...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
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वक्त की परछाइयां !
उस हवेली में भी कभी, वाशिंदों की दमक हुआ करती थी, हर शय मुसाफ़िर वहां,हर चीज की चमक हुआ करती थी, अतिथि,आगंतुक,अभ्यागत, हर जमवाडे का क्या कहन...

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स्कूटर और उनकी पत्नी स्कूटी शहर के उत्तरी हिस्से में सरकारी आवास संस्था द्वारा निम्न आय वर्ग के लोगो के लिए ख़ासतौर पर निर्म...
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कल मेरे ब्लॉग पर एक टिप्पणीकार ने निम्नलिखित टिपण्णी दी , तो सोचा क्यों न उनकी ख्वाइश के मुताविक आज मैं भी एक अच्छी पोस्ट लिख डालूँ ; Kumar ...
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पता नहीं , कब-कहां गुम हो गया जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए और ना ही बेवफ़ा।
बिल्कुल सही कहा आपने.
ReplyDeleteरामराम.
कलिकाल बिहाल किए मनुजा, ना जानत है अनुजा तनुजा
ReplyDeleteलालच निचोड़ दिए मानव ममता, तब क्या बचत है भाईजा
"बाजारवाद की इस अंधी दौड़ में, न जाने हर कोई क्यों इस कदर उतावला हो गया है।। "
ReplyDeletebilkul sahi baat!
आज हर चीज़ के मायने निकालने बहुत ज़रूरी हैं :-(
ReplyDeleteहर चीज में मतलब जो देखने लगा है इंसान!
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति है आदरणीय-
ReplyDeleteआभार आपका-
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (06-07-2013) को <a href="http://charchamanch.blogspot.in/ चर्चा मंच <a href=" पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत गहरी बात कही है।
ReplyDeleteदौड़ रहे सब, आगे निकलें,
ReplyDeleteअपने घर से भागें, दिख ले।