Tuesday, December 23, 2025

ऐ धोबी के कुत्ते!

सुन, प्यार क्या है,

तेरी समझ में न आए तो,

अपने ही प्यारेलाल को काट खा,

किंतु, ऐ धोबी के कुत्ते!

औकात में रहना, ऐसा न हो,

न तू घर का रहे, न घाट का।


सुनो पथिक!



कोई  दयार-ए-दिल की रात मे

वहां चराग सा जला गया,

जो रहता था कभी उधर,

सुना है, अब वो शहर चला गया।



Saturday, December 20, 2025

मलाल

इस मुकाम पे लाकर मुझे, तू बता ऐ जिन्दगी!

दरमियां तेरे-मेरे, अचानक ऐंसी क्या ठन गई,

जिन्हें समझा था अपनी अच्छाइयां अब तक,

वो सबकी सब पलभर मे बुराइयां क्यों बन गई।

दगा किस्मत ने दिया, दोष तेरा नहीं, जानता हू,

जीने का तेरा तर्क़ मुझसे भी बेहतर है, मानता हूं,

मगर, इसे कुदरत का आशिर्वाद समझूं कि बद्दुआ 

मुखबिर मेरे खिलाफ़, मेरी ही परछाईं जन गई।

Friday, December 12, 2025

व्यथा

 तुझको नम न मिला

और तू खिली नहीं,

ऐ जिन्दगी !

मुझसे रूबरू होकर भी

तू मिली नहीं।

Thursday, December 11, 2025

दुआ !

 हिन्दुस्तान हमारा विकास की राह पर है,

बस, अब आप अपनी गुजर-बसर देखना,

मैंने भी आप सबके लिए दुआएं मांगी हैं,

अब, तुम मेरी दुआओं का असर देखना।

Saturday, December 6, 2025

उलझनें

 थोडी सी बेरुखी से  हमसे जो

उन्होंने पूछा था कि वफा क्या है,

हंसकर हमने भी कह दिया कि

मुक्तसर सी जिंदगी मे रखा क्या है!!


Friday, December 5, 2025

मौसम जाड़े का..

सुना न पाऊंगा मैं, कोई कहानी रस भरी,

जुबां पे दास्तां तो है मगर, वो भी दर्द भरी,

सर्द हवाएं, वयां करने को बचा ही क्या है?

यह जाड़े का मौसम है , दिसम्बर-जनवरी।


सोचा था कर दूंगा आज, इश्क तुम्हारे नाम,

बर्फ से ढकी हुई पहाड़ी ठिठुरन भरी शाम,

दिल कहता था, छलकागें इश्कही-विश्कही,

मगर, "बूढ़े साधू" ने बिगाड़ दिया सारा काम।








Thursday, December 4, 2025

दास्तां!

जिंदगी पल-पल हमसे ओझल होती गई,

साथ बिताए पलों ने हमें इसतरह रुलाया,

व्यथा भरी थी हर इक हमारी जो हकीकत ,

इस बेदर्द जगत ने उसे इत्तेफ़ाक बताया।


कभी दिल किसी और का न हमने दुखाया,

दर्द को अपने हमेशा हमने, सीने मे छुपाया,

रुला देना ही शायद फितरत है इस ज़हां की,

बोझ दुनियां का यही सोच, कांधे पे उठाया।


Saturday, November 29, 2025

जस दृष्टि, तस सृष्टि !

धर्म सृष्टा हो समर्पित, कर्म ही सृष्टि हो,

नज़रों में रखिए मगर, दृष्टि अंतर्दृष्टि हो,

ऐब हमको बहुतेरे दिख जाएंगे दूसरों के, 

क्या फायदा, चिंतन खुद का ही निकृष्ट हो।


रहे बरकरार हमेशा, हमारा बाहुमुल्य मुल्य,

ठेस रहित रहे भावना, आकुण्ठित न कृष्टि हो,

विगत बरसात, किसने न‌ देखा वृष्टि-उत्पात, 

दुआ करें, अगली बरसात सिर्फ पुष्प-वृष्टि हो।

Thursday, November 27, 2025

हद पार

बस भी करो अब ये सितम,

हम और न सह पाएंगे,

बदकिस्मती पे अपनी, 

बल खाए न रह पाएंगे।

किस-किस को बताएं अब,

अपनी इस जुदाई का सबब,

क्या मालूम था,फैसले तुम्हारे,

हमें इस कदर तड़पाएंगे।।

Friday, November 21, 2025

अनिश्चय!


पिरोया न करो सभी धागे एक ही सरोकार मे, 

पता नहीं कब  तार इनके, तार-तार हो जाएं,

यह न चाहो, हसरत भी संग चले, हकीकत भी,

पता नहीं खेने वाले कब, खुद पतवार हो जाएं।

भरोसे का कतई दौर नहीं, किसको पता है कि

जो नाख़ुशगवार थे हमको,कब ख़ुशगवार हो जाएं,

वजूद पे अपने इश्क का ऐसा खुमार मत पालो,

मौसमों के पैंतरों से भी, प्रचण्ड बुखार हो जाएं।

शुन्यता के दौर में राहें अंजानी, नैया मझधार मे,

पार पाने की जद्दोजहद, ख्वाहिशें दुश्वार हो जाएं,

हमने कसम खाई थी 'परचेत' तुम्हारे ही होकर रहेंगे,

दौर-ए-बेवफ़ाई, क्या पता किस नाव पे सवार हो जाएं ।






Thursday, November 6, 2025

झूम-झूम !

हमेशा झूमते रहो सुबह से शाम तक,

बोतल के नीचे के आखिरी जाम तक,

खाली हो जाए तो भी जीभ टक-टका,

तब तलक जीभाएं, हलक आराम तक।

झूमती जिंदगी, तुम क्या जान पाओगे?

अरे कमीनों ! पाप जिसे निगल जाएगा

तुम्हारे न चाहते हुए भी, ठग बहराम तक।



Thursday, October 16, 2025

मौन-सून!

ये सच है, तुम्हारी बेरुखी हमको,

मानों कुछ यूं इस कदर भा गई,

सावन-भादों, ज्यूं बरसात आई, 

गरजी, बरसी और बदली छा गई।

मैं तो कर रहा था कबसे तुम्हारा 

बेसब्री से आने का इंतजार, किंतु 

तुम आई तो मगर, मेरे विरां दिल की

छोटी सी पहाड़ी जमीन दरका गई।।

Tuesday, October 14, 2025

संशय !

मौसम त्योहारों का, इधर दीवाली का अपना चरम है,

ये मेरे शहर की आ़बोहवा, कुछ गरम है, कुछ नरम है,

कहीं अमीरी का गुमान है तो कहीं ग़रीबी का तूफान है,

है कहीं पे फुर्सत के लम्हें तो कंही वक्त ही बहुत कम है।


है कहीं तारुण्य जोबन, जामों मे सुरा ज्यादा नीर कम है,

हो गई काया जो उम्रदराज, झर-झर झरता जरठ गम है,

सार यह है कि फलसफा जिंदगी का  है अजब 'परचेत',

कहीं दीपोत्सव की जगमगाहट, कहीं रोशनी का भ्रम है।


Thursday, September 25, 2025

गिला

जीवन रहन गमों से अभिभारित,

कुदरत ने विघ्न भरी आवागम दी,

मन तुषार, आंखों में नमी ज्यादा,

किंतु बोझिल सांसों में हवा कम दी,

तकाजों का टिफिन पकड़ाकर भी,

हमें रह गई बस  गिला इतनी तुमसे,

ऐ जिन्दगी, तूने दर्द ज्यादा दवा कम दी।

Wednesday, September 24, 2025

पिता !

समझ पाओ तो

यूं समझिए कि

तुम्हारा आई कार्ड,

 निष्कृयता नाजुक, 

 और निष्पादन  हार्ड।

( यह चार लाइनें पितृपक्ष के दरमियां लिखी थी पोस्ट करना भूल गया,,,,,बस यही तो है कलयुगी बेटों का कमाल)


कशिश !

उनपे जो ऐतबार था, अब यह समझ वो मर गया,

यूं समझ कि जो पैग का खुमार था, देह से उतर गया,

परवाह रही न जिंदगी को अब किसी निर्लज्ज की,

संजोए रखा बना के मोती, नयनों से खुद झर गया।

Friday, September 19, 2025

फटने को तत्पर, प्रकृति के मंजर।


अभी तक मैं इसी मुगालते में जी रहा था

सांसों को पिरोकर जिंदगी मे सीं रहा था,

जो हो रहा पहाड़ो पर, इंद्रदेव का तांडव है,

सुरा को यूं ही सोमरस समझकर पी रहा था।


किंतु अब जाके पता चला कि तांडव-वांडव कुछ नहीं ,

विकास-ए-परती धरा ये, स्वर्ग वालों को खटी जा रही, 

ये तो "ऋतु बरसात' इक बहाना था बादल फटने का,

नु पता आपरेशन सिंदूर देख, इंद्रदेव की भी फटी जा रही।




Friday, September 12, 2025

उपजीवी !


मिली तीन-तीन गुलामियां तुमको प्रतिफल मे,

और कितना भला, भले मानुष ! तलवे चाटोगे।

नाचना न आता हो, न अजिरा पे उंगली उठाओ,

अरे खुदगर्जों, जैसा बोओगे, वैसा ही तो काटोगे।।


अहम् ,चाटुकारिता को खुद आत्मसात् करके,

स्वाभिमान पर जो डटा है,उसे तुम क्या डांटोगे।

आम हित लगा नाटा, निहित हित में देश बांटा,

जाति-धर्म की आड़ में जन और कितना बांटोगे।।


स्वाधीनता नाम दिया, जुदा भाई को भाई से किया,

औकात क्या है अब तुम्हारी जो बिछड़ों को सांटोगे।

जड़ें ही काट डाली जिस वटवृक्ष की 'परचेत' तुमने, 

उस दरख़्त की डालियों को, और कितना छांटोगे।।


 

ऐ धोबी के कुत्ते!

सुन, प्यार क्या है, तेरी समझ में न आए तो, अपने ही प्यारेलाल को काट खा, किंतु, ऐ धोबी के कुत्ते! औकात में रहना, ऐसा न हो, न तू घर का रहे, न घ...