क में उन बेगुनाहों को श्रधान्जली दी गई ;

Thursday, August 5, 2010

जैचंद की तो फितरत है पीठ पे छुरा घोंपना, इस वोट-बैंक का कोई तो विकल्प ढूंढो यारों !!

हाथ जोड़कर पहले कहे देता हूँ, ज्यादा नहीं लिखूंगा, क्योंकि इन जड़-बुद्धि स्वदेशियों की समझ में ख़ास कुछ नहीं घुसने वाला ! मगर क्या करू कहना, लिखना, उपदेश देना अपना पैदाइसी डिस-ऑर्डर है, इसलिए खाली-पीली ही सही , मगर थोड़ा-बहुत शकुन पाने के वास्ते कुछ जरूर लिखूंगा ;

भाइयों, ये कदापि मत सोचियेगा, कि मैं किसी वर्ग विशेष के खिलाफ लिख रहा हूँ, या फिर भावनाए भड़का रहा हूँ ! कहने को तो मैं भी मौके के हिसाब से एक क्षुद्र आस्तिक बनाम नास्तिक (ज्यादातर अपने सेक्युलरों की तरह ) हूँ, मगर क्या करू, सच उगलना भी अपनी मजबूरी है !

- कभी सोचा आपने कि आज जो कुछ देश में हो रहा है, घपले , भ्रष्टाचार और लूटमार और ऊपर से किसी की कोई जबाबदेही नहीं, वह क्यों हो रहा है? क्योंकि हर कोई जानता है कि इस देश के लोग कायर है , अपनी निजी जरूरतों से बाहर नहीं झाँकने वाले, जब तक कोई सिकंदर, बाबर और फिरंगी आकर इनकी ................................................ !

-कि जब कोई विजय का बिगुल इनके सिर के ऊपर बजा देता है तभी ये जागते है, वरना तो दिल्ली की गद्दी पर कौन राज कर रहा है इन्हें कोई परवाह ही नहीं .......!

अब असल बात पे आता हूँ; इस कौंग्रेस के पिछले ६-७ साल के ( उससे पिछ्ला तो भूल जाइए क्योंकि यही हमारी आदत है ) शासन काल में जिस तरह खुलकर देश की दुर्गति की गई, वह किस सोच के आधार पर हुई ?

वह इस सोच के आधार पर हुई कि हम जो भी कर लें , २० से २५ % वोट मुस्लिमों के , करीब ८ % नव् ईसाईयों के, १० % फिक्स दलितों के उनके पक्ष में से कहीं नहीं गए, चाहे कितना भी बड़ा देश-द्रोही काम कर लो ! इस आत्म विश्वास ने हर चोर-उचक्के के हौंसले इतने बढ़ा दिए कि वह सोचता है कि मैं अगर दो चार का खून भी कर लूं तो कुछ नहीं होने वाला !

भाइयों करवद्ध होकर यही प्राथना करूंगा कि इस बारे में सोचियेगा जरूर !

वक्त हो तो इस पर भी गौर करिए ;
NEW DELHI: A new outfit is under scanner in Kerala for its alleged anti-India ideology. The Popular Front of India (PFI) calls India its enemy and asks for 'total Muslim empowerment'. Times Now has access to documents seized from activists of the controversial outfit, which prove its anti-national ideology. The documents portray the nation as its enemy and calls to work towards 'total Muslim empowerment’. Read more: New Kerala outfit on terror radar - India - The Times of India http://timesofindia.indiatimes.com/india/New-Kerala-outfit-on-terror-radar/articleshow/6260122.cms#ixzz0vjwgTj1m

While a section of the secular pack in the media and establishment is busy creating the myth of ‘Hindu terror’, the real terrorists have made deep inroads into the ‘secular’ bastion of Kerala, a state which has never elected a BJP nominee to the State Assembly since Independence। The recent hacking of the hand of a Christian college teacher T J Joseph in Muvattupuzha in Kerala allegedly by jihadi extremists has been closely followed by an attempted derailing of an entire passenger train in Nilambur in Kerala.

2 kids buried under sacks in FCI godown
UDAIPUR: Two children, aged 12 and 13 years, were found dead in the FCI godown in Chittorgarh town on Tuesday। It is suspected that they had gone there to steal wheat grains when sacks skidded over them. Their fathers are in jail and a life in penury might have forced them to steal foodgrains, said sources. What can we do if our orders not obeyed: SC New Delhi: Hearing a plea seeking arrest of a politician's musclemen, the Supreme Court Tuesday said policing is not a part of its mandate and it could not help if its orders were not being executed by the law enforcing agencies. "If our orders are not being obeyed, then what can we do? We are not police," said an apex court bench of Justice Markandey Katju and Justice T.S. Thakur.

What can we do if our orders not obeyed: SC New Delhi: Hearing a plea seeking arrest of a politician's musclemen, the Supreme Court Tuesday said policing is not a part of its mandate and it could not help if its orders were not being executed by the law enforcing agencies। "If our orders are not being obeyed, then what can we do? We are not police," said an apex court bench of Justice Markandey Katju and Justice T।S. Thakur.


ये सब इसलिए यहाँ लगा रहा हूँ कि आप सोच सकें कि यह सब क्यों हो रहा है ? क्यों पनपा इस देश में ? सोचो-सोचो अभी भी वक्त हाथ से नहीं फिसला , वरना सन १५२६ की स्थित फिर से आ सकती है , जिसकी वजह से बाबरी को आज तक भुगत रहे है, और आगे भी भुगतना होगा !
धन्यवाद !

Monday, August 2, 2010

अब अपना मुह बंद रखे इस वृहत लोकतंत्र के तंग दिल सनम !

भ्रष्ठाचार और मक्कारी तो मानो हमारी रग-रग में रची बसी है ! सार्वजनिक धन की चोरी को हम अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते है, और ऊपर से सीना जोरी भी ! शरमो-हया और दुनिया की लोक-लाज तो जयचंद के कुटुंबी वंशजों ने तभी बेच खाई थी, जब मंगोलों, मुगलों और फिरंगियों ने इन जयचंद की औलादों की मदद से बारी-बारी से हमारी इस पावन भूमि को अपवित्र किया था! कुछ ही पृथ्वीराज थे, जो जी-जान और मेहनत से तीन-तीन गुलामियों की मार झेलते हुए भी थोड़ा बहुत अपनी और अपने देश की पारंपरिक संस्कृति, लोक-लाज और सत्यनिष्ठा को बचाए रखने में कामयाब रहे थे ! मगर उन्हें क्या मालूम था कि कालान्तर में युगों से भेड़ की खालों में छुपे बैठे कुछ जयचंद के घरेलू भेड़िये, एक दिन आजादी मिलने पर अचानक लोकतंत्र की आढ़ में शराफत, इमानदारी, समानता, कौशल और नेतृत्व का नकली लवादा ओढ़कर देश में बची-खुची शर्मो-हया का भी गला घोंट देंगे !

मजेदार बात यह नहीं है कि देश में फैले भ्रष्ठाचार और अराजकता से पर्दा उठ रहा है, अपितु मजेदार बात यह है कि कुछ शकुनियों के फेंके फांसे उन पर ही उलटे पड़ने लगे है! जैसा कि मैं पहले भी अपनी पोस्टों में लिख चुका हूँ कि आयोजन की तैयारियों में देरी जानबूझकर दो कारणों से की गई थी; एक तो यह कि आयोजन स्थल के कर्ता-धर्ताओं को २००८-०९ में दोबारा गद्दी पाने की उम्मीद कम ही थी, इसलिए वे आने वाले अज्ञात कर्ता-धर्ता के लिए मुसीबतों का पहाड़ छोड़ना चाहते थे! ताकि आगे चलकर वे खुद इसका राजनैतिक फायदा उठा सकें ! लेकिन उनका दुर्भाग्य ही कह लीजिये कि वे फिर से गद्दी पा गए ! इसे वोटरों की महानता कह लीजिये या फिर उस पालनहार की सटीक लाठी, जो इनकी चाल इन पर ही उल्टी पड़ गई ! दूसरा यह कि इसतरह की अवधारणा इस निर्माण कार्य से जुड़े ज्यादातर भ्रष्ट लोग लेकर चल रहे थे कि घटिया स्तर के निर्माण कार्य को अंतिम क्षणों तक खींचा जाए ताकि आख़िरी में समय की कमी की वजह से किसी को यह देखने का अवसर ही न मिले कि घटिया निर्माण हुआ है, लेकिन यह लीपापोती भी उल्टी पड़ गई ! अनमने मन से ही सही किन्तु इंद्रदेवता को भी इसके लिए धन्यवाद दिया जा सकता है !

ऐसा भी नहीं है कि इस सारे चक्रव्यूह के लिए सिर्फ आयोजन कर्ताओं को ही जिम्मेदार ठहराया जाए ! इसके लिए जर्जर हो चुका पूरा सिस्टम भी काफी हद तक जिम्मेदार है, वह सिस्टम, जिसे सदियों पहले अंग्रेजों ने यह मानकर हिन्दुस्तानियों के लिए बनाया था कि ८० प्रतिशत भारतीय चोर है ! और फिर वे अंग्रेज अपने पीछे इस देश में उनके बनाए उस सिस्टम की देखभाल के लिए एक ऐसी पार्टी छोड़ गए जो बड़ी परायणता और कर्तव्यनिष्ठा से आज भी उसे बनाए रखे है ! हमारे मीडिया वालों को चठ्कारे लेकर सनसनी फैलाने की तो बड़ी महारत हासिल है, मगर तब ये कहाँ सो रहे थे जब आज खुद को भला इंसान दिखने वाला सालों फाइल के ऊपर बैठा रहा ? ये तब कहाँ थे जब मंत्रालय अपने लल्लू -पंचूओ को इस पूरे निर्माणकार्य की रूपरेखा तैयार करने के लिए मनोनीत कर रहे थे! ये तब कहाँ थे जब समय की नजाकत को न समझते हुए हमारे देश के न्यायालयों में कुछ संस्थाओं द्वारा निर्माणकार्य की राह में खड़े किये गए विवादों को सुलझाने में देरी हो रही थी ? तब कहाँ थे, जब निर्माणकार्य के लिए घटिया सामग्री आ रही थी? तब कहाँ थे जब पारिवारिक खान से खरीदकर सड़क किनारों पर लाल टाइले लगाईं जा रही थी? अब जब स्टेडियम के लिए ऐप्रूभ्ड ड्राइंग ही साल-छह महीने पहले निर्माण कार्य में लगी एजेंसियों को दोगे तो वे अलादीन का चिराग घिसकर जिन्न को बुला रातों-रात तो निर्माण कार्य पूरा नहीं कर लेंगे न ?

हाँ, मैं सिस्टम की बात कर रहा था, कल से खबरिया चैनलों और पत्र-पत्रिकाओं में बड़े मजे लेकर जोरशोर से इस बात को उठाया जा रहा है कि कीमत से कई अधिक मूल्य पर आयोजन सामग्री किराए पर ली जा रही है, तो जनाव, एक तरफ अगर समय पर कार्य पूरा करने का दबाव हो और दूसरी तरफ वह जर-जर सिस्टम जिसमे एक क्लास वन आफिसर भी स्वयं निर्णय लेकर एक कुर्सी तक नहीं खरीद सकता, उसके लिए टेंडर भरो, फाइल को मंत्रालय तक पहुँचाओ और इस माध्यम के बीच कई हस्तियों की आवभगत करो, तो उसके लिए इन्तजार का वक्त किसके पास था? क्या कभी किसी ने उस और ध्यान देकर वह बात उजागर की ? हमारे लिए शर्म की इससे बढ़कर और क्या बात हो सकती है कि दूसरे देश की एजेंसिया हमें सतर्क कर रही है कि जाग जाओ कहीं कुछ बड़ी गड़बड़ चल रही है ! इस देश के एक आम आदमी के खून पसीने की कमाई से एकत्रित टैक्स का इस तरह का दुरुपयोग देख विदेशी भी चुप नहीं रह पाए !

कुल मिलाकर निष्कर्ष यह निकलता है कि अपने युवराज के ऑस्टेरिटी (त्याग / मितव्यता) आव्हान की हवा ये कमवक्त भ्रष्ट लोग इस तरह नेहरु स्टेडियम में जाकर निकालेंगे, शायद सम्राज्ञी ने भी सपने में नहीं सोचा होगा! ४००० करोड़ रूपये खर्च का प्रारम्भिक आंकलन अगर सत्रह गुना बढ़ जाए तो भृकुटियाँ तनना भी स्वाभाविक है! यही अगर इनके ऑस्टेरिटी की मिसाल है तो भगवान् बचाए इनकी गिद्ध नजरों से इस देश को ! इस मुद्दे पर अब जाकर चिल-पौं मचाने वालों से भी यही कहूंगा कि आप यह बात भली प्रकार से जानते है कि आज से पहले इस देश में हुए बड़े-बड़े घोटालों का हश्र क्या हुआ ? और अंत में मेरी भी इस दुनिया के पालनहार से हाथ जोड़कर यह प्रार्थना है कि हे भगवन, ये आयोजन जैसे भी हो ठीक ठीक ही निपट जाए और देश की इज्ज़त पर कोई आंच न आने पाए !
कृपया इसे भी पढ़े

Sunday, August 1, 2010

तेरे चाहने वाले, तमाम बढ़ गए है|

सर्द मौसमी पुरवाइयों के पैगाम बढ़ गए है,
कुदरत के कातिलाना इंतकाम बढ़ गए है।  


मुश्किल हो रहा है इस तेरे शहर में जीना,
शाम-ए-गम की दवा के दाम बढ़ गए है॥

तरक्की की पहचान थी जो चौड़ी सड़कें,
उन पर भी सुबह-शाम जाम बढ़ गए है।


चुसे,पिचकाए मिल जाते हैँ पटरियों पर,
आदमी दीखता नही बस आम बढ़ गए है॥

किया बेदखल जबसे हया को शहर से,
नुक्कड़ों पर तभी से बदनाम बढ़ गए है।


'बेईमानी' से की है 'दौलत' ने जबसे शादी,
नैतिक पतन  के काफी काम बढ़ गए है॥

परमार्थ रखा जबसे तृष्णा ने नाम अपना,
स्वामी-महंतों के कुटिल धाम बढ़ गए है।

कहे 'परचेत' खुश होले घोटालों की जननी,
तेरे चाहने वाले तो अब तमाम बढ़ गए है॥

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।