Wednesday, January 13, 2010

अगर संविधान में ऐसा प्रावधान हो जाए तो....?

इस महान लोकतंत्र के सभी जागरूक मतदाता यह तो जानते ही होंगे कि अपने मत का प्रयोग कर, हम लोग इस देश की सत्ता का हकदार और अपना भाग्य विधाता चुनते है ! जो चुनकर जाता है वह जनता का प्रतिनिधि, जनता की आवाज , जनता का सेवक और पता नहीं क्या-क्या होता है! लेकिन अगर जनता का नुमाइंदा रहने के दौरान या फिर चुने जाने से पहले किसी आपराधिक मामले जैसे कि ह्त्या, लूट, चोरी, भ्रष्टाचार इत्यादि मामलो में, किसी न्यायलय द्वारा उसे दोषी करार दिया जाता है, और फांसी की सजा सुनाई जाती है, तो चूँकि वह किसी ख़ास इलाके की जनता द्वारा अपना प्रतिनिधि चुना गया है, अत: जो सजा उसे मिली हो, वह उन मतदाताओं को भी दी जाए जिन्होंने उसे वोट देकर जिताया, क्योंकि वह तो हर वक्त यही कह रहा होता है कि वह इस देश की जनता का प्रतिनिधि है!जब प्रतिनिधि की आवाज को जनता की आवाज तथा प्रतिनिधि की मांग जनता की मांग मानी जाती है तो प्रतिनिधि के कृत्य जनता के कृत्य क्यों नहीं माने जा सकते ?

उन मतदाताओं की पहचान करने के लिए जिन्होंने उसे वोट दिया, मतदान मशीनों पर कम्प्युटरीकृत तरीके से वोटरों की पहचान सुरक्षित रखी जा सकती है! तब कितना मजा आयेगा न, जब मान लो किसी नेता को फांसी की सजा हो जाती है ( वो बात और है कि हमारे न्यायालय नेताओ को ऐसी सजा देते नहीं ) और उसको जिन पचास हजार मतदाताओं ने वोट दिया था, उन्हें भी उसके साथ-साथ फांसी के तख्ते पर लटका दिया जा रहा हो ? शायद तभी इस देश की राजनीति और दूषित होने से बच सकती है !

अब एक सवाल: एक अर्थशास्त्री होने का खिताब कहाँ से मिलता है ? यह मैं इसलिए पूछ रहा हूँ क्योंकि हमारी सरकारों में इतने तथाकथित अर्थशास्त्री बैठे है, और अन्य राज्यों की तो मैं नहीं जानता मगर जब से ये अरहर की दाल का रोना शुरू हुआ तब से दिल्ली सरकार अखबारों और मीडिया में मटर की दाल (जिसे कोई भी खाना पसंद नहीं करता ) खाने की लोगो को सलाह देने के लिए करोडो रूपये विज्ञापन पर खर्च कर चुकी ! अगर इस सरकारी धन को गरीब लोगो को अरहर की दाल की कीमतों में सब्सिडी के तौर पर खर्च कर लिया जाता तो इनका क्या बिगड़ जाता ?

10 comments:

  1. अगर इस सरकारी धन को गरीब लोगो को अरहर की दाल की कीमतों में सब्सिडी के तौर पर खर्च कर लिया जाता तो इनका क्या बिगड़ जाता ?

    बहुत अच्छी सोच। सहमत हूं।

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  2. गोदियाल साहब किसीकी नीयत कब बदल जाये यह कौन कह सकता है? यदि किसी नेता को चुनते समय वह ईमानदार हो और बाद में भ्रष्टाचारी बन जाये तो भी क्या उसे चुनने वाले दोषी होंगे?

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  3. अवधिया साहब , शुक्रिया एक सवाल आपसे; आप समझते है कि इमानदार लोग भी नेता बनते है आजकल ?

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  4. गोदियाल जी, मैं भी नेताओं को अच्छे चरित्र वाले नहीं समझता और न ही किसी नेता का पक्ष ले रहा हूँ। सच पूछा जाये तो राजनीति में मेरी रुचि ही नहीं है। मैंने तो केवल सैद्धान्तिक रूप से प्रश्न किया था।

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  5. आपके खयालत तो मासाअल्लाह क्या खूब है , काश कि ऐसा हो पाता ।

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  6. बहुत भीषण ख्याल हैं भाई!!

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  7. पी. डी .एस.के अंतर्गत सरकार डिपुओं से निर्धनों को सस्ते दाम पर खाद्य पदार्थ और घासलेट आदि वितरित करने पर हर साल करोड़ों रुपिया खर्च कर रही है। यथार्थ में यह सब निर्धनों तक पहुँचाने से पहले ही कला बाज़ार में पहुँच जाता है। इसे बंद कर सीधे सीधे गरीबों को धन या सब्सिडी स्लिप दे कर देश के समस्त भूखों को दो जून की रोटी का जुगाड़ संभव है।

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  8. क्‍या आप सारी भारत की जनसंख्‍या को ही फांसी पर लटका दोगे? आज के नेता यदि दोषी हैं तो इस देश के नागरिक भी कम दोषी नहीं है। हम अपने सुखों से ही बाहर नहीं निकलते, किसी के खिलाफ आंदोलन क्‍या करेंगे। अरहर हो या मूंग की दाल, भाई अभी तो सारी दालें ही पतली हो गयी हैं।

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  9. Neta koi nahi hoga. Sari Vyavastha Praja hi dekhegi.Phansi par kon chadna chahta hai. Neta Bhrashtha hai. Hamare pas koi option nahi hai....

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  10. आपकी बातो से पूर्ण सहमत गांधी साहब, आपके ब्लॉग पर देख रहा था, लगता है आपके और मेरे विचार काफी कुछ मिलते है !

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