Sunday, February 27, 2011

शारदा !

कृष्णा बाथरूम से नहाकर ज्यों ही बाहर अपने कमरे में पहुंचा और उसने तौलिये से अपने गीले बालों को हौले-हौले रगड़ना शुरू किया, तभी किचन से स्वाति ने भी कमरे में प्रवेश किया और बोली; सुनो जी, आज गणतंत्र दिवस की छुट्टी है, मार्केट बंद रहेगा। तुम भी फ्री हो, क्यों न आज हम लोग माँ को मिलने चलें, हमारी शादी के बाद जबसे बेचारी जेल गई है, हम लोग एक बार भी उनकी कुशल-क्षेम पूछने नहीं गए। एक बार राहुल को तो उनसे मिला देते, वह भी दो-ढाई साल का हो गया है, उसने भी अभी तक अपनी दादी को नहीं देखा।

स्वाति की इस बात पर एक बार तो कृष्णा भड़क ही गया, और स्वाति की तरफ देखते हुए गुस्सैल अंदाज में बोला, यार मैं तुम्हे कितनी बार बता चुका कि मुझे नहीं मिलना किसी माँ-वां से, मेरी माँ पांच साल पहले मर चुकी, अब मेरी कोई माँ-वां नहीं है। कृष्णा की बात सुनकर, थोड़ा रूककर स्वाति ने अपने दोनों हाथों से उसका बाजू पकड़ते हुए उसे पुचकारते हुए बोली "यार, वो तुम्हारी माँ है, तुम कैसे निष्ठुर बेटे हो। एक बार भी यह नहीं सोचते कि बिना उनकी बात सुने ही हमलोगो ने उनसे इसतरह किनारा कर लिया, कोई तो बात रही होगी जो तुम्हारी माँ ने इतना कठोर कदम उठाया। इतनी तो उनके लिए नफ़रत मेरे दिल में भी नहीं है, जो उनकी बहु हूँ, और जिसने अपने पिता को …......."

स्वाति ने अपनी बात अधूरी ही छोड़ दी, उसके मोटे-मोटे नयन छलछला आये थे। यह देख कृष्णा नरम पड़ते हुए, अपनी हथेली से उसके गालो पर लुडक आये आंसूओं को फोंछ्ते हुए बोला, अच्छा बाबा,ब्लैकमेल करना तो कोई तुमसे सीखे। चलो ठीक है, अगर माँ से मिलने की तुम्हारी इतनी ही हार्दिक इच्छा है तो फटाफट नाश्ता तैयार करो, राहुल को जगाकर उसे भी तैयार कर लो, फिर चलेंगे। कृष्णा पर अपनी बात का असर होता देख स्वाति का चेहरा एक बार फिर से खिल उठा। अपने गालो को अपने दोनों हाथों से साफ़ करते हुए उसने उछलकर अपने से तकरीबन एक फुट लम्बे कृष्णा की गर्दन में अपने दोनों हाथ फंसाकर उसकी गर्दन नीचे खींचते हुए उसे थैंक्यू कहकर उसका माथा चूम लिया। उसके बाद वह वापस किचन में चली गई।

लेकिन भाग्य को तो शायद कुछ और ही मंजूर था। और कभी-कभार यह देखा भी गया है कि जिस बात का अचानक ही जुबां पर कभी कोई जिक्र आ जाए, उसके पीछे उससे सम्बंधित कोई अदृश्य घटनाक्रम या तो पहले ही घटित हो चुका होता है, या फिर घटित होने वाला होता है। कृष्णा के लिए किचन में चाय तैयार करते हुए इधर स्वाति इतने सालों बाद पहली बार अपनी सासू माँ से जेल में मिलने जाने के ख्वाब सजाते हुए अपने मानस पटल पर उस वक्त के भिन्न-भिन्न काल्पनिक परिदृश्य, जब वह अपनी सासू माँ से जेल में मिल रही होगी, किसी चित्रपट की तरह परत दर परत आगे बढ़ा रही थी, और उधर बाहर मेन गेट पर एक खाकी वर्दीधारी जोर-जोर से गेट का ऊपरी कुंडा खटखटा रहा था।

आवाज सुनकर स्वाति जब किचन से निकलकर घर के मुख्य द्वार पर पहुची, उसने देखा कि कृष्णा पहले ही आँगन के बाहर मेन गेट पर पहुँच चुका था, और उस खाकी वर्दीधारी से कुछ बातें कर रहा था। कुछ देर बातें करने के बाद जब वह खाकी वर्दीधारी वहाँ से चला गया तो कृष्णा भी घर के मुख्य द्वार की तरफ मुडा। भारी डग भरते हुए जब वह स्वाति के पास पहुंचा तो उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी। बिना एक पल का भी इन्तजार किये स्वाति ने आशंकित और कंपकपाती आवाज में पूछा; क्या हुआ, कौन था वो वर्दीधारी? कृष्णा ने तुरंत कोई उत्तर नहीं दिया और स्वाति को अन्दर चलने का हाथ से इशारा भर किया। ड्राइंग रूम में पहुंचकर दोनों साथ-साथ सोफे पर बैठ गए। जबाब सुनने को आतुर स्वाति ने फिर से वही सवाल दुहराया। कृष्णा ने सुबकते हुए अपना सर बगल में चिपककर बैठी स्वाति के सर पर रखते हुए कहा; जेल से था, मुझे तुरंत आने को कहा है....माँ ने कल रात को अपनी हाथ की नशे काटकर आत्महत्या कर ली। कृष्णा की यह बात सुनकर स्वाति हतप्रभ रह गई, उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक पलटी इस तकदीर की बाजी पर वह खुद रोये या फिर कृष्णा को ढाढस बंधाये।

कुछ पल यों ही बेसुध बैठा रहने के बाद कृष्णा उठा और स्वाति को राहुल के पास घर पर ही ठहरने की सलाह देते हुए जिला जेल जाने की तैयारी करने लगा। वहाँ पहुँचने पर वह सीधे जेलर के दफ्तर में घुसा। जेलर जोशी मानो उसी का इन्तजार कर रहे थे, उसे अपने सामने की कुर्सी पर बिठाते हुए जेलर ने कृष्णा से अपनी संवेदना व्यक्त की और उसे उसकी माँ का वह पत्र सौंपा जिसे वह पिछली शाम को ही जेल के एक कर्मचारी को यह कहकर सौंप गई थी कि इसमें उसने अपने बेटे-बहु के लिए अपनी कुशल-क्षेम और पोते के लिए आशीर्वाद भेजा है, और इसे वह तुम लोगो तक पहुंचा दे। आज सुबह तडके जब हमें इस घटना की जानकारी मिली, तब उस कर्मचारी ने यह पत्र मुझे दिया। लाश अभी पोस्टमार्टम के लिए गई हुई है, तुम्हे कुछ देर इन्तजार करना होगा।

माँ का दाह-संस्कार संपन्न करने के उपरान्त रात को कृष्णा ने बड़े ही सलीखे से एक बंद लिफ़ाफ़े में रखा, माँ का वह ख़त खोला जो जेलर ने उसे सौंपा था। चिट्ठी क्या थी बस एक तरह से २५ जनवरी २०११ का अपने हाथों का लिखा माँ का आत्म-कथ्य था। लिखा था;
बेटा,
मैं बहुत थक गई हूँ, विश्राम लेना चाहती हूँ, प्रभु के दर्शन की इच्छा ने मेरी भूख, प्यास और नींद भी छीन ली है। मैंने अपनी आत्मा के अन्दर बहुत से सवाल समेटकर रखे है, उस पार अगर सचमुच कोई अनंत परमेश्वर है, और मेरा सामना वहाँ उनसे होता है , तो इन अपनी सवालों की पोटली को उनके समक्ष खोलूँगी जरूर। आशा करती हूँ कि मेरे इस पत्र को पढने के बाद तुम और स्वाति मुझे माफ़ कर दोगे।

लोग कहते है कि सब कुछ यहाँ भाग्य पर निर्भर होता है, लेकिन मैं जब पलटकर देखती हूँ तो न जाने क्यों मुझे लगता है कि तमाम उम्र अपने भाग्य के दिन तो मैंने खुद ही तय किये, और आज फिर से आख़िरी बार भी वही दोहरा रही हूँ। इंसान क्या सोचता है और क्या हो जाता है। जानती हूँ कि जो कदम मैं उठाने जा रही हूँ, सामान्य परिथितियों में कोई भी विवेकशील पढ़ा-लिखा इंसान उसे पसंद नहीं करता, मगर कभी-कभी जीवन में वो मोड़ भी आ जाते है, जब क्या अच्छा है और क्या बुरा, जानते हुए भी इंसान खुद को मन के प्रवाह में बहने से नहीं रोक पाता।

बचपन में तुझे हमेशा यह शिकायत रहती थी कि इलाके के अन्य बच्चों की तरह हम लोग भी तुझे तेरे दादा-दादी, नाना-नानी से क्यों नहीं मिलवाने ले जाते। आज तेरी उस शिकायत पर अमल न करने की वजह भी मैं यहाँ बताये देती हूँ। साथ ही स्वाति की वह शिकायत भी दूर करूंगी कि मैंने क्यों उसके पापा की ह्त्या की थी। हाँ, मेरे नन्हे पोते की भी जरुर मुझसे यह शिकायत होगी कि मैं उसे क्यों नहीं मिली, तो उसकी मैं इसबात के लिए जन्म-जन्मों तक गुनाहगार रहूंगी कि मैं उसकी शिकायत नहीं दूर कर पाई।

बेटा, तेरे नाना यानी मेरे पापा गरीब तबके के लोग थे, और मोदीनगर में एक टैक्सी ड्राइवर थे। वे मुख्यत: सूगर मिल के अधिकारियों को लाने ले जाने का काम करते थे। हम लोग मोदीनगर में एक छोटे से मकान में रहते थे, जो मोदी भवन के ठीक सामने लक्ष्मी नारायण मंदिर के पास में था। चार भाईबहनो में मैं सबसे बड़ी थी, और मेरे पापा मुझे बहुत लाड देते थे। वे मुझे पढ़ा-लिखाकर एक सशक्त लडकी बनाना चाहते थे, अत: घर की प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद भी उन्होंने मुझे ग्रेजुएशन करवाया। खाली समय में वे मुझे टैक्सी चलाना भी सिखाते थे, उस जमाने में मुख्यतया दो तरह की ही गाड़ियां लोगो के पास थी, एक फिएट और दूसरी एम्बेसडर। मैं अपने कॉलेज की कबड्डी की एक कुशल खिलाड़ी भी थी।

फाइनल इयर के दौरान एक बार अंतर्राज्य खेल प्रतिस्पर्धा के लिए मैं और मेरी टीम के अन्य सदस्य महीने भर के कैम्प में दिल्ली गए हुए थे। जालिम दुनिया के फरेबों से बेखबर मैं पूरी लग्न से अपने खेल की प्रेक्टिस में जुटी थी कि वहीं एक सुन्दर, हट्टा-कट्ठा नौजवान मेरे इर्दगिर्द मंडराने लगा। मेरे खेल की तारीफ़ के बहाने वह मेरे करीब आया और बड़े ही शालीन ढंग से उसने अपना परिचय कीर्तिनगर, दिल्ली निवासी मनोज गुप्ता के रूप में दिया। अब वह हर रोज ही हमारे कैम्प के आस-पास मंडराने लगा था। एक दिन फिर वह हमारी खेल टीचर से मीठी-मीठी बाते कर मेरा पता भी पूछ बैठा। उसने मुझे बताया कि वह ब्रिटेन में नौकरी करता है, और अगले सप्ताह वह वापस ब्रिटेन चला जाएगा। फिर एक दिन वह थोड़ी देर के लिए आया और झट से यह कहकर चला गया कि वह सिर्फ मुझे बाय कहने आया था क्योंकि उसके पास अब समय कम है, उसे वापसी की तैयारी करनी है, और साथ ही यह भी बता गया कि उसके पिता जोकि एक जाने-माने व्यापारी है, मेरे पिता से मिलने मोदीनगर आयेंगे।

और फिर कुछ समय बाद एक दिन शाम को हमारे घर के आगे एक एम्बेसडर रुकी, एक ५८-६० साल का अधेड़ मेरे पिता के साथ हमारे घर के आया। उसने खुद को मनोज का पिता बताया और कहा कि वैसे तो बराबरी में आप लोग हमारे मुकाबले कहीं भी नहीं बैठते , लेकिन मेरा लड़का आपकी बेटी को पसंद करता है,क्योंकि उसे बोल्ड और निर्भीक लडकिया पसंद है, अत: बेटे की जिद के आगे मैं यह रिश्ता करने के लिए मजबूर हूँ। हमें आपसे दहेज़ में कुछ भी नहीं चाहिए, और न ही हम किसी गाजेबाजे के साथ आयेंगे, मेरा बेटा साधारण ढंग से शादी करने का पक्षधर है। लेकिन आप यह भली प्रकार से समझ ले कि शादी के बाद आपकी बेटी को तुरंत मेरे बेटे के साथ ब्रिटेन रहने के लिए जाना होगा। बेटी के लिए एक अच्छा घर मिलने की आश में मेरे पिता ने भी तुरंत हामी भर ली।

और फिर करीब तीन महीने बाद तयशुदा दिन पर दुल्हा मनोज गुप्ता दस-ग्यारह लोगो की एक बारात के साथ हमारे घर पर उतरा। घरवाले खुश थे कि उनकी बेटी एक बड़े घर में जा रही है। और जल्दी ही विदेश भी चली जायेगी। भोर पर डोली विदाई हुई और मैं दुल्हन बनकर दिल्ली आ पहुँची। घर न जाकर बारात सीधे एक होटल में गई। जहां न सिर्फ दिनभर बल्कि रात दस बजे तक पार्टी चलती रही। इस बीच मैं यह नोट कर रही थी कि मेरा दुल्हा कम और दुल्हे का पिता और मेरा तथाकथित ससुर, मेरे इर्द-गिर्द ज्यादा घूम रहा था। मेरे साथ विदा करने आया मेरा छोटा भाई और एक चचेरा भाई भी दिन में वापस मोदीनगर लौट चुके थे। फिर रात दस बजे तीन-चार कारों का काफिला कीर्तिनगर, मनोज के घर को चल पडा। घर पहुंचकर मैंने देखा कि घर पर कोई ख़ास चहल-पहल नहीं थी। मेरे अंतर्मन के चक्षु किसी संभावित खतरे से आशंकित थे। और फिर एक ३०-३५ साल की महिला मेरा हाथ पकड़कर ड्राइंग रूम से उस घर के बेसमेंट स्थित एक बड़े से कमरे में ले गयी और मुझे रिलेक्स होकर बैठने की सलाह देकर खुद कहीं चली गई।

कमरा सामान्य ढंग से सजाया गया था, मैं दुल्हन के लिबास में सिमटी बेड के एक कोने पर बैठ गयी। रात करीब साढ़े बारह बजे मैं यह देख हतप्रभ रह गई कि उस कमरे में नशे में धुत मनोज का बाप घुस आया था। मै कुछ समझ पाती इससे पहले ही उसने अन्दर से दरवाजा बंद कर लिया। उसके हाथ में कुछ चाबियों के गुच्छे थे, उसमे से एक चाबी का गुच्छा उसने सामने पडी मेज पर रख दिया, वह कार की चाबिया थी। मैं बेड से उतर फर्श पर खडी हो गई। मै मनोज-मनोज चिल्लाना चाह रही थी, मगर डर के मारे मेरे मुह से शब्द ही नहीं निकल रहे थे। उसने लडखडाते हुए मुझे शांत रहने को कहा और हाथ में पकडे दूसरे चाबी के गुच्छे से सामने दीवार पर लगी लकड़ी की आलमारी खोलने लगा। बड़ी मुश्किल से वह वह आलमारी खोल पाया और फिर आलमारी से ढेर सारे नोटों के बण्डल और गहने निकाल-निकालकर सामने पडी टेबल पर डालने लगा। फिर उसने आलमारी से एक शराब की बोतल और दो गिलास भी निकाले।

मै दरवाजे की तरफ भागी, मगर दरवाजे पर उसने ताली से अन्दर से लॉक लगा दिया था। वह उसी अवस्था में हँसते हुए मेरी तरह बढ़ा और मुझे बेड की तरफ खींच कर ले गया। मुझे बेड पर बैठने का इशारा करते हुए उसने उन नैटो के बंडलों की तरफ इशारा करते हुए अपनी अमीरी की डींगे हांकी और मुझे तरह-तरह के सब्ज-बाग़ दिखाए। फिर उसने जो सारी कहानी सुनाई तो उसे सुनकर मैं दंग रह गई। उसने बताया कि न तो मनोज गुप्ता उसका बेटा था और न शादी में आये मेहमान उसके कोई रिश्तेदार, सब किराए पर लिए गए आवारागर्द, चोर-मवाली थे। वह एक विधुर था और उसके एक बेटी थी, जिसकी शादी हो रखी थी। हवस के भूखे उस इंसान को एक जवां बीवी चाहिए थी,और पैंसे के बल पर उसने वह सारा नाटक रचा था।

सारी परिस्थिति को समझने और उसकी नशे की स्थित को भांपने के बाद मैंने भी मन ही मन एक फैसला कर लिया था और दिमाग से काम लेने की ठान ली थी। वह लडखडाता हुआ ज्यों ही बेड पर बैठा, मैंने लपककर सामने रखी शराब की बोतल उठाई और एक बड़ा सा पैग बना कर उसकी तरफ बढ़ा दिया। मेरे इस बदलाव पर वह खुश था उसने मुझे भी शराब पीने को कहा, लेकिन मैंने ना में सिर्फ सिर हिलाया। एक-एककर वह तीन बड़े पैग पी गया और वहीं बेड पर एक तरफ को लुडक गया। मैंने हौले से वह शराब की बोतल उसके सिर पर दे मारी। यह सुनिश्चित करने के बाद कि वह पूर्ण अचेतन स्थित में जा चुका है, मैंने सामने पडी चाबियों का गुच्छा उठाया और दरवाजे को खोलने की कोशिश करने लगी। शीघ्र ही दरवाजे की चाबी गुच्छे में से मुझे मिल गई। मैंने धीरे से दरवाजा खोला और बाहर बेसमेंट के हॉल का जायजा लिया, कही कोई आहट नहीं थी। मै फिर ऊपर सीढिया चढ़कर मुख्य दरवाजे तक पहुँची, दरवाजे पर भी अन्दर से लॉक लगा था, मैंने पास की खिड़की के शीशे से बाहर का जायजा लिया, बाहर गेट पर एक एम्बेसडर कार खडी थी। मै तुरंत ही फिर से बेसमेंट में गई और कमरे और आलमारी में रखे खजाने को वही रखे एक वैग में जल्दी-जल्दी समेट लिया और सामने टेबल पर पडी कार की और अन्य चाबियों का गुच्छा उठाकर गेट की तरफ लपकी।

दुर्भाग्यशाली पलों में मेरा यह तनिक सौभाग्य ही कहा जायेगा कि न सिर्फ़ मैं उस नरक से छूट्कर बाहर आ गई थी, अपितु कार की चाबियां भी मेरे पास मौजूद थी। मैंने तुरंत बैग को कार की पिछली सीट पर रखा और जल्दी से कार स्टार्ट कर उसे दिल्ली की तडके की शुनसान सड़कों पर दौडाने लगी। पिता का सिखाया ड्राविंग हुनर आज काम आ रहा था। करीब एक घंटे बाद मैं मोदीनगर के समीप थी, मगर मैंने घर न जाने का फैसला कर लिया था। मैंने कार हाइवे पर मेरठ की तरफ बढ़ा दी। और तडके ही विजय यानि तुम्हारे पिता के मेरठ स्थित निवास पर पहुँच गई। यह भी बता दूं कि विजय मोदीनगर में हमारे पड़ोसी थे और मुझसे शादी करना चाहते थे। वे अनाथ थे और अपने ननिहाल में पले-बढे थे। उनके मामा इस रिश्ते के खिलाफ थे, अत: उन्होंने उनकी शादी दूसरी जगह कर दी, लेकिन दूसरे प्रसव पर वह चल बसी, तेरी बड़ी बहन संध्या मेरी अपनी कोख से नहीं जन्मी वह उसी माँ की प्रथम संतान है।

वहाँ पहुँचकर मैंने सारी वस्तुस्थित विजय को बतायी और इस शर्त पर उनसे शादी करने को राजी हुई कि हम इस शहर को छोड़कर तुरंत कही दूर किसी जगह चले जायेंगे। विजय विधुर थे और उनके समक्ष नन्ही संध्या का भी सवाल था, अत: वे मेरी हर शर्त को मानने के लिए तैयार थे। और तब हमने तुरंत ही मेरठ से सिफ्ट होकर नैनीताल से बारह किलोमीटर दूर किल्बुरी के समीप बसने का फैसला किया। दिल्ली से उठाकर लाई गई धन-दौलत हमारे खूब काम आई और तुम्हारे पिता पर्वतीय क्षेत्रों में एक होटल चेन खोलने में सक्षम रहे थे। और उनकी मौत के बाद परिवार के लालन-पालन और तुम दोनो भाई-बहनो की शादि-ब्याह मे भी मुझे कोई दिक्कत नही हुई।

लेकिन मेरी किस्मत यंही तक मुझसे इंतकाम लेने से संतुष्ट नहीं थी। इस ऊँचे-नीचे जीवन सफ़र में चलते-चलते मैं उस मनोज गुप्ता की शक्ल सूरत भी भूल गई थी, जिसने मेरी जिन्दगी के साथ ऐसा खिलवाड़ किया था। किन्तु, फिर जिन्दगी ने एक और करवट ली और तुम अपनी जवानी में जिस लडकी के प्यार में फंसे, और जिसे तुमने अपनी जीवन संगनी बनाया, वह जब दुल्हन बनके हमारे घर आई तो अतीत का वह दैत्य भी पीछे-पीछे हमारे घर चला आया। तुम लोग हनीमून के लिए गए थे और मैं घर पर अकेली थी। वह दैत्य, जो अपने कुकृत्यों के बल पर अब एक विधायक था, न सिर्फ मेरे साथ लिए गए सात फेरों की दुहाई देकर उम्र के इस मोड़ पर भी मेरा जिस्म पाने की फिराक में था, अपितु अपनी विधायकी की धौंस देकर मुझे ब्लेकमेल भी करना चाहता था। मैंने गंडासे से उसका क़त्ल कर डाला और यह सोचकर कि अगर मैंने खुद अपना जुर्म नहीं कबूला तो पोलिस तुम लोगो को परेशान करेगी, सीधे थाने जाकर आत्मसमर्पण कर दिया।

जो बात मैं तुम्हे आज बता रही हूँ वह तब भी तुम्हे बता सकती थी। लेकिन इस डर से कि कहीं तुम इसका दोष स्वाति पर भी मढने लगो, मैं खामोश रही और सच कहूँ तो जो कदम अब उठा रही हूँ , इसी वजह से तब नहीं उठाया था। अब मैं सुनिश्चित हूँ कि तुम ऐसी कोई नादानी नहीं करोगे जिससे तुम्हारे और स्वाति के रिश्तों में कोई दरार आये, क्योंकि स्वाति भी एक समझदार लडकी है। यहाँ जेल में सभी लोग बहुत अच्छे ढंग से मेरे साथ पेश आते थे और यहाँ तक कि तुम लोगो की कुशल क्षेम भी मुझ तक पहुंचाते थे। मुझे मेरा दादी बनने की खुशखबरी भी इन्ही लोगो ने मुझे दी थी। तुम्हे एक बार फिर से यह वचन देना होगा कि तुम उस मनोज गुप्ता के कुकृत्यों का कोई भी दोष उसकी बेटी को नहीं दोगे। मैं तुम्हारे सुखी-संपन्न पारिवारिक जीवन की एक बार फिर कामना करती हूँ !मेरे पोते को मेरा ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद देना।
तुम्हारी अभागन माँ ,
शारदा


नोट :कहानी के पात्र और स्थान सभी काल्पनिक है !

Saturday, February 26, 2011

wife is the subject matter of solicitation.





When I was asked by my friends,
"What is the secret behind your happy married life?"
I earnestly replied, I am faithful to my wife.
On our wedding day,
while leading her in seven steps around the sacred fire,
the priest gave me following five commandments
for a successful married life;
If you find in yourself a desire,
Abundance of resources and comforts,
for her, it is necessary for good equation,
because wife is the subject matter of solicitation.


To maintain a blooming marital life,
you need to constantly work on your relation,
because wife is the subject matter of solicitation.
To make you feel good keep her eternally happy,
and avoid irritation and frustration,
because wife is the subject matter of solicitation.


Be nice and polite in front of her,
and always try to control your stimulation,
because wife is the subject matter of solicitation.
And finally, during any festival, to your in-laws,
you must not forget to extend your felicitation,
because wife is the subject matter of solicitation.

Friday, February 25, 2011

मुस्लिम भाइयों से एक सवाल !


यह जो ऊपर आपलोग तस्वीर देख रहे है,यह पाकिस्तान की है,जहां लोग सीआईए के तथाकथित जासूस रेमंड डेविस को जिनेवा संधि के तहत कोई भी डिप्लोमैटिक स्टेटस देने का विरोध कर रहे है, और उसे मौत की सजा देने की मांग कर रहे है! आरोप है कि उसने हाल में दो पाकिस्तानी हथियारबंद युवकों को लाहौर में इसलिए गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया था, क्योंकि वे कथित तौर पर उसे उसवक्त लूटना चाहते थे, जब वह एक एटीम से पैसे निकालकर जा रहा था! लेकिन अब यह बाते सामने आ रही है कि वह एक सीआईए एजेंट था और स्थानीय आतंकवादियों के साथ मिला हुआ था!

अब सवाल मैं अपने उन मुस्लिम भाइयों,खासकर पाकिस्तानी मुस्लिम भाइयों से पूछना चाहता हूँ, जो गोधरा काण्ड पर आये हालिया न्यायालय के फैसले के बाद से ही भारत और खासकर हिन्दुओं के प्रति तमाम मीडिया और गली-चौराहों पर जहर उगले जा रहे है! मैं यह मानता हूँ कि यह हमारे इस देश का दुर्भाग्य है कि हमारे बहुत से लोगो में आत्मसम्मान और गौरव की हमेशा से कमी रही है! अगर ऐसा न होता तो गोधरा के उस दर्दनाक वाकिये के बाद न इतनी कहानियाँ हम लोग गढ़ते और न फिर गुजरात दंगे होते! आज यह भी न होता कि जो कोर्ट का निर्णय आया है, उसपर हम लोग नुक्ताचीनी करते, क्योंकि केंद्र में पिछले रेलमंत्री लालू प्रसाद द्वारा नियुक्त किये गए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज श्री बनर्जी की जांच रिपोर्ट और गुजरात के माननीय न्यायाधीश की रिपोर्ट में परस्पर विरोधाभास नहीं होता ! और शायद उन ५९ दिवंगत आत्माओं को न्याय के लिए इतना इन्तजार भी नहीं करना पड़ता!

मेरा सवाल यह है, खुदा न करे लेकिन मान लीजिये कि पाकिस्तान में एक ट्रेन जा रही है, और वहां जो बचे-खुचे हिन्दू है, उनकी एक भीड़ उस ट्रेन को आग लगा दे और ६० पाकिस्तानी मुसलमान उस आग की भेंट चढ़ जाए, उसके बाद आप लोगो की क्या प्रतिक्रिया होगी ?
एक आग्रह है कि सवाल पढने के बाद मेरी बात पर नहीं,अपने दिल की बात पर गौर फरमाईएगा !

Wednesday, February 23, 2011

क्या अहम् है,खबर की जानकारी या फिर आपका स्वास्थ्य ?
















बहुत दिनों से सोच रहा था कि इस बाबत चंद लाइने लिखूं, और आखिरकार आज हिमाचल के कुल्लू गाँव की एक खबर ने कलम हाथ में थमा ही दी! एक खबर के मुताबिक़ कुल्लू के एक गाँव के लोगो ने सामूहिक फैसला लिया कि दिन प्रतिदिन टीवी धारावाहिकों में बढ़ती अश्लीलता के चलते, अब यदि गाँव का कोई परिवार खर्च वहन कर पाने में सक्षम है तो हर घर में युवा वर्ग के लिए अलग टीवी सेट होगा,और बुजुर्गों के लिए अलग ! यदि आप यह खर्च नहीं उठा पाते तो जिस वक्त बुजुर्ग लोग टीवी देख रहे हो, कोई युवा उस स्थान पर नहीं जाएगा, इसी तरह यदि जब युवा वर्ग टीवी देख रहा हो तो कोई बुजुर्ग उस जगह नहीं टपकेगा ! यदि किसी वजह से ऐसी बंदिशे लागू करने में दिक्कत आ रही हो तो टीवी चलेगा ही नहीं! और वहाँ के लोगो ने इस फैसले का स्वागत भी किया है !

प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रोनिक मीडिया दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र में अपनी अलग अहम् भूमिका रखते है (थे), बशर्ते कि वह अपना दायित्व निष्पक्ष निभाए ! मगर अफ़सोस कि आज के इस भ्रष्ट माहौल में चंद अपवादों को छोड़ निष्पक्ष कुछ भी नहीं है! यह भी आम भारतीय भली भांति जानता है कि आज इस देश में यह प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया कुछ लोगो के ही निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए हर गली कूचे में कुकुरमुत्ते की तरह उग आया है! जो सिर्फ अपने मातहतों की तामीरदारी में और प्रतिपक्ष को नुक्शान पहुचाने तक ही की खबरों को आम जनता के लिए परोसता है! आज का ही उदाहरण देख लीजिये, गुलाम मानसिकता और चाटुकारिता की सारी हदें पारकर कुछ अखबारों के मुख्य पृष्ठ पर बड़े अक्षरों में यह खबर छपी थी कि राहुल गांधी ने सड़क दुर्घटना में घायल एक व्यक्ति को अस्पताल पहुचाने में मदद की!

मैं यह हरगिज नहीं कहता कि उन्होंने कोई प्रशंसनीय काम नहीं किया, मगर ऐसी भी क्या प्रशंसा कि बहुत सी अहम् ख़बरों को गौण बनाकर पहले उसे ही प्राथमिकता दी जाये ! उलटे सरकार में बैठे लोगो के लिए तो यह शर्म की बात थी कि नई दिल्ली के एक हाई सेक्योरिटी जौन में, जहां चप्पे-चप्पे पर पुलिस मौजूद रहती है, वहां भी ऐसी घटनाएं हो रही है ! और इस बात को क्यों नहीं आँका जाता कि हो सकता है टक्कर मारकर भागने वाले टबेरा ड्राइवर ने इस हडबडाहट में ऐसी गलती की हो, चूँकि राहुल गाँधी का काफिला उधर से गुजर रहा था, और उसे खुद के ट्रैफिक जाम में फंसने की चिंता थी ? कहने का आशय यह है कि हमारे ये जो नेता लोग दिल्ली की सडको पर अपने लाव-लश्कर के साथ निकलते है, क्या वे कभी यह सोचते है कि उनके इस शहजादेपन से आम इंसान को क्या-क्या परेशानियां होती है?

खैर छोडिये, जब हमारा सुप्रीम कोर्ट ही यह कह चुका कि इस देश को तो भगवान भी नहीं बचा सकता, तो एक मेरे चिल्लाने से क्या होगा ? मगर, जो बात में आपके सामने रखना चाह रहा हूँ, वह यह कि आप लगभग सभी लोग सुबह चाय की चुस्कियों के साथ अखबार पढ़ते होगे! अंग्रेजो से बुरी लते सीखने के सिवाए हमने और सीखा ही क्या? पूरे अखबार में तू-तू, मै-मैं लड़ाई -पिटाई , घपले-घोटाले, क़त्ल और मारकाट की खबरे, बस ! शाम को ऑफिस से घर पहुँचने पर आप अपने ड्राइंग रूम में एलसीडी के सामने बैठ, रिमोट हाथ में लेकर चाव से बारी - बारी खबरिया और धारावाहिक चैनलों को भी देखते होंगे ! धारावाहिक चैनलों में अश्लीलता और खबरिया चैनलों में मार-काट, स्टंट, अंधविश्वास, पसंदीदा सरकार की चाटुकारिता, तिल का ताड़ बनाना, इत्यादि-इत्यादि आपको दिखाया जाता है!

अब लौटते है इनके परिणामों पर; सुबह अखबार पढ़ा, अगर आपमें ज़रा भी संवेदनशीलता है तो उसके तुरंत बाद आप अपना ब्लड प्रेशर चेक कीजिये, ई सी जी करवाइए! शर्तिया तौर पर कह सकता हूँ कि आपको अपना उच्च रक्तचाप मिलेगा ! दिनभर की थकान के बाद शाम को कुछ पल चैन के बिताने की सोचते है, सोचते है कि कुछ मनोरंजन होगा, लेकिन वहाँ भी वक्त की बर्बादी, बिजली का बिल,आँखों को तकलीफ, उच्च रक्तचाप , अवसाद, दिल की बीमारी, बहंगापन, गर्दन दर्द ,भूलने की बीमारी इत्यादि-इत्यादि,

पता नहीं क्या-क्या इन्हें पढने,देखने के बदले में नसीब होता है हमें ! और तो और यह भी देखा गया है कि जो महिलाए इसतरह की खबरे, धारावाहिक गर्भावस्था के दौरान अधिक देखती, पढ़ती है, उनकी होने वाली संतान में जन्मजात दिल की बीमारी होती है! बाकी आज के बच्चो में, चश्मा तो आम हो ही गया है ! ये अखबार और टीवी चैनल यह खबर तो बड़े चटपटे ढंग से परोसकर आपको पेश करते है कि मोबाइल फोन रखने के क्या-क्या नुकशान है, मगर कभी यह नहीं बताते कि अखबार पढने और टीवी देखने के कितने-कितने नुक्शान है! इसलिए, अगर स्वस्थ रहकर कुछ साल चैन की जिन्दगी जीनी है, तो इन्हें तिलांजली देने में ही समझदारी है ! इन ख़बरों को पढ़, सुनकर हमें/आपको कुछ भी हासिल नहीं होने वाला, आपके खबर पढने सुनने से इस देश से भ्रष्टाचार ख़त्म नहीं हो जाएगा, बल्कि आप भी भ्रष्ट बनने के गुर ढूढने लगोगे, लेकिन हाथ लगेगा कुछ नहीं, जो कुछ था उसे तो महाभ्रष्ट खा-पीकर डकार चुके ! :) बाकी जैसी आपकी मर्जी !

Thursday, February 17, 2011

तुसी बस करो पाजी, अब और न बनाओ !

जैसी कि पहले से ही उम्मीद थी, एक लम्बे अन्तराल के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कल मीडिया से मुखातिब तो हुए मगर उनकी ढुलमुल भाषा शैली ने देश के आम जन को एक बार फिर से निराश किया ! जैसा कि मैं पहले भी कह चुका कि निसंदेह श्री सिंह जी अपने व्यक्तिगत जीवन में एक सम्मानित हस्ती है, लेकिन जब पूरे देश का सवाल हो तो उनकी व्यक्तिगत छवि से किसी देशवासी को क्या लेना देना? और पता नहीं क्यों, मगर कभी-कभार तो उनके प्रवचनों को सुनकर शरीर में एक अजीब सी उकताहट सी होने लगती है! क्या मनमोहन जी देशवासियों को इतना भोला और मूर्ख समझते है, जो बार-बार बस कुछ रटी-रटाई शब्दावली इस्तेमाल करते है? ईमानदारी से यह क्यों नहीं बताते कि आपने प्रधानमंत्री की हैसियत से पिछले सात सालों में किया क्या ? देश ने जो अराजकता, भ्रष्टाचार और महंगाई की स्थित पिछले सात सालों में देखी, वैसी शायद पहले कभी नहीं देखी होगी ! ऊपर से जनाब आप कहते है कि अभी तो हमारी सरकार को बहुत से लक्ष्य हासिल करने है ! अरे साहब, अब इस देश के आम आदमी की यह हैसियत नहीं रही कि वह आपकी सरकार के और अधिक घोटाले झेल सके ! आप कहते है कि हम दोषियों को सजा देंगे ! जनाब, आज देश आपसे पूछता है कि बात उछलने के बावजूद भी आप तीन साल तक तमाशा देखते रहे, आखिर क्यों ? और अगर कल इन घोटालों में कहीं भी श्रीमती सोनिया गांधी का नाम उजागर होता है ( जैसा कि श्री सुब्रमंनियम स्वामी ने आरोप लगाए है ) तो क्या आप श्रीमती गांधी को सजा दे पाएंगे ? आप खुद को जितना साफ़-सुथरा साबित करने की कोशिश करते है, वास्तविक धरातल पर हमें तो कहीं भी नजर नहीं आया कि आप वैसे है भी ! एक दागी ब्यूरोक्रेट को सीवीसी तो आप ही ने नियुक्त किया था, वह भी सब कुछ जानते हुए ! आज आप सारा दोष उसी राजा पर मड रहे है, जिसे कल तक बचाते फिरते थे, एक संस्था का अध्यक्ष होने के नाते क्या आपकी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती ? सब कुछ जानते हुए भी कलमाडी क्यों अभी तक खुले घूम रहे है? आज फिर से देश २० साल पीछे धकेल दिया गया है, क्या गठ्वंधन-धर्म की आड़ में आप लोगो को देश की ऐसी-तैसी करने की खुली छूट दे दी जाए ? अभी कुछ समय पूर्व ही देश में अनाज के खराब रख-रखाव पर इतनी किरकिरी हुई थी और फिर कल के बारिश में अकेले गाजियाबाद में ही ऍफ़ सी आई के गोदाम के बहार खुले में डेड लाख गेहू की बोरिया बर्बाद हो गई, क्या सबक लिया था आपकी सरकार ने पिछली घटना से? कौन है इसके लिए जिम्मेदार ? डेड लाख क्विंटल गेहूं से छह लाख लोगो का छह महीने का गुजारा हो जाता! बजाये फालतू के दुनियाभर के आयोजन कराकर देश का पैसा बर्बाद करवाने से बेहतर क्या यह नहीं था कि बढ़ती जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए, देश में पर्याप्त अनाज-भंडारों की व्यवस्था की जाये ? आप तो अर्थशास्त्री थे सरकार !

आपको गठबंधन धर्म और पार्टी धर्म तो याद रहता है, मगर आप यह भूल गए कि आपका एक धर्म और भी था; प्रधानमंत्री धर्म ! मगर याद रखिये कि अब यह जनता शिक्षित हो गई है और सिर्फ झुनझुने पकड़ा देने भर से आपको माफ़ नहीं करने वाली ! आप क्या दोषियों को सजा देंगे, आपको याद दिलाना चाहूँगा कि १९९३ में भी संसदीय निगरानी समिति ने वित् मंत्रालय की, जिसके सर्वेसर्वा आप थे, इस बात के लिए कटु आलोचना की थी कि आपकी कोताही की वजह से तत्कालीन समय में लगभग ८५ करोड़ रूपये का प्रतिभूति घोटाला हुआ था, और तब भी आपने इस्तीफ़ा देने की पेशकश करते हुए दोषियों को न बक्शे जाने की बात कही थी ! १७ साल बीत चुके उस घटना को, आज तक आपने क्या सजा दी दोषियों को यह देश जानना चाहता है ? बस करो पा जी बहुत हो गया, अब जो करेगी इस देश के जनता करेगी ! अंगरेजी में एक कहावत है;``Better to keep your mouth shut and be thought a fool than to open it and remove all doubt.``

Wednesday, February 16, 2011

मंसूबे !

सर्वप्रथम सभी मित्रों को ईद-ए-मिलाद ( हजरत मुहम्मद का जन्म दिन ) की मुबारकबाद !

काश कि भिन्न-भिन्न देश,काल और परिस्थितियों में अनेक धर्मभीरु मुल्लाओं ने निजी स्वार्थों और अपनी तुच्छ ख्वाइशों की पूर्ति के लिए अपने पैगम्बर के नाम का बेजा इस्तेमाल न किया होता और इन्हें सिर्फ अपनी धार्मिक आस्था की नीव की एक मजबूत कड़ी तक ही सीमित रखकर, दूसरे धर्म के अनुयायियों के लिए भी उन्हें उसी आस्था के प्रेरणा स्रोत का सूत्रधार बनाया होता, जिसकी ये खुद अपेक्षा करते है ! काश, कि ये यह समझ पाते कि किसी भी हस्ती और धर्म के प्रति सम्मान दिल में खुद जगता है, जोर-जबरदस्ती पैदा नहीं किया जा सकता ! अगर बल प्रयोग कर ही वह वास्तविक सम्मान हासिल किया जा सकता होता, तो आज इन कुछ तथाकथित अनुयायियों के द्वारा इस्लाम की वो गत दुनियाभर में नहीं की गई होती, जिसका गवाह समय-समय पर यह विश्व बनता आया है !

अभी कुछ दिनों पहले ही यह खबर आई थी कि २६/११ के मुंबई के आतंकी हमलों का मुख्य आरोपी हाफिज सईद, पाकिस्तानियों के तथाकथित कश्मीर एकजुटता दिवस के दिन लाहोर में एक बार फिर से भारत के खिलाफ अपनी गंदी जुबान से गीदड़ भभकियां देता दिखा ! एनडीटीवी की ६ फ़रवरी की रिपोर्ट देखे, उसने न सिर्फ भारत के खिलाफ आग उगली, अपितु एक बार फिर से "घज्वा-ए-हिंद" का ऐलान भी किया! मैं समझता हूँ कि शायद हमारे देश में बहुत कम लोग ही पाकिस्तान के कुछ अतिवादी तत्वों जैसे ज़ैद हामिद, जाकिर द्वारा यहाँ/ वहाँ की जनता को भारत के खिलाफ भड़काने की इस योजना "घज्वा-ए-हिंद" (मुसलमानों द्वारा भारत पर विजय ) के बारे में जानते होंगे, क्योंकि इक्का-दुक्का बार कुछ मीडिया में इसकी चर्चा भले ही हुई हो, मगर बहुत से कारणों की वजह से यह बात हमारे देश के मीडिया में खास नहीं उछली, और मैं समझता हूँ कि हमें इसे ख़ास तबज्जो देनी भी नहीं चाहिए ! गीदड़ो का काम है गुर्राना, अत: उन्हें गुर्राने दो ! Quote:The government is helpless. It can control nothing. It can keep nothing within the bounds of lawfulness or of decency. Its appeasement policies have spread poison. The mullahs of the mosques, mostly government servants, callफॉर hatred and in a disgraceful incident earlier this month in Lahore the mad mullah leader of the banned Jamaatud Dawa, Hafiz Saeed, a wanted man, addressing a rally, called for a nuclear jihad against India. He can get away with it; no one can stop him.Unquoteलेकिन हमें इनकी इस घृणित सोच से एकदम मुख भी नहीं मोड़ना होगा ! मानता हूँ कि ये ज्यादा कुछ नहीं कर सकते, फिर भी इनके घृणित मंसूबे, और पिछली अनेक गिरी करतूतों के मध्यनजर हमें इसे सिरे से नजरअंदाज भी नहीं करना चाहिए!

क्या है यह "घज्वा-ए-हिंद" ? इस्लाम के कुछ धर्मभीरु मुल्ला घज्वातुहिंद (घज्वा-ए-हिंद ) की हदीसों का संदर्भ देते हैं ; मैं यहाँ सिर्फ इनका संदर्भ ही उल्लेखित कर रहा हूँ ; ये हदीसे क्या है, इन्हें आप उपरोक्त को गूगल सर्च में डाल नेट पर पढ़ सकते है ! इनमे यह कहा गया है कि कैसे मुस्लिम सेना सिंध के रास्ते भारत पर आकर्मण करेगी! आप देखिये कि अगर थोड़ी देर के लिए यह भी मान ले कि ये हदीसे हजरत मुहम्मद द्वारा ही कही गई और इनमे सच्चाई है, तो यह सब तो बहुत पहले ही घटित हो चुका है इस देश में, फिर ये पाकिस्तानी और भारत के दुश्मन क्यों इन सबको वर्तमान परिपेक्ष में दिखाने के कोशिश कर रहे है ? कुछ ने तो इसकी तिथि भी घोषित कर रखी है;२४ जुलाई , २०१२ ! मकसद सिर्फ इतना है कि किस तरह लोगो में घृणा फैलाई जाए और ये अपने घृणित मसूबों की पूर्ति करते रहे ! आज ये भले ही इसे कश्मीर के परिपेक्ष में प्रस्तुत कर रहे हो,मगर यह मानकर चलिए कि कल हमने अगर इन्हें कश्मीर दे भी दिया तो ऐसा नहीं कि उसके बाद ये चुप बैठ जायेंगे ! ये फिर से कोई भी मुद्दा उछालकर घृणा के बीज बोते रहेगे !

इनमे और हममे बस यही फर्क है कि ये लोग अपने बच्चो को घृणा का पाठ पढ़ाकर किसी निर्दोष की जान लेना सिखाते है, जबकि हम अपने बच्चो को अपनी जान जोखिम में डाल किसी निर्दोष की जान बचाने का पाठ पढ़ाते है ! इन्हें कौन समझाए कि घृणा से घृणा और प्यार से प्यार पनपता है ! अज्ञानता सभी बुराइयों की जड़ है और ज्ञान, अज्ञान को ख़त्म करता है! मेरा भी मानना है कि हमें खुद किसी भी तरह की हिंसा की शुरुआत कभी नहीं करनी चाहिए, मगर दूसरी तरफ भविष्य की चुनौतियों और दुश्मन के नापाक इरादों के खिलाफ जागरूक होना भी बहुत जरूरी है!

रिपु देखता फिर खाब है,घज्वा-ए-हिंद का,
सर कुचल रख देंगे हम,बुजदिल दरिंद का !
होने न देंगे कामयाब, असुरी तदबीर को,
छीन कर दिखलाए वो, हमसे कश्मीर को !
दुश्मन कोई भी हो भला, लाहौर,सिंध का,
सर कुचल रख देंगे हम,बुजदिल दरिंद का !
निहत्थो पे वार, किस धर्म का मजमून है,
मासूमों के क़त्ल से,इन्हें मिलता सुकून है !
घृणा,आतंक फैलाना,काम दानव-वृन्द का,
सर कुचल रख देंगे हम,बुजदिल दरिंद का !

रिपु=दुश्मन , तदबीर=योजना, मजमून =सार

Sunday, February 13, 2011

कार्टून कुछ बोलता है- विदेश मंत्री की सफाई !

विदेश मंत्री कृष्णा ने संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की बजाये पुर्तगाल के मंत्री का भाषण पढ़ा !



अरे, आलोचना करने के बजाय मेरा शुक्रिया अदा करो कि
मैंने पुर्तगाल के मंत्री का ही भाषण पढ़ा, वरना मेरे आगे टेबल पर
तो पाकिस्तान और चीन के मंत्रियों के भी भाषण पड़े हुए थे !

Saturday, February 12, 2011

पीच्ची !

माय डियर पीच्ची ;
पहचान गई न ? तुम्हे मुझसे अक्सर यह शिकायत रहती थी कि मैं क्यों जानबूझकर तुम्हारे नाम को गलत उच्चारित करता हूँ। और देखो, आज भी वही गुस्ताखी फिर से दुहरा दी है मैंने, हा-हा॥ किन्तु तुम्हारे इस गिले-शिकवे को कि "तुम ये क्या पिच्ची-सिच्ची करते रहते हो, मुझे मेरे सही नाम से क्यों नहीं पुकारते ", मैं अब और पेंडिंग नहीं रखना चाहूँगा, क्या पता फिर कभी मुझे तुम्हे एक्सप्लेन करने का मौक़ा मिले, न मिले।

हे ! किन्तु प्रोमिस करो कि तुम इसका मीनिंग जानकार मुझे मन ही मन बुरा-भला नहीं कहोगी। पीच्ची शब्द हमारे आंध्रा में तेलगु भाषा में किसी को पागल कहने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। तुम्हारी कॉलेज के दिनों की हरकतों को देखकर ही मैं तुम्हे इस तरह से सम्बोद्धित करता था। उस वक्त तो इसे सुनकर तुम बुरा मानती थी, लेकिन आई एम् स्योर, इस वक्त पीच्ची का यह ख़ूबसूरत सा अर्थ जानकार तुम्हारे उस शोभायमान चेहरे पर जरूर अब तक
एक लम्बी-चौड़ी मुस्कान दौड़ गई होगी।

अब तुम्हे यह भी आश्चर्य अवश्य ही हो रहा होगा कि मुझे तुम्हारा इ-मेल पता मिला कहाँ से ? जैसा कि मैंने पहले कहा, आज मैं तुम्हे किसी भी असमंजस में नहीं रखूंगा। तुम्हें शायद याद होगा वो अपना कॉलेज के दिनों में हमें अक्सर कैंटीन में मिलने वाला अपना वह दोस्त, महेश, जो अक्सर ही मुझे 'कमीना' कहकर संबोधित करता था। बस, आज वही एक कॉलेज के दिनों का अपना मित्र है, जिससे मेरा यदा-कदा संपर्क रहता है। आजकल इंदौर में किसी कम्पनी में पर्सनल मैनेजर है. उसी ने तुम्हारा यह ई-मेल ऐड्रस मुझे दिया. अब तुम यह भी जानना चाहोगी कि उसे कहाँ से यह एड्रेस मिला ? तो यह भी एक दिलचस्प कहानी है। जैसा कि मैंने कहा, वह एक कम्पनी में पर्सनल मैनेजर है, अभी कुछ दिनों पहले उसने अपनी कंपनी के लिए रिजूमे सर्च करने हेतु एक ऑनलाइन रेजुमे डैटा बैंक पोर्टल हायर किया था, और पोर्टल पर सर्च के दौरान ही उसे अभी हाल का तुम्हारा अपना पोस्ट किया हुआ बायो-डाटा मिला. बस, वहीं से उसने तुम्हारा ई-मेल ऐड्रस लिया और मुझे मेल कर दिया।

अपने दिल पर ढेर सारा बोझ लाधे लम्बे वक्त से एक अजीब सी कशमकश में जी रहा था, सोचा, तुम्हारे साथ शेयर करके क्या पता इसे कुछ हल्का कर सकूं। पहले तो यह संकोच हुआ कि अगर तुम शादीशुदा हुई तो खुदानाखास्ता यह मेल अगर तुम्हारे पति या इन्लौज में से किसी ने पढ़ लिया तो वह कुछ गलत ना समझ बैठे, और तुम्हे कोई दिक्कत पेश न आये। लेकिन जब महेश से फोन पर बात हुई और उसने कहा कि अभी दो महीने पुराने तुम्हारे बायोडाटा में उसने तुम्हारा पैतृक सरनेम ही तुम्हारे नाम के आगे देखा है, तो मै यह ऐजूम कर बैठा कि तुम अभी अनमैरीड ही हो, तुम्हे यह मेल करने की लिबर्टी ले रहा हूँ।

जैसा कि तुम्हे मालूम है कि मेरे ग्रेजुएशन करते ही मेरे दबंग डैड अपनी सेन्ट्रल सेकेट्रीएट की नौकरी से रिटायर हो चुके थे। आजीवन दिल्ली में ठहरने का उनका कभी भी मन नहीं रहा। तुम यह भी बहुत बेहतर ढंग से जानती हो कि चूँकि मेरी माँ पुराने ख्यालात की एक आज्ञाकारी पतिव्रता नारी थी, इसलिए घर के अन्दर दो उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों की भिन्न धूरियाँ होते हुए भी उसने कभी अपने पति की मर्जी के विरुद्ध कोई ऐतराज नहीं जताया. सब कुछ बस खामोश रहकर ही बर्दाश्त किया। माँ के संस्कारों के आगे, इस तड़क-भड़क की कलयुगी दुनिया में हम दोनों भाई-बहन भी कब आज्ञाकारी सतयुगी औलाद बन गए, हमें भी नहीं मालूम। अत: उनके रिटायर होते ही उनकी मर्जीनुसार हम लोग अपने नेटिव-प्लेस आंध्रा में सिफ्ट हो गए थे।

तुम्हे यह भी शिकायत होगी कि मैंने तुमसे उसके बाद फिर कभी संपर्क साधने की चेष्ठा क्यों नहीं की, तो उसका भी जबाब मैं दूंगा। वहाँ से स्थानांतरित होने के पश्चात एक साल बाद ही पापा मेरे लिए एक रिश्ता ढूंढ लाये। लडकी का बाप स्थानीय बिक्रीकर विभाग में कोई बड़ा अधिकारी था। और शायद मेरे लालची डैड को लडकी में मौजूद गुण-दोष कम और लडकी के बाप का यह गुण ज्यादा आकर्षित कर रहा था कि वह सेल्स-टैक्स विभाग में कार्यरत थे। मुझे बिना लडकी से मिलाये ही उन्होंने रिश्ता पक्का कर लिया और मंगनी भी हो गई। मैं उसवक्त एक कंप्यूटर कोर्स बंजारा हिल्स, हैदराबाद से कर रहा था. मेरे डैड इस बात से बहुत खुश थे कि उनके नालायक बेटे की कीमत उस वक्त नौ लाख आंकी गई थी।

लेकिन फिर करीब चार महीने बाद पता नहीं क्या हुआ कि मेरे और लडकी के पिता ने यह रिश्ता तोड़ने की घोषणा कर दी। हमारे यहाँ ऐसी प्रथा है कि यदि रिश्ता टूट जाए तो सगाई के दरमियां लडकी के परिवार द्वारा दी गई तय शुदा दहेज़ की राशि की अग्रिम किस्त, पंचायत बुलाकर लड़के के परिवार द्वारा आवश्यक खर्चे, जो इस बीच लड़के वालों ने किये हो, उस अग्रिम दहेज़ की किस्त में से काटकर बाकी रकम लडकी वालों को लौटा दी जाती है।

यह भी बता दूं कि सगाई के कुछ समय बाद लडकी और उसका परिवार मुझसे मिलने हैदराबाद आया था, और उसी दौरान मैंने अपनी माँ के कहने पर एक बड़े स्टोर से लडकी को एक कीमती पर्ल-सेट अपने क्रेडिट कार्ड से खरीदकर गिफ्ट किया था। कुछ दिन बाद जब मै छुट्टी पर घर गया तो मेरे डैड ने उस लेनदेन के बिल वगैरह अपने पास रख लिए थे। महेश तो मुझे पहले से ही कमीना कहता रहता था, किन्तु यह जानकार तुम हंसोगी कि मेरा बापू कमीनेपन में मेरा भी बाप निकला। क्योंकि बाद में मुझे मालूम पडा कि रिश्ता टूटने पर जब सगाई पर मिली दो लाख की रकम को पंचायत के समक्ष लौटाए जाने का हिसाब-किताब चल रहा था, तो मेरे डैड ने उस पर्ल-सेट की बिल राशि और क्रेडिट-कार्ड की पर्ची दोनों की रकम जोड़कर उतनी राशि दो लाख में से काट ली थी, जबकि होना यह चाहिये था कि बिल अथवा क्रेडिट पर्ची में से किसी एक को कंसीडर करते, और मैं नहीं समझता कि यह उन्होंने अनजाने में किया होगा।

खैर, बात आई-गई हो गई, लेकिन मेरे डैड के सिर पर हमेशा यह भूत सवार रहता था कि वे अपने लड़के की अच्छी कीमत कैसे वसूल पाए। दहेज़ की यह बीमारी यों तो हमारे पूरे ही देश को भ्रष्टाचार के दल-दल में डुबाये हुए है, मगर मैं समझता हूँ कि आंध्रा और बिहार दो ऐसे क्षेत्र है, जहां यह एक महामारी की तरह है। इस बीच हमारे ऊपर उस वक्त दुखों का पहाड़ ही टूट पडा जब मेरी बहन संध्या की मौत की खबर मुझे हैदराबाद में मिली। वह बीमार भी नहीं थी मगर, घर वालों को एक दिन सुबह अचानक अपने कमरे में मृत मिली। न जाने क्यों मुझे कभी-कभी संदेह होता है कि कही उसकी मौत की वजह भी मेरे लालची डैड का धन-माया से अगाध-प्रेम ही न रहा हो।

कुछ समय उपरान्त कंप्यूटर कोर्स पूरा कर मैं घर लौट गया. इसी दरमियां मेरे डैड को न मालूम किसने बताया कि एक अमेरिकी यूनिवर्सिटी भारतीय छात्रों को अमेरिका में पढने का अवसर दे रही है, बस तभी से उन्हें मुझे यूएस भेजने का भूत सवार हो गया। मुख्य मकसद यह नहीं था कि मैं वहाँ जाकर उच्च शिक्षा हासिल करूँ, बल्कि मुख्य-ध्येय यह था कि तत्पश्चात उन्हें अपने लड़के की अच्छी कीमत वसूलने के लिए पृष्ठभूमि बनाने में मदद मिले। दिल्ली में अपने पुराने संपर्कों के जरिये उन्होंने मुझे अमेरिका भेजने की सब कुछ तैयारियां पूरी कर ली थी।

और फिर एक दिन मैं अमेरिका के लिए रवाना हो गया। यहाँ आकर कुछ वक्त तो यहाँ की चकाचौंध में बहुत अच्छा गुजरा. मगर फिर शीघ्र ही ऊबने लगा। घर, देश और माँ की बहुत याद आती थी। मेरे दुखों का शायद यहीं छोर नहीं था, छह महीने बाद एक दिन डैड ने यह दुखद समाचार मुझे दिया कि मेरी माँ भी इस दुनिया से चल बसी। यहाँ, मुझे ढाढस बंधाने वाला भी अपना कोई नहीं था। चेल्ली(छोटी बहन संध्या ) की असामयिक मौत के बाद से ही वह बीमार रहने लगी थी। मुझे अच्छी तरह याद है कि जब मैं उससे विदा लेकर यहाँ के लिए चला था तो उसने डैड की वजह से खामोश रहकर अपनी पथराई सुर्ख आँखों से आसुओं का सैलाब बहाकर ही मुझे विदा किया था, मगर उसके झुर्रियां से लदे चेहरे की एक संतृप्त उदासी और सूखे अधरों पर जमी पपड़ी यह साफ़ बताती थी कि वह अन्दर ही अन्दर बहुत डरी हुई थी, क्योंकि उसके जिगर का टुकडा पहली बार उससे अलग होकर बहुत दूर एक अनजाने परदेश में अजनबियों के बीच जा रहा था।

अब मैं, पूरी तरह से टूट चुका था, जीने की कोई ख्वाइश भी अब दिल में नहीं रह गई थी। साथ ही मैं यह भी भली प्रकार से जानता था कि मेरे लोभी डैड ने माँ के देहांत की सूचना भी मुझे जानबूझकर इसलिए दो हफ्ते बाद दी, ताकि मैं कहीं तुरंत घर वापसी के लिए न चल पडू और आनेजाने में ही डेड-दो लाख और खर्च हो जायेंगे। कहानी अभी यहीं ख़त्म नहीं हुई थी, एकदिन अचानक अमेरिकी सुरक्षा अधिकारी हमारे कम्पाउंड में आ घुसे और हमें जानवरों की भांति रेडियो कॉलर पहनाने लगे। बाद में मालूम पडा कि जिस यूनिवर्सिटी के जरिये अध्ययन के लिए हम यहाँ तक पहुचे थे, वह फर्जी और गैरकानूनी थी।

नहीं मालूम कि तुम किस तरह मेरे इस मेल को लेती हो, लेकिन यही सब वजहें थी कि मैं अपने किसी पुराने मित्र के संपर्क में नहीं रह सका। अवसाद से पूर्णतया ग्रसित मेरा मन अब समझ नहीं पा रहा कि किस्मत के इस नए ड्रामे पर हँसे या फिर रोये। यह दिलो-दिमाग कभी-कभी तो अपने लिए ही बुरे-बुरे सपने देखने लगता है। अब वापस लौटने की भी तमन्ना नहीं रही दिल में। कभी अपने उस खूसट डैड पर भी हंसी आ जाती है, पता नहीं, ढेर सारे दहेज़ के क्या-क्या सपने देख रहे होंगे। सचमुच, बहुत अजीब किस्म के लोगो से भरी पडी है यह दुनिया, जो सिर्फ कुछ अतिरिक्त धन पाने के लिए अपना जीवन, अपनी पूरी फेमली ही दांव पर लगा देते है।

मैंने तो सिर्फ एक जीवन-संगनी की चाहत रखी थी ....जस्ट ओनली ब्राइड ( विदाउट ऐनी बॉयफ्रेंड ) :)

न तलाश-ए-मुकद्दर मैं निकला,तकदीर भी हरजाई थी,
वैभव-विलासिता की न कभी, मैंने कोई आश लगाई थी,
खोज-ए-मंजिल-ए-सफ़र में बस इतनी सी ख्वाइश थी
ऐ जिन्दगी, कि काश तू वैसी होती, जैंसी मैंने चाही थी !


हूहु..बेचारा लालची, पीच्ची बुढऊ........ !!

तुम्हारा....
उदय,

Wednesday, February 9, 2011

इश्क जिस रोज हुस्न की मजबूरी समझ लेगा !
















इश्क जिस रोज हुस्न की मजबूरी समझ लेगा,
प्रेम उस रोज अपनी तपस्या पूरी समझ लेगा।


छलकते लबों से कभी कोई तबस्सुम न बहे,
पैमाना प्यार का इसको  रूरी समझ लेगा। 


मन ख्वाइशों को मचलने की गुंजाइश न दे,
पलकें झुकाना भी हवस मंजूरी समझ लेगा। 


तसदीक प्यार में हुस्न, अंजाम से क्या डरे,
धड़कन जवाँ दिलों की हर दूरी समझ लेगा। 


हुस्न जागता रहे  अगर  इंतज़ार-ए-इश्क में,
प्रीत की  गजल 'परचेत', अधूरी समझ लेगा।




Sunday, February 6, 2011

ऋतुराज वसंत !














प्रकृति छटा

सुशोभित अनंत है,

आया फिर

ऋतुराज वसंत है !

कोंपल कुसुम

सुगंधित वन है,

समीर सृजन

शीतल पवन है !



मंद-सुगंध सृजित


वात-बयार है,

सुर्ख नसों मे हुआ

रक्त संचार है !



हर सहरा ओढे


पीत वसन है,

जीवंत भया

अभ्यारण तन है !

दरख्तों पर

खग-पंछी शोर है,

कोमल सांस

कशिश पुरजोर है!

ठिठुरी शीत

सब कुछ भूली है,

खेत सुमुल्लसित

सरसों फूली है !



सफ़ल शीतल 


सूर्य साधना है, 

श्रीपंचम पर

सरस्वती अराधना है !

फ़ैली फिजा मे

सुगंध  खास है,

खारों मे भी

लहराता मधुमास है !

सुरम्यं  वादियों का

यही आदि-अंत है,

आया  फिर से

ऋतुराज वसंत है !

Saturday, February 5, 2011

Day-dream !





I don't mind
a little immaturity,
when my mind stumble
like a buffoon. 

It's neither political
or social,
nor a scurrilous lampoon.

Frankly speaking,
I got fed up
with this distressed world,
thus, I'm gonna float
a trillion dollar tender
in the market soon.
I'm willing to construct
a fly-over,
from earth to moon.


Your cooperation in this regard is highly solicited.

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Wednesday, February 2, 2011

विनय, रब से !

जिन्दगी कोई पहेली न बने, इसलिए सही  से डिफाइन किया करो ,
सबकी तमन्ना पूरी हो, आरजू न किसी की डिक्लाइन किया करो।  


परेशां हो 
क्यों भला कोई भी यहाँ जीवन के अपने लम्बे सफ़र में,
विनती है या रब,सभी के मुकद्दर को ढंग से डिजाइन किया करो।

खुशियाँ पाने को,आपसे दुआ मांगने की लत पड़ गई है लोगों को ,

आग्रह है कि बिन मांगे ही,खुद ही खुशियाँ कन्साइन किया करो।  


याचना करता है 'परचेत' इस मेले में कोई अपनों से न बिछड़े ,
और बिछड़े हुए को आप उसके अपनों से कम्बाइन किया करों।  


Tuesday, February 1, 2011

हमारी खुशकिस्मती कि अभी भी दो विकल्प मौजूद है हमारे पास !

देश में दिन-प्रतिदिन बिगडती क़ानून व्यवस्था की स्थित व लोगो में बढ़ती असुरक्षा की भावना, महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ छिड़ी मुहिम एक बड़ी क्रांति का रूप धारण कर लेगी, ऐसा शायद ट्यूनीशिया और मिस्र के शासकों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा। ट्यूनीशिया और मिस्र का जनविद्रोह यह दर्शाता है कि अब सत्ता का सुख भोगने वाले लोग अधिक दिनों तक जनता की जुबान बंद करके नहीं रख सकते। हालांकि यह विद्रोह लम्बे समय से अपेक्षित था, मगर नए साल के प्रथम माह में ही यह ज्वालामुखी बनकर फूट पडेगा, बड़े-बड़े भविष्यवेदाओं ने भी नहीं सोचा होगा।

बाहर वाले के लिए, या फिर हमारे खुद के द्वारा ही जग दिखावे के लिए, हम भले ही दुनिया की दूसरी बड़ी ताकत बनने के पथ पर अग्रसर हो, मगर आतंरिक सच्चाई यह है कि अपना यह देश फिलहाल महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार की मार से जर्जर अवस्था में है। क़ानून और व्यवस्था दिन-प्रतिदिन बिगड़ रही है, असामाजिक तत्व खुले घूम रहे है। प्रशासनिक कुव्यवस्था की वजह से देश ने पिछले कुछ सालों से महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के नाम पर क्या नहीं देखा? बेरोजगारी का तो आज का ही ताजा उदाहरण हमारे समक्ष है, बरेली में आई टी बी पी की भर्ती के दौरान बेकाबू हुआ युवा आक्रोश। कोई पूछे कि क्यों हो रहा है यह सब ? सिर्फ पेट के लिए। देश के बेरोजगार युवकों को अपना भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है। महंगाई नित आसमान छूती जा रही है, दाल-सब्जियां आमजन की पहुँच से बाहर हो चुकी है। और ऊपर से मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के नाम पर पूंजी-बाजारों में आम -आदमी द्वारा निवेशित धन की होली खेली जा रही है।

दूसरी तरफ धन और कुर्सी की अंधी दौड़ में सत्तासीन लोग देश के संसाधनों की बंदरबांट में लगे है। जिसे मौक़ा मिल रहा, वह लूट-खसौट कर अपना घर भरने में लगा है। जब देश में टू जी स्पेक्ट्रम, कॉमवेल्थ खेल, आईपीएल, प्रसार भारती और आदर्श सोसायटी जैसे घोटालों की गूँज ही इस जंक लगी बहरी व्यवस्था को सुनाई न दे रही हो तो येदुरप्पा जैसे पता नहीं कितने हजारों घोटाले इन सफेदपोशों के घरों में बिछे कालीनो के नीचे ही दबकर दम तोड़ रहे होंगे। ऊपर से देश का वह मुखिया जिसे कल तक लोग एक सुन्दर छवि वाला इमानदार व्यक्ति के तौर पर जानते थे , वो और उनकी सरकार न्यायालय में भी झूठे बयान दे रहे है। इससे बड़ी त्रासदी और क्या होगी हमारी इस लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए कि जिस शख्स के ऊपर व्यवस्था में गड़बड़ियों पर नजर रखने का जिम्मा सौंपा गया है, वही खुद भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरा है।

अंत में इतना ही कहूंगा कि ट्यूनीशिया और मिस्र की जन-क्रांति हमसे सिर्फ एक मामले में भिन्न है कि उनके ऊपर एक लम्बे अर्से से अधिनायकवादी शासन है, जबकि हमारे देश में तथाकथित लोकतंत्र है । अत : उनके पास सिर्फ एक ही विकल्प बचा था, बगावत, जबकि मेरा मानना है कि हमारे पास अभी भी दो विकल्प मौजूद हैं; सर्वप्रथम और सर्वोत्तम विकल्प यह है कि इस लोकतान्त्रिक व्यवस्था के आज जो ठेकेदार बने बैठे है, जिनपर इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुनने, सुचारू रूप से चलाने का जिम्मा है, वे समय रहते सिर के ऊपर से गुजर रहे पानी की धाराओं को देखने का कष्ट करे, फिर से ठन्डे दिमाग से अपने कृत्यों पर गहन मनन करे, अपनी की हुई गलतियों को सुधारें, स्वतंत्रता सेनानियों के नक्शेकदम का पालन करें और देश-जन की समस्याओं का तुरंत निराकरण करने का हर संभव बीड़ा उठाये। या फिर अंतिम विकल्प के तौर पर मिस्र, ट्यूनीशिया जैसी क्रांति का इंतजार करें। युवा पीढ़ी अगर अधिक बेचैन हुई तो निश्चित तौर पर वे भारतीय क्षितिज को बदलकर रख देंगे.

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।