इस तथ्य को जानते हुए भी कि आज के इस युग में एक अपराधी और दुराचारी को सुधारना नामुमकिन जैसी बात है, फिर भी हम लोग, यहाँ तक कि उच्च शिक्षित वर्ग के लोग भी जब देश में राजनैतिक और प्रशासनिक सुधारों की बात आती है तो पहले तो इन राजनीतिज्ञो को दो-चार गालियाँ देते है और फिर मासूमियत से कहते है कि देश के राजनीतिज्ञो को सुधारा जाए, सब अपने आप सुधर जाएगा ! कैसे सुधारा जाए इस ओर कोई ध्यान नहीं देता ! हम भूल जाते है कि इस देश में एक ख़ास किस्म का "वोटर वर्ग" भी है, जिसकी इस देश की राजनीती में एक अहम् दखल है, क्योंकि इसकी कृपा से शरीफ और ईमानदार इंसान भले ही सफल न हो, मगर कोई भी चोर उचक्का, बदमाश, कातिल, भ्रष्ट और देशद्रोही इस देश की सत्ता पर काबिज हो सकता है! अगर हम सच में देश की फिकर करते है तो आज जरुरत है इस वोटर वर्ग को सुधारने की ! क्योंकि इस वोटर वर्ग और इसके वोटबैंक की वजह से ही इस देश की आज यह राजनैतिक दुर्दशा दृष्टिगौचर है ! इस ख़ास वोटर वर्ग ने अपने तुच्छ निहित स्वार्थो के चलते कभी यह नहीं सोचा कि जिसे हम झुंडों में जाकर वोट देकर जिता रहे है, वह आगे चलकर इस देश को कहाँ ले जाएगा ?
अगर पिछले ३-४ दशको पर गौर से नजर डाले तो इस वोटर वर्ग ने सिर्फ और सिर्फ कुछ संकीर्ण मुद्दों पर ही वोट डाला और देश के व्यापक हित में कभी नहीं सोचा ! उसने कभी भी यह नहीं देखा कि जिसे वोट दिया जा रहा है क्या वह एक देश की बागडोर संभालने के सभी मानको को पूरा करता है ? क्या वह पढ़ा लिखा है, उसका चरित्र कैसा है ? उसकी पृष्ठभूमि कैसी है? बस, जिसने उसे लुभावने वादे दिए उसी को वोट दे दिया ! और नतीजा आज हम देख रहे है अपनी इस राजनीति का ! दूसरी तरफ जो शिक्षित वर्ग है, बाते तो वह बड़ी-बड़ी कर लेता है, मगर क्या वह इतना नहीं जानता कि जब कुल वोटर संख्या का मुश्किल से बीस प्रतिशत वोटर पूरी राजनीति का ही रुख बदल सकता है तो अगर देश का ४० प्रतिशत शिक्षित युवा वर्ग सोच समझ कर वोट डाले तो पूरे देश का भविष्य ही बदल सकता है! अन्य बैंको के कामकाज में बड़े-बड़े सुधारों की तो हम बात करते है पर पता नहीं इस वोटर बैंक की कार्यप्रणाली को सुधारने की बात हम कब सोच पाएंगे ?
"गर देश का ४० प्रतिशत शिक्षित युवा वर्ग सोच समझ कर वोट डाले तो पूरे देश का भविष्य ही बदल सकता है!"
ReplyDeleteबिल्कुल सही है।
मैं तो यह भी कहता हूँ कि देश में अन्य विकसित देशों के जैसे दो पार्टियाँ ही होनी चाहिये ताकि बहुमत का सही सही फैसला हो।
wo din kab aayega.narayan narayan
ReplyDeleteमै अवधिया जी की राय से पुर्णत: सहमत हुं,
ReplyDeleteवोटर बनने के लिए भी कुछ तो माप-दंड होना चाहिए।
ReplyDeleteबहुत सी ऎसी बाते है जो जनता ही कर सकती है, इन गूंडो मवालियो की सरकार दो दिन से ज्यादा ना चले अगर वोटर अपना वोट सिर्फ़ सोच कर डाले, जात पात, ओर धर्म को भुल कर.... लेकिन नही हमारे पास इतनी दुर की सोचने का समय नही. आज की आप की पोस्ट बहुत अच्छी लगी, धन्यवाद आप से सहमत हु
ReplyDeleteवोटर बिचारा सुधर कर क्या करेगा? वोट डालेगा तो किसे? चुनाव प्रणाली का जो हाल है। लाखों करोड़ों चुनाव जीतने में खर्च होते हैं। उन्हें खर्च करने की क्षमता रखने वाला व्यक्ति जो भी होगा वह तो वोट देने काबिल होगा नहीं। जो काबिल होगा वह यह चुनाव लड़ नहीं सकता। वोटर के जरिये सुधार की कामना सफल नहीं हो सकेगी।
ReplyDeleteदेश को सुधारने के लिए पहले जनता के संगठन बनाने होंगे। वे आंदोलन की राह पर चलेंगे और आपस में संगठित हो कर ही मौजूदा व्यवस्था में परिवर्तन ला सकते हैं। उस आंदोलन में ही मौजूदा पार्टियों की परख भी होगी। उसी से आगे कुछ निकल सकता है। वरना गाड़ी जैसे चल रही है वैसे ही चलती रहेगी।
कभी नहीं सुधरेंगे जी....चाहे सारी दुनिया सुधर जाए लेकिन हम नहीं सुधरेंगें...दुनिया की कोई ताकत नहीं सुधार सकती :)
ReplyDeleteपं.डी.के.शर्मा"वत्स" से सहमत हूँ। अच्छी रचना। बधाई।
ReplyDeleteजब नागनाथ और सांपनाथ के बीच फंसा होतो बेचारा वोटर क्या करे?
ReplyDeletebhai choise hi nahi hai. Ek taraf Maha Badmash aur dusri taraf Badmash. Kise Vote den.
ReplyDeleteजब तक हम धर्म जाति और पंथ के चक्करों में पड़े रहेंगे, ऐसे किसी भी सुधार की संभावना नगण्य है।
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अदभुत है मानव शरीर।
गोमुख नहीं रहेगा, तो गंगा कहाँ बचेगी ?