Saturday, July 6, 2013

एक भावी गजल-चल तुझे भी झेल लेंगे !

















जो साल सडसठ ठेले है  हमने, चंद और भी ठेल लेंगे,
बड़े-बड़े 'नमो'ने  झेले हैं हमने, चल तुझे भी झेल लेंगे।

है नाउम्मीदी से तो बेहतर, कुछ नए से अरमां जगाएं,
शतरंज के सब हैं खिलाड़ी, खेल नूतन फिर खेल लेंगे।

हुआ अगर नहीं भी सुचारू, आने से  तेरे आवागमन, 
है आदत हमें धकेलने की, मील चंद और धकेल लेंगे।

सिवाए झेलने और ठेलने के, हमने किया भी तो क्या,     
पापड़ ही पापड ही बेले है अबतक, कुछ और बेल लेंगे। 

क्षद्मनिर्पेक्ष बनकर राष्ट्र अपना,लूट खाया है जिन्होंने,  
सफल समझेंगे तुझे गर ये भी लोण,लकड़ी,तेल लेंगे।   
  
विधर्मी आंच में 'परचेत', फुल्के सेक जाते खुदगरज, 
सियासी इस दौर-ए-नफ़रत, हम मिलाप-ए-मेल लेंगे। 
  
     

11 comments:

  1. वाकई क्षद्मनिर्पेक्ष बन कर इन्‍होंने राष्ट्र को लूट खाया है

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  2. सब किस्सा है कुर्सी का , हमारा क्या है ,
    झेलने के सिवाय और भला , चारा क्या है !

    बहुत बढ़िया ग़ज़ल लिखी है, गोदियाल जी।

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  3. सही और सटीक कहा, बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  4. झुक कर रहना, तीर चल रहे,
    सीना ताने वीर चल रहे,
    प्यादे भी अब सहमे सहमे,
    दोनों ओर वजीर चल रहे।

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  5. झेल ही रहे है भाई जी ...और भी झेल लेंगें ...
    जब तक ठीलेगा.....ठेल लेंगे ?
    बहुत सही कहा....

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (07-07-2013) को <a href="http://charchamanch.blogspot.in/“ मँहगाई की बीन पे , नाच रहे हैं साँप” (चर्चा मंच-अंकः1299) <a href=" पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  7. वाह !!! बहुत उम्दा लाजबाब गजल ,,,

    RECENT POST: गुजारिश,

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  8. मैं भी कितना भुलक्कड़ हो गया हूँ। नहीं जानता, काम का बोझ है या उम्र का दबाव!
    --
    पूर्व के कमेंट में सुधार!
    आपकी इस पोस्ट का लिंक आज रविवार (7-7-2013) को चर्चा मंच पर है।
    सूचनार्थ...!
    --

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  9. नहीं झेलेंगे तब भी ये झिल जायेंगे , और चारा भी क्या है !!
    बेहतरीन ग़ज़ल !

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  10. झेलने, ठेलने एवं खेलने के सिवाय हमने किया क्या,
    'इज्ज़त पापड' ही बेले है अबतक, कुछ और बेल लेंगे।
    बिलकुल झेल लेंगे ... जीना पड़ेगा तो जी लेंगे ... अभी भी तो जी रहे हैं ...
    बहुत उम्दा ...

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।