वतन गुलाम हुआ फिर से,कुटिलई परिवेश का,
यही सोचता हूँ कि क्या होगा अपने इस देश का ?
फर्क पाना मुश्किल हुआ, साधु -वद के वेश का,
यही सोचता हूँ कि क्या होगा अपने इस देश का ?
एक पटेल थे,लग्न से थी बिखरी रियासतें समेटी,
ये भी हैं ,बांट रहे कहीं बुन्देलखन्ड,कही अमेठी !
घॊडा भाग रहा है यहां हर तरफ़, वोट की रेस का,
यही सोचता हूँ कि क्या होगा अपने इस देश का ?
मची हुई चहु दिशा में,बदइंतजामियत की हाय ,
गिला व्यर्थ,अंधे आगे नाच,कला अकारथ जाय !
जलाता है खून 'परचेत’,निज शरीर अवशेष का,
यही सोचता हूँ कि क्या होगा अपने इस देश का ?
यही सोचता हूँ कि क्या होगा अपने इस देश का ?
फर्क पाना मुश्किल हुआ, साधु -वद के वेश का,
यही सोचता हूँ कि क्या होगा अपने इस देश का ?
एक पटेल थे,लग्न से थी बिखरी रियासतें समेटी,
ये भी हैं ,बांट रहे कहीं बुन्देलखन्ड,कही अमेठी !
घॊडा भाग रहा है यहां हर तरफ़, वोट की रेस का,
यही सोचता हूँ कि क्या होगा अपने इस देश का ?
मची हुई चहु दिशा में,बदइंतजामियत की हाय ,
गिला व्यर्थ,अंधे आगे नाच,कला अकारथ जाय !
जलाता है खून 'परचेत’,निज शरीर अवशेष का,
यही सोचता हूँ कि क्या होगा अपने इस देश का ?
"कुछ भी नही हो सकता, अब मेरे इस देश का!"
ReplyDeleteइतना भी निराश मत होइये गोदियाल साहब, बहुत कुछ होगा और हम ही करेंगे!
सच कह रहे हैं आप ....कुछ नहीं हो सकता इस देश का...
ReplyDeleteहमें कविता पसंद आई इसलिए चटका न.2 निराश मत होओ, अगर हो भी गये हो तो हम हैं न इस देश के जिसे शिक्षा मिली है जिस देश में रहो उस देश के वफादार रहो
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीय कैरानवी साहब !
ReplyDeleteकैसे कुछ नहीं होगा इस देश का? निराशा जरूर बाधक होगी. वैसे कविता है खूब!
ReplyDeleteaaj subah paper padhte huye isi vishay par soch rahi thi aur aapne usi satya se samna kara diya..........ek baar phir desh ke tukde kar rahe hain........lagta hai phir desh ko gulami ki janjeer pahna kar hi rahenge ye neta kyunki aaj inka imaan sirf itna hai ki apna pet bharein desh bhad mein jata hai to jaye.........bahut dil dukhta hai jab ye haal dekhte hain..........kya yahi 21 vi sadi ka pravesh hai to ant kaisa hoga?
ReplyDeleteकैसे कुछ नहीं हो सकता ?
ReplyDeleteइतने निराश न हों .. रात्रि के घने अंधकार के बाद ही सवेरा आता है !!
कैसे कुछ नहीं होगा इस देश का? निराशा जरूर बाधक होगी. वैसे कविता है खूब!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteबहुत सारगर्भित कविता. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
कुछ भी नही हो सकता, अब मेरे इस देश का!
ReplyDeleteमाना कि अभी वर्तमान हालातों को देखते हुए निराशा उत्पन हो जाना स्वाभाविक है किन्तु "मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास...हम होंगें कामयाब एक दिन......."
आईना दिखा दिया आपने।
ReplyDelete------------------
शानदार रही लखनऊ की ब्लॉगर्स मीट
नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।
होगा क्यों नहीं ...बहुत कुछ होगा इस देश का कई टुकडे होंगे ...जाति,धर्म,भाषा के नाम पर ...!!
ReplyDeleteजला न खून’गोदियाल’,निज अश्रु ज्योति शेष का,
ReplyDeleteकुछ भी नही हो सकता, अब तेरे इस देश का !
ab na to ashru hi bache hai na shabd....sab khatm hai bhai...
सुबह डालें मछलियों को दाना, शाम को खाऐं मछली-टीका अब मेरे इस देश में, वाह मेरे देश प्रेमियों एक ढूंडो हजार मिलते हो, हमारी दो इच्छाऐं थी एक बुगला भगत देखने की वह इस ब्लाग पे आके पूरी हुई, यह अल्पसंख्यकों के त्यौहार पर कैसा मज़ाक उडाता है यह अब मुहर्रम पर देखना, पिछले देख ही चुके होंगे, अगर यह पोस्ट पसंद आरही है तो चटका मारो, 2,3,4 हमने अवध गये बिना ही दिया है, अब यह ब्लागवाणी हाटलिस्ट में है, बधाई बधाई बधाई
ReplyDeleteदूसरी इच्छा अवध देखने की है उसकी हमें कोई जल्दी नहीं
अवधिया चाचा
जो कभी अवध न गया
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसच को आईना दिखा दिया आपने।
ReplyDelete------------------
सलीम खान का हृदय परिवर्तन हो चुका है।
एक अच्छी रचना आज के परिवेश पर
ReplyDeleteभाई , हम तो यही कहेंगे की उम्मीद पर दुनिया कायम है।
ReplyDeletejai ho !
ReplyDeleteurjaa se bhari
na keval saamyik drishti se balki sthaai star par bhi acchhi kavita
badhaai !!!!!
बहुत बढिया व सामयिक रचना है।बधाई।
ReplyDeleteआज के हालात पर उपजी रचना है ।
ReplyDeleteएक बात अवधिया चाचा से कहुंगा -आप अवध जरूर जायें क्योंकि अवध तहजीब सिखाने वाला शहर है
जला न खून’गोदियाल’,निज शरीर अवशेष का,
ReplyDeleteकुछ भी नही हो सकता, अब तेरे इस देश का ..
ये दर्द बहुत से लोगों के दिल में उठता होगा ........ दिल की आवाज़ है आपकी ये रचना ......
haha...
ReplyDeleteaisa nahi sir...abhi to bohot kuch hona baki hai.....
abhi galat ho raha hai to kya hua?? sahi bhi hoga....
bas kuch achche leader chahiye :)
सच मे कुछ नहीं हो सकता मेरे देश क। बहुत् अच्छी रचना है बधाई
ReplyDeleteएक पटेल थे,जी-जान से, बिखरी रियासतें समेटी,
ReplyDeleteएक ये बांट रहे फिर कहीं बुन्देलखन्ड,कही अमेठी !
kya baat hai... shandaar.. ab TOI ki website par jakar aaj ki latest news dekhiye.. poorvaanchal bhi chahiye!!! ye politicians bhi naa...
जला न खून’गोदियाल’,निज शरीर अवशेष का,
कुछ भी नही हो सकता, अब तेरे इस देश का !
is par sahmat hone se pahle sochna padega.. i mean, lagta to sach hi hai, par manne ko jee nahi kart...
घॊडा भाग रहा यहां हर तरफ़, वोट की रेस का,
ReplyDeleteकुछ भी नही हो सकता, अब मेरे इस देश का !
ये तो आपने बिलकुल सत्य कहा है ...
Hum to yahi aasha karte hai ki bhavishya main bhagwan kuchh inko bhi sadbuddhi de bhai......
ReplyDeleteरात के राही थक मत जाना
ReplyDeleteसुबह की मंजिल दूर नहीं .
...............................
रात जितनी ही संगीन होगी
सुबह उतनी ही रंगीन होगी
गम न कर जो है बादल घनेरा .
विश्वास करें ,बदलेगा ही नहीं सब बदल जायेगा ,अगर आपके जैसे सिर्फ कुछ ही उठ खड़े हों .
लेकिन देश का दर्द आपकी कविता में उतर आया है .
बधाई !
हुआ गुलाम फिर से कुटिल राजनैतिक परिवेश का,
ReplyDeleteकुछ भी नही हो सकता, अब मेरे इस देश का !
ज्यूं चल रहा, यूं ही चलता रहा और यूं ही चलेगा,
जैचन्द शत्रु संग बैठ सेकेगा रोटी, और यह जलेगा !
sir,
You r a good poet indeed but please do not give negative message to the society.
There is a war between lightbeares and darkholder from the beginning. recognise urself where u r and what r u doing for humanity and for country?
It is ur duty.
It is a frndly advice pls do not take it personal.
please lit a candle of hope in ur next poem.