आबरू बचाते कुछ मर गये, कुछ जिंदे है,
दरख़्त की शाख पर बैठे, डरे-डरे परिंदे है।
खौफजदा है सभी यहां,निवासी शहर के ,
क्योंकि बेख़ौफ़ घूमते फिर रहे दरिंदे है।
इस कदर फैला है दहशत का ये आलम,,
दरवान सोये है, और सरपरस्त उनींदे है।
शर्म से सर हिन्द का,झुक रहा बार-बार,
बेशर्म बने बैठे सब सरकारी नुमाइन्दे है।
फरियाद करें भी तो करें किससे 'परचेत',
मर्जी के मालिक, हो गए सब कारिंदे है।
दुखद और शर्मनाक..
ReplyDeleteसटीक...सामयिक रचना...
ReplyDeleteसटीक .... कृत्य कोई कर और शर्मिंदा सबको होना पड़ जाता है ।
ReplyDelete"दर्द तो हज़ारों हैं, फ़रियाद करें तो करें किस से " एक शर्मसार कर देने वाली घटना ने दिल्ली को विदेशों में 'Rape City' के नाम से नवाजा है .. क्या हमें ये नाम कबूल हैं क्यूंकि हमारे नेतिये तो मस्त होकर नज़ारे देख रहे है। :(
ReplyDeleteमेरी नई कविता आपके इंतज़ार में है: नम मौसम, भीगी जमीं ..
खौफजदा नजर आता है, हर सरपरस्त शहर का,
ReplyDeleteक्योंकि बेख़ौफ़ सड़कों पे घूमते फिर रहे दरिंदे है ..
सच कहा है ... आज दरिंदों का राज है ... शर्म से झुक जाता है सर ...
अपने इस दर्द के साथ यहाँ आकर उसे न्याय दिलाने मे सहायता कीजिये या कहिये हम खुद की सहायता करेंगे यदि ऐसा करेंगे इस लिंक पर जाकर
ReplyDeleteइस अभियान मे शामिल होने के लिये सबको प्रेरित कीजिए
http://www.change.org/petitions/union-home-ministry-delhi-government-set-up-fast-track-courts-to-hear-rape-gangrape-cases#
कम से कम हम इतना तो कर ही सकते हैं
बहुत दुखद व शर्मनाक स्थिति .....
ReplyDelete