Monday, December 24, 2012

अरे वो अधर्मी !


अरे वो अधर्मी, 
बड़ी ही अजब है तेरी ये बेशर्मी, 
कड़क सर्दी में भी ताप रहा देश,
बलात्कार एवं भ्रष्टाचार की गर्मी।  
अरे वो अधर्मी !

ऐसा चल रहा है सुशासन तेरा, 
सदय पे जुल्म, शठ पे नरमी,
डरा-डरा सा है हर वतन-परस्त,     
जेड-प्लस तले घूम रहे कुकर्मी।  
अरे वो अधर्मी !!

16 comments:

  1. हमारे देश में सिर्फ देशभक्तों को ही गिरफ्तार करने और फांसी पर लटकाने का रिवाज़ है! बलात्कारी खुले घुमते हैं यहाँ !

    ReplyDelete
  2. मर्ज बद्धता गया ज्यो-ज्यो दावा किया.
    अच्छी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद

    ReplyDelete
  3. सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति बधाई नारी महज एक शरीर नहीं

    ReplyDelete
  4. तंत्र जब भ्रष्ट-तंत्र लोक तंत्र परिवार तंत्र
    देश रसातल जायगा यही विदेशी मन्त्र ...

    ReplyDelete
  5. बढ़िया,
    जारी रहिये,
    बधाई !!

    ReplyDelete
  6. वतन- परस्त,
    जेड-प्लस तले
    घूम रहे कुकर्मी !
    अरे वो अधर्मी !!
    ..सही तमाचा जड़ा गाल पर ..

    ReplyDelete
  7. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार 25/12/12 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है ।

    ReplyDelete
  8. शायद कभी अक्ल आये।

    ReplyDelete
  9. देह में छिपी देवी । जहाँ नारी की पूजा - सम्मान होता है, देवता वहां वास करते है । कहने के लिए - चर्चा के लिए सरल परन्तु इसकी स्व-अनुभूति और फिर आचरण में यह विचार-वर्तन लाना कठिन है, और फिर भी इसकी आवश्यकता भारत और उसके कई प्रदेशो में इतनी गंभीर है - सोचना है हमें रुट कोज़ तक कैसे जाए और कौन कौन से आयाम - परिबलो पर आंकलन - नियंत्रण लाये । नहीं तो यह चित्र जितना बहार दीखता है - हम जानते है कितना भयावह है अन्दर से । ध्वनि और प्रकाश का अंधाधुंध बलात्कार और बेलगाम कंटेंट दृश्य श्राव्य सामान, कन्फ्युजाई रिस्पोंसिबल पीढिया, अपमानित और अवमूल्यित स्वतंत्रता, और इस सब में हम भी शामिल हो गए - अगर दृष्टांत 'चेरिटी बिगिन्स एट होम' के माध्यम से नहीं रखेंगे ..... देर तो वैसे काफी हो ही गयी है ... फिर भी जागे तभी प्रभात ।

    ReplyDelete
  10. दुखद है, वर्तमान, भविष्य को क्या जाने।

    ReplyDelete
  11. फांसी पर लटका देना चाहिए इन अधर्मियों को...

    ReplyDelete
  12. दुश्शासन धृतराष्ट्र! अफसोस! अफसोस!

    ReplyDelete
  13. आम जनता का दर्द ...अफसोस!

    ReplyDelete
  14. अरे ओ अधर्मी ।
    अपराधियों को मिल रही है उन्ही की शरण
    जिनसे न्याय की उम्मीद है हमें ।
    हरेक के मन के आक्रोश को जबां दे दी आपने .

    ReplyDelete

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...