Wednesday, March 17, 2010

अरे भाई जी, किसी ने ये सवाल भी पूछे क्या ?

जहां तक माया की "माया" का सवाल है, हमारे उत्तराँचल में पूर्वजों के जांचे-परखे दो बहुत ख़ूबसूरत मुहावरे प्रचलित है, जो समय की कसौटी पर खरे भी उतरे है ! इनमे से एक किसी जाति विशेष की भावनाओं को ठेस पहुंचा सकता है, इसलिए उसका जिक्र नहीं करूंगा, मगर दूसरा मुहावरा है, "औतागु बल धन प्यारु" अर्थात जो संतानविहीन होते है, उन्हें धन अत्यधिक प्रिय होता है!

आज जहाँ तक इस देश की नौकर शाही और राजनीति का सवाल है! यह पूरी की पूरी जमात ही भ्रष्टाचार के दलदल में इस कदर धसी है कि अगर आप इन्हें इस दलदल से निकालने जाओगे तो खुद भी धस जावोगे ! इस बारे में आज ही भारतीय नागरिक - इंडियन सीटिजन जी की एक टिपण्णी पढ़ रहा था, और उससे मैं काफी सहमत भी लगा ! उस लम्बी टिपण्णी का कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत है ;

"माया की माला पर ही हमला क्यों? बाकियों को क्यों बख्शा जा रहा है?? मायावती को लखनऊ में नोटों की माला पहनाई गयी, जिस पर जांच बैठ चुकी है. क्या सिर्फ इसलिये कि यह सबके सामने पहनाई गयी थी? इससे पहले मुलायम सिंह सैफई में करोड़ों रुपये की लागत से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की बोइंग उतरने लायक हवाई पट्टी बनवा चुके हैं. जिस पर उनका हवाईजहाज उतरता भी रहता है. पिछले टेन्यूर में लालू तीन सौ उनहत्तर बार रेलवे के विशेष सैलून में यात्रा करते हैं और बाद में एक विशेष पास भी जारी होता है जिसमें कि वह सपरिवार एसी-प्रथम में यात्रा करने के हकदार होते हैं. कांग्रेस ने नेहरू-इंदिरा-राजीव की याद में न जाने कितने स्मारक बनवाये और पैसा खर्च किया. अन्य सत्ताधारी दलों के हिस्से में भी ऐसी चीजें अवश्य होंगी. सत्ताधारियों के अकस्मात ही अरबपति बनने के किस्से अब आश्चर्य से नहीं देखे जाते. जनता के पैसे पर अफसर और नेता मौज करते हैं. प्रश्न यह नहीं है कि मायावती ने क्या किया या मुलायम ने क्या किया. प्रश्न यह है गरीब जनता की भलाई पर जो पैसा खर्च होना चाहिये वह नेता और अफसर अपने ऊपर कैसे खर्च कर लेते हैं? उनसे जबावतलबी क्यों नहीं होती, उनके विरुद्ध जांच बिठाकर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती. एक जस्टिस के विरुद्ध अमानत में खयानत के आरोप के बारे में सरकार चुप्पी साध चुकी है. यदि वह जस्टिस सही थे तो उनके विरुद्ध आरोप क्यों लगाये गये और यदि आरोप ठीक थे तो फिर अब चुप्पी क्यों ?...... "

तो सारी बातें अपनी उपरोक्त टिपण्णी में जनाव भारतीय नागरिक- इंडियन सीटिजन जी ने साफ़ कर दी , लेकिन जो एक ख़ास बात है, शायद उस पर किसी का ध्यान नहीं गया ! और वह बात है, देश में हमारी आंतरिक सुरक्षा व्यवथा के चाक-चौबंद होने की पोल !!!! जैसा कि बताया गया है कि मायावती के लिए १०००-१००० रुपयों ( अब ये भी खुदा जाने कि नोट असली थे, या फिर पाकिस्तान से आई किसी खेप के माध्यम से अन्दर छुपे माल को वाईट करने के लिए इस तरह इस्तेमाल किया जा रहा है :)) की माला कर्नाटका के मैसूर में तैयार गई थी ! तो अब सवाल उठते है कि;
१) मैसूर से माला लखनऊ पहुँची कैसे ?
२)किस रूट से पहुँची?
३)किस यातायात के माध्यम के मार्फ़त पहुँची?
४) माला जिस ढंग से बनाई गई थी, उससे ऐसा तो नहीं लगता कि उसे ठूंस कर किसी बैग या अटेजी में लाया गया हो , क्योंकि ऐसे में माला अपना सौन्दर्य खो डालती ! तो यह साफ़ है कि उसे अच्छी पैकिंग में लाया गया ! तो यदि वो हवाई जहाज से लाइ गई तो क्या यही हमारी हवाई सुरक्षा तैयारियां है कि एअरपोर्ट पर मौजूद सिक्योरिटी यह खोज पाने में असमर्थ रही कि इतनी बड़े मात्रा में इंडियन कैरेंसी हवाई जहाज से ले जाई जा रही है ?
५) कोई सज्जन यह तर्क न दे कि चूँकि वह उत्तरप्रदेश सरकार की मुहर पर ले जाया गया होगा इसलिए किसी ने भी उसे चेक करने की कोशिश नहीं की ! क्या सरकारों की मुहरों पर आप कुछ भी देश में इधर से उधर कर सकते है ?
६) यदि उसे सड़क मार्ग से लाया गया, तो ये चेकपोस्टों पर बैठे भरष्ट, निकम्मे नौकरशाह क्या कर रहे थे ? जब किसी व्यवसायी का कोई माल सड़क मार्ग से जाता है और खुदानाखास्ता बिल में कुछ त्रुटी हो गई तो ये लोग मोटी रकम वसूलने के बाद वाहन को रिहा करते है, ये उस वक्त कहाँ थे ?
७) अब आखिरी तर्क यह दिया जाएगा कि यह हो सकता है कि वह माला लाल/नीली बत्ती लगी किसी सरकारी एम्बेसडर कार से लाई गई होगी , तो सवाल यह है कि ऐसी बत्ती लगी कारों में आप देश के एक कोने से दूसरे कोने तक कुछ भी ले जा सकते हो, बेख़ौफ़ ?

तो भाई जी, यह है हमारी आंतरिक सुरक्षा की तैयारियां! जरुरत है हमें अपनी अंतरात्मा को टटोलने की, जल्दी टटोलिये कहीं बहुत देर न हो जाए !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

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  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।