दर्द-ऐ -दिल चीज क्या है,तुमने ये न हरगिज कहा होता,
एक कतरा गर सितम का, दिल ने तुम्हारे सहा होता।
ह्रदय-संवेदना की गहराइयों से, तुम यूं न होते बेखबर,
इक पुलिंदा ख्वाहिशों का, कभी आंसुओं में बहा होता।
बढ़ते न हरदम फासले, होते न गर खुदगर्ज इतने,
हुजूम नाइंसाफियों का ये सारा,यूं न इतरा रहा होता।
कर डालते घायल जिगर, तुम तोड़कर हमारा यकीं ,
बुरा जो हमने भी अगर, कभी तुम्हारा चाहा होता।
वक्त के हर वार पे ये न भूलो, ढाल बनकर हम खड़े थे,
वरना शोखियों का बुत तुम्हारा, एक पल में ढहा होता।
सुन्दर गजल !!
ReplyDeleteबढ़ते न हरदम फासले, होते न गर खुदगर्ज इतने,
ReplyDeleteहुजूम नाइंसाफियों का तुम्हारा,यूं न इतरा रहा होता।
बेहतरीन और सटीक गजल.
रामराम.
Aabhaar Ravikar ji !
ReplyDeleteअहा, बहुत सुन्दर..
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गजल
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत ग़ज़ल और अभिव्यक्ति .......!!
ReplyDeleteबहुत उम्दा,सुंदर गजल ,,,वाह वाह,,,
ReplyDeleteRECENT POST : अभी भी आशा है,
सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeletebahut hi sundar wa saral bhaw
ReplyDeleteवाह सटीक
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