Tuesday, December 1, 2009

घुन लगी न्याय व्यवस्था और न्यायिक आयोगों का औचित्य !

गौर से देखे तो आज हमारी पूरी क़ानून व्यवस्था ही एक जर्जर अवस्था में पहुँच चुकी है । जो अंग्रेजो के काल से चली आ रही जटिल न्यायिक व्यवस्था इस देश में मौजूद है वह आज अपनी प्रासंगिकता खो चुकी है। और यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि देश के तथाकथित तीन महत्वपूर्ण किन्तु भ्रष्ट खम्बो में से एक जो यह खम्बा भी है, इस पर से भी लोगो का विश्वास धीरे-धीरे उठता जा रहा है। हमारी न्यायिक व्यवस्था को पाकिस्तान से आया आतंकवादी कसाब आज मुह चिढा रहा है। सब कुछ खुला-खुला है कि इस आतंकवादी ने क्या किया, मगर सालभर से अधिक का वक्त और ३१ करोड़ रूपये खर्च करने के बाद भी हमारी न्याय व्यवस्था उसके साथ चूहे-बिल्ली का खेल खेल रही है। दूसरी तरफ लिब्राहन आयोग, और अन्य इसी तरह आयोग हमारी जांच प्रणाली पर ही सवालिया निशान लगा रहे है। खोदा पहाड़ और निकली चुहिया, यह कहावत सिर्फ अयोध्या के ही केस में नहीं चरितार्थ होती अपितु अन्य मामलो जैसे बोफोर्स, १९८४ के दिल्ली दंगे, नब्बे के दशक के मुंबई दंगे और बमकांड, चारा घोटाला इत्यादि-इत्यादि सभी पर लागू है।

सरकारिया काम-काज के तरीके और राजनीतिज्ञो के आचरण से भी नहीं लगता कि कोई इस बारे में गंभीर भी है। आज जरुरत है कि जनता एक स्वर में उठ खडी हो, और इन तीनो खम्बो में सुधार की मांग करे। यदि सरकार किसी जांच के लिए कोई आयोग बनाती है और आयोग को रिपोर्ट देने के लिए तीन महीने का समय देती है, लेकिन यदि तीन महीने बाद वह इस जांच के लिए समय अवधि में फिर से विस्तार करती है, तो यह समझ लेना चाहिए कि या तो सरकार या फिर जांचकर्ता ईमानदार नहीं है, उनमे से किसी एक अथवा दोनों के दिलो में खोट है । कुछ अपरिहार्य परिस्थितियों और देश हित में अगर इस समयाविस्तार की जरुरत पड़ती भी है, तो सरकार को यह क़ानून बनाना चाहिए कि कोई भी आयोग किसी भी स्थिति में एक साल से अधिक का समय नहीं ले सकता, और कोई भी न्यायालय किसी केस को दो साल से अधिक नहीं खींच सकता, चाहे केस भले ही कितना भी जटिल क्यों न हो। उसे दो साल के अन्दर हर हाल में फैसला सुनना ही पड़ेगा,फिर देखिये कैसे नहीं आती न्याय व्यवस्था पटरी पर ।

14 comments:

  1. तो सरकार या फिर जांचकर्ता ईमानदार नहीं है, उनमे से किसी एक अथवा दोनों के दिलो में खोट है ।
    गोदियाल जी-आपकी इसी बात के कायल है। लिजिए टि्प्पणी किये अब एक चटका भी लगाते है।

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  2. यही तो मैं भी कहता हूँ..... यह खम्भा अब सड चुका है.... इस खम्भे को उखाड़ना हम युवाओं का ही काम है..... अब युवाओं को एक-जुट होने कि ज़रुरत है..... और हर नेता , भ्रष्ट अफसर और आतंक फैलाने वालों को चुन चुन कर मारना होगा..... अगर यह भरष्ट लोग जिंदा रहेंगे तो हम युवाओं का भविष्य खतरे में है..... इसलिए हर युवा जो सिस्टम से त्रस्त है..... उसको इन भ्रष्टाचारियों को ख़त्म करना ही होगा..... और एक होना ही पड़ेगा..... नहीं तो यह देश को गर्त में जाने से कोई नहीं रोक सकता.....

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  3. इस जर्जर व्‍यवस्‍था को तोडने की कोशिश की जानी चाहिए .. महफूज अली जी का साथ दिया जाए .. उन्‍हे टिप्‍पणी दिए डेढ घंटे हो गए .. कहां चले गए ब्‍लॉग जगत के बाकी युवा ??

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  4. जब तक हम विदेशियों का अनुसरण करते रहेंगे, चाहे मामला न्याय का हो, चाहे शिक्षा का या चाहे और किसी विषय का, बेईमानी होती ही रहेगी।

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  5. मित्र कहने और करने को तो बहुत कुछ है पर हो इसलिए पाता क्योंकि नेता ऐसा नहीं चाहते। आयोग भी राजनीति के तहत ही काम करते हैं।

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  6. यह फर्क तो है कहने और करने में..... पर किसी न किसी को तो शुरुआत करनी ही होगी..... सिर्फ आहें भरने से काम नहीं चलेगा.... सिस्टम तो हमें ही सुधारना होगा.... अगर हर चीज़ राजनीति से प्रेरित है..... तो हमें राजनीति को ही बदलना होगा .... नहीं प्यार से होगा तो डर से होगा..... सिस्टम को सुधारने के लिए ...हम युवाओं को सिस्टम के मन में डर पैदा करना होगा...... और वो डर सिर्फ मौत का ही हो सकता है..... हर युवा को एक-जुट हो कर ...सिस्टम के मन में डर पैदा करना होगा....... विदेशियों का अनुसरण बंद करना होगा..... शिक्षा का स्वरुप भी बदलना होगा..... आज कि राजनीति युवाओं में बेरोज़गारी का डर बिठा के ....उन्हें आंदोलित होने से रोक रही है...... उलझाव रहो युवाओं को..... पेप्सी-कोला और पिज्जा में..... यह शांत रहेंगे...... इसलिए राजनीतिकों, जज , भ्रष्ट अफसरों के मन में डर पैदा करना ज़रूरी है.......

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  7. महफूज भाई की बात से पूर्ण सहमत, किसी को तो पहल करनी ही होगी, आज यह उम्मीद लगा के रखना कि कोई गाँधी , सुभाष, भगत सिंह और चंद्रशेखर आके यह सब कर जाएगा, शायद खुद को अन्धकार में रखने जैसी बात है !

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  8. सबसे बड़ा मजाक ये है कि इतनी बड़ी घटना की जांच १ व्यक्ति अकेले कैसे करेगा ? खबर यह भी है जस्टिस लिब्राहन अयोध्या गये ही नही (सच झूठ का पता नही), इतना लम्बा समय लगने का कोई ठोस कारण देना चाहिये ।
    १७ साल शायद इसलिये लगे कि लोग भूल जायें,क्योंकी समय सारे सवालों को खत्म कर देता है

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  9. AAPKI BAAT MEIN ASAHMATI KI KOI GUNJAAYSH NAHI HAI ... HAMAARE KANOON JYADTAR UK KANOON PAR BASED HAIN .... IN SAB KO ANGREZON NE APNE BENEFIT KE LIYA LAAGOO KIYA THA .... AB HAMAARI AAZAAD SARKAAR APNE BENEFIT KE LIYE KAR RAHI HAI ....

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  10. हमारी न्याय व्यवस्था प्राचीन काल से आज तक लगातार विकसित हुई है। उस पर हमारे अतीत के चिन्ह स्पष्ट हैं। आजादी के बाद उसे जनतंत्र के लिए विकसित होना चाहिए था। लेकिन वह अभी भी अपने पुराने खोल को नहीं तोड़ पाई है। इस के लिए निश्चित ही हमारी संसद और कार्यपालिका जिम्मेदार है जो न्याय का अर्थ नहीं जानती या जानती है तो उसे कमजोर से कमजोर करना चाहती है। आप की इस बात से सहमति है कि "आज जरुरत है कि जनता एक स्वर में उठ खडी हो, और इन तीनो खम्बो में सुधार की मांग करे।"
    जहाँ तक समयबद्धता का प्रश्न है तो अनेक मामलों में समय बद्धता निर्धारित की हुई है लेकिन वहाँ अदालत के पास पाँच-पाँच अदालतों का काम दे दिया गया है। ऐसे में समयबद्धता के प्रावधान का पालन संभव नहीं है। समय बद्धता के लिए उपयुक्त साधन बहुत आवश्यक हैं। लेकिन सरकार इन्हें देना नहीं चाहती। तो जनता को ही आगे आना होगा।

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  11. घुन लगी न्याय व्यवस्था ... बहुत सही कहा है आपने।

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  12. There is no judiciary in India. Its will be better, we make any solution of our problems. It will be better to be sit in the home after any criminal happening with us. vaise bhi chhoti - chhoti vardaat ki FIR, hum nahi karate. After 60 years of independence, Government is not making any efforts to reforms in Judiciary.

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।