Monday, July 22, 2013

लघु व्यंग्य- अरहर महादेव !

आपको शायद याद होगा कि जिस तरह आजकल टमाटर के दाम आसमान छूं रहे है, ठीक उसी तरह २००९ में अरहर की दाल के भाव भी ४३ रूपये से बढ़कर सीधे १०५ रूपये प्रति कीलो तक पहुँच गए थे। उसी वक्त मैंने यह लघु-व्यंग्य लिखा था आज श्रावण मास के प्रथम सोमवार के अवसर पर दोबारा ब्लॉग पर पोस्ट कर रहा हूँ, उम्मीद है आपको पढने में अच्छा लगेगा; 
      

सावन का महीना शुरू हो गया है।  और यह बताने की शायद जरुरत नहीं कि इस पूरे मास में हिन्दू महिलाए प्रत्येक सोमवार को शिव भगवान की पूजा-अराधना कर व्रत (उपवास)रखती हैं मंदिरों में शिव की पूजा-अर्चना की जाती है, तथा उन्हें श्रद्धा-पूर्वक ताजे पकवानों का भोग चढाया जाता हैं  



आदतन आलसी और अमूमन थोबडा सुजाकर, मुंह से आई-हूँ-हुच की कर्कश ध्वनि के साथ रोज सुबह खडा उठने वाला यह निठल्ला इंसान, उस रोज थोडा जल्दी उठा गया था बरामदे में बैठ धर्मपत्नी के साथ सुबह की गरमागरम चाय की चुस्कियाँ लेते हुए अच्छे मूड में होने का इजहार उनपर कर चुका था।  अतः ब्लैक-मेलिंग में स्नातकोत्तर मेरी धर्मपत्नी ने मुझे जल्दी नहा-धोकर तैयार होने को कहा। यह शुभ-कार्य मुझसे इतनी जल्दी निपटवाने का कारण जब मैंने मुस्कुराकर उनसे पूछा तो उन्होंने भी एक कातिलाना मुस्कान चेहरे पर बिखेरते हुए बताया कि मुझे भी आज उनके साथ मोहल्ले के बाहर, सरकारी जमीन कब्जाकर बने-बैठे शिवजी के मंदिर में पूजा-अर्चना करने और भोग लगाने चलना है  


स्नान तदुपरांत तैयार हुआ तो धर्मपत्नी जी किचन में जरूरी भोग सामग्री बनाकर तैयार बैठी थी, अतः हम चल पड़े मंदिर की और मंदिर पहुंचकर कुछ देर तक पुजारी द्वारा आचमन और अन्य शुद्धि विधाये निपटाने के बाद हम दोनों ने मंदिर के एक कोने पर स्थित भगवान् की करीब दो मीटर ऊँची प्रतिमा को दंडवत प्रणाम किया धर्मपत्नी थाली पर भगवान् शिव को चढाने वास्ते साथ लाये पकवान सजा रही थी कि इस बीच मैंने जोश में आकर भगवान शिव का जयघोष करते हुए कहा; "हर-हर महादेव" ! 

जय-घोष किया तो मैंने पूरे जोश के साथ ऊँची आवाज में था,किन्तु चूँकि पहाडी मूल का हूँ, इसलिए आवाज में वो दमख़म नहीं है, और कभी-कभार सुनने वाला उलटा-सीधा भी सुन लेता है यही उसवक्त भी घटित हुआ जैसे ही मेरा हर-हर महादेव कहना था कि अमूमन आँखे मूँदे अंतर्ध्यान रहने वाले शिवजी ने तुंरत आँखे खोल दी। सफ़ेद रूमाल से ढकी कांस की थाली पर नजर डालते हुए बोले, "ला यार,बड़ा मन कर रहा था अरहर की दाल खाने का। तुमने अच्छा किया जो अरहर की दाल बनाकर लाये,पिछले एक महीने से किसी भी भक्तगण ने अरहर की दाल नहीं परोसी। मगर ज्यों ही मेरी धर्मपत्नी ने भोग की थाली में से रूमाल उठाकर थाली आगे की,शिवजी थाली पर नजर डाल क्रोधित नेत्रों से मुझे घूरते हुए बोले, "तुम लोग नहीं सुधरोगे टिंडे की सब्जी पकाकर भोग चढाने लाये हो और मोहल्ले के लोगो को सुनाने और गुमराह करने के लिए ऊंचे स्वर में अरहर की दाल बताते हो

शाहरुखिया अंदाज मे मै-मै करते हुए मैंने सफाई दी; भगवन, आप नाराज न हो, मेरा आपको क्रोधित करने व किसी को भी गुमराह करने का कोई इरादा नहीं था। दरह्सल आपके सुनने में ही कुछ गड़बड़ हो गई है मैंने तो आपकी महिमा का जय-घोष करते हुए हर-हर महादेव कहा था, आपने अरहर सुन लिया, इसमें भला मेरा क्या दोष? अब आप ही बताएं प्रभु कि इस कमरतोड़ महंगाई में आप तो बड़े लोगो के खान-पान वाली बात कर रहे है हम चिकन रोटी खाने वाले लोग भला आपको 105/- रूपये किलो वाली अरहर की दाल भला कहाँ से परोस सकते है? यहाँ तो बाजार की मुर्गी घर की दाल बराबर हो रखी है आजकल एक 'लेग पीस' में ही पूरा परिवार काम चला रहा है। और हाँ, ये जो आप टिंडे की सब्जी की बात कर रहे है तो प्रभू, इसे भी आप तुच्छ भोग न समझे, 55/- रूपये किलो मिल रहे है टिंडे भी। 

भगवान शिव का मूड काफी उखड चुका था और वो मेरी बकबक सुनने के लिए ज़रा भी इंटरेस्टेड नहीं दीख रहे थे। अत: उन्होंने थोडा सा अपनी मुंडी हिलाई, कुछ बड-बडाये, मानो कह रहे हो कि पता नहीं कहाँ-कहाँ से सुबह-सुबह मूड खराब करने चले आते है इडियट्स ...........और फिर से अंतर्ध्यान हो गए

11 comments:

  1. आजकल तो टमाटर की चटनी आराध्य को अर्पित कर रहे होंगे भक्तगण।

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  2. हा हा हा....शिव जी को भी कैसे इंसान से पाला पड गया. लगता है इस बार कहीं ताजे टमाटर सूप की मांग ना कर बैठे.:)

    रामराम.

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  3. हुजूर इस श्रावन मास में दूर ही रहिएगा काफी दिन से शिवजी भी महंगाई की मार झेल रहें है पता नहीं क्या इच्छा कर बेठे !!

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    जय भोलेनाथ की!

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  5. पूजन है मदनारि का, मद में दिखती नारि |
    तू भी पूजन कर सखे, आलस शीघ्र बिसारि-

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  6. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन जानिए क्या कहती है आप की प्रोफ़ाइल फोटो - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  7. आपकी इस शानदार प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार २३/७ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है सस्नेह ।

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  8. यह मँहगाई का चक्कर किसी को बख़्शनेवाला नहीं !

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वक्त की परछाइयां !

उस हवेली में भी कभी, वाशिंदों की दमक हुआ करती थी, हर शय मुसाफ़िर वहां,हर चीज की चमक हुआ करती थी, अतिथि,आगंतुक,अभ्यागत, हर जमवाडे का क्या कहन...