यूँ तो बेवजह सुर्ख़ियों में आने का कभी शौक नहीं रहा, मगर जैसे कि शायद आप लोग भी जानते होंगे कि मेरे एक लेख की वजह से ब्लॉगजगत पर आजकल मेरी टी.आर.पी काफी ऊपर जाकर बैठी हुई है, इसलिए मैं फिलहाल कोई टुच्चा-मुच्चा लेख अथवा कविता लिखकर उसको नीचे नहीं लाना चाहता :) सन २००९ में मैं इस ब्लॉगजगत पर लगभग हर दिन उपस्थिति दर्ज करवाई , इसलिए सोचा कि चलो, जो साल जाने वाला है उसकी कुछ जो कविताये अथवा गजल मैं पढ़ पाया और मुझे अच्छी लगी, मैं यहाँ प्रस्तुत करू, ताकि अन्य ब्लॉगर मित्र जोकि उन्हें पढने से किसी वजह से वाचित रह गए हो, वे भी एक बार फिर से उन्हें पढ़ सके ! तो लीजिये प्रस्तुत है सब २००९ का काव्य लेखा-जोखा : यहाँ सिर्फ भिन्न-भिन्न रचनाकारों की मैं कविता या गजल के कुछ चुनिन्दा अंश ही प्रस्तुत कर रहा हूँ,साथ ही उस कविता या गजल का लिंक भी मैंने यहाँ पर दिया है, विस्तृत तौर पर आप उसे उस ब्लॉग पर जाकर पढ़ सकते है, और मुझे उम्मीद है कि इसपर किसी ब्लॉगरमित्र / रचनाकार को कोई आपति नहीं होगी !
शुरुआत करता हूँ आदरणीय डा० रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी की इस प्यारी से गजल से, उनकी गजल फ्रेम समेत पोस्ट कर रहा हूँ ;
निर्मला कपिला जी ने गुजर रहे साल की शुरुआत में (जनवरी २००९) एक गजल लिखी थी
http://veerbahuti.blogspot.com/search/label/%E0%A4%97%E0%A4%BC%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%B2?updated-max=2009-05-20T20%3A16%3A00-07%3A00&max-results=20
आज महफिल में सुनने सुनाने आयेंगे लोग
समाज के चेहरे से नकाब उठाने आयेंगे लोग
किसी की मौत पर रोना गुजरे दिनों की बात है
अब दिखावे को मातम मनाने आएंगे लोग
दोस्ती के नकाब में छुपे है आज दुश्मन
पहले जख्म देंगे, फिर सहलाने आएंगे लोग
श्री समीर लाल ’समीर’ जी को सुनिए ;
http://udantashtari.blogspot.com/2009_03_01_archive.html
झूट की बैसाखियों पे, जिन्दगी कट जायेगी
मूँग दलते छातियों पे, जिन्दगी कट जायेगी.
सज गया संपर्क से तू, कितने ही सम्मान से
कागजी इन हाथियों पे, जिन्दगी कट जायेगी.
है अगर बीबी खफा तो फिक्र की क्या बात है
कर भरोसा सालियों पे, जिन्दगी कट जायेगी.
गाड़ देना मुझको ताकि अबके मैं हीरा बनूँ,
सज के उनकी बालियों पे, जिन्दगी कट जायेगी
श्याम सखा ‘श्याम’ जी की गजल
http://gazalkbahane.blogspot.com/2009/10/blog-post_27.html
नम तो होंगी आँखें मेरे दुश्मनों की भी जरूर
जग-दिखावे को ही मातम करने जब आएँगे लोग
फेंकते हैं आज पत्थर जिस पे इक दिन देखना
उसका बुत चौराहे पर खुद ही लगा जाएँगे लोग
है बड़ी बेढब रिवायत इस नगर की ‘श्याम’ जी
पहले देंगे जख्म और फिर इनको सहलाएँगे लोग
ओम आर्य जी की गजल
http://ombawra.blogspot.com/2009/06/blog-post_19.html
वहीं पे है पडा अभी तक वो जाम साकी
निकल आया तेरे मयखाने से ये बदनाम साकी
हो न जाए ये परिंदा कोई गुलाम
कहते है शहर में बिछे है पिंजड़े तमाम साकी
खुदा हाफिज करने में है न अब कोई गिला
उसकी तरफ से आ गया है मुझको पैगाम साकी
डा.चन्द्रकुमार जैन जी ने श्री ज्ञानप्रकाश विवेक की ग़ज़ल प्रस्तुत की
http://chandrakumarjain.blogspot.com/2009/09/blog-post_02
मैं पूछता रहा हर एक बंद खिड़की से
खड़ा हुआ है ये खाली मकान किसके लिए
गरीब लोग इसे ओढ़ते-बिछाते हैं
तू ये न पूछ कि है आसमान किसके लिए
ऐ चश्मदीद गवाह बस यही बता मुझको
बदल रहा है तू अपना बयान किसके लिए
एम् वर्मा जी की कविता देखिये
http://ghazal-geet.blogspot.com/2009/06/blog-post_09.html
हर सुंदर फूल के नीचे कांटा क्यों है भाई?
भीड़ बहुत है पर इतना सन्नाटा क्यों है भाई?
मशक्कत की रोटी पर गिद्ध निगाहें क्यों है?
हर गरीब का ही गीला आटा क्यों है भाई?
चीज़ों की कीमत आसमान चढ़ घूर रही है
मंदी-मंदी चिल्लाते हो, घाटा क्यों है भाई?
सीधी राह पकड़कर जाते मंजिल मिल जाती
इतना मुश्किल राह मगर छांटा क्यों है भाई?
वन्दना गुप्ता जी की नज्म देखिये ;
http://vandana-zindagi.blogspot.com/2009/04/blog-post_11.html
तू कृष्ण बनकर जो आया होता
तो मुझमे ही राधा को पाया होता
कभी कृष्ण सी बंशी बजाई होती
तो मैं भी राधा सी दौड़ आई होती
फिर वहाँ न मैं होती न तू होता
कृष्ण राधा सा स्वरुप पा लिया होता
संदीप भारद्वाज जी की गजल
http://gazals4you.blogspot.com/2009/10/blog-post_8856.html
खता मेरी ही थी जो दुनिया से दिल लगा बैठा
ये कमबख्त जिन्दगी कब किसी से वफ़ा करती थी,
मैं काश ये कह सकता "मुझे याद कीजिये"
कभी मेरी याद जिनकी धड़कन हुआ करती थी,
देखो आज हम उनकी दुनिया में शामिल हे नहीं,
जिनकी दुनिया की रौनक हम से हुआ करते थी,
दिगंबर नासवा जी की ब्लॉग पर फोटो उपलब्ध नहीं
http://swapnmere.blogspot.com/2009/11/blog-post_24.html
छू लिया क्यों आसमान सड़क पर रहते हुवे
उठ रही हैं उंगलियाँ उस शख्स के उत्कर्ष पर
मर गया बेनाम ही जो उम्र भर जीता रहा
सत्य निष्ठां न्याय नियम आस्था आदर्श पर
गावं क्या खाली हुवे, ग्रहण सा लगने लगा
बाजरा, मक्की, गेहूं की बालियों के हर्ष पर
नीरज गोस्वामी जी के बेहतरीन अल्फाजो में से चंद अल्फाज
href="http://ngoswami.blogspot.com/2008/10/blog-post_14.html">
उठे सैलाब यादों का, अगर मन में कभी तेरे
दबाना मत कि उसका, आंख से झरना ज़रुरी है
तमन्ना थी गुज़र जाता,गली में यार की जीवन
हमें मालूम ही कब था यहां मरना ज़रूरी है
किसी का खौफ़ दिल पर,आजतक तारी न हो पाया
किया यूं प्यार अपनों ने, लगा डरना ज़रूरी है
सुलभ जायसवाल 'सतरंगी' जी href="http://sulabhpatra.blogspot.com/">http://sulabhpatra.blogspot.com/
लिख सजा बेगुनाह को कलम है शर्मशार
फैसले हुए हैं कागज़ कानूनी देखकर
ख्वाहिशों कि उड़ान अभी बाकी है बहुत
मियाँ घबरा गए ढलती जवानी देखकर
वहां न कोई भेड़िया था न कोई दरिंदा
गुड़िया रोई थी चेहरा इंसानी देखकर
अदा जी की गजल
http://swapnamanjusha.blogspot.com/2009/09/blog-post_09.html
क्यूँ अश्क बहते-बहते यूँ आज थम गए हैं
इतने ग़म मिले कि, हम ग़म में रम गए हैं
तुम बोल दो हमें वो जो बोलना तुम्हें है
फूलों से मार डालो हम पत्थर से जम गए हैं
जीने का हौसला तो पहले भी 'अदा' नहीं था
मरने के हौसले भी मेरे यार कम गए हैं
पारुल जी की कविता
http://rhythmofwords.blogspot.com/2009/07/blog-post_30.html
कुरेदती जा रही थी मिटटी
ख़ुद को पाने की भूल में ॥
कुछ भी तो हाथ न आया
जिंदगी की धूल में ॥
कुछ एहसास लपककर
गोद में सो गए थककर
और मैं जागती रही
आख़िर यूं ही फिजूल में॥
मासूम सायर जी की शायरी blogspot.com/2009/08/blog-post_19.html">http://masoomshayari।blogspot.com/2009/08/blog-post_19.html
ली थी चार दिन हँसी मैने जो क़र्ज़ में
चुका नही सका कभी अब तक उधार मैं
तन्हा गुज़ारनी ना पड़े उस को ज़िंदगी
रहने लगा हूं आजकल अक्सर बीमार मैं
'मासूम' देखनी थीं मुझे ऐसे भी शादियाँ
डोली में है वो और उस का कहार मैं
रविकांत पाण्डेय जी (फोटो उपलब्ध नहीं)
http://jivanamrit.blogspot.com/2009/11/blog-post_09.html
कुछ बिक गये, कुछ एक जमाने से डर गये
जितने भी थे गवाह वो सारे मुकर गये
हमने तमाम उम्र फ़रिश्ता कहा जिन्हे
ख्वाबों के पंछियों की वो पांखें कुतर गये
दुनिया की हर बुराई थी जिनमें भरी हुई
सत्ता के शुद्ध-जल से वो पापी भी तर गये
रजिया मिर्जा जी
http://raziamirza.blogspot.com/2009/09/blog-post_2889.html
क्यों देर हुई साजन तेरे यहाँ आने में?
क्या क्या न सहा हमने अपने को मनाने में।
बाज़ारों में बिकते है, हर मोल नये रिश्ते।
कुछ वक्त लगा हमको, ये दिल को बताने में।
अय ‘राज़’ उसे छोडो क्यों उसकी फ़िकर इतनी।
अब खैर यहीं करलो, तुम उसको भुलाने में।
सदा जी की कविता
http://sadalikhna.blogspot.com/2009/09/blog-post_23.html
माँ की आँखों ने फिर एक सपना बुना
अब यह कमाने लगे तो मैं
एक चाँद सी दुल्हन ले आऊ इसके लिए
मैं डरने लगा था सपनो से
कहीं मैं एक दिन अलग न हो जाऊ माँ से
माँ की दुल्हन भी तो सपने लेकर आयेगी
अपने साजन के,
मैं किसकी आँख में बसूँगा ?
अंत में श्री योगेन्द्र मौदगिल जी की सच्ची बात सुनिए ;http://yogindermoudgil.blogspot.com/2009/08/blog-post_09.html
खुद को सबका बाप बताया, कुछ उल्लू के पट्ठों ने.
अपना परचम आप उठाया, कुछ उल्लू के पट्ठों ने।
जीते जी तो बाथरूम में रखा बंद पिताजी को,
अर्थी पर बाजा बजवाया, कुछ उल्लू के पट्ठों ने .
लंगडो को मैराथन भेजा, गूंगे भेजे युएनओ,
सूरदास को तीर थमाया कुछ उल्लू के पठ्ठो ने .
सड़के, चारा, जंगल, पार्क, आवास योजना पुल नहरे ,
खुल्लमखुल्ला देश चबाया कुछ उल्लू के पठ्ठो ने.
कोशिश बहुत की थी कि लिंक यही से काम करे परन्तु पता नहीं क्यों ACTIVE लिंक नहीं लगा ! आप लोगो से विनम्र निवेदन है कि आप यह कतई न समझे कि मैं यह कह रहा हूँ कि मैंने इस साल की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं को चुना, मैंने यहाँ पर सिर्फ उन रचनाओं के अंश प्रस्तुत किये है, जिन्हें मैं पढ़ पाया, जहां तक मैं पहुँच सका ! इसलिए बस इतना ही कहूंगा कि E&O.E.
चलते-चलते एक अपनी भी फेंकता चलूँ :
शुरुआत करता हूँ आदरणीय डा० रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी की इस प्यारी से गजल से, उनकी गजल फ्रेम समेत पोस्ट कर रहा हूँ ;
निर्मला कपिला जी ने गुजर रहे साल की शुरुआत में (जनवरी २००९) एक गजल लिखी थी
http://veerbahuti.blogspot.com/search/label/%E0%A4%97%E0%A4%BC%E0%A4%9C%E0%A4%BC%E0%A4%B2?updated-max=2009-05-20T20%3A16%3A00-07%3A00&max-results=20
आज महफिल में सुनने सुनाने आयेंगे लोग
समाज के चेहरे से नकाब उठाने आयेंगे लोग
किसी की मौत पर रोना गुजरे दिनों की बात है
अब दिखावे को मातम मनाने आएंगे लोग
दोस्ती के नकाब में छुपे है आज दुश्मन
पहले जख्म देंगे, फिर सहलाने आएंगे लोग
श्री समीर लाल ’समीर’ जी को सुनिए ;
http://udantashtari.blogspot.com/2009_03_01_archive.html
झूट की बैसाखियों पे, जिन्दगी कट जायेगी
मूँग दलते छातियों पे, जिन्दगी कट जायेगी.
सज गया संपर्क से तू, कितने ही सम्मान से
कागजी इन हाथियों पे, जिन्दगी कट जायेगी.
है अगर बीबी खफा तो फिक्र की क्या बात है
कर भरोसा सालियों पे, जिन्दगी कट जायेगी.
गाड़ देना मुझको ताकि अबके मैं हीरा बनूँ,
सज के उनकी बालियों पे, जिन्दगी कट जायेगी
श्याम सखा ‘श्याम’ जी की गजल
http://gazalkbahane.blogspot.com/2009/10/blog-post_27.html
नम तो होंगी आँखें मेरे दुश्मनों की भी जरूर
जग-दिखावे को ही मातम करने जब आएँगे लोग
फेंकते हैं आज पत्थर जिस पे इक दिन देखना
उसका बुत चौराहे पर खुद ही लगा जाएँगे लोग
है बड़ी बेढब रिवायत इस नगर की ‘श्याम’ जी
पहले देंगे जख्म और फिर इनको सहलाएँगे लोग
ओम आर्य जी की गजल
http://ombawra.blogspot.com/2009/06/blog-post_19.html
वहीं पे है पडा अभी तक वो जाम साकी
निकल आया तेरे मयखाने से ये बदनाम साकी
हो न जाए ये परिंदा कोई गुलाम
कहते है शहर में बिछे है पिंजड़े तमाम साकी
खुदा हाफिज करने में है न अब कोई गिला
उसकी तरफ से आ गया है मुझको पैगाम साकी
डा.चन्द्रकुमार जैन जी ने श्री ज्ञानप्रकाश विवेक की ग़ज़ल प्रस्तुत की
http://chandrakumarjain.blogspot.com/2009/09/blog-post_02
मैं पूछता रहा हर एक बंद खिड़की से
खड़ा हुआ है ये खाली मकान किसके लिए
गरीब लोग इसे ओढ़ते-बिछाते हैं
तू ये न पूछ कि है आसमान किसके लिए
ऐ चश्मदीद गवाह बस यही बता मुझको
बदल रहा है तू अपना बयान किसके लिए
एम् वर्मा जी की कविता देखिये
http://ghazal-geet.blogspot.com/2009/06/blog-post_09.html
हर सुंदर फूल के नीचे कांटा क्यों है भाई?
भीड़ बहुत है पर इतना सन्नाटा क्यों है भाई?
मशक्कत की रोटी पर गिद्ध निगाहें क्यों है?
हर गरीब का ही गीला आटा क्यों है भाई?
चीज़ों की कीमत आसमान चढ़ घूर रही है
मंदी-मंदी चिल्लाते हो, घाटा क्यों है भाई?
सीधी राह पकड़कर जाते मंजिल मिल जाती
इतना मुश्किल राह मगर छांटा क्यों है भाई?
वन्दना गुप्ता जी की नज्म देखिये ;
http://vandana-zindagi.blogspot.com/2009/04/blog-post_11.html
तू कृष्ण बनकर जो आया होता
तो मुझमे ही राधा को पाया होता
कभी कृष्ण सी बंशी बजाई होती
तो मैं भी राधा सी दौड़ आई होती
फिर वहाँ न मैं होती न तू होता
कृष्ण राधा सा स्वरुप पा लिया होता
संदीप भारद्वाज जी की गजल
http://gazals4you.blogspot.com/2009/10/blog-post_8856.html
खता मेरी ही थी जो दुनिया से दिल लगा बैठा
ये कमबख्त जिन्दगी कब किसी से वफ़ा करती थी,
मैं काश ये कह सकता "मुझे याद कीजिये"
कभी मेरी याद जिनकी धड़कन हुआ करती थी,
देखो आज हम उनकी दुनिया में शामिल हे नहीं,
जिनकी दुनिया की रौनक हम से हुआ करते थी,
दिगंबर नासवा जी की ब्लॉग पर फोटो उपलब्ध नहीं
http://swapnmere.blogspot.com/2009/11/blog-post_24.html
छू लिया क्यों आसमान सड़क पर रहते हुवे
उठ रही हैं उंगलियाँ उस शख्स के उत्कर्ष पर
मर गया बेनाम ही जो उम्र भर जीता रहा
सत्य निष्ठां न्याय नियम आस्था आदर्श पर
गावं क्या खाली हुवे, ग्रहण सा लगने लगा
बाजरा, मक्की, गेहूं की बालियों के हर्ष पर
नीरज गोस्वामी जी के बेहतरीन अल्फाजो में से चंद अल्फाज
href="http://ngoswami.blogspot.com/2008/10/blog-post_14.html">
उठे सैलाब यादों का, अगर मन में कभी तेरे
दबाना मत कि उसका, आंख से झरना ज़रुरी है
तमन्ना थी गुज़र जाता,गली में यार की जीवन
हमें मालूम ही कब था यहां मरना ज़रूरी है
किसी का खौफ़ दिल पर,आजतक तारी न हो पाया
किया यूं प्यार अपनों ने, लगा डरना ज़रूरी है
सुलभ जायसवाल 'सतरंगी' जी href="http://sulabhpatra.blogspot.com/">http://sulabhpatra.blogspot.com/
लिख सजा बेगुनाह को कलम है शर्मशार
फैसले हुए हैं कागज़ कानूनी देखकर
ख्वाहिशों कि उड़ान अभी बाकी है बहुत
मियाँ घबरा गए ढलती जवानी देखकर
वहां न कोई भेड़िया था न कोई दरिंदा
गुड़िया रोई थी चेहरा इंसानी देखकर
अदा जी की गजल
http://swapnamanjusha.blogspot.com/2009/09/blog-post_09.html
क्यूँ अश्क बहते-बहते यूँ आज थम गए हैं
इतने ग़म मिले कि, हम ग़म में रम गए हैं
तुम बोल दो हमें वो जो बोलना तुम्हें है
फूलों से मार डालो हम पत्थर से जम गए हैं
जीने का हौसला तो पहले भी 'अदा' नहीं था
मरने के हौसले भी मेरे यार कम गए हैं
पारुल जी की कविता
http://rhythmofwords.blogspot.com/2009/07/blog-post_30.html
कुरेदती जा रही थी मिटटी
ख़ुद को पाने की भूल में ॥
कुछ भी तो हाथ न आया
जिंदगी की धूल में ॥
कुछ एहसास लपककर
गोद में सो गए थककर
और मैं जागती रही
आख़िर यूं ही फिजूल में॥
मासूम सायर जी की शायरी blogspot.com/2009/08/blog-post_19.html">http://masoomshayari।blogspot.com/2009/08/blog-post_19.html
ली थी चार दिन हँसी मैने जो क़र्ज़ में
चुका नही सका कभी अब तक उधार मैं
तन्हा गुज़ारनी ना पड़े उस को ज़िंदगी
रहने लगा हूं आजकल अक्सर बीमार मैं
'मासूम' देखनी थीं मुझे ऐसे भी शादियाँ
डोली में है वो और उस का कहार मैं
रविकांत पाण्डेय जी (फोटो उपलब्ध नहीं)
http://jivanamrit.blogspot.com/2009/11/blog-post_09.html
कुछ बिक गये, कुछ एक जमाने से डर गये
जितने भी थे गवाह वो सारे मुकर गये
हमने तमाम उम्र फ़रिश्ता कहा जिन्हे
ख्वाबों के पंछियों की वो पांखें कुतर गये
दुनिया की हर बुराई थी जिनमें भरी हुई
सत्ता के शुद्ध-जल से वो पापी भी तर गये
रजिया मिर्जा जी
http://raziamirza.blogspot.com/2009/09/blog-post_2889.html
क्यों देर हुई साजन तेरे यहाँ आने में?
क्या क्या न सहा हमने अपने को मनाने में।
बाज़ारों में बिकते है, हर मोल नये रिश्ते।
कुछ वक्त लगा हमको, ये दिल को बताने में।
अय ‘राज़’ उसे छोडो क्यों उसकी फ़िकर इतनी।
अब खैर यहीं करलो, तुम उसको भुलाने में।
सदा जी की कविता
http://sadalikhna.blogspot.com/2009/09/blog-post_23.html
माँ की आँखों ने फिर एक सपना बुना
अब यह कमाने लगे तो मैं
एक चाँद सी दुल्हन ले आऊ इसके लिए
मैं डरने लगा था सपनो से
कहीं मैं एक दिन अलग न हो जाऊ माँ से
माँ की दुल्हन भी तो सपने लेकर आयेगी
अपने साजन के,
मैं किसकी आँख में बसूँगा ?
अंत में श्री योगेन्द्र मौदगिल जी की सच्ची बात सुनिए ;http://yogindermoudgil.blogspot.com/2009/08/blog-post_09.html
खुद को सबका बाप बताया, कुछ उल्लू के पट्ठों ने.
अपना परचम आप उठाया, कुछ उल्लू के पट्ठों ने।
जीते जी तो बाथरूम में रखा बंद पिताजी को,
अर्थी पर बाजा बजवाया, कुछ उल्लू के पट्ठों ने .
लंगडो को मैराथन भेजा, गूंगे भेजे युएनओ,
सूरदास को तीर थमाया कुछ उल्लू के पठ्ठो ने .
सड़के, चारा, जंगल, पार्क, आवास योजना पुल नहरे ,
खुल्लमखुल्ला देश चबाया कुछ उल्लू के पठ्ठो ने.
कोशिश बहुत की थी कि लिंक यही से काम करे परन्तु पता नहीं क्यों ACTIVE लिंक नहीं लगा ! आप लोगो से विनम्र निवेदन है कि आप यह कतई न समझे कि मैं यह कह रहा हूँ कि मैंने इस साल की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं को चुना, मैंने यहाँ पर सिर्फ उन रचनाओं के अंश प्रस्तुत किये है, जिन्हें मैं पढ़ पाया, जहां तक मैं पहुँच सका ! इसलिए बस इतना ही कहूंगा कि E&O.E.
चलते-चलते एक अपनी भी फेंकता चलूँ :
हम तो
उनकी हरइक बात से इत्तेफाक रखते है,
संग अपने, अपनी बेगुनाही की ख़ाक रखते है।
हर लम्हा मुमकिन था, बेशर्मी की हद लांघना,
किंतु जहन में ये था कि हम इक नाक रखते है।
हमको नहीं आता कैसे, दर्द छुपाते हैं पलकों में,
किंतु नजरों में अपनी, बला–ए–ताक रखते है।
तमन्ना इतनी थी, हमें सच्चा प्यार मिल जाता,
वो हरगिज ये न सोचे, इरादा नापाक रखते है।
जी करे जब 'परचेत', लिख दे कोई नज्म, गजल,
दिल हमारा श्याम-पट्ट है, जेब में चाक रखते है।
संग अपने, अपनी बेगुनाही की ख़ाक रखते है।
हर लम्हा मुमकिन था, बेशर्मी की हद लांघना,
किंतु जहन में ये था कि हम इक नाक रखते है।
हमको नहीं आता कैसे, दर्द छुपाते हैं पलकों में,
किंतु नजरों में अपनी, बला–ए–ताक रखते है।
तमन्ना इतनी थी, हमें सच्चा प्यार मिल जाता,
वो हरगिज ये न सोचे, इरादा नापाक रखते है।
जी करे जब 'परचेत', लिख दे कोई नज्म, गजल,
दिल हमारा श्याम-पट्ट है, जेब में चाक रखते है।
क्या बात है सर जी , बहुत मेहनत किया है आपने ऐसा लग रहा है ।
ReplyDeleteफ़ेंक दो निकाल गर दिल में है कोई बुरा ख़याल आपके !
ReplyDeleteजख्म-ए-जिगर में हम न कोई इरादा नापाक रखते है!!....
लाजवाब शेरों के साथ आपका २००९ का सफरनामा बहुत खूबसूरत लगा .........
मेरी ग़ज़ल को अपनी महफ़िल में शामिल किया
गौदियाल जी शुक्रिया भई शुक्रिया ......
godiyal ji
ReplyDeletechun chun kar anmol moti jama kiye hain ........agar active link laga hota to aur bhi mazaa aa jata padhne mein.........kai nazm jo poori na padh payi unka malal hai............shukriya itni umda aur behtreen nazmein padhwane ka.........ummeed karti hun agle saal phir ek se badhkar ek nayab moti milenge.
क्या बात है, गोदियाल जी। एक ही बार में इतने सारे गज़लकारों और कवियों से परिचय करवा दिया।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया संकलन है, उत्तम ग़ज़लों का।
आभार।
वाह... बहुत खूब!
ReplyDeleteये अन्दाज तो बहुत बढ़िया रहा!
वाह बढिया संग्रह .. बहुत मेहनत से तैयार हुई होगी .. धन्यवाद !!
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाओं का बहुत ही अच्छा संकलन किया आपने.....
ReplyDeleteधन्यवाद्!!
एक से बढ़कर एक सुंदर रचना..आभार गोदियाल जी बेहतरीन प्रस्तुति को एक जगह पेश करने के लिए..
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी यह पोस्ट....इतने सारे लोगों से आपने मिलवा दिया....
ReplyDeleteबढिया कविताओं को संग्रहित करके इसे एक संग्रहणीय अंक बना दिया है। बधाई स्वीकारें॥
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब अंक है ये. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
वाह नायाब संकलन
ReplyDeleteयूँ तो बेवजह सुर्ख़ियों में आने का कभी शौक नहीं रहा, मगर जैसे कि शायद आप लोग भी जानते होंगे कि मेरे एक लेख की वजह से ब्लॉगजगत पर आजकल मेरी टी.आर.पी काफी ऊपर जाकर बैठी हुई है
ReplyDeleteअजी ऒर भी ऊपर जाये उस से भी ज्यादा,
आज आप ने सच मै बहुत से मोती पिरो कर यह बहुत सुंदर माला तेयार की है.
धन्यवाद
पूरी पूरी से ज्यादा मेहनत दिखी क्यूँकि हम तक आ गये..बहुत जबरदस्त सार्थक प्रयास!!
ReplyDeleteइतनी शानदार गजलें एक साथ पाकर दिल बाग बाग हो गया
ReplyDeleteक्या बात है!
ReplyDeleteकौन कहता है ब्लॉग पर कचरा छपता है?
Ek achcha collection hi apne aap main uplabdhi hai. aap TRP main sarvottam aur hamare liye bhi sarvottam hai bhai.....
ReplyDeleteपूरी पूरी से ज्यादा मेहनत दिखी क्यूँकि हम तक आ गये..बहुत जबरदस्त सार्थक प्रयास!!
ReplyDeleteबेहतरीन रचनाओं का बहुत ही अच्छा संकलन किया आपने.....
ReplyDeleteधन्यवाद्!!