बहुत दिनों से ग्वालो और चरवाहों को बस यही बात खाए जा रही थी कि आखिर भैंस के पानी में जाने की वजह क्या थी? भैंस अपने चौबारे से बिदकी क्यों? घर में सब कुछ था, न सिर्फ महाजन बल्कि पूरा गाँव ही उसे रोज हरी-हरी घास खाने को देता था। महाजन ने घर में ही उसके लिए स्वीमिंग पुल की भी व्यवस्था की हुई थी। गाँव का एक शरीफ भैंसा भी कुछ दिनों तक उसके इर्द-गिर्द घूमा फिरा था, फिर आखिर क्या वजह थी कि भैंस ने पानी में उतरने का इतना मजबूत फैसला लिया? जबसे इस बात का खुलासा हुआ है कि इसकी असली वजह उस पार के गाँव का दिल फ़ेंक आवारा भैंसा है, तभी से नदी के आर-पार के दोनों गाँवों के बीच में उसी बात की गरमागरम चर्चा हो रही है। कुंए पर पानी लेने इकट्ठा हुई गाँव की कुछ औरतों को तो यहाँ तक कहते सुना गया कि कलमु.... का गंगापार के भैसे से पहले से ही चक्कर चल रहा था, इसलिए उसने गाम के शरीफ भैसे को छोड़ दिया। कुछ कहती थी कि हमें इन बातों में नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि वह निहायत ही उसका पर्सनल मामला है। उसकी मर्जी वह जिससे चक्कर चलाये। कुछ जो समझदार किस्म की थी उनका मत था कि गाम के लोग कितने मूरख है, बेफालतू एक अदनी सी भैस को फूक में चढ़ा रहे है। कुछ कह रही थी कि बेशर्मी की हद तो देखो, उस आवारा, लोफर को अपने खूंटे तक बुला लिया, और अपने इन कुछ तेज-तर्रार सेकुलर खबरिया चैनलों की शर्म की हद देखो, इनकी ओबी वैन भी पता नहीं कहाँ से उसी वक्त वहाँ पहुँच गई, और लगे टीआरपी बटोरने कि इसकी एक्सलूसिव तस्वीरे सिर्फ वही दिखा रहे है। जैसे कि मानो हम लोगो ने आज तक किसी भैंस-और भैंसे दोनों को इकट्ठे न देखा हो, हद होती है, नौटंकी की भी।
उधर गाँव के बड़े-बुजुर्गों की भी इस बारे में अलग ही खिचडी पक रही थी। कुछ कट्टर किस्म के धर्मांध तो यहाँ तक कहने लगे थे कि जब गाय की पूछ पकड़ वैतरणी पार की जा सकती है तो कम से कम इस भैंस की पूँछ पकड़कर उस पार के गाम तो जा ही सकते है। कुछ मन ही मन खुश भी हो रहे थे कि इसकी देखा-देखी कर हमारी भैसे भी बिगड़ रही थी, चलो पिंड छूटा, उपरवाला जो करता है सब भले के लिए ही करता है। गाँव के कुछ निहायत बीच के लोग जो बीच के ही बने रहने में अपनी शान समझते है, कह रहे थे कि इससे दोनों गामो के बीच में सौहार्द बढेगा, उनकी यह बात सुनकर पास ही खडा पल्टू गधा भी कुछ देर तक जोर से ढेंचू-ढेंचू करता रहा था, मानो कह रहा हो कि तुम नहीं सुधरोगे। कुछ अपने को गाँव का हितैसी समझने वाले महारथी काफी गंभीरता से एक प्रस्ताव पर विचार कर रहे थे कि भैसे के दागी चरित्र को इतना उछालो कि आगे से कोई भी भैंस किसी परदेशी भैसे के साथ जाने की हिमाकत न करे! साथ ही उन्होंने सर्वसम्मति से यह भी निर्णय लिया कि आइन्दा वे अपनी किसी भी भैस को इसतरह खुली नहीं छोड़ेगे। उधर महाजन जब अपने वीरान पड़े खूंटे की तरफ नजर डालता तो दुखी होकर बस यही गुनगुनाता कि ;
ग्वालों की दुवाए लेती जा, जा तुझको टिन के पक्के छप्पर का वास मिले,
मायके के खेत-खलियान की कभी याद न आये, वहा ऐसी हरी-हरी घास मिले।
उधर गाँव के बड़े-बुजुर्गों की भी इस बारे में अलग ही खिचडी पक रही थी। कुछ कट्टर किस्म के धर्मांध तो यहाँ तक कहने लगे थे कि जब गाय की पूछ पकड़ वैतरणी पार की जा सकती है तो कम से कम इस भैंस की पूँछ पकड़कर उस पार के गाम तो जा ही सकते है। कुछ मन ही मन खुश भी हो रहे थे कि इसकी देखा-देखी कर हमारी भैसे भी बिगड़ रही थी, चलो पिंड छूटा, उपरवाला जो करता है सब भले के लिए ही करता है। गाँव के कुछ निहायत बीच के लोग जो बीच के ही बने रहने में अपनी शान समझते है, कह रहे थे कि इससे दोनों गामो के बीच में सौहार्द बढेगा, उनकी यह बात सुनकर पास ही खडा पल्टू गधा भी कुछ देर तक जोर से ढेंचू-ढेंचू करता रहा था, मानो कह रहा हो कि तुम नहीं सुधरोगे। कुछ अपने को गाँव का हितैसी समझने वाले महारथी काफी गंभीरता से एक प्रस्ताव पर विचार कर रहे थे कि भैसे के दागी चरित्र को इतना उछालो कि आगे से कोई भी भैंस किसी परदेशी भैसे के साथ जाने की हिमाकत न करे! साथ ही उन्होंने सर्वसम्मति से यह भी निर्णय लिया कि आइन्दा वे अपनी किसी भी भैस को इसतरह खुली नहीं छोड़ेगे। उधर महाजन जब अपने वीरान पड़े खूंटे की तरफ नजर डालता तो दुखी होकर बस यही गुनगुनाता कि ;
ग्वालों की दुवाए लेती जा, जा तुझको टिन के पक्के छप्पर का वास मिले,
मायके के खेत-खलियान की कभी याद न आये, वहा ऐसी हरी-हरी घास मिले।
:D
ReplyDelete:)
;)
हा हा हा ! आज तो गज़ब कर दिया गोदियाल जी ।
ReplyDeleteऐसा नहीं हो सकता की हम भैंस -भैंसा को उनके हाल पर छोड़ दें।
तो आखिर गई भैंस पानी में!
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट है।
ReplyDeleteगोदियाल जी कई साल पहले भी एक दो भेंसे पानी मै गई थी, फ़िर मुंह काला कर के लोट आई...... अजी आवारा भेंस की भी कोई ओकात होती है, उन का चारा भी तो चोरी का या भीख मै मिला होता है, अब जाये भेंस जहां चाहे लेकिन वापिसी का रास्ता हमेशा बन्द करना चाहिये, तभी बाकी तबेले की गाय भेंसो को अकल आये गी, भाड मै जाये यह वाली भेंस
ReplyDeletenice
ReplyDeleteइस रचना का सहज हास्य मन को गुदगुदा देता है। आपके पास हास्य चित्रण की कला है। बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteव्यंग्य तो लघु है लेकिन मारक क्षमता बहुत है!
ReplyDeleteहा हा हा ....जब तक पानी है भैंस तो जायेगी ही...अब मीडिया कुछ भी कर ले...इस लघु व्यंग से बहुत कुछ कह गए... बहुत बढ़िया
ReplyDeleteएक छोटे से व्यंग्य ने सभी पर एक साथ प्रहार कर दिया है!छोटा बड़ा खोता निकला कुछ बड़ो के लिए!
ReplyDeleteमजा आ गया आज तो...!
कुंवर जी,
भैस है तो पानी में तो जाएगी ही ना और कीचड़ में सनेगी भी। चिन्ता ना करो, वापस आ जाएगी। ऐसी खुली हवा पड़ोस के गाँव में नहीं है।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteSomething wrong with my blog today , many comments are missing.
ReplyDeleteदिल ही तो है आ गया, भैंस का..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया व्यंग...गोदियाल जी हर प्रकार की रचना में पारंगत है आप..बधाई!!