Monday, November 9, 2009

दो टके की बात !

जी, मेरी बात सौ टके की नहीं हो सकती, क्योंकि ऐंसी बाते हमारे लिए ज्यादा मूल्य नहीं रखती ! पहली बात तो यह कहना चाहूंगा कि आज का जो युवा मुस्लिम शिक्षित वर्ग ( अच्छी जगह से तालीम लिया हुआ ) है, उसमे से अगर आप एक-एक की राय ले , वोटिंग करवाए, तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि ज्यादतर युवा वर्ग इस फतवे के खिलाफ है! और इसे उलेमाओं की बचकानी हरकत कहकर नकार रहा है! उसे आज विकास चाहिए इस तरह के फतवे नहीं ! !

फतवे का क्या मतलव है ? फतवे का मतलब है किसी को व्यक्तिगत अथवा पूरे समाज के तौर पर किसी ख़ास काम/बात को करने से रोकना, अब किसी को राष्ट्र गीत गाने के लिए बाध्य करने के सम्बन्ध में हमारे देश का सुप्रीम कोर्ट जो कहता है और जिस बात की मुस्लिमबुद्दीजीवी वर्ग बार-बार दुहाई दे रहा है, उसका सार यहाँ प्रस्तुत है:

क्या किसी को कोई गीत गाने के लिये मजबूर किया जा सकता है अथवा नहीं? यह प्रश्न सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष बिजोए एम्मानुएल विरुद्ध केरल राज्य आईऱ 1987 शC 748 [२] वाद में उठाया गया। इस वाद में कुछ विद्यार्थियों को स्कूल से इसलिए निकाल दिया गया था क्योंकि इन्होने राष्ट्रगान जन गण मन को गाने से मना कर दिया था। यह विद्यार्थी स्कूल में राष्ट्र-गान के समय इसके सम्मान में खड़े होते थे तथा इसका सम्मान करते थे पर गाते नहीं थे। इसके लिये उन्होने मना कर दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने इनकी याचिका स्वीकार कर इन्हे स्कूल को वापस लेने को कहा। सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि यदि कोई व्यक्ति राष्ट्र-गान का सम्मान करता है पर उसे गाता नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह इसका अपमान कर रहा है। न ही इसे न गाने के लिये दण्डित या प्रताड़ित किया जा सकता है। वंदे मातरम् राष्ट्र-गीत है इसको जबरदस्ती गाने के लिये मजबूर करने में भी यही कानून/नियम लगेगा।

जो बात मैं कहने जा रहा हूँ उसके बारे में मुझे पता नहीं कि हमारे किसी न्यायालाल ने कोई व्यवस्था दी अथवा नहीं ! यदि किसी को राष्ट्र गीत गाने के लिए मजबूर करना कानून सम्मत नहीं है तो क्या किसी को राष्ट्र गीत न गाने के लिए मजबूर करना कानून सम्मत है ? यदि नहीं तो क्या ये फतवा जारी करने वाले उलेमा इस देश के कानून से ऊपर है ? फतवा जारी करने वाले दिन पर सभा स्थल पर मौन सहमती के लिए, भिन्न-भिन्न तबके के पांच लाख से अधिक मुस्लिम मौजूद थे !

अब जो दो टके की आख़िरी बात इस विषय पर मै करना चाहता हूँ वह यह कि आज एक बार फिर एक ख़ास समुदाय की देश भक्ति पर उंगलियाँ उठने लगी है, चाहे जिसकी भी वजह से हो ! क्या हम लोग , इस देश के उन तमाम देश भक्त मुसलमानों से, उस युवा पीढी से, जो यह समझते है कि यह फतवा उचित नहीं है, क्या यह उम्मीद कर सकते है कि वे एकजुट होकर आगे आयेंगे और इन उलेमाओं को इस बात के लिए इस कदर मजबूर कर देंगे कि वे इस फतवे को वापस ले ले ! क्या ऐसा हो सकता है ???? यह मैं इस लिए पूछ रहा हूँ क्योंकि यह बात इतनी मामूली भी नहीं समझी जानी चाहिए कि जैसा कि अमूमन होता है, कुछ दिनों के हो-हल्ले के बाद यह दब जायेगी, बात निकली है तो दूर तक जायेगी !

16 comments:

  1. sahi kaha aapne baat nikli hain to dur talak jayegi

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  2. ऐसा हो सकता है, लेकिन अभी समय नही आया.. जब उनका अपना ही घर जलने लगेगा तो वे फिर उठेंगे इस आग को बुझाने के लिए

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  3. KYA KOI VAKEEL NAHI HAI JO SPECIAL PETITION DAAL KAR IS BAAT PAR SUPREEM COURT KI RAAY LE SAKE KI AISE FATWE NYAAYSAMMAT HAIN KI NAHI .......

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  4. bahut achcha laga yeh lekh godiyal sahab ......yeh fatwa watwa..... kuch nahin hota....


    Godiyal sahab.....

    main to chahta hoon ki yeh log mere khilaaf bhi koi fatwa laayen..... phir dekhiyega....aisa rula doonga ki sab fatwa watwa dena bhool jayenge....

    in logon ko sookhe paani mein chappal bhigo ke aadhi chappal maaroonga....


    mera saath agar log den to bilkul hitleri tarike se main yeh sab khatm kar doonga..... bhrashtachaar, fatwa, ghoos....anti-nation activities, in sabka ilaaj hai mere paas.....

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  5. बहुत सही लिखा है गेदियाल जी आपने । सहमत हूँ, अब इनको कुछ काम तो सुझता नहीं तो फालतु में बकवास स्वरुप फतवा जारी कर देते है, जिसका कोई मतलब ही नही होता।

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  6. कभी-कभी दो टके की बात भी
    सौ टके की लगने लगती है।

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  7. गेदियाल जी यह सब बकवास है, बस वोट इक्टटॆ करने के लिये, लेकिन जेसे जेसे मुस्लिम नोजवान ज्यादा पढते जा रहे है, शिक्षत होते जा रहे है, वेसे ही बदलते जा रहे है,भारतीया मुस्लिम तो अपने है, मेने यह परिवरतन पाकिस्तानी लोगो मै भी देखा है ,आने दे अगली पीढी को ....

    @ महफूज़ अली
    भाई आज जो विचार आप ने लिखे है, सच मै कोई ऎसा आदमी ही चाहिये इस देश को बचाने वाला, चलिये हम आप को अपना वोट देते है

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  8. "यदि किसी को राष्ट्र गीत गाने के लिए मजबूर करना कानून सम्मत नहीं है तो क्या किसी को राष्ट्र गीत न गाने के लिए मजबूर करना कानून सम्मत है ?"

    यही तो नासमझी है , न तो गाने के लिए और ना ही ना गाने के लिए मजबूर करना चाहिए !

    आप डंडा लेकर किसी के अन्दर देशभक्ति का जज्बा पैदा नहीं कर सकते ।

    फ़तवों का हर नौजवान को विरोध करना चाहिए चाहे वह किसी भी समुदाय के द्वारा दिया जाय । क्योंकि मसला चाहे जो हो यह धार्मिक आदेश भारतीय न्याय व्यवस्था को चुनौती है । सुप्रीम कोर्ट को फ़तवों पर तुरंत रोक लगा देनी चाहिए !

    ये कूढ्मगज लोग धर्म के नाम पर सिर्फ़ नफ़रत फ़ैला रहे हैं ।

    अब किन्हीं भी धर्म के धर्माधिकारियों को समाज के बाबत निर्णय लेने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए ।

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  9. महफूज भाई, जैसा की मैंने पहले भी कई बार कहा है, यही फर्क होता है एक अच्छी शिक्षा का, देश को आज आप जैसे ही लोगो की शक्त जरुरत है तभी यह देश बच सकता है ! मई अपना फर्ज समझता हूँ लेखन के द्बारा लोगो को सजग करना, अब यह इस देश के लोगो के ऊपर निर्भर करता है की वे उसे किस तरह से लेते है !

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  10. बहुत बढ़िया लिखा है आपने ! बिल्कुल सही फरमाया है!

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  11. ek Machhli sare talab ko ganda karti hai. Mera Manana hai. 1% Muslim hi dharmik taur par lete hoge. Educated muslim abhi uadasin hai, aage educated young muslim hi iska oppose karenge...chakra ghumta hai, aaj jo galat hai, kal educated muslim hi oose sahi bhi karega... samay ka chakra hai bhahi....

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  12. राज भाटिया जी की तरह हम भी महफूज़ ब्रिगेड में शामिल हैं...

    हमारा नेता कैसा हो, महफूज़ मास्टर जैसा हो...

    जय हिंद...

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  13. सही कहा। देशभक्ति एक जज़्बा है, जिसे आप थोप नहीं सकते। रहा सवाल वंदे मातरम का, तो जो गीत अनिवार्य ही नहीं है, उस पर रोक कैसी? मुसलिम समाज या कोई भी व्यक्ति पूरी तरह स्वतंत्र है इसे गाने या न गाने के लिए।

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  14. बधाई, बहुत सुंदर तरीके से आपने अपने विचार रक्खे
    और ये निकली हुयी बात तो दूर तलक जाना ही चाहिए

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  15. Godiyaal jee aameen ne bhee sahee kahaa hai aur mahafooz ne bhee aapane achha prashan uthhaayaa hai dhanyvaad

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  16. सहमत हूँ आपसे |

    फतवे का विरोध उस स्तर पे नहीं हो रहा है जिसपे होना चाहिए | पता नहीं सरकार कहाँ सोया है ?

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।