Tuesday, July 16, 2013

क्या से क्या हो गया !

निकम्मों को अब मुल्क लायक कहता है,
राजकर्ता को प्रजा का सहायक कहता है, 
खलनायक थे जो कभी  सभ्य-समाज के,
उनको यह ज़माना अधिनायक कहता है।

स्याह वेश,बीहड़ों के होते थे जो शहंशाह,
समाज, व्यवस्था ने बदल दी उनकी राह।
चटक पोशाक पहने घुमते  क्षद्म बेषधारी,
अब  हक़ से लूटते है, तब लूट थी चाह।

डाकू और दस्यु इनका उपनाम होता था,
सर पर हर एक के मोटा इनाम होता था।
पोशाक भले ही अपने अंगरक्षको को दे दी,
किंतु करते वही हैं जो तब काम होता था। 
            
जुबाँ पर इनके मुफ़्त उपहार के वायदे है,
ठेंगे पर रखते, सरकारी नियम-क़ायदे हैं।
चम्बल बनाके रख दिया बस्ती-नगर को, 
असत चित में बसे, अनाचार के फायदे है।

और अंत में ;

ऐ खुदा ! 
हक़ हमको, हमारा कब मिलेगा,
भ्रष्टाचार से, 
देश को छुटकारा कब मिलेगा। 
कश्ती जो फंस गई, 
इस एक पापिनी भंवर में, 
उस डोलती नैंया को 
किनारा कब मिलेगा।   

14 comments:

  1. डाकू और दस्यु इनका उपनाम होता था,
    सर पर हर एक के मोटा इनाम होता था।
    पोशाक भले ही अपने अंगरक्षको को दे दी,
    किंतु करते वही हैं जो तब काम होता था।

    समाज को आइना दिखाती अच्छी रचना
    बहुत सुंदर

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  2. आपकी चिंता निरर्थक नहीं होगी, ऐसी पंक्तियों से आशा होती है कि जल्‍दी अच्‍छा बदलाव होगा।

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  3. डाकू और दस्यु इनका उपनाम होता था,
    सर पर हर एक के मोटा इनाम होता था।
    पोशाक भले ही अपने अंगरक्षको को दे दी,
    किंतु करते वही हैं जो तब काम होता था।

    आज के राज नेताओं को दर्पण दिखाती सार्थक रचना !
    latest post सुख -दुःख

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  4. ऐ खुदा ! हक़ हमको, हमारा कब मिलेगा,
    भ्रष्टाचार से देश को,छुटकारा कब मिलेगा।
    देश-कश्ती जो फंस गई है इनके भंवर में,
    उस डोलती नैंया को किनारा कब मिलेगा।

    गोदियाल जी जब तक ये नालायक बैठें हैं तब तक नही मिलेगा. फ़िर भी "वो सुबह कभी तो आयेगी" के भरोसे जनता जी रही है.

    रामराम.

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  5. ऐ खुदा ! हक़ हमको, हमारा कब मिलेगा,
    भ्रष्टाचार से देश को,छुटकारा कब मिलेगा।

    बहुत उम्दा,सुंदर सृजन,,,वाह !!! वाह क्या बात है

    RECENT POST : अभी भी आशा है,

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  6. जब तक सिर पर बैठे हैं तब तक छुटकारे की आशा कहाँ !

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  7. लुटेरे जब तक सताओं पर बैठे हैं तब तक आशा करना बेकार है !!

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  8. बेहद सुन्दर प्रस्तुतीकरण ....!!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार (17-07-2013) को में” उफ़ ये बारिश और पुरसूकून जिंदगी ..........बुधवारीय चर्चा १३७५ !! चर्चा मंच पर भी होगी!
    सादर...!

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  9. Umeed ki kiran abhi to dikhai nahi de rahi hai...

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  10. आभार आदरणीय-

    पहले तो थे घेरते, आज लुटेरे टेर |
    एक बेर थे लूटते, अब लूंटे हर बेर ||

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  11. डाकू और दस्यु इनका उपनाम होता था,
    सर पर हर एक के मोटा इनाम होता था।
    पोशाक भले ही अपने अंगरक्षको को दे दी,
    किंतु करते वही हैं जो तब काम होता था। ..

    बहुत उम्दा ... आप तो तार तार कर रहे हैं इनको ... पर फिर भी ये निर्लज नहीं मानने वाले ...

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  12. भारत को भी सुखद भविष्य का उपहार दे ईश्वर..

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।