रहे इम्तहानों से बेखबर,
जिन्दगी की ये रहगुजर,
भटकते हुए इधर-उधर,
जिन्दगी यूँ जाती गुजर।
तुत्ती -बोतल से होता शुरू
मुश्किल मंजिल-ए-सफ़र,
भरती जवानी जब देह में ,
गुजरता वक्त शीतल पेय में।
घिरती उलझनों में जवानी ,
मन खोजता रंगीन पानी ,
पहुँचता जब अगले तल में ,
तन सिमटता शुद्ध जल में।
कभी बोतल मुह से घटकी ,
कभी सेज ऊपर से लटकी,
बोतल पे ही ख़त्म होता ,
बोतल से शुरू हुआ सफर।
रहे इम्तहानों से बेखबर,
जिन्दगी की ये रहगुजर,
भटकते हुए इधर-उधर,
जिन्दगी यूँ जाती गुजर।
तुत्ती -बोतल से होता शुरू
मुश्किल मंजिल-ए-सफ़र,
भरती जवानी जब देह में ,
गुजरता वक्त शीतल पेय में।
घिरती उलझनों में जवानी ,
मन खोजता रंगीन पानी ,
पहुँचता जब अगले तल में ,
तन सिमटता शुद्ध जल में।
कभी बोतल मुह से घटकी ,
कभी सेज ऊपर से लटकी,
बोतल पे ही ख़त्म होता ,
बोतल से शुरू हुआ सफर।
जिन्दगी की ये रहगुजर।
एक्सीलेंट, गोदियाल जी ।
ReplyDeleteजिंदगी का सफर बड़ी खूबी से ब्यान किया है।
वाह क्या निरीक्षण है आपका । जिंदगी का सफर पांच बोतल से सहारे ।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छे शब्दों में व्यक्त जिन्दगी का सफर ।
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteघुघूती बासूती
रचना अच्छी लगी।
ReplyDeleteबोतलों के पड़ावों पर जिन्दगी का सफर
ReplyDelete।
वाह, यह भी नजरिया है जिन्दगी को देखने का।
ऐसा ही कुछ नया... रोज होना चाहिये।
अच्छा है भाई..............तस्वीर ने तो जान दाल दी
ReplyDeletejeevan ka sach.............bilkul sach........chitron ke sath zindagi bayan kar di.
ReplyDelete"बोतल से शुरू हुई थी जो कहानी,
ReplyDeleteइकरोज बोतल पे जाके ख़त्म हो गई!!"
बहुत अच्छे!
बहुत सुंदर बात कही आपने।
ReplyDelete------------------
जिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।
कोमा में पडी़ बलात्कार पीडिता को चाहिए मृत्यु का अधिकार।
अरे वाह गोदियाल साहब....मैंने ऐसा तो नहीं सोचा था....
ReplyDeleteक्या ज़बरदस्त बात कह दी आपने...बिलकुल सही....
बस हमारे लिए एक बोतल कम कर दीजिये .....गरम पानी वाली.....:):)
हा हा हा ...
Dilli ke kavi RASIK Ratnesh pichhle 5 varshon se manch-manch par yahi samjha rahe hain,
ReplyDeleteaapne theek likha...
ज़िन्दगी के सफ़र को बहुत ही बेहतरीन लफ़्ज़ों के साथ दिखाया आपने....
ReplyDeleteबहुत लाजवाब और नायाब.
ReplyDeleteरामराम.
उम्र के संग बोतल आई ओर रंग बदलती रही, बहुत सुंदर
ReplyDeleteमज़ेदार
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!!!बेहतरीन।
ReplyDeletehum to sahab aapki isi baat par fida "kaanch ke gharon par pathar fenkna aur parchhaion mein insan talashna" jis aadmi ke paas yah ruchian hon uski kavita par kya tippani kee ja sakti hai sivay mast ho jane ke... ye paanch botlon wala kissa bahut pyara dil ko chhoo kar nikal jane wala kissa laga. aapke blog ki ye pahli post hi dekhi hai aage kya hai rab khair kare
ReplyDeleteपांच बोतलों में ही पूरी जिन्दगी जी ली ....यहाँ तो लोग बोतलों पर बोतले चढ़ाये भी बीच मझधार में अटके हैं ...!!
ReplyDeleteजरूरत के हिसाब से बोतल का माल बदलता रहा
ReplyDeleteबहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में
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