आज जहां एक ओर देश की अस्सी प्रतिशत से अधिक आवादी महगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से त्रस्त है, वहीं दूसरी ओर सत्ता का मजा लूट रहे लोग, सार्वजनिक धन को दोनो हाथों से समेट लेने पर आम्दा है। विकास के नाम पर जहां एक ओर सार्वजनिक धन, जो कि जनता से ही भिन्न-भिन्न टै़क्स के रूप मे वसूला जाता है, को कुछ लोगो के फ़ायदे के लिये दोनो हाथो से लुटाया जा रहा है। पहले जानबूझकर धन और संसाधनो की कमी का रोना रोकर या फिर किसी और बहाने से, किसी भी परियोजना को अधर मे लटका दिया जाता है, और फिर भ्रष्ठ तरीके अपनाने के लिये समय सीमा बांध दी जाती है। जबाबदेही नाम की तो कोई चीज देश मे रह ही नही गई है। सरकार, लोगो को लूटने के नित नये तरीके इजाद करती रहती है । यहाँ टैक्स, वहाँ टैक्स। महंगाई की इस मार में अगर कोई व्यक्ति परिवार के साथ यात्रा कर रहा है तो उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में सड़क छाप ढाबे भी १३.५ % वेट वसूल रहे है ! यानी परिवार संग ४०० रूपये का खाना ( जिसमे कि कुछ भी नहीं मिलता ) आपने इन ढाबो में खाया तो करीब ५५ रूपये सरकार के खाते में टैक्स भी भरो । जहां एक तरफ २००५ पांच में पिछले वित् मंत्री द्वारा वेतन भोगी कर्मचारियों के जिन भत्तो को कर्मचारी की आय से अलग कर दिया गया था, उन्हें फिर से नए वितमंत्री ने पुन: पुरानी बोतल में नई शराब की माफिक परोस दिया, वह भी अप्रैल २००९ से । और तो और जो कर्मचारी टैक्स के दायरे में नहीं आते, उन्हें ई एस आई नामक झुनझुने के तहत १५०००/- रूपये मासिक वेतन तक प्राप्त करने वाले कर्मचारी को इस दायरे में लाकर कायदे से ७५०/- ( पांच प्रतिशत, और सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं ) रूपये प्रतिमाह का उस पर भी एक टैक्स के समान बोझ डाल दिया है। दूसरी तरफ जो मुख्य मुद्दे है जैसे रेल घोटाला, खाद्यान घोटाला इत्यादि उन पर कोई न तो चर्चा को ही तैयार दीखता है और न कोई जबाबदेह । कितनी हास्यास्पद बात है कि एक ही प्रधान मंत्री के दो कार्यकालों में उनके मंत्रीमंडल के दो रेल मंत्रियों में से कोई एक देश को ५० हजार करोड से अधिक के आंकड़ो के हेरफेर से गुमराह कर रहा है, और हमारे प्रधान मंत्री जी अपनी बेदाग़ सवच्छ छवि बनाए बैठे है, मानो उनकी इसमें अपनी कोई जबाबदेही ही नहीं ।
उपरोक्त बातो पर गौर करते हुए मेरा यह मानना है कि कौंग्रेस और अन्य तथाकथित सेकुलर और साम्प्रदायिक राजनैतिक दल हमेशा इसी तथ्य को आधार मानकर राजनीति करते है कि वोटर को कभी भी भरपेट मत खाने दो, और रोटी कपड़ा और मकान में ही उलझाये रखो । ताकि वह इनके कामकाज पर उंगली उठाने की फुरसत भी न प्राप्त कर सके । दूसरी तरफ जिस राजनैतिक दल को ऐसे वक्त पर एक जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिये थी, वह अपनी गैर -जिम्मेदाराना हरकतों से खुद ही एक हास्य का पात्र बने बैठे है। समाज के पढ़े लिखे एक विशिष्ठ वर्ग की बीजेपी से उम्मीदे थी कि ये अपनी अलग छवि बनाए रखते हुए, इस देश को सही प्रतिनिधित्व प्रदान करेंगे, मगर वक्त आने पर इन्होने भी लोगो को निराश करने और अपने मानसिक दिवालियेपन का नमूना पेश करने में कोई कसार बाकी नहीं छोडी ! अभी ताजा उदाहरण झारखंड है, जहां इन्होने सत्ता की भूख में खुद ही अपनी पोल खोल दी।
हमारे देश की राजनीति आज जिस अभद्र मोड़ पर पहुँच चुकी है, जरुरत है उसमे मूलभूत राजनैतिक सुधारो की, अन्यथा आने वाले वक्त में देश को इसकी भारी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है। आज देश की राजनीति में सबसे पहली प्राथमिकता है , कौंग्रेस का कोई मजबूत विकल्प ढूंढना । और यह विकल्प वर्तमान में मौजूद राजनेतावो और राजनैतिक दलों में से नहीं ढूंडा जा सकता, क्योंकि एक अगर सांपनाथ है तो दूसरा नागनाथ । जो लोग आज वास्तव में देश की मौजूदा राजनैतिक स्थिति से चिंतित है और इनमे मूल भूत सुधार लाने के लिए अच्छे लोगो को राजनीति में प्रतिनिधित्व दिला पाने में सक्षम है, उन्हें गंभीरता से इस बारे में सोचना होगा और एक नया राजनैतिक दल कौंग्रेस के विकल्प के रूप में खडा करना होगा । और यह तभी संभव है जब हम मिलजुलकर यह सोचना बंद करे कि बीजेपी, कौंग्रेस का एक मजबूत विकल्प हो सकती है। क्योंकि बीजेपी अभी तक कहीं भी इस मुद्दे पर खरी नहीं उतरी है। और जब तक यह बीजेपी वाला मोह शिक्षित समाज में रहेगा, हम कौंग्रेस का कोई मजबूत विकल्प नहीं ढूंढ सकते ।
उपरोक्त बातो पर गौर करते हुए मेरा यह मानना है कि कौंग्रेस और अन्य तथाकथित सेकुलर और साम्प्रदायिक राजनैतिक दल हमेशा इसी तथ्य को आधार मानकर राजनीति करते है कि वोटर को कभी भी भरपेट मत खाने दो, और रोटी कपड़ा और मकान में ही उलझाये रखो । ताकि वह इनके कामकाज पर उंगली उठाने की फुरसत भी न प्राप्त कर सके । दूसरी तरफ जिस राजनैतिक दल को ऐसे वक्त पर एक जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिये थी, वह अपनी गैर -जिम्मेदाराना हरकतों से खुद ही एक हास्य का पात्र बने बैठे है। समाज के पढ़े लिखे एक विशिष्ठ वर्ग की बीजेपी से उम्मीदे थी कि ये अपनी अलग छवि बनाए रखते हुए, इस देश को सही प्रतिनिधित्व प्रदान करेंगे, मगर वक्त आने पर इन्होने भी लोगो को निराश करने और अपने मानसिक दिवालियेपन का नमूना पेश करने में कोई कसार बाकी नहीं छोडी ! अभी ताजा उदाहरण झारखंड है, जहां इन्होने सत्ता की भूख में खुद ही अपनी पोल खोल दी।
हमारे देश की राजनीति आज जिस अभद्र मोड़ पर पहुँच चुकी है, जरुरत है उसमे मूलभूत राजनैतिक सुधारो की, अन्यथा आने वाले वक्त में देश को इसकी भारी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है। आज देश की राजनीति में सबसे पहली प्राथमिकता है , कौंग्रेस का कोई मजबूत विकल्प ढूंढना । और यह विकल्प वर्तमान में मौजूद राजनेतावो और राजनैतिक दलों में से नहीं ढूंडा जा सकता, क्योंकि एक अगर सांपनाथ है तो दूसरा नागनाथ । जो लोग आज वास्तव में देश की मौजूदा राजनैतिक स्थिति से चिंतित है और इनमे मूल भूत सुधार लाने के लिए अच्छे लोगो को राजनीति में प्रतिनिधित्व दिला पाने में सक्षम है, उन्हें गंभीरता से इस बारे में सोचना होगा और एक नया राजनैतिक दल कौंग्रेस के विकल्प के रूप में खडा करना होगा । और यह तभी संभव है जब हम मिलजुलकर यह सोचना बंद करे कि बीजेपी, कौंग्रेस का एक मजबूत विकल्प हो सकती है। क्योंकि बीजेपी अभी तक कहीं भी इस मुद्दे पर खरी नहीं उतरी है। और जब तक यह बीजेपी वाला मोह शिक्षित समाज में रहेगा, हम कौंग्रेस का कोई मजबूत विकल्प नहीं ढूंढ सकते ।
आपका चिंतन सही है. विपक्ष की भूमिका निभाने में बीजेपी नाकाम रही है.
ReplyDeleteविडम्बना तो यह है कि नया विकल्प भी आने के बाद नागनाथ या साँपनाथ में से एक बन जायेगा।
ReplyDeleteक्योंकि बीजेपी अभी तक कहीं भी इस मुद्दे पर खरी नहीं उतरी है। और जब तक यह बीजेपी वाला मोह शिक्षित समाज में रहेगा, हम कौंग्रेस का कोई मजबूत विकल्प नहीं ढूंढ सकते ।
ReplyDeleteआपका चिंतन सही है..... कांग्रेस का विकल्प.... सिर्फ... यूथ में चेतना ला कर ही बनाया जा सकता है.... यूथ...को भौतिकतावाद से बाहर निकल कर देश के बारे में सोचना होगा.....
आपका चिंतन आपके विचारों से सहमत हूँ मैं .... बी जे पी का सत्ता मोह तो लगता है कॉंग्रेस से भी आगे जा कर ख़त्म होगा ..... पर कोई विकल्प नज़र नही आता ......... नव वर्ष की आपको बहुत बहुत शुभकामनाएँ ...........
ReplyDeleteआंशिक रूप से सहमत…। झारखण्ड में इनकी मूर्खता ने तो निराश ही किया है… लेकिन यदि वहाँ भाजपा सोरेन को समर्थन न करती तो कांग्रेस कर देती या फ़िर से राष्ट्रपति शासन (यानी सोनिया शासन) लगा देती तो अपन क्या कर लेते? बैठे रहो विपक्ष में… जनता तो कभी स्पष्ट बहुमत देगी नहीं…। ताज़िन्दगी विपक्ष में ही गुज़ारने पर कार्यकर्ता भी निराश होते हैं, इसलिये राजनैतिक दल होने की मजबूरी ऐसे गन्दे काम करवाती है… फ़िर भी जो गलत है सो गलत है ही।
ReplyDeleteकांग्रेस का नया विकल्प रातोंरात बनने वाला नहीं है… हमें भाजपा को ही सुधारकर आगे बढ़ना होगा…। आप खुद ही बताईये… भाजपा के अलावा कौन सी विपक्षी पार्टी का प्रसार भारत में सबसे अधिक है? कोई नहीं… इसलिये यदि कांग्रेस बीमारी है तो भाजपा मजबूरी, आप जिसे चुनना चाहें…
जनता के पास क्या विकल्प है ? सरकार और विपक्ष दोनों नाकाम हैं ।
ReplyDeleteअगर चुनाव दो चरणों में हो -पहले चरण के बाद दूसरे चरण में सिर्फ़ पहले चरण की टाप दो पार्टियां चुनाव लड़ें , उन्हीं के बीच फैसला हो ,तो शायद सरकार बनाने के लिये सौदेबाजी न हो ।
बात तो आपकी बिल्कुल सही है , मैं भी समर्थन करता हूँ आपको ।
ReplyDeleteआप की बात से सहमत हूं, लेकिन जनता कब तक युही पिसती रहेगी, कोन डालेगा इस पर नकेल... जनता ही जब जागेगी, अपने हक जानेगी तभी बनेगी बात, युगो स्लाबिया, रुमानिया जेसे देशो मै भी यही हाल था, तब जनता ने देश के नेताओ को सडक पर ला कर घसीटा ओर मारा, क्या एक दिन भारत मै भी यह होगा? क्यो नही यह नेता पहले ही जाग जाते....
ReplyDeleteसही बात है, अब तो विकल्प का भी विकल्प ढूंढना पड़ेगा।
ReplyDeleteशुभकामनायें।
मैं सुरेश जी की बात से सहमत हूँ....
ReplyDeleteबेशक भाजपा ने हमें निराश किया है लेकिन और दूसरा कोई विकल्प नहीं है...भाजपा का rivival आवश्यक है...हमारा कदम उस दिश में होना चाहिए..
नया विकल्प तलाशना होगा। सही चिंतन।
ReplyDeleteहर शाख पर उल्लू बैठा है अन्ज़ाम ए गुलिस्ता क्या होगा .
ReplyDeleteमहंगाई को सिर्फ़ एक ही पार्टी न मुद्दा बनाया और उसे भुनाया वह है कांग्रेस
आपका चिन्तन सही है कि अब कोई नया विकल्प तलाशना होगा...लेकिन ये भी उतना ही सही है कि आज की तारीख में ऎसा कोई राजनीतिक दल दूर दूर तक भी नहीं दिखाई पडता जो कि भाजपा का विकल्प बन सके....
ReplyDeleteआंखों से साम्प्रदायिकता का चस्मा उतार कर देखने पर दूसरे विकल्प भी दिख सकते है अगर ईमानदारी हो तो सी पी एम की तरह बाहर से समर्थन भी दिया जा सकता था। क्यों सीपीएम का कोई सांसद सवाल पूछने सांसद निधि बेचने दल बदल करने कबूतरबाज़ी आदि किसी भी तरह के भ्रष्टाचार और दल बदल में नहीं फंसता। राजनीति में मजबूरियाँ होती हैन किंतु मजबूरियों को अपनी बॅईमानियों के लिय बहाना नहीं बनाया जाता। कुछ घंटे पहले राजीव प्रताप रूडी क्या कहते हैं और फिर पलट कर क्या कहने को विवश हो जाते हैं!
ReplyDeleteबी जे पी अपना सैधांतिक चरित्र खो चुकी है। उसे सत्ता का चस्का लगा हुआ है। जब तक नया खून इस गंदगी को साफ़ नहीं करता, तब तक इस पार्टी से कोई उम्मीद रखना बेमानी है।
ReplyDeleteइस विषय पर निराशा गहरी है ।
ReplyDeleteकिसने कहा BJP जनता की सेवा के लिए है, ये तो बनियो, पूंजीपति ,साहूकारो का दल है,जिन्हे कॉंग्रेस मैं खाने का मोक़ा नही मिला उन्होने धर्म की आड़ लेकर BJP बनाई. क़िस्मत से उनका यह सपना सफल हुआ,आज हाल ये है की सत्ता के मज़े लूट रहे है, अगर आप BJP को बुरा कहते है तो आप देशप्रेमी नही हैं. ये देशप्रेम का नया फंडा BJP की ही दैन है.
ReplyDeletebhai kis party ko vote de. Koi vikalp hi nahi hai. Congress to desh ke present halat ke liye jimmedar hai hi. Aur BJP par biswas nahi kar sakte. Ab kon bacha hai. Koi nahi bhai. better kisi party ko vote na dekar kisi nirdaliya ko vote diya jaye. jo sabse Uttam ho.....
ReplyDelete@ वीरेन्द्र जैन साहब - इस बात की क्या गारण्टी है कि यदि भाजपा बाहर से समर्थन देती, तब भी लोग उसकी आलोचना नहीं करते? तब भी अवश्य करते… दिक्कत ये है कि यदि कांग्रेस कुछ भी करे तो वह "लोकतन्त्र और धर्मनिरपेक्षता को बचाने" के लिये करती है, लेकिन यही काम भाजपा करे तो वह सत्ता-लोलुप है और भी न जाने क्या-क्या है…। इस बात का जवाब भी अभी तक नहीं मिला कि यदि भाजपा विपक्ष में बैठने का फ़ैसला कर भी लेती, तो सरकार कैसे बनती, कौन सी बनती, किनकी बनती और क्या वे लोग नहीं लूटते? अब "शठ" के साथ "शठ" जैसा व्यवहार हो गया और सत्ता की मलाई कांग्रेस को नहीं मिली तो मीडिया भाजपा पर पिल पड़ा… वाह भई वाह…
ReplyDelete@ Sahespuriya - भाजपा को बनियों की पार्टी बताना छोड़ो, और कांग्रेस का कोई विकल्प बताओ भाई… भाजपा नहीं तो और कौन?
rajneete ki itnee buree halat kabhi nahee rahee. daraasal hamaree mansikata vyavsaaik ho gai hai. desh ko bhi ek kampanee kee tarah chlane kee mansikata banti ja rahi hai. aapka chintan achchha hai, prashna yahi hai ki kyaa is dish me hamara samaj gambhirata ke saath sochega bhi...?
ReplyDelete.
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Sahespuriya जी ने एकदम सही लिखा है, बी जे पी से आप कोई उम्मीद नहीं रख सकते, जो पार्टी बबूल जैसी विचारधारा के आधार पर बनी हो पल्लवित-पुष्पित होकर वह आम जैसा मीठा फल कैसे दे देगी भला ?
गोदियाल जी देश की परिस्थितियाँ सच मैं चिंताजनक है ... और इसके लिए सभी पार्टी जिम्मेदार है, मुख्यतया कांग्रेस पार्टी | आज महंगाई आसमान छु रही है और आम जनता कांग्रेस की जिताई जा रही है | अब क्या हम जनता इस परिस्थिति के लिए जिम्मेदार नहीं हैं ? ज्यादातर पढ़े लिखे , खाते - पीते लोग बोलते तो बहुत हैं पर अपना बहुमूल्य वोट तक नहीं देते ... जब अच्छे लोग अपने सामाजिक-राजनितिक सरोकारों को भूल कर अपने में ही व्यस्त (मैं , मेरी बीबी और मेरा बच्चा ) है तो क्या आशा करें?
ReplyDeleteजहाँ तक बीजेपी की बात है, धीरे धीरे वो भी दूसरी कांग्रेस ही बनती जा रही है और बनेगी भी क्यों नहीं सिद्धांत आधारित राजनीति को जनता अब पसंद नहीं करती | तभी तो एक सिद्धांत विहीन कांग्रेस पिछले ५० वर्षों से सासन करती आ रही है | कांग्रेस की अवसरवादिता किसी से छुपी नहीं है ... झारखण्ड को ही लीजिये कांग्रेस ने भ्रष्ट मधु कोड़ा , जे. ऍम. ऍम को समर्थन देकर खूब माल लुटा और चुनाव मैं भी ठीक-ठाक प्रदर्शन किया | इस बार भी कांग्रेस ने तो खूब जोर लगाया की सरकार कांग्रेस की ही बने पर भाजपा ने कांग्रेस का खेल बिगाड़ दिया | अब यही जे. ऍम. ऍम सरकार को समर्थन यदि कांग्रेस दे रही होती तो हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी, मीडिया - कांग्रेस, राहुल और मैडम जी की प्रसंशा के पुल बांध रहे होते .... | जब तक जनता सिद्धांत विहीन नेताओं को नहीं नकारेगी तब तक राजनितिक पार्टियों से सिद्धांत की आशा नहीं की जा सकती है |
जब तक अच्छे लोग आगे नहीं आयेंगे तब तक बुरे लोग अच्छे लोगों पे सासन करते रहेंगे और इस अवस्था मैं बुरे सासन के विकल्प के बारे मैं सोचना ही बेकार है |
बीजेपी ने खुद ही अपने लिये कांग्रेस की बी टीम बना दिया है. मोदी जैसे अगर दस-पांच लीडर भी बीजेपी में हो जाते तो अब तक कुछ और ही नजारा होता.
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