टलोलता ही फिर रहा हूँ उम्र को,
तभी से मैं हर इक दराज़ मे,
जबसे, कुछ अजीज ये कह गये कि
'परचेत' तू अब, उम्रदराज़ हो गया।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
ये सच है, तुम्हारी बेरुखी हमको, मानों कुछ यूं इस कदर भा गई, सावन-भादों, ज्यूं बरसात आई, गरजी, बरसी और बदली छा गई। मैं तो कर रहा था कबसे तुम...
वाह
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
आभार।
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteआदरणीय पी.सी.गोदियाल "परचेत" जी,
ReplyDeleteचार पंक्तियों में बेहद गहरी बात बहुत सहजता से आपने बयां कर दी है।
साधुवाद 🙏
सादर शुभकामनाएं,
डॉ. वर्षा सिंह
आभार आपका🙏
ReplyDeleteवाह बहुत खूब 👌🏻
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