Thursday, December 3, 2009

फ्रांस की क्रांति जैसी क्रांति क्या इस देश मे भी….. ?



शुरु करने से पहले, संक्षेप मे आये देखें कि क्या थी फ्रांस की क्रान्ति और कैसे आई थी वह क्रांति।१७८९ -१७९९ फ्रांस के इतिहास में राजनैतिक और सामाजिक उथल-पुथल और आमूल परिवर्तन की अवधि थी, जिसके दौरान फ्रांस की सरकारी सरंचना, जो पहले कुलीन और कैथोलिक पादरियों के लिए सामंती विशेषाधिकारों के साथ पूर्णतया राजशाही पद्धति पर आधारित थी, अब उसमें आमूल परिवर्तन हुए और यह नागरिकता और अविच्छेद्य अधिकारों के प्रबोधन सिद्धांतों पर आधारित हो गयी। आर्थिक कारकों में शामिल थे अकाल और कुपोषण, जिसके कारण रोगों और मृत्यु की सम्भावना में वृद्धि हुई, और क्रांति के ठीक पहले के महीनों में आबादी के सबसे गरीब क्षेत्रों में भुखमरी की स्थिति पैदा हो गयी। अधिक बेरोजगारी और रोटी की ऊँची कीमतों के कारण भोजन पर अधिक धन व्यय किया जाता था, और अन्य आर्थिक क्षेत्रों में धन का व्यय अल्प होता था। भ्रष्टाचार अपने चरम पर था, और यह भी एक उलेखनीय बात है की इस क्रांति को सुलगाया वहाँ की महिलाओं ने । कहा जाता है की एक बार जब तंग आकार महिलाओ ने उस होता को घेरा जिसमें शाही परिवार ठहरा था, तो जब राजकुमारी ने उनके आन्दोलन करने का कारण पूछा तो लोगो ने कहा की हम भूखे है हमें रोटी नहीं मिलती तो उसका जबाब था की अगर रोटी नहीं है तो ब्रेड क्यों नहीं खा लेते ? बस, राजकुमारी के इस कथन ने एजी में घी का कम किया और फ़्रांस जल उठा।



एक अन्य कारण यह तथ्य था कि लुईस XV ने कई युद्ध लड़े, और फ्रांस को दिवालिएपन के कगार पर ले आये, और लुईस XVI ने अमेरिकी क्रांति के दौरान उपनिवेश में रहने वाले लोगों का समर्थन किया, जिससे सरकार की अनिश्चित वित्तीय स्थिति और बदतर हो गयी। आखिरकार 9 नवंबर 1799 को (18 Brumaire of the Year VIII) नेपोलियन बोनापार्ट ने 18 ब्रुमैरे के तख्तापलट का मंचन किया जिसने वाणिज्य दूतावास की स्थापना की. इससे प्रभावी रूप से बोनापार्ट की तानाशाही को मदद मिली और अंत में (1804 में) उसे सम्राट (Empereur) बनाया गया. जो फ्रांसीसी क्रांति की रिपब्लिकन अवस्था को विशेष रूप से करीब ले आया।


आज हालात तो हमारे देश मे भी उस क्रांति के पहले के फ़्रांसिसी हालात से ज्यादा भिन्न नजर नही आते है। आज जब हमारा यह देश, जहां मंदी, महंगाई और बेरोजगारी की वजह से भुखमरी के कगार पर खडा है, जहां आज देश का गरीब तबका सौ रुपये किलो की दाल खरीदने को मजबूर है, आज जहां एक अस्सी रुपये की धिआडी कमाने वाला मजदूर अपने परिवार को दो जून की रोटी मुहैया करा पाने मे असमर्थ है, वहीं दूसरी तरफ़ महाराष्ट्रा की कौंग्रेस-एनसीपी सरकार अपने नेताऒं के युवा होनहार नौनिहालों को न सिर्फ़ अनाज से दारू बनाने के लाइसेंस बांट रही है, अपितु उन्हे अन्य सुविधायें भी सरकारी खर्च पर मुहैया करवा रही है। अब जरा सोचिये, एक तरफ़ देश की जनता के पास अपने बच्चो को भरपेट खिलाने के लिये अनाज उप्लब्ध नही है, वहीं दूसरी तरफ़ ये देश के राजनीतिज्ञ उस बहुमुल्य अनाज से दारू बनाकर मोटी रकम कमाने पर आमदा है। इनकी बला से देश और देश की गरीब जनता जाये भाड मे। हमारे इस देश के सेक्युलर मीडिया ने भले ही अपने निजी स्वार्थो के चलते इसे बडी खबर न बनाया हो लेकिन आपको शायद यह’ याद हो, कि करीब डेड साल पह्ले हमारी सरकार ने हजारों टन गेहुं आयात किया था, मगर चुंकि वह गेहुं जानवरों को खिलाने के लिये भी उपयुक्त न था, अत: उसे, जैसा कि कुछ खबरों मे बताया गया था, समुद्र मे ही डुबा दिया गया । आपको शायद मालूम हो कि हजारों टन दाल जो आयात कर कलकता पोर्ट पर आई थी, वह समय पर न उठा पाने की वजह से बन्दरगाह पर पडे-पडे ही सड गई। इन सब घटनाओ से तो ऐसा ही लगता है कि देश और जनता की किसी को कोई फिक्र नही।

लगता तो यह है कि शायद अपने अच्छे कर्मो ( मालूम नही इस जन्म या पिछले जन्म) की वजह से मौन सिंह एकदम मौन बैठा अपनी रिटायरमेंट जिन्दगी मजे से गुजार रहा है, और उनकी प्रोक्सी तले, और इस देश की मूर्ख वोटर जमात की वजह से देश की सत्ता पर काबिज लोग, दोनो हाथों से देश को लूटने मे लगे है। गरीब और अमीर न कहकर यों कहे कि गरीब और लुटेरों के बीच खाई निरन्तर बढती ही जा रही है। अब सवाल यह उठता है कि क्या यह सब कुछ यों ही चलता रहेगा या फिर लोग फ़्रांस जैसी किसी क्रांति के लिये अपने हक मे उठ खडे होने का साहस दिखा पायेंगे ? दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते है कि क्या ये लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गयी सरकारे भी इस देश की जनता को उस स्थिति तक पहुँचने के लिए मजबूर कर रही है ?

20 comments:

  1. बेहद महत्वपूर्ण लेख। बधाई।

    ReplyDelete
  2. आपका आकलन बिल्कुल सही है, स्थिति तो वैसी ही बनती जा रही है।

    ReplyDelete
  3. बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने, परिस्थियां तो बिल्‍कुल ऐसी ही निर्मित हो चुकी हैं, सशक्‍त लेखन के लिये बधाई ।

    ReplyDelete
  4. ऐसी ही क्रांति 1986 में चाइना में हुई थी...... आज जो चाइना हम देख रहे हैं वो उसी क्रांति की देन है..... और यह क्रांति वहां के युवाओं ने लायी थी.... जो कि अब प्रौढ़ हो गए हैं..... उन्ही युवाओं के दम पर आज के युवा मौज कर रहे हैं...... ऐसी ही क्रांति भारत में भी होनी चाहिए.... तभी हम हम अपने सपनों का भारत बना सकते हैं..... और भावी युवाओं को नया भारत दे सकते हैं.... मै तो यही कहता हूँ..... कि जब तक के सरकार में न डर नहीं होगा तब तक के कुछ नहीं होगा..... १८५७ वाला युद्ध हम युवाओं को फिर से लड़ना होगा..... और इस युद्ध में हमें कई जानें भी लेनी होंगी.... और भरष्ट लोगों कि जान लेना बहुत बड़ा पुण्य का काम है.... मेरा यही मानना है भ्रष्टाचारियों को मौत दो और नया भारत का निर्माण करो..... जब तक के मौत का डर नहीं होगा ....नहीं देश नहीं बदल सकता...... अंग्रेजों को भी मौत के डर ने ही भगाया..... और भ्रष्टाचारियों को भी यही भगाएगी ..... आईये हम सब मिलजुल के एक हों..... और हर भ्रष्टाचारियों को ख़त्म करें...... और ताबूत में आखिरी कील मैं ही गाडूं यही तमन्ना है.....

    ReplyDelete
  5. क्रांति जिंदा कौमे ही करती है, वोटरों को दारु पिलाओ, मदहोश करो और जीत जाओ, यही हो रहा देश मे।

    ReplyDelete
  6. अच्छी जानकारी मिली , आभार !

    ReplyDelete
  7. बहुत महत्वपूर्ण आलेख है। मगर भारत मे ऐसा न हो इस के लिये दुया करें शुभकामनायें

    ReplyDelete
  8. भारत में भ कोई क्रांति आएगी ..... लगता नही ..... इतनी पिसी हुई जनता, बंटी हुई जनता से कोई उठ कर आएगा लगता तो नही ........ ये राजनेता ज़्यादा चालाक हैं इस जनता से और तभी राज कर रहे हैं ......

    ReplyDelete
  9. आपने बिल्कुल महत्व पुर्ण मुद्दे पर लिखा है. इस सशक्त लेख के लिये आपको बहुत बधाई और शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  10. जिन्दा लोग ही क्रांति कर सकते हैं।
    जहाँ ज़मीर मर गये हों वहाँ क्या क्रान्ति होगी?

    ReplyDelete
  11. "फ्रांस की क्रांति जैसी क्रांति क्या इस देश मे भी….. ?"
    ---देखते हैं।

    ReplyDelete
  12. परिस्थितियाँ क्रांति की बन रही हैं। और क्रांति जनता करती है। उस के लिए उस का संगठित होना आवश्यक है। जनता संगठित भी हो रही है लेकिन देश में सांप्रदायिकता, प्रांतवाद, भाषावाद, जातिवाद के उभार क्रांति को पीछे धकेल दे रहे हैं। जनता जब इन बीमारियों से बचना सीख लेगी क्रांति देश के दरवाजे पर खड़ी होगी।

    ReplyDelete
  13. लुई सोलहवां की पत्नी मेरी अन्तोनोयत आस्ट्रिया की रहने वाली थी...फ्रांस की संवेदना से उसे कुछ लेना देना नहीं था...खैर भारत में वाल्तेयर कहां है, रुसो कहां है...अपने आप को पागल कुत्ता कहने वाला मिराब्यू कहां है...राब्सपीयर कहां है...??? वैसे सुनने में अच्छा लग रहा है...शुरुआत कहां से हो...भारत में बास्तिल कहां है....और बास्तिल को चकनाचूर कर देने वाला जुनून कहां है...

    ReplyDelete
  14. Very good and knowledgelable article.

    ReplyDelete
  15. thanks for this information..

    i say all my indians..plz wakeup..& fight get ur right..

    we will make ur country again a golden bird..

    ReplyDelete
  16. thanks for this information..

    i say all my indians..plz wakeup..& fight get ur right..

    we will make ur country again a golden bird..

    ReplyDelete
  17. haan,bhaarat me bhi kranti hogi,bahot zald hogi.

    ReplyDelete
  18. Paap ka ghada abb bhar chouka hai

    ReplyDelete

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।