ठुमकते हुए चलते ,
तुम्हारे पैरो के
तलवों की सरगम और
नूपुरों की छम -छम से
तुम्हारे पैरो के
तलवों की सरगम और
नूपुरों की छम -छम से
मेरे दिल की गहराइयों में
छुपे भावो को ऐंसी
गूढ़ शब्दीय काव्यता मिल जाती है !
छुपे भावो को ऐंसी
गूढ़ शब्दीय काव्यता मिल जाती है !
मानो, जैसे कभी
धूल पोंछते वक्त शेल्फ में रखी
सांख्यिकी की किताबों से,
नीचे गिरती शुष्क फूल की
पंखुड़ियों की गणना करते
किसी के बेइंतिहा प्यार की
प्रबल संभाव्यता मिल जाती है !!
"तुम्हारे पैरो के
ReplyDeleteतलवों की सरगम
और तुम्हारे नुपुर की
मणियों की धड़कन से,
दिल की गहराइयों में
छुपे मेरे भावो को ,
गूढ़ शब्द-रूपी काव्यता मिली है!"
अपने ज़ज़्बात में नगमात रचाने के लिये
मैंने धड़कन की तरह दिल में बसाया है तुझे
मैं तसव्वुर भी ज़ुदाई का भला कैसे करूँ
मैंने किस्मत की लकीरों से चुराया है तुझे
वाह, गोदियाल साहब, कहाँ-कहाँ से कविता निकाल लाते हैं..और पैनापन उसी तरह..वाओ...ग्रेट..!
ReplyDeleteधूल साफ़ करते वक्त,
ReplyDeleteअचानक मिले इक
फूल की गणना से ,
मुझे अपनी
सांख्यिकी की किताब में
आज यह प्रबल संभाव्यता मिली है ....
SANKHYIKI KA LAJAWAAB PRAYOG HAI ... PYAAR KI ABHIVYAKTI KAMAAL KI HAI ....
अनोखी अभिव्यक्ति के साथ ...बहुत ही सुंदर कविता...
ReplyDeleteबहुत अनूठी और रोमांटिक रचना।
ReplyDeleteवाह!
धूल साफ़ करते वक्त,
ReplyDeleteअचानक मिले इक
फूल की गणना से ,
मुझे अपनी
सांख्यिकी की किताब में
आज यह प्रबल संभाव्यता मिली है ....
वाह क्या रचना पेश की हैथुत सुन्दर बधाई
सुंदर रचना !!
ReplyDeleteठुमकते हुए चलते,
ReplyDeleteतुम्हारे पैरो के
तलवों की सरगम और तुम्हारे नुपुर की
मणियों की धड़कन से,
दिल की गहराइयों में
छुपे मेरे भावो को ,
गूढ़ शब्द-रूपी काव्यता मिली है
behad sundar shabd vinyaas.
जोरदार है , धारदार है
ReplyDelete"उग रहा है दर-ओ-दीवार पे सब्जा गालिब्।
ReplyDeleteहम बयांबा मे हैं और घर मे बहार आई है"
क्या बात है?गोदियाल साब जख्म हरे हो रहे हैं।
अचानक मिले इक
ReplyDeleteफूल की गणना से ,
मुझे अपनी
सांख्यिकी की किताब में
आज यह प्रबल संभाव्यता मिली है !
इस उपलब्धि के लिए बधाई स्वीकार करें!
बहुत ही सुंदर भाव लिये है आप की यह कविता. धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भाव लिये है आप की यह कविता. धन्यवाद
ReplyDeleteअनोखी अभिव्यक्ति के साथ ...बहुत ही सुंदर कविता...
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