Sunday, January 17, 2021

तुम सुनो तो मैं सुनाऊँ..







अजीब सी पशोपेश मे हूँ, 

मैं इधर गाऊँ कि उधर गाऊँ?

इक गजल लिखी है मैंने तुमपर, 

तुम सुनो तो मैं सुनाऊँ।


हो क़दरदान तुम बहुत, 

गुल़रुखों के नगमा-ए-साज के,

तारों भरी रात, 

नयनोँ मे बरसात, 

धुन कौन सी बजाऊँ?

अजीब सी पशोपेश मे हूँ, 

मैं इधर गाऊँ कि उधर गाऊँ?

इक गजल लिखी है मैंने तुमपर, 

तुम सुनो तो  मैं सुनाऊँ।।


अजीबोग़रीब अफ़साने हैं, 

इस मुक्त़सर सी जिंदगी के,

लबों पे कबतक लिए फिरूँ, 

क्यों न कागज़ पर उतर जाऊँ?

अजीब सी पशोपेश मे हूँ, 

इधर गाऊँ कि उधर गाऊँ?

इक गजल लिखी है मैंने तुमपर, 

तुम सुनो तो  मैं सुनाऊँ।।


थे अबतक हम भी खामोश

तेरी खामोशी को देखकर,

हमें महफिलों की शान नहीं बनना,

सिर्फ़ बात तुम्हें दिल की बता पाऊँ।

अजीब सी पशोपेश मे हूँ, 

इधर गाऊँ कि उधर गाऊँ?

इक गजल लिखी है मैंने तुमपर, 

तुम सुनो तो मैं सुनाऊँ।।



9 comments:

  1. वाह! बहुत सुंदर सर।
    सादर

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  2. वाह...क्या कहने।
    इधर गाओ या उधर गाओ।

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज सोमवार 18 जनवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. बहुत खूब ... एक गज़ल जो लिखी है लाजवाब है जिसकी पशोपश ...

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  5. बहुत प्यारी रचना। मखमली अहसासात की मधुर अभिव्यक्ति 👌👌👌👌

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  6. तुम सुनो तो मैं सुनाऊँ।।

    बहुत सुन्दर सृजन गीत में
    बधाई

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