Tuesday, March 16, 2010

यह कौन सा मिराक* है


तार-तार करके रख  दिया लोकतंत्र की साख को,
माया बटोरने का अजब यह कौन सा मिराक* है ।
संविधान मुंह चिढाता है ,निर्माता-निर्देशकों का,
जंगलों की आड़ मे दमित बैठा किसी  फिराक है ।।

यही वो भेद-भाव रहित समाज का सपना था,
क्या यही वो वसुदेव कुटुमबकम का नारा था ।
यही वो दबे-पिछडों के उत्थान की बुनियाद थी,
क्या यही स्वतन्त्रता का बस ध्येय हमारा था ॥

नैतिक्ता, मानवीय मुल्य जिन पर हमे नाज था,
कर दिया उन्हे हमने मिलकर सुपुर्द-ए-खाक है ।

जनबल, धनबल, और बाहुबल के पुरजोर पर,
मुंहजोर ने रख छोडा आज कानून को ताक है ।


तार-तार करके रख  दिया लोकतंत्र की साख को,
माया बटोरने का अजब यह कौन सा मिराक* है 


• मिराक= मानसिक रोग

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