Saturday, November 28, 2009

सांख्यिकी और संभाव्यता !



ठुमकते हुए चलते ,
तुम्हारे पैरो के
तलवों की सरगम 
और 
नूपुरों की छम -छम से 
मेरे दिल की गहराइयों में
छुपे भावो को ऐंसी
गूढ़ शब्दीय काव्यता  मिल जाती  है !



मानो, जैसे कभी 
धूल पोंछते वक्त शेल्फ में रखी  
सांख्यिकी की किताबों से, 
नीचे गिरती शुष्क फूल की 
पंखुड़ियों  की गणना करते 
किसी के बेइंतिहा  प्यार  की
प्रबल संभाव्यता मिल जाती  है !!

14 comments:

  1. "तुम्हारे पैरो के
    तलवों की सरगम
    और तुम्हारे नुपुर की
    मणियों की धड़कन से,
    दिल की गहराइयों में
    छुपे मेरे भावो को ,
    गूढ़ शब्द-रूपी काव्यता मिली है!"


    अपने ज़ज़्बात में नगमात रचाने के लिये
    मैंने धड़कन की तरह दिल में बसाया है तुझे
    मैं तसव्वुर भी ज़ुदाई का भला कैसे करूँ
    मैंने किस्मत की लकीरों से चुराया है तुझे

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  2. वाह, गोदियाल साहब, कहाँ-कहाँ से कविता निकाल लाते हैं..और पैनापन उसी तरह..वाओ...ग्रेट..!

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  3. धूल साफ़ करते वक्त,
    अचानक मिले इक
    फूल की गणना से ,
    मुझे अपनी
    सांख्यिकी की किताब में
    आज यह प्रबल संभाव्यता मिली है ....

    SANKHYIKI KA LAJAWAAB PRAYOG HAI ... PYAAR KI ABHIVYAKTI KAMAAL KI HAI ....

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  4. अनोखी अभिव्यक्ति के साथ ...बहुत ही सुंदर कविता...

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  5. बहुत अनूठी और रोमांटिक रचना।
    वाह!

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  6. धूल साफ़ करते वक्त,
    अचानक मिले इक
    फूल की गणना से ,
    मुझे अपनी
    सांख्यिकी की किताब में
    आज यह प्रबल संभाव्यता मिली है ....
    वाह क्या रचना पेश की हैथुत सुन्दर बधाई

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  7. ठुमकते हुए चलते,
    तुम्हारे पैरो के
    तलवों की सरगम और तुम्हारे नुपुर की
    मणियों की धड़कन से,
    दिल की गहराइयों में
    छुपे मेरे भावो को ,
    गूढ़ शब्द-रूपी काव्यता मिली है

    behad sundar shabd vinyaas.

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  8. जोरदार है , धारदार है

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  9. "उग रहा है दर-ओ-दीवार पे सब्जा गालिब्।
    हम बयांबा मे हैं और घर मे बहार आई है"
    क्या बात है?गोदियाल साब जख्म हरे हो रहे हैं।

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  10. अचानक मिले इक
    फूल की गणना से ,
    मुझे अपनी
    सांख्यिकी की किताब में
    आज यह प्रबल संभाव्यता मिली है !

    इस उपलब्धि के लिए बधाई स्वीकार करें!

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  11. बहुत ही सुंदर भाव लिये है आप की यह कविता. धन्यवाद

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  12. बहुत ही सुंदर भाव लिये है आप की यह कविता. धन्यवाद

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  13. अनोखी अभिव्यक्ति के साथ ...बहुत ही सुंदर कविता...

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।