Saturday, February 6, 2021

एक सम्बोद्धन, मिया खलीफा के सगे भाइयों को...









निर्लज़्ज़ता व दम्भ़ भरी फि़जा़ देख,

कुछ यूं सा अहसास हुआ 'परचेत',

गद्दारी,अपने ही लहू मे छिपी रही होगी

वरना, किसी को  तीन-तीन गुलामियां 

इत्थेफाक़न ही नसीब नहीं हुआ करती ।

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झूम-झूम !

हमेशा झूमते रहो सुबह से शाम तक, बोतल के नीचे के आखिरी जाम तक, खाली हो जाए तो भी जीभ टक-टका, तब तलक जीभाएं, हलक आराम तक। झूमती जिंदगी, तुम क्...