Saturday, December 19, 2009

'नारी' की चिंता में दुबले कुछ ब्लॉगर मित्र !

पिछले कुछ दिनों से ब्लॉग जगत पर एक ख़ास बात के ऊपर नजर गडाए था ! देखना चाहता था कि अक्सर किसी एक ख़ास मुद्दे पर एक साथ लेखों की बाढ़ निकाल देने वाले हमारे ब्लॉगर बंधू-बांधव इस मामले पर कितने संजीदा है ! लेकिन यह जानकर निराशा हाथ लगी कि किसी ने भी इस और ध्यान देकर लिखना तो दूर, कहीं पर टिपण्णी करना भी मुनासिब नहीं समझा( हाँ अगर कुछ मेरी नजरो से ही छूट गया हो तो क्षमा चाहूंगा ) ! इस ब्लॉग जगत पर मैं अक्सर देखता हूँ कि महिलाओं से सम्बंधित बातो पर कुछ लोग नाहक ही दुबले हुए जाते है! साथ ही कुछ महिला ब्लोगर किसी ब्लोगर की सार्थक पहल को भी महज एक ढकोस्लाबाजी कहकर कई बार अप्रिय शब्दावली इस्तेमाल करती है! अभी हाल का एक उदहारण मैं इस तरह से देता हूँ कि इस ब्लॉग जगत के हमारे एक वरिष्ठ और सम्मानित ब्लॉगर श्री सी.एम् प्रसाद जी ने एक लेख लिखा था, 'महिला सुशिक्षित और सशक्त हो', उस लेख की कड़ी में एक महिला ब्लोगर की टिपण्णी निराशाजनक लगी ! मैं उस टिप्पणी की चर्चा यहाँ नहीं कर रहा, मगर इस लेख के माध्यम से एक छोटा सा संदेस उन लोगो तक पहुंचाना चाहता हूँ कि आपको यह समझना भी जरूरी है कि सिर्फ 'किन्तु' और 'परन्तु' को उठाकर ,अगर आप यह समझते है कि इससे किसी नारी की स्थित हमारे समाज में आपने सुधार दी, तो आप खुद ही गलतफहमी का शिकार है! जब सी-एम् प्रसाद जी इस बात पर कोई लेख लिख रहे है तो उनका आशय सिर्फ इस ब्लॉगजगत पर मौजूद महिला ब्लोगरो से नहीं, बल्कि नारी की परिभाषा के अन्दर हमारी माँ, हमारी बहन, हमारी पत्नी और हमारे रिश्तेदार भी आते है! और जब हम समग्र रूप में नारी के उत्थान की बात करते है तो उसमे वे लोग भी शामिल है! जिनके प्रतिनिधि आप नहीं है, अत: इस बात पर प्रसाद जी जैसे सीनियर सिटिजन को अगर आप अपनी नसीहते देने लगे अच्छा नहीं लगता , खैर !

जिन मुद्दों पर हम बुद्दिजीवी वर्ग को एकजुट हो अपनी लेखनी के माध्यम से अधिक से अधिक लोगो तक अपने विरोध का शब्द पहुचाना चाहिए, वहाँ उन मुद्दों पर हम ध्यान ही नहीं देते ! मै अब उस बात पर आता हूँ जिसका जिक्र मैंने शुरू में किया ! जैसा कि आप लोगो को भी विदित हो कि अभी कुछ हफ्तों पहले गोवा(पणजी) में एक रूसी युवती के साथ एक नेता द्वारा (जैसा कि आरोप लगाया गया है) जो घृणित बलात्कार की घटना को अंजाम दिया गया, वह इस देश के पर्यटन के माथे पर एक मोटा काला धब्बा है ! मैं तो यहाँ तक कहूंगा कि 'इनक्रेडिबल इंडिया' का नारा देने वाले इन लोगो के पास अभी भी अगर कुछ शर्म नाम की चीज बाकी बची है तो कोशिश करे कि आगे से ऐसी घटना न हो! एक महिला की छत्रछाया में चल रही पार्टी और उसका राज-काज ही जब महिलाओं की आबरू के साथ खिलवाड़ करने पर आमदा हो तो उस देश से और क्या उम्मीद की जा सकती है ? ऊपर से इनका एक राज्यसभा सांसद, यह जानते हुए भी कि बलात्कार एक अमानवीय अपराध है, संसद के अन्दर खड़े होकर यह बयान देता है कि अगर कोई औरत किसी अजनबी से देर रात में मिलती है और उसके साथ कुछ हो जाता है तो इसे दूसरी तरह से लिया जाए !

शर्म आती है मुझे तो आपने देश के इन नेतावो पर, और तरस आता है यहाँ की उस जनता पर जो इन्हें अपना प्रतिनिधि बनाकर संसद के सदनों में भेजती है !

39 comments:

  1. गोदियाल जी, मैं अपनी कई टिप्पणियों में लिख चुका हूँ कि नारी और पुरुष दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और दोनों में से कोई किसी से न छोटा है न बड़ा। अपनी एक दो टिप्पणी यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ

    "हमारी संस्कृति में आरम्भ से ही नारी को सम्मान मिलता आया है। हाँ मध्ययुग में अवश्य ही, विदेशी शासन से प्रभावित होकर, नारी को हेय दृष्टि से देखा गया किन्तु उस युग के समाप्त होने के बाद नारी ने पुनः अपनी प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली।
    वास्तव में नारी और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं। एक के बिना दूसरे का जीवन अपूर्ण है। यह भी सत्य है कि कुछ मामलों में नारी कमजोर होती है और कुछ मामलों में पुरुष।
    सामान्य मनःस्थिति वाला पुरुष या नारी सदैव एक दूसरे को सम्मान ही देते हैं।"

    "यह शाश्वत सत्य है कि पुरुष और नारी एक दूसरे के पूरक हैं। इसीलिये हमारे यहाँ पत्नी को अर्धांगिनी की संज्ञा दी गई है। स्पष्ट है कि पत्नी पति का आधा अंग है। हमारी संस्कृति ने भी सदैव नारी को सम्मान ही नहीं दिया है वरन् अनेक बार उसे पुरुष से अधिक महत्वपूर्ण माना है। शिव में शक्ति नहीं थी कि वे महिषासुर का वध कर सकें, उसके वध के लिये काली को ही आना पड़ा। यदि नारी सम्मानप्राप्त न होती तो विष्णु कभी विश्वमोहिनी का रूप भी धारण न करते।"

    "यह भी सही है कि कभी पुरुष की महत्ता अधिक होती है तो कभी नारी की, कहीं पर पुरुष सशक्त होता है तो कहीं पर नारी। इसलिये दोनों की बराबरी भी नहीं हो सकती। किसी काल में पुरुष का पलड़ा भारी रहेगा तो किसी दूसरे काल में नारी का। पलड़ा जिस किसी का भी भारी रहे किन्तु वह अपने भारी होने का अभिमान न करे तो सभी कुछ सामान्य रहेगा। समस्त विवादों का जड़ हमारा अहं (ego) ही है। यदि हम सिर्फ अपने अहं की तुष्टि पर ध्यान न देकर दूसरे के अहं को भी सम्मानपूर्वक स्वीकार करें तो कभी भी तर्क वितर्क, चर्चा, बहस आदि की आवश्यकता ही न हो। उल्लेखनीय है कि अहं एक मानसिक विकार है और उसकी अधिकता मनुष्य को हीनभावना से भर देती है। इस हीनभावना से ही प्रभावित होकर लोग एक दूसरे को नीचा दिखाने में प्रसन्नता का अनुभव करते हैं।

    प्रायः चुहलबाजी करते समय हम एक दूसरे को नीचा दिखाते हैं किन्तु उसका बुरा कोई भी नहीं मानता क्योंकि चुहलबाजी करते समय अहं की भावना नहीं रहती।

    मेरी दृष्टि में तो पुरुष और नारी को एक दूसरे को समझते हुए सम्मान देना ही सर्वथा उपयुक्त है।"


    मेरी तो समझ में नहीं आता कि इस विषय में फालतू बहस होती ही क्यों है?

    ReplyDelete
  2. सब राज-काज है.

    ReplyDelete
  3. गोदियाल जी नारियों के प्रति आपकी संवेदनशीलता सराहनीय है ,किन्तु इस पुरुष प्रधान समाज में अगर आप नारियों के पक्ष में ज्यादा खड़े होंगे तो आपके कुछ साथी ही व्यग्य करने से नहीं चूकेंगे ,
    हालांकि मैं खुद नारी हूँ इसलिए नारियों का पक्ष नहीं ले रही वरन ये हमारे संस्कार में शामिल कराया गया है कि नारी सर्वाधिक शक्तिशाली रचना है विधाता की ,इसीलिए पूजनीय है

    ReplyDelete
  4. bahut hi satik aur sarthak lekh hai.

    ReplyDelete
  5. आप के लेख से सहमत हु.

    ReplyDelete
  6. बात तो आपकी बिल्कुल सही है कि अगर् मुद्दा सार्थक हो तो उसका विरोध नही होना चाहिए , लेकिन वही हैं ना सबका अपना सोचने का तरिका हैं । आपने बात की नेता की तो मेरा मानना है कि नेता का तो कोई ईमान ही नही होता तो उन्हे महिला इज्जत का क्या ख्याल , ऐसे लोगो को तो गोली मार देंनी चाहिए । परन्तु गोदियाल जी ये कहना की इस प्रकरण में दोषी वर्ग बस पुरुष ही है तो ये तोड़ा नागवार सा प्रतित होता हैं । कहीं-कहीं उस नेता की बात में भी दम है कि औरत किसी अजनबी से देर रात में मिलती है और उसके साथ कुछ हो जाता है तो इसे दूसरी तरह से लिया जाए ! ऐसे समय में व्यक्ति अपने को कितना बस में रख पाता है ये भी मायने रखता है ।

    ये बात शास्त्रों मे भी कहा गया है , जरा ध्यान दिजीयेगा


    मात्रा स्वस्त्रा दुहित्रा वा न विविक्तासनो भवेत् ।
    बलवानिन्द्रियग्रामो विद्वांसमपि कर्षति ।।


    अर्थात पुरुषो को चाहिए कि वह माता, बहिन या लड़की के साथ भी एकान्तवास में ना बैठे , क्योंकि इन्द्रियोंका समूह बड़ा बलवान है , वह विद्वान् को भी विषय-भोंगोकी ओर खींच लेता है ।
    जिस न्यायसे पुरुषको ऐसा नही करना चाहिए उसी प्रकार मिलाओं को भी पर-पुरुष के साथ एकान्त या अकेले में नहीं बैठना चाहिए।

    ReplyDelete
  7. उम्मीद करता हूँ आपकी फटकार असर दिखाएगी।
    नारी का सम्मान हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है।
    इस बोल्ड लेख के लिए बधाई।

    ReplyDelete
  8. गोदियाल जी-मै आपकी बात से सहमत हुँ। आभार

    ReplyDelete
  9. गोदियाल जी,
    अवधिया भईया ने सारी बात कह ही दी है...
    फिर भी कुछ कहना चाहूंगी...जब कभी भी किसी किस्म की परेशानी मुझे हुई है, आज, या फिर जो बीत गया उस कल में..... हमेशा या तो अपने पिता से मैंने कहा, या भाइयों से, या पति से या बेटों से...और हमेशा उन्होंने ही उस परेशानी का निदान किया...लेकिन आज तक ये ताना नहीं मारा की...देखा तुम्हारी परेशानी में तुम्हें आखिर हमने ही बचाया...और जब-जब मैंने कुछ भी acheive किया हमेशा सबसे ज्यादा खुश भी वही हुए...मेरे पिता जी तनखा मुझसे कम थी...इस बात को उन्होंने हर किसी को बहुत ख़ुशी ख़ुशी बताया...कभी भी उसे एक कमी की तरह नहीं देखा....
    काश की जीवन कम्पार्टमेंट में बना होता...और इतना जटिल न होता.....लेकिन ऐसा नहीं है....ईश्वार ने कुछ सोच कर ही ...नर-नारी को अलग बनाया है....किसी एक में भी किसी भी तरह के मूल गुणों में बदलाव की अपेक्षा करना प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना है..और कुछ नहीं....यह बिलकुल वैसा ही होगा जैसा कि समलैंगिगकता या फिर गाय तो शेर का मांस खिला देना... स्त्रियोचित गुण अगर स्त्र्यों में हैं तो किसी कारण से हैं...वो मर्द में नहीं हैं तो किसी कारण से नहीं हैं.....और जो जिसका गुण है उसी को सजता है...
    हर दिन पूंगी लेकर इस तरह की आवाज़ लगाना ..हरकारों की तरह..उचित नहीं है...और उसपर तुर्रा ये कि शाम को घर उसी स्त्री के पास लौट आना.....या फिर उसी मर्द कि छात्र-छाया में पहुँच जाना जिसे दिन भर नारीवादी बन कर कोसते रहे....इस गुण को क्या कहा जाएगा.....ये तो दरमियाने दर्जे का गुण हुआ न.....!!
    हाँ कुछ समस्याए है ज़रूर और उन समस्यायों को सहज सामान्य रूप में सामने रखना चाहिए और विमर्श करना चाहिए.....हर वक्त का डंडा ठीक नहीं है और हर वक्त कि चुहलबाजी भी ठीक नहीं....ब्लाग एक बहुत ही शसक्त माध्यम है...इसका उपयोग बुद्धिमानी से करते हुए....बहुत कुछ किया जा सकता है.....प्रकृति के साथ चलें उससे लडें नहीं.....हम सभी पढ़े लिखे लोग है..बातों को बातों से समझ जाते हैं..इतने जाहिल नहीं हैं कि व्यंग-वाणों कि आवश्यकता हो....

    ReplyDelete
  10. स्वस्थ और निष्पक्ष विचार।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

    ReplyDelete
  11. आपकी बातों से शत-प्रतिशत सहमत हूँ...आशा है लोग पढ़ रहे होंगे और समझ भी रहे होंगे...साथ ही इसे कार्यान्वित भी करेंगे...
    आपके इस लिख क्र लिए आपको बधाई...

    ReplyDelete
  12. सार्थक चिन्तन किया है आपने. आपसे पूर्णतः सहमत हूँ.

    ReplyDelete
  13. अदा जी के विचारों से पूरी तरह सहमत...पुरुष हो या नारी.. दोनों सही मायने में इंसान बने रहे, कोई कम नहीं, कोई ज़्यादा नहीं...बस यही फ़लसफ़ा दुनिया को रहने के लिए बेहतर जगह बना सकता है...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  14. 'अदा' जी और अवधिया जी ने काफी कुछ कह ही दिया है

    बी एस पाबला

    ReplyDelete
  15. नारी पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं । अच्छे समाज के लिये दोनों की प्रगति जरूरी है । दोनों अगर अलग अलग प्रगति करना चाहेंगे तो समाज के लिये ठीक नही होगा ।कोई कम है कोई ज्यादा ,इस प्रश्न में उलझकर हम अपने समाज का ही अहित करेंगे

    ReplyDelete
  16. गोदियाल जी, नारीमुक्ति, नारी सशक्तिकरण वगैरह वगैरह ये मुद्दे सिर्फ अपने अन्दर के नेतागिरी के कीडे को पोषित करने का जरिया भर है ।
    हमारा तो ये मानना है कि केवल नर या केवल नारी को मुद्दा न बनाकर हमें दोनों को एक दृ्ष्टि से देखते हुए दोनों की घर-परिवार और समाज मे सहभागिता की बात करनी चाहिए...ओर जहाँ कमी दिखाइ दे उस कमी को दूर करने के बारे में विचार करना चाहिए ।

    ReplyDelete
  17. आपकी बातों से शत-प्रतिशत सहमत हूँ...आशा है लोग पढ़ रहे होंगे और समझ भी रहे होंगे...साथ ही इसे कार्यान्वित भी करेंगे...
    आपके इस लिख क्र लिए आपको बधाई...

    sanjay bhaskar

    ReplyDelete
  18. गोदियालजी,

    हम चर्चा अक्सर ऐसे ही मुद्दों पर करते हैं जहाँ कन्फ्यूज़न होता है । स्त्री और पुरुष के बीच के संबंध इतने स्वाभाविक किंतु जटिल होते हैं कि उनसे कोई भी सरलीकृत अवधारणा गढना असँभव है..इसलिए बार-बार अनेक कोणों से इनकी व्याख्या करते रहते हैं । स्त्री-पुरुष संबंध पृथ्वी ग्रह् पर मानवता की उपस्थिति के नियामक हैं... इसलिए शक्ति की प्रतीक स्त्री हमारे लिए प्रत्येक रूप में वन्दनीय है । अवधिया जी और अदा जी के विचार विषय को व्यापक विस्तार देते हैं.....कुछ ब्लागरों की चिंता अगर हमें हृदय मंथन का सकारात्मक अवसर दे रही है तो..बुरा क्या है ।

    ReplyDelete
  19. सादर वन्दे
    विद्वानों कि इस चर्चा में मै यही कह सकता हूँ कि
    नारी बेटी है, बहन है, पत्नी है, माँ है और इसके आलावा पुरुष कि सार्थकता किसमे होगी कि यह सभी रूप उनको जीवन का संबल प्रदान करते हैं, अतः हम चाहे पुरुष हो या नारी दोनों एक दूसरे के पूरक है और अगर एक ने भी दूसरे के भोग कि ही बात सोची तो असंतुलन तय है. अतः उत्तम विचार ही सर्वोपरि है
    रत्नेश त्रिपाठी

    ReplyDelete
  20. भाई गोदियाल जी को धन्यवाद कि उन्होंने मेरे लेखन को सराहा और यहां उसका उल्लेख किया। भारत की यह सभ्यता रही है कि बालिका को भी माँ कह कर सम्बोधित किया जाता है। जब हम अपने संस्कार और संस्कृति से मुंह मोडेंगे तो गोआ जैसे मुद्दे सामने आएंगे। आशा है कि इस मंथन से कुछ अच्छे विचार सामने आएंगे और अमृत कभी न कभी तो छलकेगा।

    ReplyDelete
  21. आपके विचार पढ़े। ब्लाग जगत अपने समाज जैसा ही होगा। लोग असहज बातें करने से बचते हैं। अपने खिलाफ़ कोई बात सुनना नहीं चाहते।

    महिलाओं के बारे में समाज में जो होता है अपने ब्लाग जगत में कुछ न कुछ वैसा ही अक्सर दिख जाता है। महिलाओं के बारे में द्विअर्थी संवाद आम बात हैं।

    ReplyDelete
  22. बहुत महत्‍वपूर्ण मुददा उठाया है आपने ।
    इतना ही कहना चाहता हूं कि "किसी भी देश और व्‍यक्ति के चरित्र का पता इस बात से चलता है कि उस देश के लोगो वहां की महिलाओं और वृद्धों के साथ कैसा बर्ताव करते है ।" जाहिर है कि भले ही हम महान संस्‍कृति का गौरव गान करते रहें लेकिन व्‍यवहार में देखने पर हमें कोई गौरवपूर्ण बात नहीं मालूम पडती बल्‍कि शर्मसार होने के मौके ज्‍यादा होते हैं ।

    ब्‍लॉग जगत में भी कई बार अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया जाता है । लोग सामान्‍य शिष्‍टाचार भी भूल जाते हैं । आखिर नेता भी तो समाज से ही आते हैं ।

    नारी के प्रति सम्‍मान का भाव अभी भी हमारे समाज में पैदा नहीं हो सका है । यही समाज के पतन का सबसे बडा कारण है ।

    ReplyDelete
  23. साथ ही कुछ महिला ब्लोगर किसी ब्लोगर की सार्थक पहल को भी महज एक ढकोस्लाबाजी कहकर कई बार अप्रिय शब्दावली इस्तेमाल करती है! अभी हाल का एक उदहारण मैं इस तरह से देता हूँ कि इस ब्लॉग जगत के हमारे एक वरिष्ठ और सम्मानित ब्लॉगर श्री सी.एम् प्रसाद जी ने एक लेख लिखा था, 'महिला सुशिक्षित और सशक्त हो', उस लेख की कड़ी में एक महिला ब्लोगर की टिपण्णी निराशाजनक लगी !

    आप को मेरी टिप्पणी निराशा जंक लगी कोई बात नहीं क्युकी एक वरिष्ठ और सम्मानित ब्लॉगर श्री सी।एम् प्रसाद जी कि एक टिप्पणी शाद आप नए नहीं पढ़ी जो एक महिला ब्लॉगर के लिये थी { हो सकता हैं महिला ब्लॉगर थी इस लिये वो सम्मानित नहीं थी } चलिये आप इस लिंक को देखिये
    http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2008/12/blog-post_29.html

    और इस लिंक को भी देखिये
    http://chitthacharcha.blogspot.com/2008/12/blog-post_29.html
    फिर बताइये कि क्या गलत था मेरी टिप्पणी मे । आप लोग उम्र को ले कर क्यूँ इतना बाय्बबला मचाते हैं । क्या वरिष्ठ नागरिक हो जाने से ही कोई समानित ब्लॉगर हो जाता हैं । श्री सी।एम् प्रसाद अच्छे हैं या बुरे नहीं जानती और ना व्यक्तिगत रूप से जानने चाहती हूँ हां उनके एक नहीं अनेक कमेन्ट हैं जिन मे शिक्षित महिला को "निरंतर " गलत साबित किया गया हैं । तो इस पोस्ट मे शिक्षा का प्रसार महिला के लिये हो कर वो क्या साबित करना चाहते हैं ???

    और आप से पूछती हूँ क्या एक दूसरी पोस्ट मे आप मेरी प्रति जो गलत जानकारी आप नए यहाँ दी हैं उसका खंडन करेगे क्युकी मेरे कमेन्ट का सन्दर्भ बिना जाने आप ने उसको "निराशाजनक"कहा है क्या इतनी उम्मीद आप से कर सकती हूँ क्युकी आप भी वरिष्ठ और समानित ब्लॉगर माने जाते हैं । और महिला ब्लॉगर के सम्मान का क्या उसको कहा सम्मान कि जरुरत होती हैं । वो चाहे ३० कि हो ५० कि सदा ही "सीख पाने के लिये बनी हैं "
    अफ़सोस हुआ आप कि ये पोस्ट पढ़ कर ये नहीं कहूँगी क्युकी इस से भी ज्यादा अफ़सोस जनक पहले पढ़ा हैं । हां देखना ये हैं कि आप कि अगली पोस्ट मे आप अफ़सोस जाहिर करते हैं या नहीं

    ReplyDelete
  24. आपके इस सार्थक लेखन से पुर्णरुपेण सहमति व्यक्त करता हूं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  25. गोदियाल जी, आपका चिंतन जायज है. और इसे ही हम सार्थक ब्लोगरी कहेंगे.
    टिप्पणियों में सुधि ब्लोगरों ने विस्तारित पक्ष रखा है और कुछ कहने की जरुरत नहीं है.

    सडको पर या सार्वजनिक स्थानों पर कुछ घृणित घटनाएं घटती है तो अक्सर होता ये है कि दोषियों को उचित सजा मिले या न मिले हम इतिहास और वर्तमान का पोस्टमार्टम करने लग जाते हैं. अपने देश या समाज में यही दुखद है. बाकी किसी भी पुरुष के मन में नारी के प्रति सम्मान होना उनके पौरुष गुण का अंग है और होना चाहिए. यही बात किसी भी नारी के लिए ग्राह्य है.

    - सुलभ

    ReplyDelete
  26. इस विषय पर आप लोगो ने जो अपने खुलकर विचार रखे, उसके लिए आप सभी का हार्दिक शुक्रिया ! इस बात से बहुत खुसी मिली कि लगभग सभी वरिष्ट ब्लोगरो ने अपने स्स्र्थक विचार प्रस्तुत किये ! रचना जी से कहूंगा कि आप मेरी बातो को व्यक्तिगत तौर पर विल्कुल भी न ले, लेकिन कुछ बाते है जिन पर मनन आवश्यक है !
    आज घर पर किसी ख़ास कार्य की वजह से व्यस्त हूँ, जरुरत पडी तो इस पर कल अपने विचार रखूंगा ! आप लोगो का पुन : हार्दिक शुक्रिया !

    ReplyDelete
  27. रचना जी से कहूंगा कि आप मेरी बातो को व्यक्तिगत तौर पर विल्कुल भी न ले,

    नहीं लेंमना चाहती हूँ पर आप को फिर अपनी गलती भी मान लेनी चाहिये कि आप को सन्दर्भ नहीं पता था और आप को अपनी पोस्ट से वो पाराग्राफ हटाना चाहिये जिसमे आप नए कहा हैं "निराशाजनक टिप्पणी के बारे मे " उम्र बड़ी होने से क्या मानसिकता सही होती हैं । नारी को शिक्षित करने कि बात करते हैं और ब्लॉग जगत कि सबसे शिक्षित ब्लॉगर सुजाता कि सोच को पर ना केवल ऊँगली उठाते हैं सो मैने क्या गलत कहा कि अगर नारी को शिक्षित करोगे तो फीस उसकी सोचने कि ताकत के लिये भी तैयार रहो
    आप आज पोस्ट लिखे या कल पर मानसिकता सही रखे और उन मुद्दों पर लिखे जिन को आप मन से सही मानते हैं ।

    आप कि अगली पोस्ट का इंतज़ार हैं , इस बार मुझे भी देखना हैं ब्लॉग जगत के वरिष्ठ और सम्मानित ब्लॉगर कितना दुसरो के सम्मान के प्रति सचेत हैं

    ReplyDelete
  28. आपका चिंतन और क्षोब दोनो ही वाजिब हैं ......... अभी बहुत दूरजाना है हमें अपनी सोच बदलने के लिए ........मेरा मानना है की शिक्षा ही इसका एकमात्र उपाय है ..........

    ReplyDelete
  29. काम की बहस लग रही है
    मौन धारण कर विद्वानों की बात पढ़नी चाहिए..!

    ReplyDelete
  30. कुल सही मुद्दा और उचित तर्क।

    कुछ जिद्दी मानसिकता के लोग बहुत दूर तक पीछा करते हैं। ये हमारे समाज के अपरिहार्य अंग हैं। लेकिन इनसे रोचकता बनी रहती है।

    सार्थक बातों के लिए शुक्रिया।

    ReplyDelete
  31. इसे कहते हैं रंग में भंग। कहाँ की बात कहाँ चली गयी। वैसे आपने लिखा अच्छा है।

    ReplyDelete
  32. आदरणीय रचना जी,
    सर्वप्रथम तो यह कहना चाहूँगा कि मेरी वजह से आपको किसी भी तरह की जो तकलीफ पहुंची हो उसके लिए माफी मांगता हूँ ! जैसा कि आपने कहा कि आपको इस मुद्दे पर मेरे अगले लेख का इन्तजार रहेगा तो यही कहूँगा कि मेरा इस मुद्दे पर आगे कुछ भी कहने की कोई मंशा नहीं है ! मेरी किसी को व्यक्तिगत ठेस पहुंचाने का कोई भे इरादा नहीं ! आप इस बात को तो ऐप्रिसियेट करोगी कि एक ब्लोगर चिट्ठाजगत पर हर किसी ब्लोगर की सारी टिप्पणिया और लेख तो नहीं पढ़ सकता ! दूसरा मैंने अपने लेख में किसी का नाम तो नहीं लिया, तीसरा मुद्दा यह नहीं था कि किसने क्या टिप्पणी की, मुद्दा मेरा लिखने का सिर्फ यह था कि हम लोग(तथाकथित साहित्यकार ) इस ब्लॉग जगर पर जरा-ज़रा सी बातो पर बहुत लम्बी-लाबी बहस कर लेते है लेकिन जनता का एक प्रतिनिधि देश की सर्वोच्च संस्था राज्यसभा में खड़े होकर महिलाओं(कृपया नोट करे कि इन महिलाओं के अंतर्गत मेरी माँ, मेरी बहिन, मेरे दोस्त और मेरे रिश्तेदार भी आते है ) के बारे में इस तरह का बयान देता है तो बजाय यहाँ पर इन बेफालतू की टिप्पणियों और लेखो पर अनावाश्य्क बहस करने के हम सारे चिट्ठेकार इन मुद्दों पर अपना एक स्वर प्रखर करे, और अपना विरोध दर्ज करे कि who the hell this naayak is एंड at what capacity he is giving this kind of social certificate to women? प्रसाद जी की जिस टिप्पणी का उल्लेख आपने किया मैंने नहीं पढी थी, नहीं मालूम कि उन्होंने किस विषय पर इस तरह की टिप्पणी दी लेकिन उनकी टिप्पणी अगर किसे पूर्वाग्रह से ग्रषित थी तो मैं उसकी भी निंदा करता हूँ ! इस पर अपना पक्ष खुद सी एम् प्रासाद जी स्पष्ठ करे तो ज्यादा बेहतर रहेगा ! मेरे समक्ष जो टिपण्णी आयी और मैंने पढी, उन्हें एक सीनियर सिटिजन का पूर्ण सम्मान देते हुए, मैंने अपना मत व्यक्त किया, खैर, बेहतर यही है कि हम इस मुद्दे को यही समाप्त समझे !

    ReplyDelete
  33. Nari ko dekhne ka apna-apna alag nazariya hota hai. koi nari ko sammaan deta hai aur koi nari ko pana chahta hai. But this is truth that woman is definitely weak compare to man. Every man is free to decide the attitute towards women and every women is free to fix the strong position in society.

    ReplyDelete
  34. आप ने नाम नहीं लिया सही कह रहे हैं पर सन्दर्भ मेरा ही हैं सो उसको जवाब देना जरुरी हैं । और आज कल फैशन होगया हैं हिंदी ब्लॉग जगत मे नारी पर सब लिख रहे हैं । पढ़ाने कि पैरवी करते हैं और पढ़ी लिखी ब्लॉगर को अपशब्द , यौनिक गलियाँ और मानसिक रोगी इत्यादि से नवाजते हैं । अब ये hypocracy सम्मानित वरिष्ट और सीनियर सिटिज़न ब्लॉगर छोड़ दे तो बड़ा भला हो गा । बहुत समस्या हैं समाज मे नारी के उत्थान के अलावा क्युकी ब्लॉग पर नारी का उत्थान नहीं हो सकता { ये आप लोग ही कहते हैं } सो क्यों अच्छे बनाने के लिये झूठे आलेख और पोस्ट डालते हैं । और रही बात" इस ब्लॉग जगत की सुर्ख़ियों में लाने के लिए आपका हार्दिक शुक्रिया," नारी ब्लॉग कि संरचना पढे लिखे समाज कि hypocracy को सामने लाने के लिये ही हुई हैं । लोग कहते हैं समाज मे सुधार करो नारियो ब्लॉग पर नहीं , सो उनकी जानकारी के लिये बता दूँ कि ये हिंदी ब्लॉग मे समाज ही आ कर बैठ गया हैं वही गंदगी नारी के प्रति जो हमे सडको पर दिखाई देती हैं मे उसी को ऊपर लाती हूँ और करती रहूगी ।

    ReplyDelete

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।