बहनजियों / भाभीजियों !
जी चौंकिए मत, शीर्षक एकदम सही पढ़ा आपने। और ये नहीं कि इस रामबाण औषधि के बारे में आपको पहले से कोई
जानकारी न हो। मगर क्या करे, ये कम्वख्त १२०० सालों की लम्बी गुलामी का
विषाणु जो हमारी रगों में अन्दर तक घुसा हुआ है, पहले तो यह माँ-बाप
को भयभीत करके उनके लाडलों को बीए, एमए करने पर मजबूर कर देता है और फिर ले
जाकर खडा कर देता है किसी क्लर्क या चपरासी की भर्ती की लाइन मे, बस। यह
कम्वख्त अधिकांश भारतीयों को इससे हटकर सोचने का वक्त ही नहीं देता,
क्योंकि इसे तो ज्यादा से ज्यादा आम-आदमी पैदा करने में ही रूचि हैं, ताकि
उन्हें यह अपने पसंदीदा, देश में मौजूद उन लुच्चे-लफंगे, जाहिल-गंवार और
भ्रष्ट, महापुरुषों और महास्त्रियों के पेट का निवाला बनवा सके, जो इसके झांसे में न आकर स्कूल, कॉलेज जाने और आम-आदमी बनने के बजाये सीधे नेता बन गए।
बहनजियों / भाभीजियों ! प्लीज, मेरी आप से विनती है कि आप हमारे जीजाजियों / भाईजियों को यह जरूर बोलिएगा कि अबके आपके इलाके में जो भी लोकसभा/विधान सभा चुनाव हों, उसमें वे भले ही सिर्फ खुद के और अपने परिवार के निहितार्थ ही सही, किन्तु चुनाव में अवश्य खड़े हों। क्या होगा, ज्यादा से ज्यादा जमानत ही तो जब्त होगी। किन्तु नेता का ठप्पा तो लग ही जाएगा न। अरे, जमानत राशि का रोना छोडिये, क्या आपको मालूम नहीं है कि जमानत राशि मात्र दस हजार रूपये है। वैसे भी हम लोग तीस-तीस हजार रूपये तो हर साल सिर्फ इन बीमा कंपनियों को मेडिकल इन्सुरेंश का प्रीमियम / संपति के बीमें का प्रीमियम ही भर देते हैं। और उसके बाद भी भगवान् न करे अगर खुदानाखास्ता कोई दुर्घटना हो जाये तो फिर देखिये इन बीमा कंपनियों के नखरे, ये लाओ जी , वो लाओ। जब रिहायशी इलाकों में इनके छोड़े हुए चालाक लोमडे बीमे का कोई रसीला प्रस्ताव आपके समक्ष पेश करते है तो उसवक्त आपसे कोई सर्टिफिकेट नहीं मांगेगे, कोई सीधी जानकारी ( आपके काम की) नहीं देंगे। हल्के से मुह के अन्दर ही १२० की स्पीड में सिर्फ इतना बडबड़ायेंगे कि इन्सुरेंश इज दी सबज्क्ट मैटर आफ़ सोलिशिटेशन, बस। और आपसे कहेंगे कि आप सिर्फ प्रीमियम का चेक हमें दे दो जी, बस । साथ ही आपका ख़ासमखास बनने का नाटक करते हुए फ्री फंड में एक-आदा उलटी सलाह यह भी दे देंगे कि अपनी उम्र दो साल कम करके दिखाओगे तो प्रीमियम कम पडेगा। मेडिक्लेम की एक पॉलिसी अगर आपने पहले से ही ले रखी है तो कहेगा कोई बात नहीं एक और ले लो। उस वक्त आप सोचोगे कि अरे यार इससे बड़ा शुभचिंतक तो अपना और कोई हो ही नहीं सकता इस दुनिया में। लेकिन हकीकत का पता तब चलता है जब भगवान् न करे किसी वजह से आपको बीमे की रकम इनसे वसूलनी हो। लोमड़े तो इस दौरान अपना मोबाइल फोन बंद करके बैठ जायेंगे , और बीमा कंपनी कहेगी कि जी अपना (बीमाधारक का ) जन्मतिथि का प्रमाण दो, और सारे मेडिक्लेम के बिल, रसीद हमें ओरिजिनल में सबमिट करो। तब जाकर अपनी अक्लमंदी पर तरस आता है कि पालिसी लेते वक्त, लोमडे के झांसे में आकर उम्र तो बीमा फ़ार्म में दो साल कम करके दिखाई हुई है, इनको डेट आफ बर्थ का प्रूफ क्या ख़ाक देंगे और अगर सारे ओरिजिनल बिल और भुगतान की रसीद एक बीमा कंपनी को दे देते हैं तो दूसरी पालिसी जो दूसरी बीमा कंपनी से ले रखी है, उसको क्या सबमिट करेंगे क्लेम के लिए? दूसरी बीमा कंपनी वाला भी ओरिजिनल बिल और रसीद ही मांगेगा क्लेम प्रोसेस करने हेतु ,यूं समझो कि वो पालिसी तो बेकार हो गई। अस्पताल ने तो एक ही सेट इन दस्तावेजों का दिया था, और उस लोमडे ने पॉलिसी दिलवाते वक्त यह तो बताया ही नहीं था कि मेडीक्लेम की रकम आप सिर्फ एक ही बीमा कंपनी से वसूल सकते हो, एक से ज्यादा से नहीं।
कहने का आशय सिर्फ इतना है कि जिस प्रकार से हम बुरे वक्त के लिए इतनी भारी-भरकम रकम इन्सुरेंश कंपनियों को प्रीमियम के तौर पर हर साल इस उम्मीद में दे देते हैं कि बुरे वक्त में काम आयेगा, उसी तरह अच्छे वक्त की उम्मीद में कुछ पैसा चुनाव लड़ने पर भी लगाना चाहिए । जीत गए तो पाँचों उंगलियाँ और सर कड़ाई में होगा और जीभ शुद्ध देशी घी में लपलपा रही होगी, वो भी कोई भी सर्टिफिकेट दिखाए वगैर ही। ओरिजिनल तो क्या वहां कोई फोटोकाफी भी नहीं माँगता। अगर नहीं भी जीते और जमानत बचाने लायक वोट भी बटोर लिए तो जमानत के पैसे वापस मिल जायेंगे , नहीं तो सालाना भरे बीमा प्रीमियम से तो कम के ही नुकशान का गम रहेगा न।
जानता हूँ कि अब आप ये सोच रहे होंगे कि जीजाजी / भाई जी लोग तो संकुचायेंगे कि उनके पास नेता बनने की क्वेलिफिकेशन और क्वेलिटी तो है ही नहीं। इत्मीनान रखिये, मैं आपकी इस उलझन को भी अभी यहीं सुलझाए देता हूँ। उनको बोलिएगा कि नेता और मंत्री बनने के लिए अपने देश में किसी भी क्वेलिफिकेशन की जरुरत नहीं होती, अपने दांए-बाएं हाथ का अंगूठा सलामत होना चाहिए, बस। जो थोड़ी बहुत योग्यताएं चाहिए भी, वो सिर्फ इतनी भर है कि उम्र २५ से ऊपर हो, निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़ेंगे तो दस प्रस्तावक चाहिए (इतने तो आपके अगल-बगल पड़ोस में ही मिल जायेंगे, तुम्हारे प्रस्तावक वो बन जायेंगे और उनके तुम बन जाना)! अगर साल-डेड साल कभी जीजाजी/भाईजी लोगों ने कहीं जेल में भी काटे हो तो भी कोई चिंता की बात नहीं है। अपने देश का संविधान बहुत उदार है, वो कहता है कि अगर दो साल से ज्यादा की सजा काटी हो तो तभी आप इलेक्शन लड़ने के काबिल नही रहोगे।
अब नेता बनने के दूसरे पहलू 'क्वेलीटीज' पर आता हूँ। सर्वप्रथम आप यह देखें कि अगर वे थोड़ा बहुत लज्जावान किस्म के इंसान हैं तो उन्हें उनके निर्लज बनने के लिए खूब प्रोत्साहित करें। बेशर्मी उनके चेहरे से हरवक्त झलकनी चाहिए। साथ ही आप गांधीधाम से उनके लिए दो -चार खद्दर के कुर्ते-पजामे खरीद लाइए, और पास के पनवाड़ी को रोजाना घर पर दो पान देते जाने का ऑर्डर दे दो। जीजाजी/भाईजी लोग सुबह जैसे ही नाश्ता करें उसके तुरंत बाद वह पान उनके मुहँ में ठूँस दिया करें और उन्हें ये हिदायत भी दें कि गली से निकलते वक्त वे मुहं से थोड़ा पीक गली में खडी किसी गाडी के बोनट के ऊपर अवश्य डालते जांये। ये एक अच्छे नेता की पहली निशानी होती है। गली में रोज कोई न कोई फसाद अवश्य करवाएं और वहाँ पर ये लोग खादी के कुर्ता-पजामा पहनकर पान चबाते हुए अवश्य पहुंचें, और अपनी खूब नेतागिरी झाडें।
नेतागिरी शब्द से याद आया, जब मैं युवा था तो अक्सर सोचा करता था कि नेता तो अमूमन पुलिंग होते है फिर इनके साथ इनके काम(कुकृत्य) को स्त्रीलिंग का जामा क्यों पहनाया गया होगा? यानि कि नेता के साथ 'गिरी' शब्द क्यों जुडा होगा जबकि जुड़ना तो 'गिरा' शब्द चाहिए था। जब धीरे-धीरे बड़ा हुआ तो पूरी कहानी समझ में आ गई। समझ गया की यह शब्द किसी टुच्चे और चालाक किस्म के नेता के दिमाग की ही उपज रही होगी। नेतागिरी की जगह वह अगर नेतागिरा शब्द तभी इजाद कर देता तो आज तो इनके लिए आगे गिरने की गुंजाइश ही बाकी नहीं बचती। इसीलिये उस कायर ने दूर की सोचकर अपनी करतूतों को इस स्त्री-चिलमन से ढकने की कोशिश की होगी। .
बहनजियों / भाभीजियों ! आप आज के पढ़े-लिखे इंसान हैं, नेता बनने के क्या-क्या फायदे हैं, ये बखूबी जानते है। आजकल समाचारों में आपने उत्तराखंड की त्रासदी के बारे में तो खूब सुना ही होगा। हजारों मर गए, लापता हो गए, लाखों ने कई-कई दिनों तक असीम कष्ट सहे, वहां से अपने घर तक पहुँचने की उस यात्रा में। मगर क्या आपने सुना कि अपने देश का एक भी नेता इस त्रासदी का शिकार हुआ ? उनके तो उलटे इस त्रासदी से भाग खुल गए। इसे झेला किसने सिर्फ आम आदमी ने, नेताओं को तो घोटाले करने और सियासत चमकाने से ही फुर्सत नहीं है । एक-आदा कोई जो वहाँ जाता भी तो वो भी साफ़ बचकर निकल आता। यमराज भी सोचता होगा कि जाने दो यार, कौन कीचड़ में पत्थर डाले। और हद देखिये कि उसके बाद एक-आदा जो वहाँ पर थे भी, वे अपने परिचितों को ही सर्वप्रथम सेना की मुफ्त हैलीकॉप्टर सेवा का लुफ्त उठाने के लिए वहां आरक्षण देते नजर आये।
आप अपने पतियों और परिवार के सुख-समृद्धि और लम्बी उम्र के लिए क्या-क्या नहीं करती? तरह- तरह के ब्रत (उपवास ) रखती है, कई-कई कष्ट उठाती है। मेरा यकीन मानिए की एक बार जब आपके "उनपर" भी नेता का ठप्पा लग जाएगा तो आपको भी कोई कष्ट नही उठाना पडेगा। सब तरफ सुख ही सुख, उलटे आपकी धाक और नखरे और भी बढ़ जायेंगे, वो अलग। जब हर घर से एक नेता चुनाव में खडा हो जाएगा तभी इन मौजूदा नेताओं को भी आम-आदमी की कीमत का अहसास होगा। इसलिए आप सभी से आग्रह है कि आप मेरी सलाह पर गौर फरमाकर इस देश को कृतार्थ करेंगे।
आपका शुभचिंतक ,
पीसी गोदियाल "परचेत"
बहनजियों / भाभीजियों ! प्लीज, मेरी आप से विनती है कि आप हमारे जीजाजियों / भाईजियों को यह जरूर बोलिएगा कि अबके आपके इलाके में जो भी लोकसभा/विधान सभा चुनाव हों, उसमें वे भले ही सिर्फ खुद के और अपने परिवार के निहितार्थ ही सही, किन्तु चुनाव में अवश्य खड़े हों। क्या होगा, ज्यादा से ज्यादा जमानत ही तो जब्त होगी। किन्तु नेता का ठप्पा तो लग ही जाएगा न। अरे, जमानत राशि का रोना छोडिये, क्या आपको मालूम नहीं है कि जमानत राशि मात्र दस हजार रूपये है। वैसे भी हम लोग तीस-तीस हजार रूपये तो हर साल सिर्फ इन बीमा कंपनियों को मेडिकल इन्सुरेंश का प्रीमियम / संपति के बीमें का प्रीमियम ही भर देते हैं। और उसके बाद भी भगवान् न करे अगर खुदानाखास्ता कोई दुर्घटना हो जाये तो फिर देखिये इन बीमा कंपनियों के नखरे, ये लाओ जी , वो लाओ। जब रिहायशी इलाकों में इनके छोड़े हुए चालाक लोमडे बीमे का कोई रसीला प्रस्ताव आपके समक्ष पेश करते है तो उसवक्त आपसे कोई सर्टिफिकेट नहीं मांगेगे, कोई सीधी जानकारी ( आपके काम की) नहीं देंगे। हल्के से मुह के अन्दर ही १२० की स्पीड में सिर्फ इतना बडबड़ायेंगे कि इन्सुरेंश इज दी सबज्क्ट मैटर आफ़ सोलिशिटेशन, बस। और आपसे कहेंगे कि आप सिर्फ प्रीमियम का चेक हमें दे दो जी, बस । साथ ही आपका ख़ासमखास बनने का नाटक करते हुए फ्री फंड में एक-आदा उलटी सलाह यह भी दे देंगे कि अपनी उम्र दो साल कम करके दिखाओगे तो प्रीमियम कम पडेगा। मेडिक्लेम की एक पॉलिसी अगर आपने पहले से ही ले रखी है तो कहेगा कोई बात नहीं एक और ले लो। उस वक्त आप सोचोगे कि अरे यार इससे बड़ा शुभचिंतक तो अपना और कोई हो ही नहीं सकता इस दुनिया में। लेकिन हकीकत का पता तब चलता है जब भगवान् न करे किसी वजह से आपको बीमे की रकम इनसे वसूलनी हो। लोमड़े तो इस दौरान अपना मोबाइल फोन बंद करके बैठ जायेंगे , और बीमा कंपनी कहेगी कि जी अपना (बीमाधारक का ) जन्मतिथि का प्रमाण दो, और सारे मेडिक्लेम के बिल, रसीद हमें ओरिजिनल में सबमिट करो। तब जाकर अपनी अक्लमंदी पर तरस आता है कि पालिसी लेते वक्त, लोमडे के झांसे में आकर उम्र तो बीमा फ़ार्म में दो साल कम करके दिखाई हुई है, इनको डेट आफ बर्थ का प्रूफ क्या ख़ाक देंगे और अगर सारे ओरिजिनल बिल और भुगतान की रसीद एक बीमा कंपनी को दे देते हैं तो दूसरी पालिसी जो दूसरी बीमा कंपनी से ले रखी है, उसको क्या सबमिट करेंगे क्लेम के लिए? दूसरी बीमा कंपनी वाला भी ओरिजिनल बिल और रसीद ही मांगेगा क्लेम प्रोसेस करने हेतु ,यूं समझो कि वो पालिसी तो बेकार हो गई। अस्पताल ने तो एक ही सेट इन दस्तावेजों का दिया था, और उस लोमडे ने पॉलिसी दिलवाते वक्त यह तो बताया ही नहीं था कि मेडीक्लेम की रकम आप सिर्फ एक ही बीमा कंपनी से वसूल सकते हो, एक से ज्यादा से नहीं।
कहने का आशय सिर्फ इतना है कि जिस प्रकार से हम बुरे वक्त के लिए इतनी भारी-भरकम रकम इन्सुरेंश कंपनियों को प्रीमियम के तौर पर हर साल इस उम्मीद में दे देते हैं कि बुरे वक्त में काम आयेगा, उसी तरह अच्छे वक्त की उम्मीद में कुछ पैसा चुनाव लड़ने पर भी लगाना चाहिए । जीत गए तो पाँचों उंगलियाँ और सर कड़ाई में होगा और जीभ शुद्ध देशी घी में लपलपा रही होगी, वो भी कोई भी सर्टिफिकेट दिखाए वगैर ही। ओरिजिनल तो क्या वहां कोई फोटोकाफी भी नहीं माँगता। अगर नहीं भी जीते और जमानत बचाने लायक वोट भी बटोर लिए तो जमानत के पैसे वापस मिल जायेंगे , नहीं तो सालाना भरे बीमा प्रीमियम से तो कम के ही नुकशान का गम रहेगा न।
जानता हूँ कि अब आप ये सोच रहे होंगे कि जीजाजी / भाई जी लोग तो संकुचायेंगे कि उनके पास नेता बनने की क्वेलिफिकेशन और क्वेलिटी तो है ही नहीं। इत्मीनान रखिये, मैं आपकी इस उलझन को भी अभी यहीं सुलझाए देता हूँ। उनको बोलिएगा कि नेता और मंत्री बनने के लिए अपने देश में किसी भी क्वेलिफिकेशन की जरुरत नहीं होती, अपने दांए-बाएं हाथ का अंगूठा सलामत होना चाहिए, बस। जो थोड़ी बहुत योग्यताएं चाहिए भी, वो सिर्फ इतनी भर है कि उम्र २५ से ऊपर हो, निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लड़ेंगे तो दस प्रस्तावक चाहिए (इतने तो आपके अगल-बगल पड़ोस में ही मिल जायेंगे, तुम्हारे प्रस्तावक वो बन जायेंगे और उनके तुम बन जाना)! अगर साल-डेड साल कभी जीजाजी/भाईजी लोगों ने कहीं जेल में भी काटे हो तो भी कोई चिंता की बात नहीं है। अपने देश का संविधान बहुत उदार है, वो कहता है कि अगर दो साल से ज्यादा की सजा काटी हो तो तभी आप इलेक्शन लड़ने के काबिल नही रहोगे।
अब नेता बनने के दूसरे पहलू 'क्वेलीटीज' पर आता हूँ। सर्वप्रथम आप यह देखें कि अगर वे थोड़ा बहुत लज्जावान किस्म के इंसान हैं तो उन्हें उनके निर्लज बनने के लिए खूब प्रोत्साहित करें। बेशर्मी उनके चेहरे से हरवक्त झलकनी चाहिए। साथ ही आप गांधीधाम से उनके लिए दो -चार खद्दर के कुर्ते-पजामे खरीद लाइए, और पास के पनवाड़ी को रोजाना घर पर दो पान देते जाने का ऑर्डर दे दो। जीजाजी/भाईजी लोग सुबह जैसे ही नाश्ता करें उसके तुरंत बाद वह पान उनके मुहँ में ठूँस दिया करें और उन्हें ये हिदायत भी दें कि गली से निकलते वक्त वे मुहं से थोड़ा पीक गली में खडी किसी गाडी के बोनट के ऊपर अवश्य डालते जांये। ये एक अच्छे नेता की पहली निशानी होती है। गली में रोज कोई न कोई फसाद अवश्य करवाएं और वहाँ पर ये लोग खादी के कुर्ता-पजामा पहनकर पान चबाते हुए अवश्य पहुंचें, और अपनी खूब नेतागिरी झाडें।
नेतागिरी शब्द से याद आया, जब मैं युवा था तो अक्सर सोचा करता था कि नेता तो अमूमन पुलिंग होते है फिर इनके साथ इनके काम(कुकृत्य) को स्त्रीलिंग का जामा क्यों पहनाया गया होगा? यानि कि नेता के साथ 'गिरी' शब्द क्यों जुडा होगा जबकि जुड़ना तो 'गिरा' शब्द चाहिए था। जब धीरे-धीरे बड़ा हुआ तो पूरी कहानी समझ में आ गई। समझ गया की यह शब्द किसी टुच्चे और चालाक किस्म के नेता के दिमाग की ही उपज रही होगी। नेतागिरी की जगह वह अगर नेतागिरा शब्द तभी इजाद कर देता तो आज तो इनके लिए आगे गिरने की गुंजाइश ही बाकी नहीं बचती। इसीलिये उस कायर ने दूर की सोचकर अपनी करतूतों को इस स्त्री-चिलमन से ढकने की कोशिश की होगी। .
बहनजियों / भाभीजियों ! आप आज के पढ़े-लिखे इंसान हैं, नेता बनने के क्या-क्या फायदे हैं, ये बखूबी जानते है। आजकल समाचारों में आपने उत्तराखंड की त्रासदी के बारे में तो खूब सुना ही होगा। हजारों मर गए, लापता हो गए, लाखों ने कई-कई दिनों तक असीम कष्ट सहे, वहां से अपने घर तक पहुँचने की उस यात्रा में। मगर क्या आपने सुना कि अपने देश का एक भी नेता इस त्रासदी का शिकार हुआ ? उनके तो उलटे इस त्रासदी से भाग खुल गए। इसे झेला किसने सिर्फ आम आदमी ने, नेताओं को तो घोटाले करने और सियासत चमकाने से ही फुर्सत नहीं है । एक-आदा कोई जो वहाँ जाता भी तो वो भी साफ़ बचकर निकल आता। यमराज भी सोचता होगा कि जाने दो यार, कौन कीचड़ में पत्थर डाले। और हद देखिये कि उसके बाद एक-आदा जो वहाँ पर थे भी, वे अपने परिचितों को ही सर्वप्रथम सेना की मुफ्त हैलीकॉप्टर सेवा का लुफ्त उठाने के लिए वहां आरक्षण देते नजर आये।
आप अपने पतियों और परिवार के सुख-समृद्धि और लम्बी उम्र के लिए क्या-क्या नहीं करती? तरह- तरह के ब्रत (उपवास ) रखती है, कई-कई कष्ट उठाती है। मेरा यकीन मानिए की एक बार जब आपके "उनपर" भी नेता का ठप्पा लग जाएगा तो आपको भी कोई कष्ट नही उठाना पडेगा। सब तरफ सुख ही सुख, उलटे आपकी धाक और नखरे और भी बढ़ जायेंगे, वो अलग। जब हर घर से एक नेता चुनाव में खडा हो जाएगा तभी इन मौजूदा नेताओं को भी आम-आदमी की कीमत का अहसास होगा। इसलिए आप सभी से आग्रह है कि आप मेरी सलाह पर गौर फरमाकर इस देश को कृतार्थ करेंगे।
आपका शुभचिंतक ,
पीसी गोदियाल "परचेत"
जय हो,ढंग से धोया है।
ReplyDeleteभिगो भिगो के :-)
ReplyDeleteबहनजियों / भाभीजियों !
ReplyDeleteसही अपील की है.:)
रामराम.
इन्सुरेंश इज दी सबज्क्ट मैटर आफ़ सोलिशिटेशन..........लेकिन नेतागिरा करना अपना सोलिशिटेशन है। ऐसे पटक के मारा है कि दिल खुश हो गया।
ReplyDeleteReally very good. Thanx bhai Godiyal ji.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बृहस्पतिवार (04-07-2013) को सोचने की फुर्सत किसे है ? ( चर्चा - 1296 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
राजनीति पर करारा प्रहार किया है ,,,,,,,,
ReplyDeleteदम है आपकी बात में ...
ReplyDeleteतो अबकी बार आपका पर्चा कहां से आ रहा है ... हा हा ...
हा हा हा ! गोदियाल जी , फुल फुर्सत में !
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन क्रांतिकारी विचारक और संगठनकर्ता थे भगवती भाई - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteइस देश में राजनेता पहले ही थोक में हैं, सोच रहा हूँ कि अगर आपकी अपील स्वीकृत हो गई तो चुनाव का निर्णय किसके वोट से होगा।
ReplyDelete
ReplyDeleteबहनजियों और iभाभीजियों यह पते की बात
समझकर ,संभल कर इसे बाँध लियो गांठ !
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latest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )