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Monday, December 7, 2009
सवाल हुर्रियत की भूमिका का भी है !
ऐसा होता आया था, और इस बार भी हुआ कि सरकार और नरमपंथी हुर्रियत कांफ्रेंस के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाले हुर्रियत कांफ्रेंस के वरिष्ठ नेता फजल हक कुरैशी को गोलियों से छलनी कर दिया गया। ऐसा क्यों होता है कि जब-जब जम्मु-कश्मीर मे किसी राजनैतिक पहल की सम्भावना बनती है, मध्यस्थ को निशाना बना दिया जाता है? पहले भी जब गुप्त तरीके से इस तरह की बातचीत का ढोंग रचा गया, मध्यस्थ को ही निशाने पर रख कर इन्होने अपनी दूकान चालू रखने में उसका फायदा उठाया । लोग सीधे तौर पर पाकिस्तान और पाक समर्थित आतंकवादियों के सिर दोष मडकर, मामले को वहीं तक सीमित समझ लेते है। जबकि हकीकत मे इसका एक पहलू और भी है जिस पर गौर करना भी नितांत आवश्यक है। अगर गौर से हम देखे तो जो हुर्रियत कांफ्रेस के दो धडो, चरमपंथी और नरमपंथी की बात की जाती है, हकीकत मे ऐसा कुछ नही, या यूं कह लीजिये कि या तो पूरा ही धडा चरमपंथी है या फिर मौका परस्त। हमें यह समझने की कोशिश करनी होगी कि चाहे वह उदारवादी धड़े के प्रमुख मीरवाइज उमर फारुक हो अथवा कट्टरवादी गिलानी गुट , सिक्का एक ही है, और मौके के हिसाब से चलन बदलता रहता है। एक ऐसा मौका परस्त लोगो का संगठन, जिसने पिछ्ले दो दशकों से जम्मु-कश्मीर मे पाक समर्थित आतंकवाद का भरपूर फायदा उठाते हुए अपनी पांचो उंगलिया घी मे डुबो कर रखी है। अपने ही स्वार्थो की पूर्ति के लिये जब-तब लोगो की खासकर वहां के युवा वर्ग की भावनायें भड्काकर ये पाकिस्तान मे बैठे आंकाओ के जरिये खुद को कश्मीरी रह्नुमा बताकर आतंक के नाम पर अतंराष्ट्रीय स्तर पर धन उगाही करते है, और जब लगता है कि किसी वजह से उस माध्यम के जरिये धन की आपूर्ति मंद पड रही है तो इन्हे इस ओर राजनैतिक गठजोड के मार्फ़त भारत से माल ऐंठने की गुंजाइश दीखती है और इनका वह तथाकथित नरमपंथी धडा नया नाटक रच एक मध्यस्थ रूपी सोफ़्ट टारगेट खडाकर लोगो की सहानुभूति बटोरने के लिये कुछ समय बाद उस मध्यस्थ को ही बलि का बकरा बना डालते है। अगर ऐसी बात नही है तो फिर क्या वजह थी कि पिछले सारे इनके बातचीत के प्रयास एक खास स्तर के बाद विफल होते गये ? आज जरुरत है इस पहलू को भी गौर से देखने की। यह खेद की बात है कि शक्ति बरतने के बजाये हम इन मुद्दों को हलके में लेते है, और बाद में हमें असम के उग्रवादी संघठन उल्फा के स्वयंभू मुखिया के जैसी शर्ते सुनने को मिलती है !
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प्रश्न -चिन्ह ?
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विचार संवेदा हैं ! समीक्षा होनी चाहिए !!
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट.........
ReplyDeleteआपको एक ब्रेकिंग न्यूज़ देनी है........ ब्लॉग जगत के http://umdasoch.blogspot.com/ (सौरभ) और सलीम खान के बीच लखनऊ में जूतम पैजार हुई ..... वो भी सलीम खान के उल्टा सीधा लिखने पर..... अगर मैं नहीं होता तो मोटे ताज़े http://umdasoch.blogspot.com/ (सौरभ) शायद कुछ कर देते ...वो तो कहिये..... कि मुझे खबर लग गई........ और मैं पहुँच गया........ पूरी डिटेल के लिए मेरी पोस्ट का इंतज़ार करिए........ फोटो सहित .....शाम तक.........पर इन दोनों कि वजह से मेरी बड़ी फजीहत हुई.....
बहुत ही संवेदन शील मामला है ।
ReplyDeleteसच लिखा है .... काशमीर ही क्यों पुर भारत में राजनीति के ये गंदा खेल केला जाता है ......... भिंडरावाला से राज ठाकरे तक ....... सब को पहले इस्तेमाल किया जाता है जब पानी सर से गुज़र जाता है उसका दुबारा इस्तेमाल किया जाता है .......
ReplyDeleteबहुत खूब महफूज भाई आपकी पोस्ट का इन्तजार करूंगा और सौरभ जी को बिना ज्यादा कुछ जाने बगैर ही इस बात के लिए बधाई !
ReplyDeleteजो लिखा है काल के इतिहास पर,
ReplyDeleteदुःख होता हाल ऐसा देख कर।
अब चरमपंथियों को भी पता चल ही गया कि नरम पडे तो गये.....काम से, जान से॥
ReplyDeletesatya ki kato juvan
ReplyDeletephir bhi garazata badlo sa
zooth ka akash me suraj
nikalata hi nahi.
satya ki jai ho