पता नहीं आप लोगो का मन भी ऐसा करता है अथवा नहीं, मगर मेरा कभी-कभी ये मन बड़ी अजीबोगरीब हरकते करता है ! आज सुबह से मन कर रहा था कि मैं ताली बजाऊ , रास्ते में ड्राइव करते वक्त स्टेरिंग छोड़ ताली बजाने लगता, फिर अगल-बगल झांकता, चलने वालो को देखता कि कोई मेरी हरकते तो नहीं देख रहा :) बाद में ध्यान आया कि आज हमारे मुस्लिम बंधुओ का नववर्ष है , तो सर्वप्रथम मैंने उन्हें नवबर्ष की शुभकामनाये दी और फिर सोचा कि क्योंकि अपने मुस्लिम भाई-बहन कब्बाली गाना बहुत पसंद करते है तो चलो आज एक कब्बाली ट्राई की जाए ! सुन्दर और थोड़ा लम्बी तो नहीं बन पडी मगर जो भी है, उन्हें नवबर्ष पर समर्पित कर रहा हूँ ! तो आइये आप भी ताली बजाये, मेरे संग :)
मेरी बेपनाह मुहब्बत का जानम, ये तुमने क्या सिला दिया,
ये तुमने क्या सिला दिया,,,,ये तुमने क्या सिला दिया,,,,,,२
नजरों से छलकाके इश्के-जाम , घूंट जहर का पिला दिया,
मेरी बेपनाह मुहब्बत का जानम, ये तुमने क्या सिला दिया,
ये तुमने क्या सिला दिया,,,,ये तुमने क्या सिला दिया,,,,,,२
मेरे अरमां-ए-दिल को खाक मे, क्यों पलभर मे मिला दिया,
नजरों से छलकाके इश्क-ए-जाम, घूंट जहर का पिला दिया।
सुनो,अरे वो दिल फेंकुओं सुनो, इश्क ज़रा संभलकर करना,
परोसा गया है क्या मयचषक में, ज़रा देख लिया करना,
फिर ये न कहना, किसी ने हमको बेखबर ही हिला दिया ,
नजरों से छलकाके इश्क-ए-जाम,घूंट जहर का पिला दिया।
मेरी बेपनाह मुहब्बत का जानम, ये तुमने क्या सिला दिया,
ये तुमने क्या सिला दिया,,,,ये तुमने क्या सिला दिया,,,,,,२
बात है शर्म की कि हम पीते है, तो पीते है किसतरह से ,
मयखाने से घर और घर से मयख़ाने ,जीते हैं किसतरह से,
जी भरकर सिकवे दिए किसी ने , तो किसी ने गिला दिया ,
नजरों से छलकाके इश्क-ए-जाम,घूंट जहर का पिला दिया।
मेरी बेपनाह मुहब्बत का जानम, ये तुमने क्या सिला दिया,
ये तुमने क्या सिला दिया,,,,ये तुमने क्या सिला दिया,,,,,,२
मेरी बेपनाह मुहब्बत का जानम, ये तुमने क्या सिला दिया,
ये तुमने क्या सिला दिया,,,,ये तुमने क्या सिला दिया,,,,,,२
नजरों से छलकाके इश्के-जाम , घूंट जहर का पिला दिया,
मेरी बेपनाह मुहब्बत का जानम, ये तुमने क्या सिला दिया,
ये तुमने क्या सिला दिया,,,,ये तुमने क्या सिला दिया,,,,,,२
मेरे अरमां-ए-दिल को खाक मे, क्यों पलभर मे मिला दिया,
नजरों से छलकाके इश्क-ए-जाम, घूंट जहर का पिला दिया।
सुनो,अरे वो दिल फेंकुओं सुनो, इश्क ज़रा संभलकर करना,
परोसा गया है क्या मयचषक में, ज़रा देख लिया करना,
फिर ये न कहना, किसी ने हमको बेखबर ही हिला दिया ,
नजरों से छलकाके इश्क-ए-जाम,घूंट जहर का पिला दिया।
मेरी बेपनाह मुहब्बत का जानम, ये तुमने क्या सिला दिया,
ये तुमने क्या सिला दिया,,,,ये तुमने क्या सिला दिया,,,,,,२
बात है शर्म की कि हम पीते है, तो पीते है किसतरह से ,
मयखाने से घर और घर से मयख़ाने ,जीते हैं किसतरह से,
जी भरकर सिकवे दिए किसी ने , तो किसी ने गिला दिया ,
नजरों से छलकाके इश्क-ए-जाम,घूंट जहर का पिला दिया।
मेरी बेपनाह मुहब्बत का जानम, ये तुमने क्या सिला दिया,
ये तुमने क्या सिला दिया,,,,ये तुमने क्या सिला दिया,,,,,,२
सुनो इश्क वालों ज़रा, तुम प्यार ज़रा संभलकर करना !
ReplyDeleteगिलास में परोसा क्या है, उधर भी देख लिया करना !!
फिर न कहना, किसी ने हमको अलर्ट नहीं किया !
जाम-ए-मोहब्बत दिखा घूंट, जहर का पिला दिया !!
बहुत खूब कहा जनाब आप नें ।
सुरूर ऐसा मिला कि जिसने रोम-रोम हिला दिया !
ReplyDeleteजाम-ए-मोहब्बत दिखा घूंट, जहर का पिला दिया !!
सुन्दर अभिव्यक्ति है!
मेरे प्यार का जानम तुमने वाह, क्या सिला दिया
ReplyDeleteजाम-ए-मोहब्बत दिखा घूंट, जहर का पिला दिया...
अरसे बाद कोई कव्वाली पढ़ी है ...वैसे तो आजकल सुनायी भी कम ही देती है ...!!
सुनो इश्क वालों ज़रा, तुम प्यार ज़रा संभलकर करना !
ReplyDeleteगिलास में परोसा क्या है, उधर भी देख लिया करना !!
फिर न कहना, किसी ने हमको अलर्ट नहीं किया !
जाम-ए-मोहब्बत दिखा घूंट, जहर का पिला दिया !!
बहुत खूब कहा जनाब आप नें । vah vah
बहुत खूब!
ReplyDeleteजहर का प्याला मिला, यही तो है प्यार का सिला!
मेरे प्यार का जानम तुमने वाह, क्या सिला दिया
ReplyDeleteजाम-ए-मोहब्बत दिखा घूंट, जहर का पिला दिया !
बहुत ही सुन्दर शब्दों से युक्त यह बेहतरीन प्रस्तुति ।
सुरूर ऐसा मिला कि जिसने रोम-रोम हिला दिया !
ReplyDeleteजाम-ए-मोहब्बत दिखा घूंट, जहर का पिला दिया !!
वाह, बहुत खूब लिखा है आपने
शिव होने का सौभाग्य मिल गया जी आपको ।
ReplyDeleteगोदियाल साहब ये तो ऐसा नहीलगता आपने पहली बार लिखा है मुझे तो ऐसा लग रहा है आप कव्वाली भी मस्त गा लेते होगे :)
ReplyDeleteबढ़िया लगा
@कभी हमको भी शर्म आती है कि हम इस तरह जिये क्यो ?
ReplyDeleteअमृत का जाम मांग कर फिर प्याला जहर का पिये क्यो ??
वाह! उपर की पंक्तियाँ सोचने को विवश करती हैं।
"जाम-ए-मोहब्बत दिखा घूंट, जहर का पिला दिया " को "जाम-ए-मोहब्बत दिखा, घूंट जहर का पिला दिया" कर दीजिए।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteवाह गोदियाल जी, ये तो एक नया रूप देखा आपका।
ReplyDeleteकव्वाली बड़ी अच्छी बनी है। बस कोई गा कर सुना दे तो और भी आनंद आ जाये।
बधाई।
शुक्रिया गिरिजेश जी, भूल सुधार कर दी मैंने !
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDeleteबस कौब्बालों की व्यवस्था हो जाय ..
ReplyDeleteगाजा बाजा पे सब जम जाता है ..
इसी 'अंधड़ ' में यह भी सही ..
सुरूर ऐसा मिला कि जिसने रोम-रोम हिला दिया !
ReplyDeleteजाम-ए-मोहब्बत दिखा, घूंट जहर का पिला दिया !!
मेरे प्यार का जानम तुमने वाह, क्या सिला दिया !
वाह गोदियाल साहब, उम्दा कव्वाली !!
मन तो किया कि मैं भी शामिल हो जाऊं
-सुलभ