Wednesday, November 25, 2009

क्या आपका खून नही खौलता ?


आप इस बच्ची को देख रहे हो न, इस मासूम का दोष सिर्फ इतना था कि इसने आप और हम जैसे कायरो के देश में जन्म लिया ! और पड़ोसी मुल्क के कुछ राक्षसों ने इसका स्वागत बमों और गोलियों से किया !


आप इस माँ को देख रहे हो न ? आप नहीं देख पायेंगे, क्योंकि आप तो जन्मान्ध हो ! अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड से जब अपने इकलौते बच्चे की लाश पर विलखते हुए इसकी छट्पटाती अंतरात्मा की वेदना दहाड़े मार- मार कर रो रही थी, तो अगल-बगल की दीवारों की रूह भी पसीज गई थी! मगर आप कहाँ से सुनते, आप तो जन्मजात बहरे हो ! इस जैसी पता नहीं कितनी मांये जिनका बेटा-बेटी भी आतंकवाद की भेंट चढ़ गये, वह कुछ दिनों तक फूट-फूट कर रोंयीं और अपने भाग्य को कोसती रही, और फिर आखिर दिल पर पत्थर रख कर खामोश हो गई ! मगर चाहते हुए भी आप जैसे वीर पुरुषो, जो कि हरवक्त अभेद सुरक्षा कवच और कालेवर्दी धारी कमांडो से घिरे रहते हो, का कुछ नहीं बिगाड़ सकी! और आपने सोच लिया कि चलो इस बला से भी पिंड छूटा, किसी को कोई जबाब नहीं देना पडा ! लेकिन आपको शायद मालूम न हो कि एक असहाय, कमजोर और निर्दोष की 'बद-दुआ' और दिल से निकली 'हाय' कितनी शक्तिशाली होती है ! परमाणु बम से भी घातक ! वे देर-सबेर अपना विस्फोट करके ही दम लेती है ! वो जो कहते है न, कि किसी की बद-दुआ या हाय मत लो - वह एक इंसान तो क्या, पुरी कायनात - मुल्क - देश - आलम को ख़त्म कर देती है, उतनी उसमे ताकत होती है ! और उसमे फैंसला या प्रतिघात कोई इंसान नही, ख़ुद खुदा करता है ! उसकी लाठी देर से भले ही चले, लेकिन चलती सटीक है, याद रहे !


बहुत पहले एक पाकिस्तानी लेखक का लेख पढा था, और उसके ये शब्द पसंद आये थे कि इस दुनिया में मुफ्त का भोजन जैसी कोई चीज नहीं, हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है, चाहे वह युद्घ लड़ना हो, आक्रमण करना हो, अथवा कब्जा करना हो, हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है, वह भी खून से ! जब लन्दन में ७/७ का आतंकवादी हमला हुआ था तो पाकिस्तानियों का पहला सवाल था कि ब्लेयर सरकार कैसी मुस्लिम आतंकवादियों को इसके लिए सीधे जिम्मेदार ठहरा सकती है, क्या प्रूफ़ है उनके पास इसके ? फिर कुछ रोज बाद जब यह लगने लगा की हाँ, मुस्लिम आतंकी ही उस हमले के पीछे थे तो पाकिस्तानियों ने सुर बदला और पूछा कि आप कैसे कह सकते हो कि इसके पीछे पाकिस्तानी नौजवान शामिल है? और फिर कुछ दिनों बाद हमने कहा कि पश्चिम के देश तो हर आतंकवादी घटना के लिए पाकिस्तानी को ही जिम्मेदार ठहराते है !...... एकदम सटीक बात कही थी उस लेखक ने ! सच्चाई को सामने आने में थोड़े सी देर जरूर लगती है, मगर सच्चाई सामने आती ही है, और यही पाकिस्तान में हुआ ! आज पाकिस्तान में क्या हो रहा है, वह सब जग जाहिर है !



खैर, वे तो अपने कर्मो का भुगत रहे है, लेकिन जिन निर्दोषों ने साल भर पहले, और समय-समय पर उनकी वजह से मुंबई और देश के अन्य भागो में भुगता , उन्होंने कौन से पाप किये थे ? बस, उनका पाप तो यही था कि उन्होंने हमारी इस धरती पर पाकिस्तान के छद्म युद्ध को झेला ! लेकिन फिर सवाल उठता है कि क्या छद्म युद्ध झेलने के लिए निर्दोष जनता ही जिम्मेदार है? आप लोगो की कोई जिम्मेदारी नहीं जो उस आक्रमण को रोकने के लिए सीधे और परोक्ष तौर पर जिम्मेदार थे ? आपको क्या सजा मिली ? आपको जनता ने अपनी और से देश की रक्षा और सुशासन चलाने का उत्तरदायित्व सौपा था, मगर आप तो "उत्तरदायित्व " जैसे शब्द को ही कचरे के डब्बे में डाल, निर्वाचित होने के बाद नेता या मंत्री के तौर पर सिर्फ हक़ जतलाकर सरकारी खजाने और मशीनरी के दुरुपयोग को ही अपने निर्वाचन का अर्थ समझ लेते है! जो सुरक्षा जनता को देनी चाहिये थी, उस सुरक्षा को खुद के लिए हड़पे बैठे हो ! पैसा और राजकर्म की गन्दगी का घमंड आज आपके दालानों और दफ्तरों में जगह-जगह पसरा पडा है !


रही शत्रु से लोहा लेने की बात, तो ऐसा प्रतीत होता है कि हम दुश्मन के साथ बार-बार एक ही युद्घ लड़ रहे है ! लगता है कि हम दुश्मन की मंशा और रणनीति को समझने की कोशिश ही नहीं कर रहे, यही वजह है कि हमने दुश्मन को मुहतोड़ जबाब देने में ख़ास दिलचस्पी नहीं दिखाई ! जब हम हिम्मत और साहस की बात करते है तो हमारे इस साहस के प्रतिफल मे कंधार श्री जसवंत सिंह नहीं, हमारी सेनाये और तोपे जाती, कारगिल के बाद जैसा कि अंदेशा जताया जा रहा था कि मुशर्रफ परमाणु बम इस्तेमाल कर सकता था, तो या तो हम रहते, या फिर पाकिस्तान ! और तो और पार्लिआमेंट पर हमले के तुंरत बाद इस्लामाबाद पर हमारी तथाकथित लम्बी दूरी तक मार करने वाली मिसाइले गिरनी चाहिए थी, मगर अफ़सोस कि वह तो दूर, हम मृत्यु दंड पाए उस आतंकी को भी पाल-पोष रहे है जो इस आक्रमण के लिए जिम्मेदार था ! आज भले ही हममे से कुछ लोग यह तर्क दे कि हमने सब्र से काम लिया जिसका नतीजा है कि पाकिस्तान हम न जाकर, वे खुद ही आपस में लड़ मर रहे है, मगर इससे हमारे कर्त्व्य की इतिश्री और पौरुष का प्रदर्शन तो नही हो जाता, दुश्मन इसे हमारी कमजोरी और कायरता समझ बार-बार वैसे ही हमले करने को तत्पर है ! इससे अफ़सोस जनक क्या हो सकता है कि हम एक साल पहले अपनी व्यावसायिक राजधानी मुंबई पर हुए शर्मनाक हमले में पुख्ता सबूत होने के बाबजूद भी कुछ नहीं कर पाए, और आज इस डर से पतले हुए जा रहे है कि कहीं पाकिस्तानी एक बार फिर हम पर वैसा ही हमला न कर दे ! खैर, यह सब करने के लिए पीठ पर एक मजबूत रीढ़ चाहिए होती है, उह ....! मगर जहां कर्ण्धारो की जिंदगियां खुद वेंटीलेटर के सहारे चल रही हो, वहा ऐसी उम्मीद कहां तक जायज है ?


और अन्त मे : कर्नाटका/ केरल के शहीद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन, उत्तराखंड के शहीद हवलदार गजेन्द्र सिंह और मुंबई तथा महाराष्ट्रा पुलिस तथा रेलवे सुरक्षा बल के उन सभी वीर जवानो को मेरी श्रदांजली और शत-शत नमन, जिन्होंने अपने प्राण इस हमले का मुकाबला करने में न्योछावर किये !

(चित्र विभिन्न स्रोतों से साभार संकलित )


24 comments:

  1. नहीं जी, हमारा खून वून नहीं खौलता, हम तो शांतिप्रिय नागरिक हैं, हमें इस तरह की हिंसक बातों से क्या लेना देना? हम तो इसी झंझट से ऊब कर वोट तक डालने नहीं जाते..

    वैसे आपने फोटो सोटो अच्छे दिये हैं, यदि कोई शांति मार्च या मोमबत्ती मार्च निकालना हो और उसे मीडिया कवर कर रहा हो तो बताईयेगा, कल शाम को हम राजीव चौक पर मेट्रो से उतर कर इन्दिरा चौक से निकल कर श्रीमन्त माधवराव सिंधिया के रास्ते से होकर इंडियागेट पर पहुंच जायेंगे...

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  2. हाँ; कमर तो कस के रखनी ही होगी..हम तो योद्धा वेश भी तभी पहनते हैं जब दुश्मन सामने आ जाता है..व्यवहार सूझ-बूझ से करना होगा पर पर तैयार और चौकस तो हमेशा रहना होगा. मेरे मन में बार-बार आता है कि अपने देश में सभी किशोरों को compulsory military training दी जाय और जो युवा इसमे आगे भी रूचि रखते हों उन्हें और भी बेहतर प्रशिक्षण दिया जाय..हम में से प्रत्येक को तैयार रहना होगा तब ही रोजमर्रा के आतंक से हमें छुटकारा मिल सकता है..

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  3. खून बस खौल के रह जाता है गोदियाल साहब..क्योंकि हम में से अधिकांश लोगों को ये नहीं पता होता कि उन्हें करना क्या है..?

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  4. बहुत मर्मस्पर्शी आलेख। हृदयविदारक चित्र। शहीदों को शत-शत नमन।
    क्या आपका खून नही खौलता ?"
    हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
    इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
    हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गांव में,
    हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
    मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
    हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

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  5. देश के गद्दारो के सर्मथन ही करने का रिवाज हो गया है।

    जिस प्रकार के विभत्‍स दृश्‍य आपने दिखाये है रोये कॉप उठते है। आतंक का कोई धर्म नही होता पर अब कुछ धार्मिक लोग आतंक को ही आपने आराध्‍य का आदेश मानते है।

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  6. किसी की बद-दुआ या हाय मत लो - वह एक इंसान तो क्या, पुरी कायनात - मुल्क - देश - आलम को ख़त्म कर देती है, उतनी उसमे ताकत होती है!

    दुर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय।
    मुये चाम की साँस से, लोह भस्म ह्वै जाय॥

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  7. इसे पढ़ और चित्रों को देखकर किसका खून नहीं खौलेगा ?
    सभी वीर जवानों को श्रद्धांजलि !

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  8. वैसे तो शहीद पूरे देश का गौरव होता है, परन्तु मुझे लगता है आपने उन्नीकृष्णन के नाम में केरल की जगह "कर्नाटका" लिख दिया है। उन्नीकृष्णन वही हैं जिनके घर केरल के मुख्यमंत्री "अछूतानन्दन" नमक छिड़कने गये थे…।
    रही बात खून की वो तो निश्चित ही खौलता है, इसीलिये कल के दिन इस खौलते खून को रक्तदान के बहाने थोड़ा कम करने की कोशिश करेंगे…

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  9. सुरेश जी, त्रुटी की ओर ध्यान आकर्षण के लिए आपका शुक्रिया, मैंने संसोधन भी कर दिया है वैसे वर्तमान में उनके माता पिता कर्नाटका में रह रहे थे इसलिए मैंने कर्नाटका लिखा !

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  10. देख तो लिया , और सच बताऊं खून ही नहीं दिमाग भी खौल रहा है । लेकिन उन गद्दारो को शायद कुछ ना हो ।

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  11. खून भला न खौले .. पर आज की परिस्थिति मे क्‍या करना चाहिए .. किसी को समझ में नहीं आ रहा !!

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  12. वीभत्स।
    दिल दहना देने वाला मंजर।
    पर अफसोस कि हम यह सब देखने के लिए जिये जा रहे हैं।



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    क्या है कोई पहेली को बूझने वाला?
    पढ़े-लिखे भी होते हैं अंधविश्वास का शिकार।

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  13. Kyun na ham hi log hamla kar ke kasaab ko phaansi de den.... ????? yeh sarkaar ke bas ka nahi hai....

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  14. महफूज जी बिल्कुल सही कह रहे हैं । काश की ऐसा हो पाता...

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  15. बहुत खौलता है
    पर खून खौलाने से क्या होगा. जबतक इनसे निपटने के लिये इच्छाशक्ति का हनन वोट की राजनीति के द्वारा होता रहेगा.

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  16. खुदा-ए-बर्तर तेरी ज़मीं पर
    ज़मीं की खातिर ये जंग क्यों है...

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  17. बहुत खौलता है ऒर दिमाग भी ्बभुत सोचता है, लेकिन हमारे नेता सब हिजडे है, जब यह साले एक मारे तो इन के बीस मारो, एक बार कर दो हमला देखी जायेगी, अगर हम मरे भी तो शान से मरेगे, इज्जत से, ओर हमारी आने वाली पीडिया सर उठा कर जी सकेगी, फ़िर किसी कुते की हिम्मत नही होगी इधर देखने की

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  18. अजी कुछ नहीं होने वाला....बस आप और हम मिलकर थोडा सा खून जरूर जला सकते हैं ।

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  19. खून तो तब भी बहुत खौलता है, जब सड़क पर आज के अपने ही युवक बदतमीज़ी करते हुए निकल जाते हैं.
    लेकिन आज शायद जोश मे नही होश मे रहकर इनसे निपटने की ज़रूरत है.
    बहरहाल, फोटो देखकर रोंगटे खड़े हो गये.

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  20. खून तो खौल ही जाता!
    मगर,
    आग ठण्ड़ी पड़ चुकी है।

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  21. खून खौला कर भी क्या होगा अगर खून बहाना सीख ले तो अच्छा होगा

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  22. Ab aisa hi ki abhi hamare kai thikaanon tak aatanki pahunche nahi hain, to abhi kuchh karne ki jaroorat nahi hai. Vo sansad me ghus gaye koi baat nahi hum kamyaab ho gaye kyunki humne unhein maar giraya, unhone kya kar diya vo baad ki baat hai. Hum maze main hain kyun ki hamari taakat badh rahi hai, Hum maze main hai kyun ki humare jawaan veerta se ladte hain aur mar jaate hain ya kah lo shaheed ho jaate hain, shaheed hone me aur marne me ab koi fark nahi rah gaya hai. visfot hua log mar gaye kya fark padta hai ? sabko marna hai ek din. kaise bhi marein kya fark padta hai...................dhairya kab kaayarta main me badal gaya yeh humein maaloom nahi hai so baithe apni peeth thok rahe hain, bus

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  23. AAPKA LEKH PADH KAR KHOON KHOUL JAATA HAI ... AAG LAGA DENE KA MAN KARTA HAI PAR SACH KAHA HUM KAAYAR HAIN VO BHI NAHI KAR SAKTE ... HAMAARA KHOON PAANI HO GAYA HAI ... SARKAAR PANGOO HO GAYEE HAI ... NAPUNSAK HO GAYE HAIN HUM SABHI...

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।