बीच तुम्हारे-हमारे ये रिश्ते,
यूं न इसतरह नासाज़ होते,
फक़त,इसकदर दूरियों मे
सिमटे हुए न हम आज़ होते,
तुम्हारी सौगंध, हम
हर लम्हे को बाहों मे समेटे रखते,
थोडा जो अगर तुम्हारे,
मर्यादा मे रखे अलफाज़ होते।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
थोडी सी बेरुखी से हमसे जो उन्होंने पूछा था कि वफा क्या है, हंसकर हमने भी कह दिया कि मुक्तसर सी जिंदगी मे रखा क्या है!!
सार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDelete🙏
ReplyDeleteथोडा जो अगर तुम्हारे,
ReplyDeleteमर्यादा मे रखे अलफाज़ होते।
सत्य कथन
सुन्दर रचना
लाजवाब!
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDelete