Tuesday, February 14, 2012

जानेमन !


जाने जाना,गुल-ए-गुलजार  !

तुम जानती हो, मैं खुले में नहीं करता 

कभी अपने इश्क का इजहार।   



समय की मर्यादा रुकावट न बने

इसलिए मैंने तुम्हारे लिए

अपने एहसास ट्विटर पर,

अनुभूति फेसबुक पर

और भावनाएं ब्लॉग पर

अभिव्यक्त कर दी हैं !



अब इतनी है तुमसे दरकार ,
जब जी करे, गूगल सर्च पर

दिलवर और अपना नाम

टंकित कर ढूंढ लेना,

सबकुछ उपलब्द्ध हैं शजर-ए-डार!!

11 comments:

  1. :-)

    ज़माना बदल रहा है...

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  2. क्या बात है... बहुत खूब.

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  3. प्यार का नाम,
    वह भी खुले आम..

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  4. एक ही अड़चन है --डर है कहीं सैकड़ों पेज न खुल जाएँ । :)

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  5. Safest mode of love is 'Online love'...no one can deny who loved whom...million witnesses...lol..

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  6. Haha..
    gajab sirji gajab..
    Modern proposal :p


    palchhin-aditya.blogspot.in

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  7. वाह! सब ऑनलाइन, सब पब्लिक, जो चाहे हंसे, जो चाहे रोये!

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सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...