...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
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संशय!
इतना तो न बहक पप्पू , बहरे ख़फ़ीफ़ की बहर बनकर, ४ जून कहीं बरपा न दें तुझपे, नादानियां तेरी, कहर बनकर।
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पहाड़ों की खुशनुमा, घुमावदार सडक किनारे, ख्वाब,ख्वाहिश व लग्न का मसाला मिलाकर, 'तमन्ना' राजमिस्त्री व 'मुस्कान' मजदूरों...
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स्कूटर और उनकी पत्नी स्कूटी शहर के उत्तरी हिस्से में सरकारी आवास संस्था द्वारा निम्न आय वर्ग के लोगो के लिए ख़ासतौर पर निर्म...
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आज तडके, दूर गगन में, एक अरसे के बाद, फुरसत से, सूरज अपनी महबूबा, चाँद से मिला, और कुछ पलों तक दोनों एक दूसरे को निहारते रहे, जी...
बिल्कुल सही कहा आपने.
ReplyDeleteरामराम.
कलिकाल बिहाल किए मनुजा, ना जानत है अनुजा तनुजा
ReplyDeleteलालच निचोड़ दिए मानव ममता, तब क्या बचत है भाईजा
"बाजारवाद की इस अंधी दौड़ में, न जाने हर कोई क्यों इस कदर उतावला हो गया है।। "
ReplyDeletebilkul sahi baat!
आज हर चीज़ के मायने निकालने बहुत ज़रूरी हैं :-(
ReplyDeleteहर चीज में मतलब जो देखने लगा है इंसान!
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति है आदरणीय-
ReplyDeleteआभार आपका-
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (06-07-2013) को <a href="http://charchamanch.blogspot.in/ चर्चा मंच <a href=" पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत गहरी बात कही है।
ReplyDeleteदौड़ रहे सब, आगे निकलें,
ReplyDeleteअपने घर से भागें, दिख ले।