...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
Saturday, December 5, 2009
मानसिकता !
(चित्र नेट से साभार )
यों तो गुलामियत का डीएनए हमारी रगों में चिरकाल से रहा है, मगर मैं हम भारतियों की रगों में पूर्ण रूप से इसको विकसित करने में मैकाले को इसका काफी श्रेय देता हूँ ! भारत में इस्लामिक शासन की स्थापना के शुरूआती दौर में गुलाम बंश, खिलजी बंश, तुगलक बंश, शैय्यद बंश, लोधी बंश से फलना-फूलना शुरू हुआ यह अभिशाप सोलहवी सदी में जब इस्लामिक शासको का दमनचक्र बढना शुरू हुआ और फिर अगली सदी में इनके पतन के बाद भारत में ब्रिटिश राज स्थापित हुआ तो मैकाले के ब्रिटेश शिक्षा प्रणाली के प्रसार के बाद तो यह अपने चरम को ही छू गया ! William Carey in one of his letters, described Indian music as "disgusting Charles Grant published his "Observations" in 1797 in which he attacked almost every aspect of Indian society and religion, describing Indians as morally depraved, "lacking in truth, honesty and good faith" (p.103). British Governor General Cornwallis asserted, "Every native of Hindustan, I verily believe, is corrupt".
जहां एक ओर हममे कम आत्म सम्मान और गुलाम मानसिकता को पैदा करने में ब्रिटिश प्रणाली ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और जहाँ हम कुछ भारतीयों में गोरी चमड़ी आज भी एक सम्मान का विषय है , वहीं हमारे आज के काली चमड़ी वाले साहब लोग ( IAS / PCS/ Political leaders and so called elite class) भी उसी पद्धति को अपनाए हुए है, जिसे मैकाले ने ब्रिटिश स्कूलिंग सिस्टम के तहत हमें सिखाया था ! यह चित्र सिर्फ़ इस बात को दर्शाने के लिए ही लगाया गया है कि हमारा सोचने का स्तर कितना उच्च है !
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प्रश्न -चिन्ह ?
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आपने सही और सटीक बात करी.
ReplyDeleteआभार
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मुम्बई ब्लोगर मीट दिनाक ०६/१२/२००९ साय ३:३० से
नेशनल पार्क बोरीवली मुम्बई के त्रिमुर्तीदिगम्बर जैन टेम्पल
मे होनॆ की सुचना विवेकजी रस्तोगी से प्राप्त हुई...
शुभकामानाऎ
वैसे मुम्बई टाईगर इसी नैशनल पार्क मे विचरण करते है.
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जीवन विज्ञान विद्यार्थीयों में व्यवहारिक एवं अभिवृति परिवर्तन सूनिशचित करता है
ताउ के बारे मे अपने विचार कुछ इस तरह
ब्लाग चर्चा मुन्नाभाई सर्किट की..
विडम्बना तो यह है गोदियाल जी कि हमारी आज की शिक्षा भी उसी लॉर्ड मैकाले के बनाई शिक्षानीति पर ही आधारित है।
ReplyDeleteइसलिए मैं बार बार यही कहता हूँ कि युवाओं को अपना आत्मसम्मान जगाना होगा.....
ReplyDeletesara rona to mansikata ka hi hai.
ReplyDeleteमुंबई के वरली में नेहरू प्लेनेटेरियम के बगल वाली बिल्डिंग में इतिहास पर आधारित एक पर्मानेंट प्रदर्शनी लगी है। उसी में ब्लैक एंड वाईट तस्वीरों को चस्पां किया गया है जिसमें कि अंग्रेजों के पैर दबाते, और उनकी विभिन्न ढंग से कभी पालकी उठा कर आदि से सेवा करते तस्वीरों के जरिये दिखाया गया है। उसी के बगल में इस तस्वीर को भी फ्रेम करवा कर लगाया जा सकता है। ताकि आने वाली पीढिंयां इस सत्य को भी देख सकें कि आजादी के साठ साल बाद उससे भी बदतर हालत है।
ReplyDeleteभाई श्री माफ करें, अपने मातहत के सर पर बैठना हमारी आदत है.
ReplyDeleteआपकी भावनाएं सही है. दुसरों को सम्मान देना हमें आना चाहिए. बेचारे के कंधे पर बैठा है नालायक.
जब तक हम अपनी मान्सिकता नही बदलते तब तक यही होगा,ओर आत्मसम्मान तभी जागेगा जब हम युरोप के अन्य देशो की तरह हिन्दी को अपने देश की भाषा को सम्मान देगे, युरोप के हर देश मै लोग अपनी भाषा को सम्मान से बोलते है अग्रेजी आने के वावजूद भी इसे बोलने से कतराते है, फ़रंस सिर्फ़ २०,२५ किलो मीटर दुर है इस इगंलेण्ड से, लेकिन वहा आप को कोई अग्रेजी प्रेमी नही मिलेगा
ReplyDeleteऐसी मानसिकता को बदलना इतना आसान नही ...... ठोस प्रयास और वो भी जल्दी ही शुरू करना पढ़ेगा और लगभग २०-३० वर्ष लगेंगे इसको दूर करने में ...........
ReplyDeleteसही कहा आपने।
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अदभुत है मानव शरीर।
गोमुख नहीं रहेगा, तो गंगा कहाँ बचेगी ?
satya vachan.
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