जीसस "क्रिस" यूं कब तलक तुम,
ज़रा भी टस से "मस" नहीं होगे,
गिरजे की वीरान चार दिवारी में ,
कब तक यूंही 'जस के तस' रहोगे ?
ये वो परोपकारी वक्त नहीं जब,
महापुरुष लटक जाया करते थे,
अमृत सारा का सारा औरों को बाँट ,
खुद जहर घटक जाया करते थे।
तुम सदियों से नीरव लटके खड़े हो,
खामोशी की भी हद होती है भई,
एक बार सूली से उतर कर तो देखो,
दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गई।
दौलत -सोहरत की चकाचौंध में,
सभ्यता निःवस्त्र घूम रही है,
संस्कृति बचाती लाज फिर रही,
बेशर्मी शिखर को चूम रही है।
भाई,भाई का दुश्मन बन बैठा है ,
बेटा, बाप को लूटने की ताक में है,
माँ कलयुग को कोसे जा रही है ,
बेटी घर से भागने की फिराक में है।
लोर्ड क्रिस,अब तुम उतर भी आओ,
पाप का अन्धेरा घनघोर छा गया है !
यह आपके लटकने का वक्त नहीं है ,
शठों को लटकाने का वक्त आ गया है।
Merry Christmas to all Blogger friends !
"दौलत और सोहरत की चकाचौंध में,
ReplyDeleteसभ्यता निःवस्त्र घूम रही है !
संस्कृति बचाती लाज फिर रही,
बेशर्मी शिखर को चूम रही है !!"
बहुत ही सुन्दर गोदियाल जी!
कटाक्ष करती हुई एक बढ़िया सामयिक पोस्ट है।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई गोदियाल जी।
भाई-भाई का दुश्मन बन बैठा,
बेटा, बाप को लूटने की फिराक में है!
माँ कलयुग को कोसे जा रही,
बेटी घर से भागने की ताक में है !!
संस्कृति बचाती लाज फिर रही,
ReplyDeleteबेशर्मी शिखर को चूम रही है !!
यथार्थ चित्रण -- भावपूर्ण
गौदियाल साहब ......... आपका HAPPY CHRISTMAS का अंदाज़ बहुत भाया .......... CHRIS KO बुला भी लिया और कटाक्ष भी कर दिया .........
ReplyDeleteदौलत और सोहरत की चकाचौंध में,
ReplyDeleteसभ्यता निःवस्त्र घूम रही है !
संस्कृति बचाती लाज फिर रही,
बेशर्मी शिखर को चूम रही है !!
aaj ke yatharth par badhiya kataksh.
लोर्ड क्रिस अब उतर भी आओ,
ReplyDeleteचहुँ ओर पाप का अन्धेरा घनघोर छा गया है !
यह आपके लटकने का वक्त नहीं,
अपितु पापियों को लटकाने का वक्त आ गया है !!
मुझे भी यही लगता है, गोदियाल जी।
सही समय पर सही रचना। बधाई।
Man ko chhoo jaane waalee abhivyakti.
ReplyDelete--------
अंग्रेज़ी का तिलिस्म तोड़ने की माया।
पुरुषों के श्रेष्ठता के 'जींस' से कैसे निपटे नारी?
गोदियाल साहब,
ReplyDeleteक्या लिखा है....
इस आह्वान पर कौन न दौड़ कर आएगा...
आज की रात ही यह ख्रिस कहीं न कहीं जनम जाएगा...!!
बहुत ही भावमयी कविता...ह्रदय को आंदोलित कर गई....
लोर्ड क्रिस अब उतर भी आओ,
ReplyDeleteचहुँ ओर पाप का अन्धेरा घनघोर छा गया है !
यह आपके लटकने का वक्त नहीं,
अपितु पापियों को लटकाने का वक्त आ गया है !!
क्रिसमस की बधाई!
कटाक्ष के साथ .... अच्छी लगी यह रचना....
ReplyDeleteमेरी क्रिसमस....
भाई-भाई का दुश्मन बन बैठा,
ReplyDeleteबेटा, बाप को लूटने की फिराक में है!
माँ कलयुग को कोसे जा रही,
बेटी घर से भागने की ताक में है !!
बिलकुल सच लिखा आप ने धन्यवाद
बेहद सटीक और सामयिक कविता. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
नैतिकता ने दम तोड़ दिया कबके,
ReplyDeleteमानवीय मूल्य सबका ह्रास हो गया !
झूट की देहरी जगमग-जगमग,
दबा सच का आँगन कहीं घास हो गया !!
आज के परिवेश की स्थिति को समेटती हुई बहुत बढ़िया कविता..गोदियाल जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति..
सब जगह तुम..........
ReplyDeleteमंदिर हो ,मस्जिद,चर्च या गुरुद्वार हो .
मानवता का दस्तावेज है आपका लेखन , सिर्फ कविता नहीं .
सब जगह तुम..........
ReplyDeleteमंदिर हो ,मस्जिद,चर्च या गुरुद्वार हो .
मानवता का दस्तावेज है आपका लेखन , सिर्फ कविता नहीं .
सलीब पर लटके क्रिश को वर्तमान जगत की निर्ममता की ओर इशारा करती कविता ...
ReplyDeleteआभार ...!!
सर्वत्र तुम्ही विद्यमान हो, वो चाहे
ReplyDeleteमंदिर हो,मस्जिद, चर्च अथवा गुरुद्वारे हो !
आ जाओ क्रिस, अब आ भी जाओ,
तुम इस जग के रखवारे हो ! !
बहुत सुन्दर सन्देश देती रचना बधाई
सार्थक प्रस्तुति
ReplyDeleteक्रिसमस पर एक अच्छी कविता...!
ReplyDeleteक्रिसमस की बधाइयाँ,गोदियाल साहब..!
गोदियाल जी.... नमस्कार.... कैसे हैं आप?
ReplyDeleteबहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं आपने?
ReplyDeleteghazab bhaai godiyaalji laazawaab!!!
ReplyDelete