Tuesday, January 26, 2021

गणतंत्रपर्व का हर्ष और विसाथद..

वैरियों से जुडे हों जिनके तार ऐसे,

कृषक भेष मे लुंठक, बटमार ऐसे,

कापुरुष किसान परेड की आड मे,

कर रहे है, देश-छवि शर्मशार ऐसे।


इधर ये, वीरों के शौर्य को सलाम करके 

लोग करते गणतंत्र पर्व को साकार ऐसे ,

उधर वो, लालकिले को  रौंदने मे लगे हैं,

कुछ फसादी, तुच्छ-स्वार्थी मक्कार ऐसे।


नेताओं की महत्वाकांक्षा ने कर रखा

सम्पूर्ण व्यवस्था के तंत्र को लाचार ऐसे,

कापुरुष किसान परेड की आड मे,

कर रहे है, वतन-छवि शर्मशार ऐसे।


सभी ब्लॉग मित्रों  को  गणतंत्र दिवस की 

हार्दिक शुभकामनाएं।🙏










Friday, January 22, 2021

आग्रह..

वक्त की कीमत, हमेंं 

मत समझा ऐ दोस्त, 

समय अपना व्यतीत के,

हमारा तो पीछा ही 

नहीं छोडते ये कमबख़्त, 

कुछ पछतावे अतीत के।


Thursday, January 21, 2021

टीस..

बीच तुम्हारे-हमारे ये रिश्ते, 

यूं न इसतरह नासाज़ होते, 

फक़त,इसकदर दूरियों मे 

सिमटे हुए न हम आज़ होते,

तुम्हारी सौगंध, हम 

हर लम्हे को बाहों मे समेटे रखते,

थोडा जो अगर तुम्हारे,

मर्यादा मे रखे अलफाज़ होते।

Wednesday, January 20, 2021

जिह्व-स्वाद।

 ना ही कोई बंदिश, ना ही कोई परहेज़,

 मैं अपने ही उदर पर कहर ढाता रहा।

 लजीज़ हरइक पकवान वो परोस्ते गये

और स्वाद का शौकीन, मैं खाता  रहा।।

Tuesday, January 19, 2021

विचलन..

टलोलता ही फिर रहा हूँ उम्र को, 

तभी से मैं हर इक दराज़ मे,

जबसे, कुछ अजीज ये कह गये कि

'परचेत' तू अब, उम्रदराज़ हो गया।


Sunday, January 17, 2021

तुम सुनो तो मैं सुनाऊँ..







अजीब सी पशोपेश मे हूँ, 

मैं इधर गाऊँ कि उधर गाऊँ?

इक गजल लिखी है मैंने तुमपर, 

तुम सुनो तो मैं सुनाऊँ।


हो क़दरदान तुम बहुत, 

गुल़रुखों के नगमा-ए-साज के,

तारों भरी रात, 

नयनोँ मे बरसात, 

धुन कौन सी बजाऊँ?

अजीब सी पशोपेश मे हूँ, 

मैं इधर गाऊँ कि उधर गाऊँ?

इक गजल लिखी है मैंने तुमपर, 

तुम सुनो तो  मैं सुनाऊँ।।


अजीबोग़रीब अफ़साने हैं, 

इस मुक्त़सर सी जिंदगी के,

लबों पे कबतक लिए फिरूँ, 

क्यों न कागज़ पर उतर जाऊँ?

अजीब सी पशोपेश मे हूँ, 

इधर गाऊँ कि उधर गाऊँ?

इक गजल लिखी है मैंने तुमपर, 

तुम सुनो तो  मैं सुनाऊँ।।


थे अबतक हम भी खामोश

तेरी खामोशी को देखकर,

हमें महफिलों की शान नहीं बनना,

सिर्फ़ बात तुम्हें दिल की बता पाऊँ।

अजीब सी पशोपेश मे हूँ, 

इधर गाऊँ कि उधर गाऊँ?

इक गजल लिखी है मैंने तुमपर, 

तुम सुनो तो मैं सुनाऊँ।।



Thursday, January 14, 2021

नश्तर..

उधर सामने खडे थे संस्कार,

बनकर के मेरे पहरेदार,

संकुचायी सी मैं कुछ बोली नहीं,

तुम हरगिज़ इसे गलत मत समझना,

इत्तेफ़ाक़न, मैं इतनी भी भोली नहीं।


तुम्हारे जैसे बहुतेरे मिले हमको,

जिंदगी की राह मे मन डुलाने वाले,

किन्तु, फिर भी कभी मैं डोली नहीं,

तुम हरगिज़ इसे गलत मत समझना,

इत्तेफ़ाक़न, मैं इतनी भी भोली नहीं।


शक्ल से भले ही कोई बांके लगे हो,

बेकार है, बांकी जो अगर उसकी,  

अपनी  खुद की भाषा-बोली नहीं,

तुम हरगिज़ इसे गलत मत समझना,

इत्तेफ़ाक़न, मैं इतनी भी भोली नहीं।


अरे वो तमाम पैमानों के पैरवीकारो,

नापने से कद कभी बढता नहीं, गर

मनसाही जो कभी अपनी तोली नहीं,

तुम हरगिज़ इसे गलत मत समझना,

इत्तेफ़ाक़न, मैं इतनी भी भोली नहीं।


Sunday, January 10, 2021

बिम्बसार

तुम न कभी अश्क बहाना, ऐ दोस्त,

क्यूंकि तुम बे'गम' हो,

ये तुम्हारा धुर्त 'शो'हर तो,

यूं ही, मजे लेने के खातिर रो लेता  हैं।

खलिश..

मंजिल के करीब पहुंचने ही वाली थी

जब यह सफ़र-ए-जिन्दगी, ऐ दोस्त!

तुमने नींद मे खलल डालकर, 

स्वप्न विच्छेदन कर दिया

Thursday, January 7, 2021

अन्तरद्वंद







यारअब बता भी दो, 

छुपा रही हो जो हमसे, 

अपना वो दर्द जौन सा ।

कुछ तो बात होगी वरना, 

ये नजरें तुम्हारी  हमको,

यूं 'कातर ' न नजर आती।।


Tuesday, January 5, 2021

अजनबी तपन..

 दिल मे ही अटक गई , वो छोटी सी ख़लिश हूँ,

यकीनन, न तो मैं राघव हूँ और ना ही तपिश हूँ।

मुद्दत से,अकेला हूँ दूर बहुत, करीबियों से अपने,

मगर न जाने क्यों ऐ 'परचेत', इसी मे मैं खुश हूँ।

Sunday, January 3, 2021

उम्मीद कायम है...

 








उम्मीदों से भरा ये मिज़ाज अच्छा है, 

जश्न मनाने का ये रिवाज़ अच्छा है,

आगे चलके गुल जो भी खिलाये मगर,

 इस नये साल का आगाज़ अच्छा है।

Friday, January 1, 2021

Ambition


 











As cliché as 

this might sound, 

it is really true,

what goes around 

comes around.  

So, it would be 

appropriate always

that the flight of 

our wishes

should always match 

the reality of the ground .








Thursday, December 31, 2020

ऐ गुजरने वाले साल...।












ऐ गुजरने वाले साल, तेरे रहते मैंने,

'गुड' की जगह, 'बैड' फ्राइडे देखा,

बारहमास, कोई पर्व मनाया न गया,

किसी भी शहर न कोई 'हाईडे' देखा,

किसकदर भारी हो सकता है बुरा वक्त,

एक-दो नही,पूरे पैंतालीस 'ड्राइडे' देखा।😀



सभी स्नेही मित्रों को नूतनबर्ष 2021 की मंगलमय कामनाएं।🙏

Tuesday, December 29, 2020

कटु सत्य।

लगे हैं जो मेरे शब्द तुमको अप्रिय, 

निकले न मेरे मुंह से होते,

ऐ प्रिये, जबरन जो मेरे मुंह मे 

अपने शब्द, तुमने न ठूंसे होते।

Sunday, December 27, 2020

ऐ साल 2020 !

 











असहज छटपटाहट, 

नकाबी हितस्वार्थ, 

अहंवादी हठता और 

प्रतिद्वंद्विता की शठता, 

शाश्वत चीखती रह गई

कुछ सर्द सी आजमाइशें।

है फैला चहुंओर, 

इक तिजा़रती शोर,

बेचैन दिल के अंतस मे ही

कहींं दफ्ऩ होकर के रह गई ,

कुछ कुत्ती सी ख्वाहिशें।


दिल मे बची है तो बस,
लॉकडाउन की खलिश
और राहबंदी की टीस,
तूने छाप ऐसी छोडी
तु याद रहेगा सदा,
अलविदा,
ऐ साल, दो हजार बीस।

Tuesday, December 15, 2020

तार्किक..

ब़ंद कबूतरखाने से जब, इक तोता निकला तो

सब के सब ने एक स्वर कहा, ये कैसे, ये कैंसे ?

एक ज्ञानी सज्जन, जो समीप ही खडे थे बोले,

राजशाही अस्तबल से, इक खोता निकला जैसे।

Sunday, December 13, 2020

वादा रहा..

 व्यग्र,व्याकुल इस जिंदगी को, 

मिल जाएगा निसाब जिस दिन,

ऐ मेरी अतृप्त ख्वाहिशों, 

कर दूंगा तुम्हारा भी हिसाब उस दिन।

Monday, December 7, 2020

अतृप्त मन...

इन आवारा चक्षुओं ने,

छुप-छुप के ताकी हैं,

मेरी, वो ख्वाहिश,

जो अभी भी बाकी हैं।

दिल की हर तमन्ना

सिर्फ,नशेमन ने हाकी है,

गोया, अतृप्त हैं ख्वाहिश,

जो अभी भी बाकी हैं।


xxxxxxx


तेरी हर परेशानी, रंज और ग़म 

बेहिचक वो मुझको दे दे, 

उससे हरव़क्त यही गुजा़रिश करता हूंं ,

ऐ दोस्त, मुझे जब भी कभी ,

देव-दर्शन होते हैं , सिर्फ़  और सिर्फ़,

तेरी खुश़हाल जिंदगी की शिफारिश़ करता हूँ।





Sunday, December 6, 2020

साल एक और गुजरा....






हैं चहुं ओर चर्चा मे अदाएँ,

कोरोना दिखा रहा मुजरा,

उधर, बंद खौफज़दा जिंदगी,

इधर, साल एक और गुजरा।


कभी थोक मे बढी मुश्किलें,

कभी जीवन हुआ खुदरा,

कुछ तो सफर ही मे गुजरे,

जीना हुआ दुभर, दुभरा।


बेताब है, आगोश मे आने को,

है जब से ये नया दुश्मन उभरा,

आसपास ही छुपा बैठा है कहीं,

ऐ नादांं, सम्भल के रह तू जरा।


टूटी कई ख्वाहिशे, बिखरे सपने,

है सहमी-सहमी लगती यूं धरा,

उधर, बंद खौफज़दा जिंदगी,

इधर, साल एक और गुजरा।




मौन-सून!

ये सच है, तुम्हारी बेरुखी हमको, मानों कुछ यूं इस कदर भा गई, सावन-भादों, ज्यूं बरसात आई,  गरजी, बरसी और बदली छा गई। मैं तो कर रहा था कबसे तुम...