Friday, September 12, 2025

उपजीवी !


मिली तीन-तीन गुलामियां तुमको प्रतिफल मे,

और कितना भला, भले मानुष ! तलवे चाटोगे।

नाचना न आता हो, न अजिरा पे उंगली उठाओ,

अरे खुदगर्जों, जैसा बोओगे, वैसा ही तो काटोगे।।


अहम् ,चाटुकारिता को खुद आत्मसात् करके,

स्वाभिमान पर जो डटा है,उसे तुम क्या डांटोगे।

आम हित लगा नाटा, निहित हित में देश बांटा,

जाति-धर्म की आड़ में जन और कितना बांटोगे।।


स्वाधीनता नाम दिया, जुदा भाई को भाई से किया,

औकात क्या है अब तुम्हारी जो बिछड़ों को सांटोगे।

जड़ें ही काट डाली जिस वटवृक्ष की 'परचेत' तुमने, 

उस दरख़्त की डालियों को, और कितना छांटोगे।।


 

Friday, September 5, 2025

इतना क्यों भला????

बडी शिद्दत से उछाला था हमने 

दिल अपना उनके घर की तरफ,

लगा,जाहिर कर देंगे वो अपनी मर्जी,

तड़पकर उछले हुए दिल पर हमारे।


रात भर ताकते रहे यही सोचकर, 

सिरहाने रखे हुए सेलफोन को,

सहमे से सुर,फोन करेंगे और कहेंगे, 

कुछ गिरा तो है दिल पर हमारे।


मुद्दत गुज़र गई, दिल को न सुकूं आया,

दीवानगी का वो सफर 'मुकाम-ए-परचेत',

कारवां जिगर का भटका वहीं पर कहीं जहां,

लगी 'तंगदिल' की मुहर नरमदिल पर हमारे।

Sunday, August 31, 2025

प्रलय जारी










चहुॅं ओर काली स्याह रात,

मेघ गर्जना, झमाझम बरसात,

जीने को मजबूर हैं इन्सान,

पहाड़ों पर पहाड़ सी जिंदगी,

फटते बादल, डरावना मंजर,

कलयुग का यह जल प्रपात।



Wednesday, August 20, 2025

लघुकथा-पहाड़ी लूना !

पहाड़ी प्रदेश , प्राइमरी स्कूल था दिगोली, चौंरा। गांव से करीब  दो किलोमीटर दूर। अपने गांव से पहाड़ी पगडंडी पर पैदल चलते हुए जब तीसरी कक्षा का नन्हा सा छात्र पल्सर दिगोली गांव  होते हुए सुबह-सवेरे 'चौंरा' स्कूल को निकलता था तो अक्सर उसकी भेंट दिगोली गांव की लूना की मां, जोकि सुबह-सवेरे गाय-भैंस के गोबर का तसला सिर पर उठाए 'मौऴेकी मरास' की तरफ जा रही होती थी, से अक्सर हो जाया करती थी।

राह में उसे देखकर लूना की मां उसे पुचकारते हुए गढ़वाली लहजे में कुछ यूं कहती, "अरे मेरा बच्चा, इस ठंड में ठंडी ओंस में चप्पलों में सुकूल जा रहा है।"...... यह लगभग रोजाने का ही क्रम था। गर्मी की छुट्टियां खत्म होने के बाद जुलाई के प्रथम सप्ताह में आज जब वह चौथे दर्जे में प्रवेश हेतु घर से निकला था तो बीच में फिर लूना की मां से मुलाकात हो गई। उसने चिरपरिचित अंदाज में फिर उसे पुचकारते हुए सम्बोधित किया, "बच्चा, आज मैं भी अपनी लूना को सुकूल में भर्ती करा रही हूं, कल से तू उसे भी अपने साथ लेते हुए सुकूल जाना। पल्सर ने भी हां में अपनी मुंडी हिला दी थी।

तब से शुरू हुआ साथ-साथ  स्कूल जाने का  पल्सर और लूना का यह क्रम लगभग दो साल चला, जब तक कि पल्सर छठी कक्षा में माध्यमिक स्कूल धद्दी घंडियाल न चला गया। तीन साल बाद पांचवीं उत्तीर्ण करने के उपरांत लूना के पिता उसे और उसके परिवार के साथ रोहिणी, दिल्ली शिफ्ट गये थे।

बर्ष गुजरे, उम्र गुज़री, जब लूना २७ की हुई तो मां को उसकी शादी का ध्यान आते ही पल्सर का भी ख्याल आया। और मां ने अपने गांव दिगोली के एक रिश्तेदार के जरिए पल्सर के परिवार से सम्पर्क कर उसका बायोडाटा और जन्मपत्री मंगवा ली थी। लूना पढ़ने में होनहार थी, आइआइएमटी यूनिवर्सिटी से एमटेक करने के बाद उसे एक मल्टी नेशनल कंपनी में २६ लाख बार्षिक सेलरी पैकेज पर पुणे में नौकरी भी मिल गई थी।

लूना के पिता ने पल्सर का बायोडाटा लूना को दिखाते हुए उससे पूछा कि इस लड़के को जानती हो, तेरे लिए यह रिश्ता कैसा रहेगा? लूना ने नाक-भौंह सिकोड़ते हुए जबाब दिया, यार पापा आप कैसी बात करते हो, उसका सालाना सेलरी पैकेज देख रहे हो, मेरे से आधे से भी एक लाख कम हैं। आप सोच भी कैसे सकते हो कि मैं इस लड़के से शादी के लिए मान जाऊंगी? मां ने भी बीच में लूना को टोकते हुए कहा, सेलरी ही तो तेरे से कम है उसकी, बाक़ी तो लड़का सब तरह से ठीक है। मैं तो कुछ नहीं कमाती, तो क्या तेरे पापा और मैंने घर नहीं चलाया, तुम्हें नहीं पढ़ाया -लिखाया?

मगर लूना कहां मानने वाली थी, मां-बाप की भी एक न चली। उधर साल-छह महिने बाद पल्सर का रिश्ता भी गांव की एक भोली-भाली लड़की, स्कूटी से पक्का हो गया था। वक्त अपनी रफ़्तार से चलता रहा, लूना के मां बाप ने सेंकड़ों रिश्ते तलाशें मगर लूना किसी मे ये कमी, किसी मे वो कभी निकालती रही। और जब लूना ३७ की हुई तो रिश्ते आने ही बंद हो गये।

अब जब वह इक्तालीसवें साल में पहुंची तो एक उमेर नाम का व्यक्ति जिससे उसकी मुलाकात अक्सर शाम को एक कैफ़े में हो जाया करती थी और जिसने उसे खुद का परिचय एक बिजनेसमैन के तौर पर दिया था, और असल मे था वह कबाड़ का व्यापारी, लूना उसे दिल दे बैठी थी। और फिर दोनों ने ही मिलकर शादी का दिन भी तय कर लिया था।

 बात बूढ़े मां-बाप के पास घर तक पहुंची तो दोनों सुनकर सन्न रह गये। 'मैं बोलती थी न तुमको कि मत पढ़ाओ इसे इतना, मत दो इतनी छूट.....' लूना की मां फफक-फफककर रोने लगी थी। कश्मकश भरा वक्त भारी पड़ने लगा था, शादी (निकाह) का दिन नजदीक आ गया था, बूढ़े मां-बाप पुणे पहुंच चुके थे। शादी से ठीक एक दिन पहले पिता ने बाजार से सैमसंग का ६५३लीटर का ₹८०००० का फ्रीज और एक ₹१३००० का बड़ा सा नैभिगो का सूटकेस खरीदा और अपने साथ उसे विवाह स्थल पर ले आए , लूना की विदाई के वक्त उसे उपहार स्वरूप भेंट में देने के लिए।

Friday, August 8, 2025

साम्यवादी कीड़ा !


लगे है दिल्ली दानव सी,

उन्हें जन्नत लगे कराची है,

तवायफ बनकर लेखनी जिनकी,

भरे दरवारों में नाची है।


हैं साहित्य मनीषी या फिर 

वो अपने हित के आदी हैं,

चमचे हैं राज घरानों के जो

निरा वैचारिक उन्मादी हैं।


अभी सिर्फ एक दशक में ही 

जिनको, मुल्क लगा दंगाई है,

देश के अन्दर अभी के उनको

विद्वेष, नफ़रत दी दिखलाई है।


पहली बार दिखी है ताईद,

मानों पहली बार बबाल हुए,

पहली बार पिटा है मोमिन 

ये पहली बार सवाल हुए।


चाचा से मनमोहन तक मानो

वतन में शांति अनूठी थी,

अब जाकर ही खुली हैं इनकी 

अबतक आंखें शायद फूटी थी।


नहीं साध सका भद्र जिस दनुज को

वो बनता खुद सव्यसाची है,

लगे है दिल्ली दानव सी जिनको

उन्हें जन्नत लगे कराची है।



Wednesday, May 14, 2025

वक्त की परछाइयां !


उस हवेली में भी कभी, वाशिंदों की दमक हुआ करती थी,

हर शय मुसाफ़िर वहां,हर चीज की चमक हुआ करती थी,

अतिथि,आगंतुक,अभ्यागत, हर जमवाडे का क्या कहना,

रसूखदार हवेली के मालिकों की, धमक हुआ करती थी।

वक्त की परछाइयों तले, आज सबकुछ वीरान हो गया,

चोखट वीरान,देहरी ख़ामोश,आंगन में रमक हुआ करती थी।


 

मज़ाक

 

ऐ दीवान-ए-हज़रत-ए-'ग़ालिब, 

तुम क्या नाप-जोख करोगे 
हमारी बेरोजगारी का,
अब तो हम जब कभी
कब्रिस्तान से भी होकर गुजरते हैं,
मुर्दे उठ खड़े होकर पूछते हैं, लगी कहीं?

Monday, August 19, 2024

प्रश्न -चिन्ह ?

 पता नहीं,कब-कहां गुम हो  गया

 जिंदगी का फ़लसफ़ा,

न तो हम बावफ़ा ही बन पाए 

और ना ही बेवफ़ा।

Friday, May 17, 2024

संशय!

इतना तो न बहक पप्पू , 

बहरे ख़फ़ीफ़ की बहर बनकर,

४ जून कहीं बरपा न दें तुझपे, 

नादानियां तेरी, कहर  बनकर।

वक्त आ गया है !

वतन-ए-हिंद से लग्न लगानी है तो,

वक्ष पे 'राम' लगाना होगा।

'धर्म-निरपेक्षता' की कपट प्रवृत्ति को

अब 'वीराम' लगाना होगा ।।

Wednesday, May 15, 2024

शून्य प्रत्यय !









शहर में किराए का घर खोजता 

दर-ब-दर इंसान हैं 

और उधर,

बीच 'अंचल' की खुबसूरतियों में

कतार से, 

हवेलियां वीरान हैं।

'बेचारे' कहूं या फिर 'हालात के मारे',

पास इनके न अर्श रहा न फर्श है,

नवीनता का आकर्षण ही

रह गया जीने का उत्कर्ष है, 

इधर तन नादान हैं 

और उधर,

दिलों के अरमान हैं।

बीच 'अंचल' की खुबसूरतियों में

कतार से, 

हवेलियां वीरान हैं।।

Wednesday, February 28, 2024

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे,

दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था,

वंशानुगत न आए तो क्या हुआ,

चिर-परिचितों का सैलाब था।

है निन्यानबे के फेर मे चेतना, 

किंतु अलंकृत सभी अचेत हैं,

रही बात हमारी नागवारी की,

तभी तो हम 'परचेत' हैं।



Saturday, February 24, 2024

यकीं !

 तु ये यकीं रख, उस दिन 

सब कुछ ठीक हो जायेगा,

जिस दिन, जिंदगी का 

परीक्षा-पत्र 'लीक' हो जायेगा।

Friday, February 23, 2024

द्वंद्व !

 











निरुपम अनंत यह संसार इतना, क्या लिखूं,

ऐतबार हुआ है तार-तार इतना, क्या लिखूं ।


सर पर इनायतों का दस्तार इतना, क्या लिखूं 

है मुझपर आपका उपकार इतना, क्या लिखूं ।


और न सह पायेगा मन भार इतना, क्या लिखूं,

दिल व्यक्त करे तेरा आभार इतना, क्या लिखूं। 


सरेआम डाका व्यवहार पर इतना, क्या लिखूं,

दिनचर्या में लाजमी आधार इतना, क्या लिखूं।


इस दमघोटू परिवेश में भी दम ले रहा 'परचेत',        

है इस ग़ज़ल का दुरुह सार इतना, क्या लिखूं ।

Thursday, October 26, 2023

भैंस, भैंस की बात ठहरी।

ना ही अभिमान करती, ना स्व:गुणगान गाती,

ना ही कोई घोटाला करती, न हराम का खाती,

स्वाभिमानी है, खुदगर्ज है, खुल्ले में न नहाती,

इसीलिए हमारी भैंस, कभी पानी में नहीं जाती।

Wednesday, August 23, 2023

ऐतिहासिक उपलब्धि।



कोटि-कोटि हम सबका नमन तुमको,

आज,बढ़ा दिया है देश का मान तूने।

पहुंचा के विक्रम को 'चंद्र-दक्षिण ध्रुव',

ऐ हमारे 'इसरो' के प्यारे, 'चंद्रयान' तूने।।🙏🙏

Tuesday, January 10, 2023

जोशीमठ आपदा

धसगी जोशीमठ, हे खाली करा झठ,

भागा सरपट, हे धसगी जोशीमठ।

नी रै अपणु वू, ज्यूंरा कु ह्वैगि घौर,

नी खोण ज्यू-जान, तै कूड़ा का भौर,

जिंदगी का खातिर, छोडिद्यावा हठ,

भागा सरपट, हे धसगी जोशीमठ।


Saturday, December 31, 2022

नूतन वर्ष मे....

उठे जो भी कदम, वो दमदार नजर आए,

आपका हर फैसला समझदार नजर आए,

गुजरी है दुनिया, विगत मे अंधेरी राहों से,

नये साल मे हर राह, चमकदार नजर आए।

🍾🌷🥂🌻

                   शुभ-प्रभात🙏

इन्ही आंकाक्षाओं, उम्मीदो और अभिलाषाओं

के साथ आपको, आपके सभी पारिवारिक जनों

और ईष्ट-मित्रों को मेरी और मेरे परिवार की तरफ

से नूतनवर्ष 2023 की मंगल कामनाएं।🙏


उपजीवी !

मिली तीन-तीन गुलामियां तुमको प्रतिफल मे, और कितना भला, भले मानुष ! तलवे चाटोगे। नाचना न आता हो, न अजिरा पे उंगली उठाओ, अरे खुदगर्जों, जैसा ब...