हालत पर मेरी न दिल उनका पसीजा ,
न ही बेसब्र किया उनको व्यग्रकाल ने,
संजोए रखे है मैंने वो वरक़ -पुंकेसर,
जो कुछ गुल खिलाये थे गए साल ने।
शरद में थी ठिठुरी वो यादों की गठरी ,
ग्रीष्म में जलाया उसे तपस ज्वाल ने,
संजोए रखे है मैंने वो वरक़ -पुंकेसर,
जो कुछ गुल खिलाये थे गए साल ने।
उन्हें झुरमुटों में मन के छुपाये रखा ,
जो उगले उनके मुँह की लय-ताल ने ,
संजोए रखे है मैंने वो वरक़ -पुंकेसर,
जो कुछ गुल खिलाये थे गए साल ने।
मुग्ध हुआ था मैं कभी खुश्बुओ पर,
मुझे भी परेशां किया था कली काल ने ,
संजोए रखे है तभी वो वरक़ -पुंकेसर,
जो कुछ गुल खिलाये थे गए साल ने।
न ही बेसब्र किया उनको व्यग्रकाल ने,
संजोए रखे है मैंने वो वरक़ -पुंकेसर,
जो कुछ गुल खिलाये थे गए साल ने।
शरद में थी ठिठुरी वो यादों की गठरी ,
ग्रीष्म में जलाया उसे तपस ज्वाल ने,
संजोए रखे है मैंने वो वरक़ -पुंकेसर,
जो कुछ गुल खिलाये थे गए साल ने।
उन्हें झुरमुटों में मन के छुपाये रखा ,
जो उगले उनके मुँह की लय-ताल ने ,
संजोए रखे है मैंने वो वरक़ -पुंकेसर,
जो कुछ गुल खिलाये थे गए साल ने।
मुग्ध हुआ था मैं कभी खुश्बुओ पर,
मुझे भी परेशां किया था कली काल ने ,
संजोए रखे है तभी वो वरक़ -पुंकेसर,
जो कुछ गुल खिलाये थे गए साल ने।
हालत पे मेरी न दिल उनके पसीजे ,
ReplyDeleteन शरमाया उन्हें मेरे इस फटे-हाल ने !
सिद्दत से बड़ी हमने संजो के रखे है ,
जो कुछ गुल खिलाये थे गए साल ने !!
sundar rachna.
"यादों की गठरी को सीने पे रख कर ..."
ReplyDeleteपढ़कर याद आ गया ये शेरः
कल कुछ ऐसा हुआ मैं बहुत थक गया, इसलिये सुन के भी अनसुनी कर गया,
कितनी यादों के भटके हुए कारवां, दिल के जख्मों के दर खटखटाते रहे।
इसे यहाँ सुन भी सकते हैं।
"यादों की गठरी को सीने पे रख कर ..."
ReplyDeleteपढ़कर याद आ गया ये शेरः
कल कुछ ऐसा हुआ मैं बहुत थक गया, इसलिये सुन के भी अनसुनी कर गया,
कितनी यादों के भटके हुए कारवां, दिल के जख्मों के दर खटखटाते रहे।
इसे यहाँ सुन भी सकते हैं।
है मुग्ध क्यों इतना तू खुश्बुओ पर,
ReplyDeleteकिया खुद को परेशां इस सवाल ने !
सिद्दत से बड़ी हमने संजो के रखे है ,
जो कुछ गुल खिलाये थे गए साल ने !!
बहुत सही दिशा में लेखनी चलाई है आपने!
बधाई!
असाधारण शक्ति का पद्य, बुनावट की सरलता और रेखाचित्रनुमा वक्तव्य सयास बांध लेते हैं, कुतूहल पैदा करते हैं।
ReplyDeleteदरख्तों के साये में खिलते है जो गुल ,
ReplyDeleteउन्हें बिखरा दिया धरा पर अनंतकाल ने !
पर जो गुल किस्मत के खिलाये हुए है,
चिपकाए रखा उन्हें वक्त की चाल ने !!
वाह कितने सुंदर भाव पिरोए आपने...बहुत बढ़िया रचना...बधाई गोदियाल जी
यादों की गठरी को सीने पे रख कर,
ReplyDeleteकिया मजबूर चलने को हमें पातळ ने !
क़दमों को अब तक संभाले हुए है,
डगमगाया बहुत रास्तों के जंजाल ने !!
बहुत अच्छी लगी खासकर ये पंक्तियाँ! सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने शानदार रचना लिखा है!
मज़ा आ गया नया साल मुबारक
ReplyDeleteहै मुग्ध क्यों इतना तू खुश्बुओ पर,
ReplyDeleteकिया खुद को परेशां इस सवाल ने !
सिद्दत से बड़ी हमने संजो के रखे है ,
जो कुछ गुल खिलाये थे गए साल ने !!
accha laga ...
वाह वाह गोदियाल जी, क्या कहने!! बहुत खूब, महाराज!
ReplyDeleteलाजवाब सर जी. आनंद आया.
ReplyDeleteरामराम.
दरख्तों के साये में खिलते है जो गुल ,
ReplyDeleteउन्हें बिखरा दिया धरा पर अनंतकाल ने !
पर जो गुल किस्मत के खिलाये हुए है,
चिपकाए रखा उन्हें वक्त की चाल ने !!
Simply great!
दरख्तों के साये में खिलते है जो गुल ,
ReplyDeleteउन्हें बिखरा दिया धरा पर अनंतकाल ने !
पर जो गुल किस्मत के खिलाये हुए है,
चिपकाए रखा उन्हें वक्त की चाल ने !!
अच्छा है गोदियाल साहब...........बेहतरीन!
पर जो गुल किस्मत के खिलाये हुए है,
ReplyDeleteचिपकाए रखा उन्हें वक्त की चाल ने !!
बहुत खूब जनाब बहुत ही खूब कहा है...शानदार और जानदार रचना...बधाई..
नीरज
हालत पे मेरी न दिल उनके पसीजे ,
ReplyDeleteन शरमाया उन्हें मेरे इस फटे-हाल ने ..
ये तो ज़माने की रीत है गौदियाल जी ......... कौन रोता है किसी और की खाती ऐ दोस्त,
सबको अपनी ही किसी बात पे रोना आया ...........