वह सर्कस का जोकर,
तमाम किरदारों के मध्य,
एक अजीबो-गरीब किरदार,
मकसद सिर्फ़ और सिर्फ़
दर्शकों को हंसाना,
उनका मनोरंजन करना,
और खुद की शख्सियत
सर्कस के जानवरों से भी कम ।
जोकर जो ठहरा,
आम नजरों मे
उसकी अहमियत इतनी
कि बस उसे
एक भावना-विहीन,
नट्खट अन्दाज का
रोल अदा करने वाला,
प्राणी मात्र समझते है हम ।।
bahut hi bakhubi se dard ko undela hai.
ReplyDeleteकहता है जोकर सारा ज़माना
ReplyDeleteआधा हकीक़त आधा फसाना...
और सर्द रातों का दर्द से अपना ही एक अलग सा रिश्ता होता है शायद..
बहुत खूब लिखा है आपने...
गोदियाल साहब... दिनों दिन आपके अन्दर का कवि निखरता ही जा रहा है..
बात क्या है....??
मौसम बदल रहा है.... या आप बदल रहे हैं ..???
बहुत खूब, लेकिन वह जोकर इतना अहम है उसपर कविता लिखी जा रही है, खेर, अवध कवि सम्मेलन में जाना हो तो सूचित किजिएगा, अब दो ही तमन्ना हैं एक आपसे आपकी कविता सुनने की दूसरे अवध देखने की, आदाब
ReplyDeleteअवधिया चाचा
जो कभी अवध्ा न गया
सर्कस का जोकर,
ReplyDeleteपर लिखी यह कविता काफी मर्मस्पर्शी बन पड़ी है।
जोकर का किरदार वाकई अद्भुत है. इसके दर्द को बखूबी पहचाना है आपने
ReplyDeleteराज कपूर के "जोकर" से प्रभावित और दुःख को बयान करती..
ReplyDeleteबढ़िया!
कुछ अपने मन की
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteइन्सान वही जो अपना दर्द छुपाकर दूसरो को हँसता रहे।
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना।
life hi jokar jaisi hai. bas koshish karte hain ki doosro ko khush rakhe chahe office ho ya ghar. hum apni jindigi jite hi kaha hai bhai....
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