निकम्मों को अब मुल्क लायक कहता है,
राजकर्ता को प्रजा का सहायक कहता है,
खलनायक थे जो कभी सभ्य-समाज के,
उनको यह ज़माना अधिनायक कहता है।
स्याह वेश,बीहड़ों के होते थे जो शहंशाह,
समाज, व्यवस्था ने बदल दी उनकी राह।
चटक पोशाक पहने घुमते क्षद्म बेषधारी,
अब हक़ से लूटते है, तब लूट थी चाह।
डाकू और दस्यु इनका उपनाम होता था,
सर पर हर एक के मोटा इनाम होता था।
पोशाक भले ही अपने अंगरक्षको को दे दी,
किंतु करते वही हैं जो तब काम होता था।
जुबाँ पर इनके मुफ़्त उपहार के वायदे है,
ठेंगे पर रखते, सरकारी नियम-क़ायदे हैं।
चम्बल बनाके रख दिया बस्ती-नगर को,
असत चित में बसे, अनाचार के फायदे है।
और अंत में ;
ऐ खुदा !
हक़ हमको, हमारा कब मिलेगा,
भ्रष्टाचार से,
देश को छुटकारा कब मिलेगा।
कश्ती जो फंस गई,
इस एक पापिनी भंवर में,
उस डोलती नैंया को
किनारा कब मिलेगा।
राजकर्ता को प्रजा का सहायक कहता है,
खलनायक थे जो कभी सभ्य-समाज के,
उनको यह ज़माना अधिनायक कहता है।
स्याह वेश,बीहड़ों के होते थे जो शहंशाह,
समाज, व्यवस्था ने बदल दी उनकी राह।
चटक पोशाक पहने घुमते क्षद्म बेषधारी,
अब हक़ से लूटते है, तब लूट थी चाह।
डाकू और दस्यु इनका उपनाम होता था,
सर पर हर एक के मोटा इनाम होता था।
पोशाक भले ही अपने अंगरक्षको को दे दी,
किंतु करते वही हैं जो तब काम होता था।
जुबाँ पर इनके मुफ़्त उपहार के वायदे है,
ठेंगे पर रखते, सरकारी नियम-क़ायदे हैं।
चम्बल बनाके रख दिया बस्ती-नगर को,
असत चित में बसे, अनाचार के फायदे है।
और अंत में ;
ऐ खुदा !
हक़ हमको, हमारा कब मिलेगा,
भ्रष्टाचार से,
देश को छुटकारा कब मिलेगा।
कश्ती जो फंस गई,
इस एक पापिनी भंवर में,
उस डोलती नैंया को
किनारा कब मिलेगा।
डाकू और दस्यु इनका उपनाम होता था,
ReplyDeleteसर पर हर एक के मोटा इनाम होता था।
पोशाक भले ही अपने अंगरक्षको को दे दी,
किंतु करते वही हैं जो तब काम होता था।
समाज को आइना दिखाती अच्छी रचना
बहुत सुंदर
लोकतंत्र का यह बुरा चेहरा है
ReplyDeleteआपकी चिंता निरर्थक नहीं होगी, ऐसी पंक्तियों से आशा होती है कि जल्दी अच्छा बदलाव होगा।
ReplyDeleteडाकू और दस्यु इनका उपनाम होता था,
ReplyDeleteसर पर हर एक के मोटा इनाम होता था।
पोशाक भले ही अपने अंगरक्षको को दे दी,
किंतु करते वही हैं जो तब काम होता था।
आज के राज नेताओं को दर्पण दिखाती सार्थक रचना !
latest post सुख -दुःख
ऐ खुदा ! हक़ हमको, हमारा कब मिलेगा,
ReplyDeleteभ्रष्टाचार से देश को,छुटकारा कब मिलेगा।
देश-कश्ती जो फंस गई है इनके भंवर में,
उस डोलती नैंया को किनारा कब मिलेगा।
गोदियाल जी जब तक ये नालायक बैठें हैं तब तक नही मिलेगा. फ़िर भी "वो सुबह कभी तो आयेगी" के भरोसे जनता जी रही है.
रामराम.
ऐ खुदा ! हक़ हमको, हमारा कब मिलेगा,
ReplyDeleteभ्रष्टाचार से देश को,छुटकारा कब मिलेगा।
बहुत उम्दा,सुंदर सृजन,,,वाह !!! वाह क्या बात है
RECENT POST : अभी भी आशा है,
धांसू !
ReplyDeleteजब तक सिर पर बैठे हैं तब तक छुटकारे की आशा कहाँ !
ReplyDeleteलुटेरे जब तक सताओं पर बैठे हैं तब तक आशा करना बेकार है !!
ReplyDeleteबेहद सुन्दर प्रस्तुतीकरण ....!!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार (17-07-2013) को में” उफ़ ये बारिश और पुरसूकून जिंदगी ..........बुधवारीय चर्चा १३७५ !! चर्चा मंच पर भी होगी!
सादर...!
Umeed ki kiran abhi to dikhai nahi de rahi hai...
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
ReplyDeleteपहले तो थे घेरते, आज लुटेरे टेर |
एक बेर थे लूटते, अब लूंटे हर बेर ||
डाकू और दस्यु इनका उपनाम होता था,
ReplyDeleteसर पर हर एक के मोटा इनाम होता था।
पोशाक भले ही अपने अंगरक्षको को दे दी,
किंतु करते वही हैं जो तब काम होता था। ..
बहुत उम्दा ... आप तो तार तार कर रहे हैं इनको ... पर फिर भी ये निर्लज नहीं मानने वाले ...
भारत को भी सुखद भविष्य का उपहार दे ईश्वर..
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