Saturday, November 14, 2009

ब्लॉगर दोस्तों, आपके बिचार !

यह आपका ही प्यार है जो मैं अब इतनी हिम्मत करने लगा हूँ कि आप से पूछ सकू कि आप इस बारे में क्या बिचार रखते है ? मैं यह समझ सकता हूँ कि मेरा रुख उग्र भी हो सकता है, मगर मै यदि गलत हूँ तो सही राह दिखलाना आप लोगो का फर्ज बनता है, क्योंकि आप सब एक विवेकशील समाज से संबद्ध है ! मैं आप से पूछना चाहता हूँ कि मेरे एक ख़ास दोस्त के निम्नाकित विचार है, सवाल मेरा आपसे यह है कि बढ़ती असुरक्षा और लोकतंत्र की विफलता के चलते क्या मेरे इस दोस्त के विचार सही है, अथवा गलत, आप अपनी राय दीजिये ;

"If carrying guns is made mendatory condition for citizenship, India's quality of life and level of decency in public life will soar while crime will plummet.
Bus and bank robbery , train hold ups, purse snatching, eve teasing will become things of the past.
Guns not only give you power, it changes your whole attitude.
Gun represents power. Better guns better power.
More guns more power.
It is easy to control and rule powerless people.
Knowledge is power and historically it had been restricted to a chosen few , so that ignorant masses can be easily governed.
Free press is power and therefore despotic rulers don't like free press because if people don't know , they don't act.
Politicians love to talk about empowering people by giving them voting power, which they know is almost meaningless, given the absence of education about voting and also looking at how the politicians have been successfull in manipulationg voters.
Give them guns and people become responsible. When they start thinking the cost of their actions in terms of their life, they educate themselves fast.
When people say, no guns for the people, in effect they are saying, no power for the people.
There is no need to panic at the mere mention of gun.
Guns don't kill people, people do."

12 comments:

  1. 1.1 billion guns in India, one gun for every Indian ! Waao..
    Is this a sane idea !
    Are the people without guns cowards !
    How many times, people with licensed weapons use their weapons (other than for test firing)!
    If one goes by the number of guns available for their citizen then, Afghanistan, Columbia, Somalia...must be the most peaceful places on earth.
    Can the presence of guns alone can make any so called 'dwindling' democracy do the trick !
    There are thousands of such questions...I dont find any answers to.

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  2. उग्रता बहुत ज़रूरी है..... उग्र आदमी हमेशा रूल करता है......

    मुझे ऐसा लगता है कि यह मेरा ही विचार है...... और बिलकुल सही विचार है......

    आप बिलकुल भी गलत नहीं हैं......

    जय गन ,

    जय हिंद
    जय हिन्दी
    जय भारत.....

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  3. अरे गोदियाल जी गन ही नहीं था, इसलिए कल मोबाईल और पर्स बस में चोरी हो गया साथ ही ढेर सारे पैसे भी गये,। काश गन होता मेरे पास..........

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  4. रही बात आपके विचार के तो मुझे बहुत पसन्द आया। बहुत खूब...

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  5. अजी मै तो कब से कह रहा हुं कि भारत मै एक हिटलर ही हमे इंसान बना सकता है, इन सारे हरामी नेताओ को इन की ओकात बता सकता है, क्योकि हम असल मै लंड्डे के ही लायक है

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  6. गाँधी जी के पास गन नहीं थी , क्या उनके पास ताकत नहीं थी |ताकत विचारों से होती है जिसके लिए शिक्षा जरूरी है | हर हाथ में गन नहीं अच्छी किताब हो ,काम हो तो सब ठीक हो सकता है |

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  7. सहमत है, क्षमा उस भुजंग को शोभती जिसमे गरल भरा हो।

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  8. .
    .
    .
    आदरणीय गोदियाल जी,

    एक एकदम अलग सोच, पर सोचिये, सबको रोटी तो मिल नहीं पाती अपने यहाँ, बंदूक कहां से देंगे?

    दुनिया के कई मुल्कों में बंदूक रखने के लिये लाइसेंस की जरूरत नहीं होती... अधिकतर लोग हथियार रखते भी हैं... पर अपराध फिर भी उतने के उतने हैं।

    'जब तोप हो मुकाबिल...अखबार निकालिये!'
    शायद कभी हम सारे भारतवासी पढ़ना सीख सकें... और पढ़ने को कुछ सार्थक मिल सके सभी को... तो निश्चित ही लोकतंत्र विफल नहीं होगा... और असुरक्षा भी कम होगी।

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  9. Aap sabhee logo kaa hardik shukriyaa, jo aapne apna samay nikaal apne mahtwpoorn vichaar rakhe. Thank you very much. In fact, frankly speaking, i was a bigest supporter of Mahatma once upon a time, but over a period of time, what i saw, what i observed, now i believe in preemptive strike.

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  10. गोदियाल जी, अपनी टिप्पणी में एक छोटी सी कथा का बताना चाहूँगा, जिसका उल्लेख वनवास के समय माता सीता ने राम से किया था, कथा इस प्रकार हैः

    "पूर्व काल में किसी पवित्र वन में ईश्वर की आराधना में तल्लीन रहने वाले एक सत्यवादी एवं पवित्र ऋषि निवास करते थे। उनकी कठोर तपस्या से इन्द्र भयभीत हो गये और उनकी तपस्या को भंग करना चाहा। एक दिन योद्धा का रूप धारण कर इन्द्र ऋषि के आश्रम में पहुँचे और विनयपूर्वक अपना खड्ग उस ऋषि के पास धरोहर के रूप में रख दिया। ऋषि ने उस खड्ग को लेकर अपनी कमर में बाँध लिया जिससे वह खो न जाय। कमर में बँधे खड्ग के प्रभाव से उनकी प्रवृति में रौद्रता आने लगी। परिणामस्वरूप वे तपस्या कम और रौद्र कर्म अधिक करने लगे। शस्त्र और अग्नि की संगति एक सा प्रभाव दिखाने वाली होती है।"

    देखें http://vramayan.blogspot.com/2009/11/3.html

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  11. अवधिया साहब आपकी सुने गूढ़ कथा का अर्थ समझ तो रहा हूँ मगर बात ये है की बर्दाश्त कवी भी तो एक सीमा होती है ! आखिर कब तक ?

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।