आज जब ग्लोबल वार्मिंग से सम्बंधित एक लेख विस्फोट पर पढ़ा, जिसमे की आर एस एस प्रमुख श्री विष्णु भागवत के विचारों को उल्लेखित किया गया था, तो मेरे मन में भी एक ख्याल आया, जिसे यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ ;
मेरा यह मानना है कि धर्म और कर्म एक सिक्के के दो पहलू है, और धर्म का आशय अच्छे कर्म करते हुए उच्च मर्यादाओं मे रहने से है। अगर आप भी इस बात मे विश्वास करते है और साथ ही भगवान पर भरोसा रखने वालों मे से है, तो आप लोगों को नही लगता कि इस सुपर साइंस के युग मे भी हम लोग कैसे यह सोच लेते है कि एक अकेले भगवान, चाहे वे कितने ही सर्वशक्तिमान क्यों न हो, इस पूरे विश्व को अपने ही बलबूते पर अकेले सम्भाल रहे होंगे? वह खुद ही इस धरा पर विचरण करने वाले हर एक प्राणी पर नजर रखकर उसका लेखा-जोखा करते होंगे ? वह भी तब, जब यह पूरी दुनियां ही एक से बढ्कर एक पापियों से लबालव हो। इम्पोशिबल सी बात लगती है । अगर मेरी बात सत्य है तो कल्पना कीजिये कि वे पूर्वज कितने ज्ञानी रहे होंगे, जिन्होने यह पता लगाया था कि इस दुनियां के सुचारु संचालन मे भगवान की मदद हेतु तेतीस करोड देवी-देवता भी है।
य़ों तो मै खुद भी बहुत ज्यादा धार्मिक आस्थाओं मे विस्वास रखने वाला इन्सान नही हूं, तन्त्र-मंत्र पर तो बिल्कुल भी नही। फिर भी यह जो बात मैं कह रहा हूं एवं कहने जा रहा हूं, यह मेरी एक कल्पना और ख्याल मात्र है , और उसके समर्थन मे ठोस प्रमाण मेरे पास भी मौजूद नही है। किन्तु, मेरा यह मानना है कि हमारे इस देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की ही भांति “ऊपर वाले” के यहां भी शीर्ष स्तर पर निसन्देह भगवान नाम के एक ही सुप्रिमो या फिर प्रधानमंत्री बैठे होंगे, मगर राज-काज को सुचारु ढंग से चलाने के लिये साथ मे बहुत सारे मंत्रीगण और व्योरोक्रेट्स भी होंगे । यहां पर जब यह बात उठी है तो यह भी कहुंगा कि बहुत सम्भव है कि जब कभी इन्हे किसी खास वजह से धरातल पर अपना भौतिक रूप धारण कर उतरना पडा होगा तो लोगो ने इन्हें देख, इन्हे एलियन अथवा दूसरे ग्रह का प्राणि कहा।
अक्सर आपने लोगों को यह कहते सुना होगा कि समय आने पर कुदरत अपना हिसाब चुकता कर देती है। जी हां, जो लोग यह बात कहते हैं, बहुत सम्भव है कि वे एकदम सही कहते हो। तो क्या है यह कुदरत? और इस कुदरत के पास वह कौन सी ऐंसी दिव्य शक्तियां हैं, जिनके बलबूते वह यह निर्धारित करती है कि किसने क्या पुण्य किये और किसने क्या पाप? जिस स्वर्ग लोक की परिकल्पना अथवा यथार्थ अविवादित रूप मे इस धरा पर मौजूद हर धर्म और उसके ग्रन्थो मे मिलता है, वह स्वर्ग है कहां ? आमतौर पर यह माना जाता है कि स्वर्ग इस अलौकिक संसार के ऊपर विध्यमान है, मगर कितने ऊपर है, यह कोई नही जानता। मेरा यह मानना है कि अगर स्वर्ग इस जग के ऊपर है, तो निश्चित रूप से इसकी सीमायें इन्सान के सिर के ऊपर से शुरु हो जाती होगी, और इस नैंसर्गिक संसार के प्राणियों की नजरों की पकड से परे, स्वर्ग की सीमा पर तैनात वे असंख्य आत्मायें और देवी-देवता गण ही वे शक्तियां होगी, जो पल-पल हमारी गतिविधियों पर नजर रखे है, जो तमाम इन्सानो के कर्मो का लेखा-जोखा तैयार कर उनपर कार्यवाही का उचित मार्ग प्रशस्थ करते होंगे । जो अच्छे और बुरे कर्म बहुत संगीन किस्म के नही होते और कार्यवाही के लिये जो इनके अधिकार क्षेत्र मे आते है, उनपर तुरन्त ही कार्यवाही सम्भव होती है , लेकिन बहुत पेचिदा और संगीन मामलों मे ऊपरी कमान से उचित कार्यवाही की संस्तुति की जाती होगी। अगर आपने कभी गौर किया हो, तो शायद यही वजह होगी कि कुछ कर्मो का फल तुरंत नजर आता है, जबकि खास किस्म के कर्मो के केस मे अक्सर इन्तजार करना पड्ता है।
यहां पर दो मजेदार बिन्दु उभरकर आते है, पहला बिन्दु यह कि भगवान मे आस्था रखने वाले बुजुर्ग लोगो के मुह से अक्सर यह बाते निकलती थी कि पुराने जमाने मे भगवान भी अपना निर्णय तुरन्त दे देते थे, मगर अब तो अन्धेर हो गई। इस बिन्दु पर मैं अपनी बात इस ढंग से पेश करुंगा कि हमें यह भी याद रखना पडेगा कि तब और अब मे आवादी मे कितना विशाल अन्तर आ चुका है, अत: कार्य बढ जाने की वजह से फैसलों मे देरी लाजमी है। हां, इतना जरूर मुझे विश्वास है कि वहां पर कोई भ्रष्टाचार और पक्षपात नही होता होगा, और न ही ऐक्शन लेने हेतु भगवान को किसी मैडम-वैडम की हरी झंडी का इन्तजार करना पड्ता होगा। दूसरा जो मजेदार बिन्दु है वह यह कि हिन्दू धर्म मे देवी-देवताओं को पूजने, उन्हे मनाने और विविध ढंग से उन्हें खुश करने की सदियों पुरानी परम्परा । इस बारे मे मैं यह कहुंगा कि अगर आप आज के इस भौतिकतावादी युग की जीवन शैली मे भ्रष्ठ तरीके अपनाने, घूस देने और दूसरी तरफ़ इन देवी-देवताओं को खुश करने की पुरानी परम्परा का तुलनात्मक अध्ययन करें, तो दो बाते यहां भी सामने आती है, एक बात यह कि तुच्छ और कमजोर किस्म के इन्सानों का अपना स्वार्थ, और दूसरी बात धर्म और अध्यात्म के बल पर उच्च कर्मो वाले इन्सान की स्वर्ग पाने की इच्छा । यहां हम यह मानकर चलते है कि तुच्छ और कमजोर किस्म का इन्सान दो भिन्न तरह के इन्सान है, तुच्छ इन्सान वह है, जो साम-दाम-दण्ड-भेद की नीति अपनाकर क्षणिक सुख प्राप्त करता है , जबकि कमजोर इन्सान भयवश और अपनी मजबूरियों के चलते न चाहते हुए भी, जिसतरह किसी सरकारी कर्मचारी को अपना काम निकालने के लिये घूस देता है, ठीक वही बात इन्सानो द्वारा देवी-देवताओं के पूजन पर भी लागू होती है। दूसरी तरफ़ जो उच्च कर्मो को करने वाला इन्सान है, वह क्षणिक सुखों की चिन्ता किये बगैर सिर्फ़ यह सुनिश्चित करता है कि विकटतम परिस्थितियों मे भी वह अपने उच्च कर्मो को बनाये रखेगा, बिना किसी चाहत अथवा स्वार्थ के। वह देवी-देवताओ का पूजन तथा भग्वान का स्मरण भी इसी आधार पर करता है। और जिसका प्रतिफल उसे स्वत: मिलता होगा, इस दुनियां से मुक्ति के बाद, भगवान के दरवार मे एक मंत्री अथवा ब्युरोक्रेट्स के रूप मे उसकी नियुक्ति के तौर पर।
और बस, अब यहीं से शुरु होती है चिन्ता ग्लोबल वार्मिग की। उसपर अचानक हो-हल्ला भी इतना कि मानो अगली गर्मियों मे ही ग्लेशियरों के पिघलने से यह सारा जग डूब जायेगा। सरकारी और संस्थागत खर्च पर कोपेनहेगेन घूम आये, दो चार बडी-बडी बातें कर डाली, दो चार नारे, बैनर उठाकर कोपेनहेगेन की सडकों पर घूम कर लगा लिये, बस हो गई पृथ्वी ठण्डी । और ये ज्यादातर वही लोग है, जिनके पुरखों ने इस वार्मिग को बढाने मे खास रोल अदा किया और जिन्हें आज ग्लोबल वार्मिंग की चिन्ता सता रही है । क्योंकि इन्हे मालूम है कि धरा को इस ग्लोबल वार्मिंग की वजह से अपना बिकराल रूप दिखाने मे अभी सौ साल लगने है और साथ ही यह भी मालूम है कि उसका अगली बार भी इसी संसार मे नम्बर लगना पक्का है, इसलिये चिन्ता मे दुबले हुए जा रहे है। तो अब इस सारी विषय-वस्तु का निचोड इसतरह से प्रस्तुत करना चांहुगा;
यह सच है कि भगवान है, और यह भी सच है कि उनका राजकाज सम्भालने हेतु करोडो देवी-देवता और असंख्य ब्योरोक्रेट्स भी मौजूद है । वहां इन्सान के हर अच्छे- बुरे कर्म का लेखा-जोखा भी होता है इमानदारी के साथ, और उसका प्रतिफल भी दिया जाता है । यह पृथ्वी नित गर्म भी हो रही है, आने वाले समय मे जलवायु परिवर्तन की वजह से इन्सानो और धरा के अन्य जीवो के समक्ष अनेकों जटिल समस्यायें आयेंगी, और जैसा कि युगो से होता चला आया है , प्राणि मात्र शनै: शनै: इन प्रभावो के अनुरूप अपने को ढाल लेगा। लेकिन सबसे भयावह होगा वह पल, जब बर्षो बाद अचानक धरा को समुद्र अपनी आगोश मे समेट लेगा । हम जो गलतियां अतीत मे कर चुके, उसका फल भी निश्चित है, अत: मेरे हिसाब से इससे बचने का बस एक ही उपाय है कि हम अपने कर्म इतने उच्च रखे कि अगले जन्म मे हमारा नम्बर स्वर्ग का आये, वापस इस धरा पर लौट आने का नही। फिर तो नो फिकर, नो टेंशन, नो ग्लोबल-व्लोबल वार्मिंग, बस मौजा ही मौजा। देर किस बात की ? बस, आज ही से शुरु हो जाये ! इस मुहीम मे मेरी भी आपको हार्दिक शुभकामनायें !
मेरा यह मानना है कि धर्म और कर्म एक सिक्के के दो पहलू है, और धर्म का आशय अच्छे कर्म करते हुए उच्च मर्यादाओं मे रहने से है। अगर आप भी इस बात मे विश्वास करते है और साथ ही भगवान पर भरोसा रखने वालों मे से है, तो आप लोगों को नही लगता कि इस सुपर साइंस के युग मे भी हम लोग कैसे यह सोच लेते है कि एक अकेले भगवान, चाहे वे कितने ही सर्वशक्तिमान क्यों न हो, इस पूरे विश्व को अपने ही बलबूते पर अकेले सम्भाल रहे होंगे? वह खुद ही इस धरा पर विचरण करने वाले हर एक प्राणी पर नजर रखकर उसका लेखा-जोखा करते होंगे ? वह भी तब, जब यह पूरी दुनियां ही एक से बढ्कर एक पापियों से लबालव हो। इम्पोशिबल सी बात लगती है । अगर मेरी बात सत्य है तो कल्पना कीजिये कि वे पूर्वज कितने ज्ञानी रहे होंगे, जिन्होने यह पता लगाया था कि इस दुनियां के सुचारु संचालन मे भगवान की मदद हेतु तेतीस करोड देवी-देवता भी है।
य़ों तो मै खुद भी बहुत ज्यादा धार्मिक आस्थाओं मे विस्वास रखने वाला इन्सान नही हूं, तन्त्र-मंत्र पर तो बिल्कुल भी नही। फिर भी यह जो बात मैं कह रहा हूं एवं कहने जा रहा हूं, यह मेरी एक कल्पना और ख्याल मात्र है , और उसके समर्थन मे ठोस प्रमाण मेरे पास भी मौजूद नही है। किन्तु, मेरा यह मानना है कि हमारे इस देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की ही भांति “ऊपर वाले” के यहां भी शीर्ष स्तर पर निसन्देह भगवान नाम के एक ही सुप्रिमो या फिर प्रधानमंत्री बैठे होंगे, मगर राज-काज को सुचारु ढंग से चलाने के लिये साथ मे बहुत सारे मंत्रीगण और व्योरोक्रेट्स भी होंगे । यहां पर जब यह बात उठी है तो यह भी कहुंगा कि बहुत सम्भव है कि जब कभी इन्हे किसी खास वजह से धरातल पर अपना भौतिक रूप धारण कर उतरना पडा होगा तो लोगो ने इन्हें देख, इन्हे एलियन अथवा दूसरे ग्रह का प्राणि कहा।
अक्सर आपने लोगों को यह कहते सुना होगा कि समय आने पर कुदरत अपना हिसाब चुकता कर देती है। जी हां, जो लोग यह बात कहते हैं, बहुत सम्भव है कि वे एकदम सही कहते हो। तो क्या है यह कुदरत? और इस कुदरत के पास वह कौन सी ऐंसी दिव्य शक्तियां हैं, जिनके बलबूते वह यह निर्धारित करती है कि किसने क्या पुण्य किये और किसने क्या पाप? जिस स्वर्ग लोक की परिकल्पना अथवा यथार्थ अविवादित रूप मे इस धरा पर मौजूद हर धर्म और उसके ग्रन्थो मे मिलता है, वह स्वर्ग है कहां ? आमतौर पर यह माना जाता है कि स्वर्ग इस अलौकिक संसार के ऊपर विध्यमान है, मगर कितने ऊपर है, यह कोई नही जानता। मेरा यह मानना है कि अगर स्वर्ग इस जग के ऊपर है, तो निश्चित रूप से इसकी सीमायें इन्सान के सिर के ऊपर से शुरु हो जाती होगी, और इस नैंसर्गिक संसार के प्राणियों की नजरों की पकड से परे, स्वर्ग की सीमा पर तैनात वे असंख्य आत्मायें और देवी-देवता गण ही वे शक्तियां होगी, जो पल-पल हमारी गतिविधियों पर नजर रखे है, जो तमाम इन्सानो के कर्मो का लेखा-जोखा तैयार कर उनपर कार्यवाही का उचित मार्ग प्रशस्थ करते होंगे । जो अच्छे और बुरे कर्म बहुत संगीन किस्म के नही होते और कार्यवाही के लिये जो इनके अधिकार क्षेत्र मे आते है, उनपर तुरन्त ही कार्यवाही सम्भव होती है , लेकिन बहुत पेचिदा और संगीन मामलों मे ऊपरी कमान से उचित कार्यवाही की संस्तुति की जाती होगी। अगर आपने कभी गौर किया हो, तो शायद यही वजह होगी कि कुछ कर्मो का फल तुरंत नजर आता है, जबकि खास किस्म के कर्मो के केस मे अक्सर इन्तजार करना पड्ता है।
यहां पर दो मजेदार बिन्दु उभरकर आते है, पहला बिन्दु यह कि भगवान मे आस्था रखने वाले बुजुर्ग लोगो के मुह से अक्सर यह बाते निकलती थी कि पुराने जमाने मे भगवान भी अपना निर्णय तुरन्त दे देते थे, मगर अब तो अन्धेर हो गई। इस बिन्दु पर मैं अपनी बात इस ढंग से पेश करुंगा कि हमें यह भी याद रखना पडेगा कि तब और अब मे आवादी मे कितना विशाल अन्तर आ चुका है, अत: कार्य बढ जाने की वजह से फैसलों मे देरी लाजमी है। हां, इतना जरूर मुझे विश्वास है कि वहां पर कोई भ्रष्टाचार और पक्षपात नही होता होगा, और न ही ऐक्शन लेने हेतु भगवान को किसी मैडम-वैडम की हरी झंडी का इन्तजार करना पड्ता होगा। दूसरा जो मजेदार बिन्दु है वह यह कि हिन्दू धर्म मे देवी-देवताओं को पूजने, उन्हे मनाने और विविध ढंग से उन्हें खुश करने की सदियों पुरानी परम्परा । इस बारे मे मैं यह कहुंगा कि अगर आप आज के इस भौतिकतावादी युग की जीवन शैली मे भ्रष्ठ तरीके अपनाने, घूस देने और दूसरी तरफ़ इन देवी-देवताओं को खुश करने की पुरानी परम्परा का तुलनात्मक अध्ययन करें, तो दो बाते यहां भी सामने आती है, एक बात यह कि तुच्छ और कमजोर किस्म के इन्सानों का अपना स्वार्थ, और दूसरी बात धर्म और अध्यात्म के बल पर उच्च कर्मो वाले इन्सान की स्वर्ग पाने की इच्छा । यहां हम यह मानकर चलते है कि तुच्छ और कमजोर किस्म का इन्सान दो भिन्न तरह के इन्सान है, तुच्छ इन्सान वह है, जो साम-दाम-दण्ड-भेद की नीति अपनाकर क्षणिक सुख प्राप्त करता है , जबकि कमजोर इन्सान भयवश और अपनी मजबूरियों के चलते न चाहते हुए भी, जिसतरह किसी सरकारी कर्मचारी को अपना काम निकालने के लिये घूस देता है, ठीक वही बात इन्सानो द्वारा देवी-देवताओं के पूजन पर भी लागू होती है। दूसरी तरफ़ जो उच्च कर्मो को करने वाला इन्सान है, वह क्षणिक सुखों की चिन्ता किये बगैर सिर्फ़ यह सुनिश्चित करता है कि विकटतम परिस्थितियों मे भी वह अपने उच्च कर्मो को बनाये रखेगा, बिना किसी चाहत अथवा स्वार्थ के। वह देवी-देवताओ का पूजन तथा भग्वान का स्मरण भी इसी आधार पर करता है। और जिसका प्रतिफल उसे स्वत: मिलता होगा, इस दुनियां से मुक्ति के बाद, भगवान के दरवार मे एक मंत्री अथवा ब्युरोक्रेट्स के रूप मे उसकी नियुक्ति के तौर पर।
और बस, अब यहीं से शुरु होती है चिन्ता ग्लोबल वार्मिग की। उसपर अचानक हो-हल्ला भी इतना कि मानो अगली गर्मियों मे ही ग्लेशियरों के पिघलने से यह सारा जग डूब जायेगा। सरकारी और संस्थागत खर्च पर कोपेनहेगेन घूम आये, दो चार बडी-बडी बातें कर डाली, दो चार नारे, बैनर उठाकर कोपेनहेगेन की सडकों पर घूम कर लगा लिये, बस हो गई पृथ्वी ठण्डी । और ये ज्यादातर वही लोग है, जिनके पुरखों ने इस वार्मिग को बढाने मे खास रोल अदा किया और जिन्हें आज ग्लोबल वार्मिंग की चिन्ता सता रही है । क्योंकि इन्हे मालूम है कि धरा को इस ग्लोबल वार्मिंग की वजह से अपना बिकराल रूप दिखाने मे अभी सौ साल लगने है और साथ ही यह भी मालूम है कि उसका अगली बार भी इसी संसार मे नम्बर लगना पक्का है, इसलिये चिन्ता मे दुबले हुए जा रहे है। तो अब इस सारी विषय-वस्तु का निचोड इसतरह से प्रस्तुत करना चांहुगा;
यह सच है कि भगवान है, और यह भी सच है कि उनका राजकाज सम्भालने हेतु करोडो देवी-देवता और असंख्य ब्योरोक्रेट्स भी मौजूद है । वहां इन्सान के हर अच्छे- बुरे कर्म का लेखा-जोखा भी होता है इमानदारी के साथ, और उसका प्रतिफल भी दिया जाता है । यह पृथ्वी नित गर्म भी हो रही है, आने वाले समय मे जलवायु परिवर्तन की वजह से इन्सानो और धरा के अन्य जीवो के समक्ष अनेकों जटिल समस्यायें आयेंगी, और जैसा कि युगो से होता चला आया है , प्राणि मात्र शनै: शनै: इन प्रभावो के अनुरूप अपने को ढाल लेगा। लेकिन सबसे भयावह होगा वह पल, जब बर्षो बाद अचानक धरा को समुद्र अपनी आगोश मे समेट लेगा । हम जो गलतियां अतीत मे कर चुके, उसका फल भी निश्चित है, अत: मेरे हिसाब से इससे बचने का बस एक ही उपाय है कि हम अपने कर्म इतने उच्च रखे कि अगले जन्म मे हमारा नम्बर स्वर्ग का आये, वापस इस धरा पर लौट आने का नही। फिर तो नो फिकर, नो टेंशन, नो ग्लोबल-व्लोबल वार्मिंग, बस मौजा ही मौजा। देर किस बात की ? बस, आज ही से शुरु हो जाये ! इस मुहीम मे मेरी भी आपको हार्दिक शुभकामनायें !
इस महत्वपूर्ण विषय पर आपके विचारों ने सोचने पर मजबूर कर दिया।
ReplyDelete------------------
ये तो बहुत ही आसान पहेली है?
धरती का हर बाशिंदा महफ़ूज़ रहे, खुशहाल रहे।
प्रत्येक बात की एक सीमा होती है। मानव ने प्रकृति के साथ सीमा से अधिक खिलवाड़ किया है उसका फल तो मिलना ही है।
ReplyDeleteगंभीर विषय को रोचक बनाकर प्रस्तुत करना बहुत अच्छा, लगा सोचना पड़ेगा.
ReplyDeleteबहुत सार्गर्भिर आलेख है बडा जरूर है मगर रोचक होने से पढा जल्दी गया सच मे सब के लिये मानव ही जिम्मेदार है खूब चिन्तन किया है आपने इसे लिखने के लिये । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत पेचीदा मामला है। इसलिए बस इतना ही समझ में आता है की कर्म अच्छे करते रहो, फल अपने आप अच्छा मिल ही जाएगा। अभी नही तो थोड़ी देर बाद।
ReplyDeleteग्लोबल वार्मिंग भी तो इंसान के बुरे कर्मो का ही फल है।
हम जो पाप कर रहे हैं, क्या उसी का नतीजा नहीं है ग्लोबल वार्मिंग? जिस निर्दयता से प्रकृति का संहार कर रहे हैं, उसकी सज़ा तो ऊपरवाला तो देगा ही ॥
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख लिखा आपने
ReplyDeleteबहुत -२ आभार
अपनी धरती का ख़्याल हमें ही रखना है इसलिए इन चिंताओं को गंभीरतापूर्वक लेना होगा।
ReplyDelete"कर्मण्यवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्"
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण विषय पर रचना अच्छी लगी ।
ReplyDeleteअच्छा चिंतन किया है, जरा लम्बा हो गया. ऐसे ही खयाल बहुत बार हमें भी आते हैं, मगर अनिश्वरवादी है.
ReplyDeleteप्रकृति संतुलन साध लेती है. बन कर या बिगाड़ कर. आदमी ने जो छेड़खानी की है उसका हिसाब भी चुकता करेगी ही.
जैसी करनी वैसी भरनी ......... समय इस बात को साबित कर देगा ...... अभी तो बस देखते जाइए .......
ReplyDeleteमनुष्य जिस अंधी प्रगति की राह पे चल पडा है ... उसका खामियाजा तो आज नहीं तो कल भुगतना ही पडेगा .....
ReplyDeleteबिलकुल सार्थक विवेचन ...
The Real Management of ancient and Modern Theory. Very very deep studies bhai....
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