Tuesday, August 11, 2009

जय हो गुल-आमो !!

मैं लाल बत्ती पर खडा-खडा,
अपने बगल की उस कार को ही देखे जा रहा था,
जिसमे पिछली सीट पर तड़पती वह महिला,
जो शायद प्रसव पीडा से छटपटा रही थी !
कार की अगली सीट पर बैठा नन्हा-मुन्ना,
माँ की इस कराह से भयभीत,
बार-बार ड्राइविंग सीट पर बैठे अपने पिता से,
प्रश्न कर रहा था कि इतनी देर हो गई,
ये बत्ती हरी क्यों नहीं होती?
तंग आकर पिता ने जब उसे सच्चाई बताई
कि कोई वी.आई.पी नेता उधर से गुजरने वाला है,
इसलिए पुलिस ने बत्ती बंद कर रखी है !
तो बच्चे ने आर्श्चय चकित नजरो से,
पिता को देखते हुए पूछा, इसका मतलब
जब तक नेता नहीं निकलता,
ये लोग हमें नहीं जाने देंगे?
पिता के हां में गर्दन हिलाने पर,
बेटे ने फिर एक अजीब सा सवाल किया;
लेकिन पापा,
आप तो कहते थे कि हम आजाद है, हमारा देश आजाद है?
पिता की तरफ़ से कोई जबाब न मिलने पर,
माँ को भगवान भरोशे छोड़,
वह खामोश होकर बैठ गया !!!

कहने को इस देश को आजाद हुए ६२ साल हो गए, लेकिन मानसिक रूप से क्या सचमुच हम आजाद हुए है ? तथाकथित आज़ादी से पहले भारत में दो वर्ग होते थे , एक शासक वर्ग और दूसरा गुलाम ! और आज क्या है? आज भी तो वही है ! आज़ादी के बाद हमने अपना संविधान बनाया, लेकिन इस संविधान की पथ-प्रदर्शक भारतीय राजनीति का आधार क्या हो, हमारे महान ज्ञांता इस पर चिंतन करना भूल गए ! यही वजह है कि स्वतंत्रता के बाद से जब भी आम चुनाव हुए भारतीय जनता की मानसिकता राजा और प्रजा के भाव तक ही सिमित रही !

आज सोचता हूँ कि आज़ादी के बाद भी हम भारतीय गुलामो ने पिछले ६१ सालो में सिवाए राजाओ की जय-जयकार और उनकी चाटुकारिता के सिवाए और किया क्या ? ६० और ७० के दशक में हमने राजकुमारी इंदिरा की जय-जयकार की ! ७० से ८० के दशक में हमने राजकुमार संजय की जय-जयकार की ! ८० से ९० के दशक में हमने राजकुमार राजीव की जय-जयकार की, ९० के दशक से आजतक हम राजबहू की जय-जयकार की, आज भी कर रहे है, मगर अब इस दशक में एक राजकुमार राहुल भी आ गए है और आजकल हम, हमारा मीडिया , हमारे प्रचार माध्यम सिर्फ और सिर्फ उन ही की जय-जयकार में लगे है ! वह कहा गए, रास्ते में उन्होंने किस दलित के बच्चे को गोदी में उठाया? किस अल्पसंख्यक महिला से गले मिले, रात को किस दलित के घर में सोये? उनका अपने शादी के बारे में क्या ख़याल है, उनको कैसे लड़की की तलाश है ?........... उफ़ ! हम सडको को चौडा कर सकते है, बड़े-बड़े फ्लाइओवर बना सकते है, बड़े-बड़े माल और टाऊन शिप खड़े कर सकते है, लेकिन मानसिकता को नही बदल सकते ! सभी बड़े अख़बार बिक चुके हैं, इनके संपादको की बोली लगायी जा चुकी हैं! निष्पक्ष पत्रकारिता तो उस अनाथ बालक की तरह हैं, जो सड़क के किनारे अपने सामने से रईसजादों के बच्चों (धनाड्य मीडिया ) को बेशकीमती कारों में घूमते हुए देखता हैं! एक ज़माने में पत्रकारिता समाज की नाक, कान और आँख हुआ करती थी, पर आजकल के ज़माने में पत्रकारिता केवल एक व्यवसाय मात्र बन कर रह गया हैं!

मुझे लग रहा है की इन गुलामो को राजवंश की चिंता सताने लगी है कि कही अगर युवराज ताउम्र कुवारे रहे तो आगे चलकर ये किसकी जय-जयकार करेंगे ? रोचक पहलु यह भी है कि कुछ दूरदर्शी गुलाम, इस चिंता और संभावना को मध्य नज़र रखते हुए, प्रियंका के बच्चो में दिल्ली की गद्दी का वारिश ढूँढने की कोशिश भी करने लगे है!
जय हो गुल-आमो, जय हो!!!

5 comments:

  1. सौभाग्य से हमारा देश अब सिर्फ जय हो के सहारे ही चल रहा है।

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  2. bahut seedhe sadhe shabdo main aajadi ka matlab bata diya.... dhanya ho....saral shabdo main gambir chintan.........

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  3. 'दाख छोहारा छाड़ी अमृत फल विष कीड़ा विष खात'..
    दरअसल २०० वर्षों की पराधीनता कैसे निकलेगी हमारी रगों से...
    हमें गुलामी विरासत में मिली है और उसका निर्वहन हमारा परम कर्त्तव्य है.
    अगर युवराज के वंशज नहीं हुए तो कोई और ढूढ़ लेंगे...
    तू नहीं और सही, और नहीं और सही..
    की फर्क पैंदा है...

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  4. Achcha hai aap dil ka gubar yahan likh kar nikal rahe hain. par jo media wale aisa kar rahe hain kya aapne un chnnelon ko likha hai ? unka kya jawab hai ?

    Aap mere blog par aaye tippani kee achcha laga. Aapko nahee lagata kee sarkar ko galee dekar hum apne kartavya se farig nahee ho jate.

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  5. apne saral sabdon mein gambheer baat kahdi hai. badhai!!

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।